शाख के टूटे हुए पत्ते

आत्मकथा
4.9 out of 5 (320 )

परिवर्तन ही संसार का नियम है । यह तथ्य केवल तभी शोभायमान होता है , जब इसे अपने व्यवहारिक जीवन में अपनी बुरी आदतों में बदलाव तथा जीवन के विकास में प्राकृतिक परिवर्तन में लागू किया जाए इस संसार में कोई भी वस्तु स्थायी होकर भी अस्थायी है चाहे वह धन हो , मान - सम्मान हो , स्थायी यदि है तो वह एक माता का मातृत्व एक पिता का पहाड़ जैसा साहस जो कभी भी तनिक भी कम नहीं होता , फिर चाहे वह तारामती का रोहिताश के प्रति हो या वासुदेव का श्रीकृष्ण के प्रति ईश्वर के द्वारा इस ब्रहमाण्ड में व्यक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण वस्तु धन है , यदि वह आर्थिक रूप से सक्षम है तो वह सारी सुविधाएँ खरीद कर एक समृद्ध जीवन यापन कर सकता है , परन्तु मात्र सुख - सुविधाओं को सुसज्जित कर व्यक्ति सम्पन्न नहीं होता, और न ही उस सुख - सुविधाओं से उतना मोह करता है । व्यक्ति कितना भी अथाह धन एकत्रित क्यों न न कर कर ले , यदि उसका उपभोग करने वाला ना हो I

एक गाँव में एक गरीब युगल जोड़ी निवास करती थी, आर्थिक रूप से वह बहुत ही गरीब थे किसी तरीके से अपने छोटे से खेत के हिस्से पर काम करके अपना जीवन यापन करते थे । जो भी उनके पास था उसी में वह अपना जीवन निवार्ह खुशी - खुशी कर रहे थे दोनों के मन में एक ही बात की ग्लानि थी कि उनके कोई संतान नहीं थी, यह चिंता उनको दिन प्रतिदिन खोखला करती जा रही थी

पुत्र प्राप्ति के लिए कोई भी ऐसी चौखट नहीं थी जहाँ पर उन्होंने मत्था ना टेका हो, अंततः परमात्मा की असीम कृपा से उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिससे उनकी खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहा, मानो कि उसके जीवन में एक नई उमंग की बरसात हो रही हो ऐसा मान लीजिए कि वह पुत्र प्राप्ति के बाद दुनिया का सबसे दौलतमंद इंसान हो गया हो , खुशियों के इसी सौगात के साथ दोनों पति – पत्नी अपने जीवन कि एक नयी शुरुआत करते हैं। पिता अपने पुत्र की हर मांग को पूरी करते हुए और उसके जीवन को शुलभ और भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए कठिन परिश्रम करता यहाँ तक की उसकी हर मांग को पूरा करने के लिए अपनी निजी जीवन की खुशियों को भूल जाता है

पिता अपने बेटे को शहर के सबसे अच्छे स्कूल में दाखिला करवाता है, लड़का भी होनहारी और बुद्धिमता का परिचय देते हुए अच्छी शिक्षा ग्रहण करता है और हर वर्ष परीक्षा में सफलता प्राप्त करता है इसी तरह समय बीतता गया और बेटा पढ़ लिख कर ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त कर लेता है, परन्तु पिता की आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन और भी बिगडती चली जाती है लेकिन उसकी आँखों में चमकती हुई उम्मीद कम नहीं होती है, मन को तसल्ली देता है कि बेटा एक ना एक दिन बड़ा अफसर जरुर बनेगा I इसी उम्मीद से बेटे की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने खेत के टुकड़े से कुछ हिस्सा बेच देता है और बेटा शहर जाकर कलेक्टर की पढाई के लिए एक बड़े कोचिंग सेंटर में दाखिला लेता है समय बीतता गया बेटा पढ़ लिखकर कलेक्टर की परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाता है और कलेक्टर के पद पर नियुक्ति हो जाती है नियुक्ति की बात वह सबसे पहले अपने पिता को बताता है इस खुशी की खबर को सुन कर पिता की आँखों में ख़ुशी के अंशु बहने लगते हैं और इस ख़ुशी को अपने पूरे गाँव वालो के साथ साझा करता है और खूब मिठाइयाँ बंटता है ऐसा मानो की उसके भाग खुल गए हो मानो की भगवन ने स्वयं उसकी मेहनत का फल देने स्वयं स्वर्ग से जमीन पर उतरे हों आशा की एक नयी किरण के साथ पति पत्नी दोनों अपना जीवन इस उम्मीद से ब्यतीत करते हैं कि बेटा अफसर बन गया है मिलने जरुर आयेगा और हमारे जो भी बिगड़े हुए हालात हैं उन पर मरहम लगायेगा परन्तु ऐसा होता नहीं है दिन गए महीने गए 5 साल बीतने को आ गया पर बेटा अभी तक मिलने नहीं आया ना ही कोई हाल खबर ली , पति पत्नी दोनों यही सोचकर मन को समझा लेते थे कि बेटा अब बड़ा अफसर है शहर की काफी जिम्मेदारियां है तो काम ज्यादा होगा समय नहीं मिल पता होगा छुट्टी नहीं मिलती होगी इसीलिए घर नहीं आ रहा है परन्तु शायद ऐसा नहीं था I

