JUNE 10th - JULY 10th
(दुनियाभर में वैश्विक महामारी बनकर फैले कोरोना वायरस का प्रकोप दिनों दिन बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते देश में जगह जगह पर लाॅकडाउन है। मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। सार्वजनिक जुटान और भीड़-भाड़ से परहेज करते हुए अपने घरों में रहना ही इस बीमारी से बचाव का तरीका है। )
राखी को बहुत तकलीफ हो रही थी। जिस समय उससे सांसे बहुत कम ली जा रही थी। दोनों पति-पत्नी बहुत घबरा रहे थे। अरनब को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें ? अस्पताल में मरीजों की भारी भीड़ के जमाव के कारण वो राखी को अंदर भी ना ले जा सका। ऑक्सीजन मिलना तो कतई असंभव सा ही हो गया था। बीमारी में अगर लाचारी भी साथ हो जाए तो इंसान अंदर से बहुत टूट जाता। लेकिन अरनब राखी से बहुत प्रेम करता है वो ऐसे ही उसको दर्द से , बीमारी से जूझते हुए नहीं देख सकता था। लेकिन पैसे ना होने के कारण वह ऑक्सीजन सिलेंडर भी नहीं खरीद सकता था। ₹300 की गैस वाला ऑक्सीजन सिलेंडर बाहर के लोग 30000 में दे रहे थे। लोगों की लाचारी की आड़ में अपना धंधा चला रहे थे। इंसानियत नाम की कोई चीज उनके अंदर नहीं बची थी।अब जैसे तैसे करके अरनब राखी को गांव से शहर लाया था इलाज कराने के लिए। लेकिन यह सब देख उसका दिल भर आया।अस्पताल में भी मरीजों को अलग-अलग रंगों के जोन में रखा जा रहा था। लाल वाला जॉन वह था जहां पर कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों को भर्ती किया जा रहा था उनका इलाज करा जा रहा था। पीले रंग के जोन में कोरोना से ठीक हुए मरीजों को देखभाल के लिए रखा जा रहा था। अब 1 जोन और बचा हरे रंग का जहां पर बाकी सभी मरीजों की देखरेख हो रही थी लेकिन इन तीनों जोन में से कोई भी जोन खाली नहीं था और राखी को डॉक्टर तक नसीब न हो सका।
यह सब देखते-देखते राखी की तबीयत अब और बिगड़ने लगी थी। उसकी तकलीफ अब और ज्यादा बढ़ने लगी थी।बेबस अरनब खुद न कोई डॉक्टर था और न कोई भगवान जो अपनी पत्नी को बीमार ही नहीं होने देता। मगर वो एक अच्छा साहसी और समझदार इंसान जरूर था।
उसने कुछ लोगों से मदद की गुहार लगाई लेकिन किसी एक ने भी उसकी ना सुनी।और लोगों ने यह कहा कि फ्री में यहां कुछ नहीं मिलता अगर फ्री में चाहिए तो पेड़ से मुंह लगा लो जब वह ऑक्सीजन छोड़े तो अक्सीजन वहां से ले लेना और वह लोग अरनव को डांटते हुए चले गए।
अरनब को इस बात से यह समझ आ गया कि यहां उसकी कोई इंसान मदद नहीं करने वाला। उसने उस व्यक्ति की बात को भी ध्यान से सुना था फिर अपनी समझ से उसे समझ आ गया कि वह व्यक्ति अनजाने में ही सही लेकिन बिल्कुल सही बात कह गया। अरनब अब राखी की तरफ दौड़ता है और उसे सीधा जंगल की ओर ले जाता है। वहां वह एक वृक्ष तलाशता है जिसका नाम पीपल होता है।मैं आपको यह भी बता दूं कि पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर ही गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उन्होंने भी पीपल का ही चुनाव किया था अपनी ध्यान साधना के लिए। प्रकृति के कुछ चुनिंदा वृक्षों में से एक पीपल का वृक्ष भी ऐसा है जो हर वक्त ऑक्सीजन प्रदान करता है इस धरती को इंसान को।
जैसे ही अरनब को पीपल का वृक्ष दिखता है। वह राखी को उसके नीचे बिठा देता है और राखी को साहस देते हुए लंबी और गहरी सांसे लेने को कहता है। जैसे ही समय बीतता है राखी को सांस लेने में कम तकलीफ होने लगती है। पीपल के वृक्ष की वजह से उसको वहां भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है जिसकी वजह से वह थोड़ी-थोड़ी ठीक होने लगती है। वह उसको देखता है और उसे ठीक होते देख बहुत खुश होता है।वह समाज की परवाह किए बिना उसे घंटों पीपल के पेड़ के नीचे बिठाए रखता है और प्रकृति का अनगिनत बार शुक्रिया अदा करता है। कहता है यहां ना कोई लाल जॉन है ना कोई पीला जोन है ना कोई हरा जोन है यहां पर सिर्फ प्रकृति का जोन है जहां आसमान छत है और उस छत के नीचे सभी एक साथ रहते हैं। प्रकृति है तो हम हैं और प्रकृति नहीं तो हम भी नहीं। यह सब कहते हुए उनको शाम हो चलती है और राखी अब फिर से अच्छे से बिना परेशानी के सांस लेने लगती है। वह फिर से शुक्रिया अदा करता है प्रकृति का और राखी को लेकर अपने घर की ओर चल देता है।
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ABHISHEK KUMAR
aapki khani dil choo gayi.. ye aaj ki sacchai hai.. en dono k pyaar ko salam..
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