पिया का घर

वीमेन्स फिक्शन
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सालों बाद नीता और पलक की मुलाकात हुई वो भी इत्तेफाक से। दोनो बचपन की सहेलियाँ थीं। एक ही मोहल्ले में आस - पास घर था इसलिए साथ-साथ स्कूल जाना आना होता था। उन दिनों सलवार कुर्ता पहनकर रिबन लगी चोटी करके पैदल ही स्कूल जाने की परंपरा थी जिसमें बच्चों को बड़ा आनंद भी आता था। काॅलेज भी दोनो साथ पढ़े और भावी जीवन के सपने भी साथ देखे।
आज अचानक सरगम माॅल में आमना-सामना हो गया। औपचारिक बातचीत के बाद नीता ने पलक को अपना फोन नंबर और घर का पता देते हुए घर आने का निमंत्रण दिया। पलक जो पूरी तरह व्यवहारिक हो चुकी थी उसने कहा कहीं बाहर मिलते हैं न! क्या घर के अंदर बैठेंगे।वही बोरियत भरा माहौल...
पर नीता ने बड़ी सहजता से उसकी बात काटते हुए उसे अपने घर पर ही आने और उसके हाथों से बने भोजन का आनंद उठाने का न्योता दिया।
पलक के लिए इन्दौर नया शहर था,पर नीता तो शादी के बाद से ही बस यहीं की होकर रह गई थी। पलक अपने काम के सिलसिले में अकेले इंदौर आई थी। फाइफ स्टार होटल में ठहरी थी। उसे नीता के घर जाने में संकोच हो रहा था क्योंकि उसने बताया था कि उसका संयुक्त परिवार है। पर नीता बचपन की साथी थी, इसलिए उसके बारे में जानने की और अपनी सफलताओं के बारे में उसे बताने की बड़ी इच्छा हो रही थी।
नियत समय पर पलक नीता के घर पहुँच चुकी थी। मेन गेट पर मधुमालती की बेल इतरा रही थी और उसके फूलों की खुशबू से मन तरोताजा हो गया।
फिर था छोटा सा गार्डन पर इतना सुसज्जित,हराभरा मानो कोई प्यारा बच्चा अभी अभी नहा धोकर तैयार होकर मुस्कान बिखेर रहा हो। क्यारियाँ फूलों से लदी थीं तितलियाँ मँडरा रही थी। आगे बढ़ते ही शेड के नीचे इनडोर प्लांट्स सुशोभित थे द्वारपाल की तरह तैनात।जो बरबस ही मन मोह रहे थे।जीभरकर देखने के बाद उसने डोर बैल बजाई बड़ी सुरीली मुरली धुन लगा सुनती ही रहे तभी दरवाजा खुला।
खूबसूरत तोरण से सुसज्जित द्वार देख माँ का घर याद आ गया।
दरवाज़ा नीता ने ही खोला था एकदम रिलैक्स मूड में सदाबहार मुस्कान के साथ।
पहनी तो उसने साड़ी ही थी, पर खूबसूरत अंदाज में लहराता आँचल पलक को जाने क्यों उदास कर गया।
घर की स्वच्छता और सजावट देखकर उसे आश्चर्य हो रहा था। हर वस्तु अपनी जगह सलीके से रखी थी। सामान कम और साधारण थे पर खिलखिला रहे थे।
नीता ने उसे हाॅल पर बैठाया वह घर की प्रशंसा कर ही रही थी कि नीता की बिटिया ट्रे में नक्काशीदार गिलास में पानी लेकर आ गई। ढीला ढाला टाॅप और जीन्स पहनी प्यारी सी बिटिया एम.बी.ए.कर रही है यह सुनकर पलक को आश्चर्य हुआ क्योंकि उसने सोचा था कि एक हाउस वाइफ की बेटी पढ़ने की बजाय घरेलू काम ही करती होगी ।