इंतजार करते करते बाप के सब्र का बांध टूट जाता है और वह किसी तरह से पैसे इकठ्ठा करके उस शहर में जाने की तयारी करता है जहाँ उसका बेटा नौकरी कर रहा होता है शहर में पहुच कर बेटे के ऑफिस का पता लगाते लगाते अंततः वह उसके ऑफिस पहुँच जाता है ऑफिस पहुँचते ही सुरक्षा कर्मी ने रोका क्यूंकि इनकी हालत बहुत फटी थी मर्दानी धोती और कमीज कई जगह से फटी और सिली हुई पहने था और स्वयं को कलेक्टर साहब का पिता बता रहा था सुरक्षा कर्मी बहुत देर तक हालत देख कर हंसा और फिर बोला आप और कलेक्टर साहब के पिता यह पूरा व्रतांत कलेक्टर साहब अपने ऑफिस के सी सी टी वी में देख रहे थे, और चपरासी को बुलाया और कहा यह वृद्ध व्यक्ति मेरे गाँव से आया है शायद मुझसे मिलना चाह रहा है आप जाकर के बता दो की साहब है नहीं आप अगले दिन मिलिए I चपरासी बाहर जाता है और वह बूढा व्यक्ति चपरासी के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है और कहता है बेटा मुझे मेरे बेटे से और अपने कलेक्टर साहब से मिलवा दीजिये गाँव से आया हूँ चपरासी अगले दिन मिलवाने का आश्वाशन देता है लेकिन वृद्ध पिता की अंतरात्मा कहती है की शायद मेरा बेटा मेरी हालत को देखकर मुझसे मिलना नहीं चाहता और अगर मेरी हालत ऐसी है तो उसका जिम्मेदार भी वही है क्यूंकि उसकी जरूरतों को पूरा करते करते मै अपनी जरूरते भूल गया ये सारी बातें मन में सोचता रहता है और सामने पड़ी बेंच पर बैठ कर शाम होने की प्रतीक्षा करता रहता है कि शाम को तो शायद बेटा ऑफिस से घर जायेगा नहीं मिलूँगा लेकिन आंख भर देख तो लूँगा और घर चला जाऊंगा, प्रतीक्षा करते करते शाम हो जाती है और सुबह होते ही वृद्ध पिता अपने गाँव की बस पर बैठता है और अपने घर आ जाता है पत्नी तुरंत पानी देकर के पूछती है कि बेटा कैसा है इतना पूछते ही वृद्ध पिता की आँखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे और रोते रोते बोला कि हमने किसी बेटे को पैदा ही नहीं किया था हमारा बेटा हमसे मिलने के लिए मना कर देता है ये सारी बातें अपनी पत्नी से बताता है और दोनों पति पत्नी आपस में लिपटकर रोने लगते हैं, उसकी पत्नी ने भी मन से कर्म से वचन से अपने बेटे का परित्याग कर देती है बीती बातों को भूल कर पति पत्नी अपने बचे हुए खेत के छोटे से हिस्से पर मेहनत और लगन के साथ खेती करते हैं और एक अल्प समय में वह एक छोटे से खेत के हिस्से से जिले के सबसे उन्नतिशील किसान बनके उभरते हैं और जगह जगह उनकी चर्चाएँ शुरु हो जाती हैं I

उनकी सफलता का उदाहरण दिया जाता है और उससे मिलने के लिए कृषि विभाग से लेकर जिले के सम्पूर्ण अधिकारी आते हैं कुछ समय पश्चात उसे जिले का सर्वोच्चतम किसान घोषित किया जाता है, और एक किसान सम्मान समारोह संघोस्ठी बनायीं जाती है जिसमे जिले के रैंक 1 से रैंक 10 तक किसानो को सम्मानित करना है एक समय अवधि निश्चित की जाती है और दूसरे जिलों के जिलाधिकारी और कलेक्टरों को आमंत्रित किया जाता है किसानो को सम्मानित करने के लिए, किसानो की सूचि में सबसे पहला नाम कलेक्टर साहब के पिता का होता है और अधिकारीयों में सबसे पहला नाम कलेक्टर साहब का होता है लेकिन यह बात किसी को पता नहीं है स्टेज बनता है अब सम्मानित करने की बारी आ गयी सबसे पहले रैंक 1 किसान को बुलाया जाता है जैसे ही किसान स्टेज पर जाता है तो उसकी नजर अपने बेटे पर पड़ती है और बेटे की नजर अपने पिता पर जो कि एक लकड़ी के सहारे स्टेज पर खड़ा है प्रोग्राम शुरु होता है और वह समय भी आ जाता है किसान को किसान स्मृति चिन्ह देने का लेकिन जब किसान को यह पता चलता है कि उसके बेटे के हाथों उसे सम्मानित किया जाना है तो वह मन ही मन सोच लेता है कि इसके हाथ से सम्मान नहीं लूँगा भले ही सम्मानित होऊं या ना होऊंI

