JUNE 10th - JULY 10th
शीर्षक: शहद की फ़ीकी लक़ीर (मोनोलॉग)
तुम्हारी स्मृतियों की छूट गई लकीर से बना एक शब्दचित्र है। गद्य है। सारी उलझन इस बात को लेकर है कि उसे कहा क्या जाए। डायरी नहीं हो सकती, लेख नहीं। कहूँगा आपबीती है, तो उलझनें होंगी कई। तो बस यह है, जिसका निर्णय मैं नहीं कर पा रहा कि यह क्या है। मोनोलॉग कहता हूॅं मैं इसे फ़िलहाल।
आज फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ साहब की पुण्यतिथि है। किसी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए अर्ज़ किया कि गुलशन का कारोबार अब भी बंद है। किसी ने जानकारी बढ़ाने को यह जोड़ दिया कि यह फ़ैज़ का प्रेम का नहीं, क्रांति का स्वर है। उस दूसरे आदमी की बात को मोड़ देते हुए मैंने प्रेम को भी एक क्रांति माना। फ़ैज़ की पंक्ति को तुमसे जोड़ कर देखने लगा । मुझे ख़याल आया कि इधर भी गुलशन का यही हाल है। अगर तुम चली आओ, तो चल पड़ेगा कारोबार। गुलों का तो नहीं, लेकिन नज़्मों का सिलसिला मेरे मन में चल पड़ा है। वे उमड़ रही हैं। तुम तक पहुँचने को मचल रही हैं—
कैनवस पर
ब्रश के पहले चुंबन के तुरंत बाद
कुर्सी से उठकर चली गयी
चित्रित होती स्त्री
कितने सारे रंग हैं, सूखते हैं
मुॅंह चिढ़ाती रंग की एक रेख है
जैसा वह कह रही थी
कुर्सी पर बैठने से पहले
सचमुच, समय ही समय है
हाथघड़ी की सुइयाॅं
घंटाघर-सी बजती हैं।
कैसी लावारिस है यह नज़्म? इसे सुनने के लिए यहाँ तुम मौजूद नहीं हो। तुम दूर-दूर तक कहीं नहीं हो। तुम इतनी भी गुमसुम क्यों हुई हो कि अब बातूनी चिड़िया नहीं रह गई हो? हर वक़्त मैं तुम्हारे फ़ोन का इंतज़ार करता हूं। यह संयोग ही होगा, जब से तुम गई हो, तब से मुझे कुछ अनजान नंबरों से फ़ोन आने लगे हैं। जानता हूॅं कि उनका तुमसे कोई लेना देना नहीं है। एक तो यह दूसरा देश, यहाॅं तुम्हारे और मेरे बीच सेतु और कौन है? हम ही दो सिरे थे और हमारी कोशिशें ही सेतु थीं। ट्रूकॉलर फ़ोन उठाने से पहले ही दिखा देता है कि स्पैम कॉल आया है। यह जानते हुए भी मैं फ़ोन उठाने का विकल्प चुनता हूॅं। पहले मैं फ़ोन पर सामने वाले को "इंग्लिश, इंग्लिश प्लीज" बोलता था, ताकि वे अंग्रेज़ी में बात करें या समझ जाएं कि मैं उनकी भाषा नहीं समझ पाता। इतने पर भी वे कुछ समय तक बोलते रहते, तो मैं मज़ाक में बंगाली और मैंड्रिन का मिलाजुला "आमी इंदु रन (मैं भारत का नागरिक हूॅं)" बोलने लगा। फिर और मज़ाक करने के लिए कभी न्यूजीलैंड, कभी ऑस्ट्रेलिया, तो कभी अफ्रीका का वासी बन जाता हूं। इस चक्कर में मैं दुनिया के कई देशों का नागरिक बन चुका हूॅं। मैं ऐसे मुल्कों का भी बाशिंदा रह चुका हूॅं, जहाॅं यदि वर्तमान जैसे हालात मेरे जीवन भर रहे, तो मैं कभी क़दम नहीं रख पाऊंगा। मसलन, सीरिया और अफ़ग़ानिस्तान। इतिहास दिलासा देता है कि दुनिया में सदा सब एक जैसा नहीं रहता। लेकिन, मैं तो उस प्रभाव में हूॅं, जिसमें मेरी पीठ पर चाबुक पड़ी है; तुम रथ से उतर गई हो। और इस मामले में कुछ बदलने की कोई संभावना नहीं दिखती। बहरहाल, स्पैम कॉल के जवाब पर मेरे मज़ाक में अब लगभग सभी देश, जिनके नाम मुझे याद हैं, कवर हो चुके हैं। आजकल ऐसा कोई कॉल आने पर मैं ताली पीट-पीटकर गाने लगता हूॅं— "बल्ले बल्ले नी सोणियो दे रंग देख लो, बिना डोर के ये उड़ती पतंग देख लो"। मैं कुछ ऐसा माहौल बना देता हूॅं, जैसे किसी शादी में गीत गाए जा रहे