थोड़ी ही देर में एक महिला आई । चेहरे पर अलौकिक तेज, आत्मविश्वास की झलक, सलीके से पहनी गई साड़ी और बेहद खूबसूरत उस महिला के आते ही नीता ने उठकर उनका परिचय कराया और उनके बैठने के बाद खुद बैठी।
उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था कि पलक भी बैठी न रह सकी। वह नीता की सास थी।
नीता ने बताया वह पहले टीचर थीं रिटायर हो गई हैं और अब हम दोनो मिलकर अपना गृह उद्योग चला रहे हैं ।
अचार, पापड़, बरी, बिजौरी आदि सब घर पर मम्मी जी और मैं मिलकर बनाते हैं। ऑर्डर पर सब कुछ तैयार करते हैं लेकिन टाइम फिक्स है। दिन में ग्यारह बजे से तीन बजे तक हम अपने इस काम को समय देते हैं । हमारा घर खर्च तो इस काम से ही निकल जाता है और अपना काम करने का तो आनंद ही कुछ और है। कोई तनाव नहीं क्योंकि कोई बाॅस नहीं है। हम खुद ही मालिक हैं।
अब तो पलक का सर चकराने लगा। उसे यह बात हजम ही नहीं हो रही थी कि सास बहू भी मिलकर इस तरह खुशी-खुशी कोई काम कर सकते हैं।
खैर नीता चाय बनाने के लिए उठने लगी तो उसकी सास ने बड़े प्यार से कहा अरे तुम बैठो बरसों बाद मिले हो जमकर बातें करो। चाय तैयार है मैं अभी भिजवाती हूँ।
थोड़ी देर में चाय और गरमागरम पकौड़े बिटिया रानी लेकर आई। पलक को सबकुछ जादुई लग रहा था। नीता उसे अपना घर दिखाने लगी। घर था तो छोटा पर भव्य लग रहा था।
नीता ने बड़े उत्साह से पलक को अपना टेरिस गार्डन दिखाया जहाँ खूबसूरत फूलों के साथ-साथ ताजी सब्जियाँ भी छत पर इठला रही थी। आश्चर्य से पलक ने पूछा इनकी सेवा के लिए माली तो जरूर रखा होगा न?
नीता ने हँसते हुए कहा अरे नहीं उसकी क्या जरूरत? मैं और मम्मी जी काफी हैं।
हअअअ
अब तो पलक अपने आप को रोक न सकी और पूछ बैठी हे भगवान! ये तो बता सास के साथ इतनी पटती कैसे है तेरी? क्या काला जादू किया है? कभी मन मुटाव नहीं होता? मैं तो नहीं रह सकती इस तरह।
फिर उसी अदा से मुस्कुराकर नीता ने बताया शुरू शुरूआत में हर बहू की तरह मुझे भी मम्मी जी की हर बात, हर सलाह बुरी लगती थी, ऐसा लगता था ये मुझे नितिन से दूर करना चाहती हैं। सबसे बड़ी दुश्मन लगती थीं अपनी खुशियों की। उन दिनों मम्मी स्कूल जाया करती थी। पापा मेरी शादी से पहले ही नही रहे। एक ननद है जिनका एक बेटा है नितिन से बड़ी हैं। बहुत समझदार हैं ये सब लोग। पर मेरी समझ बहुत छोटी थी। शायद मैं इन लोगों को अपना नहीं पा रही थी।
मैं भी आम लड़की की तरह हर बात अपनी मम्मी को बताती फोन पर और जमकर सास की कमियाँ गिनाती। पर मम्मी कभी मेरी बातों को सुनकर कोई जवाब नही देती, अनसुना कर जाती।
जैसे उन्हे इन बातों से कोई मतलब ही नहीं। धीरे-धीरे मैंने भी इन बातों को महत्व देना कम तो कर दिया पर टीस सी रहती।
