JUNE 10th - JULY 10th
आज
सूर्य ला सकता है जीवन में उम्मीद की किरण। उसने सूर्य में ढूँढ़ा अपने पिता को। पहाड़ उसे अपने सीने से लगा कर ले सकते हैं उसके सारे दुःख और बहा सकते हैं किसी नदी में। उसने पहाड़ों में खोजा अपने पिता को। बहुत दूर किसी अन्जान गहराई में से आ रही है उसके पिता की आवाज़। उसने अगाध गर्त्त में उतर कर ढूँढ़ा अपने पिता को। हवाओं की सरसराहट गवाही देती है उसने हवाओं के स्पर्श में ढूँढ़ा अपने पिता को। कहाँ-कहाँ और किस-किस में नहीं ढूँढ़ा उसने अपने पिता को! कहीं-किसी में भी नहीं पाया उसने अपने पिता को। यह जो कुछ भी हो रहा था उसके साथ - उसके भीतर, यह तो चिरकाल से होता आया है। यह दुःख का पहला पड़ाव है कि जिसे गंगा में बहा आए उसे पुनः संसार में ढूँढ़ा जाता है। माँ यह सब देख पा रही थी। माँ नयी नयी विधवा हुयी थी। माँ ने अपनी बेटी से कहा आज से मैं ही तुम्हारी माँ और पिता दोनों हूँ। जिस पर बेटी चुप रही। यह तो किसी को नहीं पता कि उसने माँ में ढूँढ़ना चाहा अपने पिता को? चाहा होगा तब भी माँ के लिए बेहद ज़रूरी था माँ ही बने रहना, अपनी बेटी 'अमल' को ज़िन्दगी में वापस लाने के लिए।
यह कहानी अमल की है। अमल, माला और मृतक अमित की इकलौती बेटी है। कहानी किसी और की होती तो मृतक के बदले स्वर्गवासी लिखा होता। स्वर्ग है तो नर्क भी है। अगर नर्कवासी नहीं लिख सकते तो स्वर्गवासी भी नहीं लिखना चाहिए। यह टेढ़ी सोच उसे अपने पिता से ही विरासत में मिली है। और मिला है मौन। कभी तो माला भी थक कर अमित की तस्वीर से शिकायत करती है कि तुम दोनों के मौन के बीच, मैं हमेशा से फंसती आई हूँ। आज दोनों स्त्रियाँ एक अजीब से मोड़ पर खड़ी हैं। एक पत्नी जिसने अपने पति की मृत्यु और अपना वैधव्य ऐसे स्वीकारा जैसे ईश्वर ने उसे इस परिस्थिति के लिए पहले से तैयार किया हो। या फिर यह एक पत्नी ने नहीं, एक माँ ने स्वीकारा है क्यूंकि वो जानती है उसके सामने उसकी बुझी हुयी, किसी गहराई में गुम, आधी अनाथ बेटी खड़ी है! जो अपने पिता को खोने के बाद जीवन और मृत्यु से जुड़ी स्थायी-अस्थायी, अर्थपूर्ण-अर्थहीन, जन्म-जन्म के कर्म और होने न होने के भ्रम के बीच की यात्रा पर निकल पड़ी है। उसे वहाँ से वापस लाना ज़रूरी है... बहुत से रिश्ते बचाने के लिए!