हो। तुम ठहरीं पंजाबन और यदि हमारी शादी हुई होती तो टप्पे गाये गए होते। मैं गीत को टप्पे के अंदाज़ में गाने लगता हूं । पचपन सेकंड तक स्पैम कॉल पर बोलती हुई महिला न जाने मैंड्रिन में क्या-क्या कहती है। अंत में वह थक कर फोन रख देती है, मुझे पागल समझकर, शायद । जहाॅं से भी उसे स्पैम कॉल या विज्ञापन करने का कॉन्टैक्ट मिलता होगा, उसे प्रत्येक कॉल के हिसाब से पैसे मिलते होंगे। किसने कितनी देर बात की, शायद उसका भी कुछ फ़र्क पड़ता हो। इस हिसाब से ऑन रिकॉर्ड मैंने उससे अच्छी ख़ासी बात कर ली। और उसे पचपन सेकंड में हमारी कभी न हुई शादी के गीत भी सुनने को मिल गए।
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तुमने अपनी परेशानी बताई थी। तुमने यह भी कहा कि तुम चाहती हो, यह सुलझ जाए। मैं निकल पड़ा उॅंगलियों और युक्तिओं से उन्हें सुलझाने। अलग-अलग नाप की सलाइयाॅं लेकर एक गर्म लिबास बुनकर तुम्हें ओढ़ाने। मैं करता भी क्या? मैंने अपने जीवन में जो देखा था, वह इस बात की अनुमति नहीं देता था कि मैं उसका रत्ती भर भी तुम्हें सहने दूॅं। लेकिन तुम पर हर सीधी बात का हुआ उल्टा ही असर। वह उस तरह की क्रिया-प्रतिक्रिया नहीं थी, जो आगे बढ़ने में मदद करती है। एक टंगड़ी लगी और मैं गिर गया। मैं उठा, मैंने सब स्पष्ट करना चाहा। लेकिन ईश्वर ही जाने, कितनी उलझी हुई थीं तुम।
मैंने तुमसे कहा कि मेरे जीवन का उजाला तुम हो। और अमावस्या के अंधकार में भी जो थोड़ा-बहुत उजाला दीखता है, तारों का, वह भी तुमसे ही है। सारे तारे, तुम ही तो हो। और चूॅंकि तुम अनुपस्थित रहीं, अपनी दीपावली अंधेरे में मनाई मैंने। तुमने जवाब दिया था, "कितना अच्छा बोलते हो तुम, काश सब सच भी होता।" तारीख़ में शुक्ल पक्ष शुरू होने जा रहा था और एक झटके में तुमने लकीर भर चाॅंद और सारे तारे बुझा दिए थे।
तुम 'तुम' से 'तू' पर तो आ ही चुकी थीं। और मैं यक़ीन नहीं कर पा रहा था कि यह वही लड़की है, जिसे बड़ी हिचक हुई थी, मुझे 'आप' न कहने में। एक दिन तुम चीख़ीं, चिल्लाईं। गाली-गलौज पर उतर आईं। मैं रिश्ते को बराबरी के धरातल पर देखने का पक्षधर रहा, मैंने तुम्हें हर बार 'तुम' कहा। मैं अब भी तुम्हें 'तुम' ही कहता हूँ। तुम्हारे पूरे साथ के दौरान मैं उस स्थिति में था, जब मुझे जीवन से ज़्यादा प्रिय थीं तुम। चार बार तो मैं उस स्थिति में पड़ा, जब मैं तुम्हारे न होने के दुःख में जीवन त्याग सकता था। और तुमने चालीस बार यह बात दोहराई कि तुम यह जानकर संतुष्ट हो कि मैं इस कगार पर आ खड़ा हूॅं ।
क्या अपमान का घूॅंट पीकर किसी रिश्ते को बचाए रखने के लिए विनम्र बने रहना ऐसा कुछ है, जिसकी वजह से दुनिया की नज़रों में मेरी इज़्ज़त गिर जाती? और अगर है, तो रहे। मुझे सब्र है और रहेगा कि मैं सम्यक रहा; फ़क्र भले न हो, अपनी अतिशय भावुकता पर।
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तुम्हारे घाव थे। घाव जो बचपन में कोई दे गया था, तुमने मुझे दिखाए थे । मेरा दिल दहल गया था सुनकर। कोई कैसे किसी बच्ची के साथ इतना ग़लत कर सकता है। तुम उसे अपने मम्मी-पापा के साथ शेयर नहीं करना चाहती थीं, क्योंकि तुम्हें लगता था कि उन्हें यह बात कचोटती रहेगी कि वे अपनी बेटी को सुरक्षित नहीं रख पाए । तुम एक अच्छी बेटी रहीं। उन यादों से निकलने के कुछ तरीके थे। वे मैंने कुछ और लड़कियों की आपबीती पढ़कर, सुनकर जाने थे। उनसे