रानू के जन्म होने पर भी मैं चाहती थी डिलीवरी मायके में हो पर मम्मी ने बड़ी सफाई से मना कर दिया यह कहकर कि बेटा बाद में यहाँ आना तो ज्यादा अच्छा रहेगा जच्चा बच्चा दोनो की सेवा जतन हो जाएगी।
उस वक्त मम्मी पर गुस्सा आ रहा था पर जो होता है अच्छे के लिए होता है।
मेरी सास ननद ने जमकर सेवा की डिलीवरी के समय। मुझे लगा ही नहीं कि मैं अजनबियों के बीच हूँ।
रानू के आते ही सबसे उसका रिश्ता जुड़ते ही मुझे सब अपने लगने लगे।
रही सही कसर तब पूरी हो गई जब मैं मायके गई रानू के साथ लगभग एक माह के लिए। मैंने देखा मेरी भाभी तो घर की रानी बन चुकी थी अपने व्यवहार से। वो मुझे भी समय देती, जैसे ही काम से फुर्सत मिलती रानू के साथ खेलती,उसकी मालिश कर देती ,नहला-धुला कर तैयार करती।मेरी पसंद का खाना बनाती और तो और मम्मी को मेरे पास ही भेजती रहती सारा काम खुद सम्हालती। सब उनसे खुश रहते। ऐसा लगा भाभी के बिना किसी का काम ही नही चलता।
मैं मौन रहकर उनसे सीख रही थी, जीवन जीने की कला।
वही भाभी थी जिन पर कभी मैं रौब जमाती थी उनके हर काम में कमी निकालने में कोई कसर न छोड़ती। मम्मी मतलब सिर्फ मेरी मम्मी भाभी उन्हे मम्मी बुलाती तो मुझे चिढ़ होती थी। वही आज मम्मी के दिल पर राज कर रही हैं और मैं वहाँ एक वी.आई .पी.मेहमान थी बस।
मुझे मेरा ससुराल और मम्मी जी का स्नेह याद आने लगा। उसके बाद जब से मैं यहाँ आई बस अपने घर की रानी बन गई अपने व्यवहार से। इन सबसे घुलमिल कर रहना बहुत अच्छा लगता है। नितिन भी बहुत खुश रहते हैं और मुझे सर आँखों पर बैठाकर रखते हैं,क्योंकि मम्मी जी को अकेलापन नहीं महसूस नहीं होने देती मैं। हमारे बीच काम का कोई टेंशन नहीं जिसे दिखा वही कर लेता है। पता है सुबह की चाय तो मम्मी जी ही सबके लिए बनाती हैं। पलक सास बिना ससुराल की मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती।
रानू तो जैसे पूरे घर की जान है।मम्मी जी उसका पूरा ध्यान रखती हैं संस्कार में कोई कमी न रह जाए। मुझे और क्या चाहिए? बहुत खुश हूँ मैं।
अब तक साढ़े आठ बज गए थे नितिन भी आ गए। भोजन पूरा तैयार था, टेबल पर लग चुका था। पलक सोच में पड़ गई नीता तो बहुत देर से मेरे साथ है फिर भी इतना सब.....। सोचा आर्डर कर दिया होगा पहले से।
नीता सबकी थाली लगा रही थी और मम्मी जी रूचि ले लेकर बता रही थी "बेटा ये सेमी और भाटा हमारे घर का ही है खूब फले हैं, तुमने देखा न! उसी की सब्जी बनाई है।"
लौकी भी आज ही तोड़ी, रायता बनाने के लिए। धनिया, मिर्च, टमाटर, अदरक , खीरा सब किचन गार्डन से आता है।"
पलक यहाँ भी गलत साबित होने पर हतप्रभ थी।
नितिन भी स्नेह से अचार के जार खोलकर थाली पर रखते हुए कहने लगा "पलक जी आप मम्मी के हाथ का बना अचार खाइए आप आर्डर दिए बिना नहीं रहेंगी।"