और सम्मानित होने से पहले या पुरुष्कार मिलने से पहले मंच संचालक से अनुरोध करता है कि उसे माइक पर कुछ बोलना है, संचालक जी निसंकोच किसान को माइक देते हैं किसान माइक पर सिसकन भरी आवाज़ में कहता है, कि मै सफाई कर्मचारी के हाथो से सम्मानित होना अपने आपको गौरवान्वित समझूंगा, लेकिन इस अधिकारी से सम्मान लेने में मेरा अपमान होगा हालाँकि गाँव वालों को यह पता होता है की यह अधिकारी तो इनका बेटा ही है और वो लोग आपस में खुसुर पुसुर करने लगते हैं कि पता नहीं क्यूँ जबसे शहर जाकर अफसर बन गया है अपने वृद्ध माता पिता का हाल चाल भी नहीं लेता पता नहीं क्यूँ छोड़ रखा है जबकि इन्होने कोई कसर नहीं छोड़ी अफसर बनाने में, लेकिन उस व्यक्ति ने कभी भी अपने गाँव में नहीं बताया की उसका बेटा उसके साथ ऐसा बर्ताव कर रहा है, किसान की आँखों में आंसू भरे होते है माइक पकड़कर कहता है की साहब हमको धन दौलत नहीं चाहिए क्यूंकि दौलत तो यहीं रह जाएगी भारत के महान शासक अशोक सम्राट और विश्व विजेता सिकंदर भी नहीं ले जा पाए, साहब हमारे लिए हमारी सबसे बड़ी दौलत हमारी औलाद है जिस औलाद को पाने की खातिर हमारी आधी उम्र बीत गई, ना जाने कितनी मन्नतो के बाद हमें मिला इसका लालन पालन कर इसे पढाया लिखाया और इस काबिल बनाया, कि आज वह जिले का कलेक्टर है परन्तु दुःख इस बात का है वह मेरा अच्छा बेटा नहीं बन सका, क्यूंकि कलेक्टर बनने के बाद अगर फटी कमीज में मै इसके सामने जाता हूँ तो इसकी बेज्जती होती थी और मुझे अपना पिता कहने से इंकार कर रहा था लेकिन आज मुझे इसको अपना बेटा कहने में शर्म महसूस होती है इसको एक सफल व्यक्ति बनाने में मैंने हर संभव प्रयास किया जो हर पिता करता है और इसको सफल बनाया लेकिन साहब मुझे लगता है कि इसकी परवरिश करने में हम दोनों की कुछ कमी रह गयी इसलिए ऐसा हुआ, होता भी क्यूँ नहीं अब तो यह बड़ा आदमी होगया है ना अतः मै ऐसी औलाद को धिक्कारता हूँ और इश्वर से प्रार्थना करता हूँ की ऐसी औलाद से बेऔलाद रहना ही ठीक है, श्री मान आज मै इस मंच के माध्यम से तमाम युवाओं को यह सन्देश देना चाहूँगा कि आप आज जो भी है आई ए एस, आई पी एस, पी सी एस, डॉक्टर, इंजिनियर वो सब आप अपने माता पिता की बदौलत हैं जो आपके प्रथम गुरु होते है ”पिता अनपढ़ हो कर भी बच्चो का सम्पूर्ण ज्ञान है”

उनकी ही शिक्षा और आशीर्वाद से ही दुनिया की बड़ी से बड़ी बुलंदी को हासिल किया जा सकता है,कभी भी माता पिता को पुराने पेड़ का टुटा हुआ पत्ता नहीं समझना चाहिए उस पिता के दिल से भी एक सहमी हुई आवाज़ में एक आह निकलती हैI

शाख के टूटे हुए पत्ते ना समझो

मै तुम्हारे जन्म की सच्ची कहानी हूँ

ढल चुकी है अज वो मेरी जवानी

आने वाला है जो तुमपे कल बुढ़ापा

उस बुढ़ापे की मै एक निश्चित निशानी हूँ

मै तुम्हारे ...............................

बैठ कर कंधो पर मेरे

अपने बचपन को बिताया

थाम कर ऊँगली को मेरी

तुझको तो चलना सिखाया

गलतियों से बच सको तो

ऐसा पाथ तुझको दिखाया

मै तो था अनपढ़ तुझे पढना सिखाया

खुद तो भूखा सो गया पर तुझको खिलाया

दे दिया आकार अपनी कोंख में तुझको सुलाया

उस अभागन माँ की

मै अंतिम निशानी हूँ

मै तुम्हारे ...............................

किसान के इन वाक्यों को सुन कर लोगो के अश्रुधार बहने लगी, सभी ने खड़े होकर किसान के सम्मान में ताली बजायी, और पिता अपने बेटे से बिना कुछ बोले बिना कुछ कहे अपने घर की तरफ चल देता है I

താങ്കൾ ഇഷ്ടപ്പെടുന്ന കഥകൾ

X
Please Wait ...