सुनकर ही मैंने जाना था कि किसी से सब कुछ कह देना मन को हल्का कर देता है। तुम किसी साइकोलॉजिस्ट से मिलने को तैयार नहीं थी। तो मैंने बात की। और मैंने वह सब किया जो मुझे लड़कियों और साइकोलॉजिस्ट द्वारा बताया गया था। उस समय के लिए तुमने मुझे सुना और तुम चुप रहीं। फिर हम दूसरी बातें करने लगे। फिर कुछ और बातें। और अचानक एक दिन किसी दूसरी बात पर तुम नाराज़ हो बैठी। वह कोई बड़ी बात न थी। और बहुत मनुहार करने पर तुमने कहा कि मैंने तुम्हारे भूतकाल को छेड़ा। मैंने तो तुमसे कुछ नहीं पूछा था तुम्हारी बीती हुई ज़िन्दगी के बारे में । तुमने ही बताया, मैं इसे ग़लत नहीं मानता। लेकिन मुझे दोष देना भी कहाॅं ठीक था? मैं समझता हूॅं कि यह एक भयानक ट्रॉमा है। मैं जानता हूॅं, यह कैसे ज़िंदगी को प्रभावित करता है और प्रेम में कैसे खटास डालता है। अगर साइकोलॉजिस्ट ने मेरे ज़रिए न कहकर, सीधे तुम्हें वही सब मदद की होती तो तुम उसे इस तरह गालियां न देतीं। मैं सोचता हूॅं कि तुम्हारी भावनाएं कसक रही होंगी।
भरोसे की नींव रखने के लिए मैंने चुना हर उस क्षण के बारे में तुम्हें बताना जब मेरा भरोसा टूटा था। मैंने अपने सबसे कमज़ोर तंतुओं को तुम्हारे सामने ख़ुला छोड़ दिया।
पहले पहल, तुम मरहम हुईं। बाद में, इतिहास न दोहराने की मेरी रिरियाहट पर तुमने कहा कि मैं दोबारा तुम्हारे घाव कुरेद रहा हूँ, जबकि छेड़ तो मैं अपने घाव रहा था। तुम्हें मालूम है, उनसे ख़ून बह रहा था?
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मालूम नहीं तुम किस आदत का सहारा लेकर मेरी आदत छोड़ पाओगी क्योंकि मैं तो मार तमाम कोशिशें करके हार चुका हूॅं। आज सब ठीक होने की एक और आशा बुझ गई है। मैं सिर्फ़ अपने साथ बैठा 'इन एक्सेस (INXS)' का वह गीत याद कर रहा हूॅं, जिसे पहली बार तुम्हें खो देने के डर की कल्पना में सुना था— टच मी एंड आई विल फॉलो, इन योर आफ्टरग्लो।
तुम्हें अगला प्रेम होने की संभावना से भी मैं सिहर उठता हूॅं। मैं चाहता हूॅं कि तुम्हारा वह अगला प्रेम भी मैं ही हो सकूॅं। हालांकि हमारे रास्ते एक होने की संभावना नगण्य है और कोई नया प्रेम तुम्हें होगा ही। अगर तुम्हें नहीं, तो तुमसे किसी और को प्रेम हो ही जाएगा। और वह तुम्हें पाने को भागीरथ प्रयास करेगा। मैं भी प्रयास कर ही रहा हूॅं। नीम से कड़वे तुम्हारे बोलों के बावजूद तुम्हारी मिठास को याद करते रहना भी प्रयास ही है। मैं सारा अपमान भुला देने को तैयार हूॅं। तुम्हारे ट्राॅमा को सुलझाने का निर्णय तुम पर छोड़ देने के लिए भी। जब तुम्हारा मन हो, तुम ख़ुद अपने नासूर का इलाज ढूंढना। मैं अपनी चूक मानता हूॅं। मैं यह देर से समझ पाया कि हर व्यक्ति को अपने भूतकाल के भूत से निपटने का समय ख़ुद ही चुनने देना चाहिए।
यदि तुम्हें कभी नहीं लौटना है, तो जी पक्का करने का प्रयास करता मैं यह उम्मीद और प्रार्थना करता हूॅं कि तुमने अपने हिस्से का पूरा ग़ुस्सा मुझ पर निकाल लिया हो। आगे तुम्हारे जीवन में जब भी कभी प्रेम आए, तुम्हारी बुरी यादों से वह विखंडित न हो।
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इधर इस बार धुंध लंबी चलेगी। क्या वह सदा रहेगी? मैं सोचता हूॅं— वह भी समय था, जब मैं सब साफ़-साफ़ देख सकता था। गिरने की परवाह किए बिना सीधा चल सकता था।
~ देवेश पथ सारिया
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