कल
अमल का अमित से सपनों का रिश्ता था। संगीत ओर साहित्य का था। आध्यात्मिकता ओर समानता का था। अमित के रहते अमल को कभी पैट्रीआर्की या पुरुष-प्रधान तंत्र का सामना नहीं करना पड़ा। दोनों के लिए पुराने गीत ओर पुराने ज़माने के साथ-साथ पिरीअड्ज़, प्रॉस्टेट, नयी पीढ़ी ओर नयी सोच की बात करना भी आसान था। अमल को जब पहली बार रक्तस्त्राव हुआ तब माला घर पर नहीं थी ओर ना ही अमल को इसके लिए तैयार किया गया था। अमित घर पर था ओर उसीने अमल को संभाला था। माला की अलमारी से सैनिटेरी नैपकिन निकालकर अमल को दिया था, कैसे ओर कहाँ पहनना है यह भी समझाया था। अमल का मूड ठीक करने के लिए हलवाई से गुलाबजामुन ले आया था। और मिक्स कसेट भी लगाया था जिस में एक तरफ़ लता-मुकेश और दूसरी तरफ़ लता-रफ़ी के गाने बज रहे थे। अमित के रहते अमल एक बेफ़िक्र, आज़ाद और खिलखिलाती हुई लड़की थी। अमल का जीवन अमित से भरा हुआ था। अमित उसका ऐंगकर था, राज़दार था, घर था, ठिकाना था, पार्टनर इन क्राइम और सुकून था। ड्राइविंग अमल को उसकी माँ ने सिखाई लेकिन वो दोस्त जो हमेशा बैक-सीट पर बैठ के लुत्फ़ उठाता रहा वो अमित था। देखनेवाले देखते थे, कहनेवाले कहते थे लेकिन सुननेवाले बिन्दास लॉन्ग ड्राइव पर निकल पड़ते थे। अपने बॉयफ्रेंड की बात अमल ने बाइक पर ही पीछे बैठे अमित को बताई थी। शुक्र है बाइक अमल चला रही थी। अमित के हाथों में होती तो उस बात पर शॉर्ट ब्रेक लग जानी थी। इसलिए नहीं कि अमल का बॉयफ्रेंड है??? बल्कि, इसलिए कि अमल का बॉयफ्रेंड है!!! यानि कि बेटी को बिदा करने का वक़्त नज़्दीक है। और फिर शादी की तैयारियाँ हो गई शुरू। लड़के को पसन्द करने में या उसे पूरी तरह से अपनाने में अमित को देर नहीं लगी। लेकिन माला ज़रूर बेचैन थी। इसलिए नहीं कि लड़के में कोई बुराई थी बल्कि, इसलिए क्यूंकि अमित के लिए बहुत मुश्किल होनेवाला था अपनी बेस्टफ्रेंड को बिदा करना। शादी की जितनी भी ख़रीदारी, रस्में और क़स्में थीं उन सब में अमित और माला दोनों हमेशा मौजूद थे। हाँ, अमित बहुत ज़्यादा मौजूद था- तन, मन और धन से। अपने सारे सपने, अरमान, दिलचस्पी और दिलदारी लिए। यह अलग किस्म की पटर्निटी लीव थी। एक पिता अपना हर पल अपनी बेटी की ऑर्बिट में बिताना चाहता था। अपने जगमगाते दिये को आँख से ओझल नहीं होने देना चाहता था। शादी के बाद अमूमन सब बदल जाता है जो कि अमल की ज़िन्दगी में भी हुआ। मध्यप्रदेश की अमल कर्नाटक के सच्चित से शादी के बाद मुम्बई में रहने लगी। दोनों मीडिया वाले थे। वक़्त कम और डेडलाइन्स ज़्यादा थे। प्लान करके साल में तीन बार छुट्टी लेते थे। एक ससुराल के लिए, एक मायके जाने के लिए और एक नयी जगह घूमने के लिए। और अगर कोई त्यौहार शुक्रवार या सोमवार को पड़ता तो वीकेन्ड मिला कर अमल ज़रूर मायके अपने माँ-पिता के साथ रहने चली जाती थी। शादी के बाद मायके में इन्सटॉलमेंट में जाना होता है जो कि बहुत क़ीमती होता है। अमल और अमित बख़ूबी इसे निभाना जानते थे। सुबह की कॉफ़ी से लेकर रात की खीर तक, ७० से लेकर ९० की फिल्मों तक, शाम की ५ कि.मी वॉक से लौटते समय मसाला सोड़ा तक, पॉलिटिक्स से लेकर एस्ट्रोनॉमी तक - जमी रहती थी बाप और बेटी की संगत।
ख़बर
इस संसार में मृत्यु से बुरी कोई ख़बर नहीं। मृत्यु से बड़ा कोई दुःख नहीं। और उस दुःख को स्वीकारने की या उससे उबरने की कोई तारीख़ नहीं। अमल को अपने पिता की मृत्यु की ख़बर फ़ोन पर मिली थी। ताऊजी के बड़े बेटे ने बताया था, "अमल, अमित चाचा नहीं रहे। मैसिव हार्ट अटैक था। माला चाची सदमे में है। तुम जल्द से जल्द आने की कोशिश करो। हिन्दू शास्त्रों को ध्यान में रखते हुए सब बड़ों ने तय किया है कि चाचा की बॉडी का आज ही सूर्यास्त से पहले अंतिम संस्कार करेंगे।" लेकिन यह कोई नहीं जानता कि अमल के मस्तिष्क में सारी बात पहुंची थी भी या नहीं! उसके कानों ने सिर्फ़ इतना सुना था कि उसके पापा नहीं रहे। बाक़ी की ख़बर राख बन कर हवा में उड़ गई थी। दो दिन बाद जब वह सच्चित के साथ अपने पिता के घर पहुंची, आँखें ज़ेहन के किसी कोने में क़ैद करके, अपनी माँ के पास गई। माला अमल के सीने में छिपकर बच्चे की तरह रोयी। शांत होने के बाद जब उसने अमल को देखा तो जाना कि अमल की रुलाई में एक चुप्पी-सी थी। उसकी आँखें अपनी ही माँ की आँखों में नहीं देख पा रही थी। वह घर के किसी भी कोने को नहीं देख पा रही थी। क्यूंकि आँख उठाकर ऊपर देखने का मतलब था पिता की मृत्यु को स्वीकार करना। और अमल के लिए तो इस दुःख को अग्निदाह देकर उसकी परिक्रमा करना अभी बाक़ी था / बाक़ी है !
एक बार फिर आज
९ महीने बीत चुके हैं। लगभग सभी की ज़िन्दगी ऐसे ही चल रही है जैसे चलनी चाहिए। अमित का न होना अमित से जुड़े सभी रिश्तों का वर्तमान है। वर्तमान की अपनी एक मध्यम गति होती है - चाहो तो क़दम से क़दम मिला कर उसके साथ चला जा सकता है। एक मर्यादा होती है - चाहो तो उसे स्वीकारा जा सकता है। एक संभावना होती है - चाहो तो उसे नए नज़रिये से देखा जा सकता है। लेकिन अमल का वर्तमान है, एक अज्ञात अगाध शून्य की यात्रा। अपने पिता को ढूंढ़ने की यात्रा। जो चला गया है उसके पीछे जाने की यात्रा। आध्यात्मिकता की दृष्टि से कोई सवाल मायने नहीं रखता फिर भी 'जो है' और 'जो नहीं है' के बीच उलझे हुए लोगों के मन में ये सवाल उठते हैं - क्या अंतिम संस्कार के लिए अमल का इन्तज़ार करना चाहिए था? क्या अमित के मृत शरीर को एक आख़िरी बार छू पाती अमल तो उसका दुःख कम होता? क्या अमित के सीने में अपनी बेटी को अलविदा कह पाने तक की साँसें होनी चाहिए थी? क्या शून्य से लौट कर आ पाएगी अमल, नहीं आई तो और आएगी तो क्या पहले वाली अमल रह पाएगी? अमल के इस अँधेरे वर्तमान में एक-दूसरे की हिम्मत बनकर बड़े विश्वास के साथ खड़े हैं दो लोग - माला और सच्चित - मुम्बई के घर में। कॉफ़ी का कप टेबल पर रखा है, लता-मुकेश के गीत फ़ोन से ब्लूटूथ स्पीकर पर लगाए हैं, माला गुलाबजामुन बना रही है। सच्चित बाइक की चाबी लेकर अमल को इशारे से कह रहा है, 'लॉन्ग ड्राइव पर चलें'? आज अमल की थेरेपी का तेरहवाँ दिन है!
#160
1,73,840
840
: 1,73,000
17
4.9 (17 )
swatis1609
The one which touches something more than your heart
nainapstel81
Beautifully expressed - the depth of emotions left me so impressed!
sangeetavenkatesh7
This was such a touching account of a father and daughter's relationship. And a sensitive portrayal of those left behind after the best friend (the father) is gone. How a sombre story can be laced with humour too has been exhibited by the writer (Swargwasi /Narakwasi!) and the scooter account. Loved reading a mature piece after ages in times of fluff and insta-gratification.
Description in detail *
Thank you for taking the time to report this. Our team will review this and contact you if we need more information.
10
20
30
40
50