सबके साथ पलक भी खिलखिला उठी।
मम्मी जी ने कहा "आर्डर लेंगे क्या हम पलक बेटा से? हमने तो नींबू, हरी मिर्च, आंवले के अचार, बिजौरी, लाई बरी सब पैक कर दिया है।"
अरे वाह आँटी जी ये सब मेरे फेवरेट हैं, जरूर नीता ने आपको बताया होगा ।
आज बहुत दिनों बाद खुलकर हँसी मजाक करते हुए भोजन किया था पलक ने इसलिए जानबूझकर उसने अपनी शुगर की गोली भी नही खाई । भूल जाना चाहती थी अपना हर तनाव ।
पलक को होटल तक छोड़ने नीता और नितिन स्वयं आए थे। उनसे बिदा लेने के बाद पलक होटल के आलीशान कमरे में अपने बिखरे जीवन के अतीत में खो गई।
नीता की शादी हो चुकी थी वहीं पलक एक अदद जीवनसाथी की तलाश में थी। बहुत से लड़कों को रिजेक्ट करने के बाद विक्रम को चुना था।
जरूरत नहीं थी फिर भी पलक को गृहणी कहलाना पसंद नहीं था सो अपनी योग्यतानुसार जॉब चुनकर अपने को व्यस्त कर लिया। पति और घर उसके लिए गौण थे, मुख्य था उसका काम ।
इस बीच अमन उसकी गोद में आ गया। ससुराल में कुछ दिन रहना हुआ सभी खुश थे पर पलक को उनका साथ पसंद ही नही था । वापस आ गई अपनी दुनिया में,और नन्हे अमन को आया के भरोसे छोड़कर काम शुरू कर दिया ।
जबकि विक्रम चाहता था कि पलक अपना समय अमन की परवरिश पर दे। सास-ससुर ननद देवर सब थे परिवार में पर पलक को इन सबका साथ भीड़ लगता था। इसलिए उसने विक्रम को अलग घर लेकर रहने पर मजबूर कर दिया था। अच्छी सोसायटी में बंगला था, महँगी गाड़ी थी सबकुछ तो था । फिर भी चहकता न था घर। अजीब सी वीरानगी थी।
अमन को भी छठवीं क्लास से बोर्डिंग स्कूल में डालकर पल्ला झाड़ लिया था क्योंकि बच्चा पालना उसे बोझ लग रहा था। लगे भी क्यों न कौन सा उसे अनुभव था परवरिश का।
आज पलक को सबकुछ रीता सा लग रहा था घबराहट हो रही थी मानो सबकुछ हाथ से फिसल गया हो।
न विक्रम का फोन आया था न अमन का। नीता से मिलने से पहले तो उसे खुद किसी का ध्यान न था, पर अचानक अपने ही अस्तित्व में उसे बौनापन नजर आने लगा । उसे बेचैनी महसूस हो रही थी।
तुरंत ही विक्रम को फोन लगाया , दूसरी ओर से आवाज आई "कहिए मैडम सब ठीक तो है न? सोई नहीं अब तक ?"
पलक निःशब्द थी कहते न बना कि उसे विक्रम की याद आ रही है क्योंकि आज तक उसने ऐसा कभी जताया ही नहीं था ।
क्या हुआ, कुछ बोलो ..!
मैं कल आ रही हूँ, वापस ।
हाँ, तुमने बताया था। मुझे याद है भई,आ जाऊँगा तुम्हे लेने बस यही याद दिलाना था?
हँसते हुए कहा विक्रम ने अब सो जाओ, गुड नाइट!
फोन कट गया पर पलक अब भी मोबाइल कान से लगाए थी। आज तो वह बहुत कुछ सुनना चाहती थी जो अनसुना था, बहुत कुछ कहना चाहती थी जो अब तक अनकहा था।उसी रात उसने फैसला कर लिया कि जो हुआ सो हुआ अब समेटना है मुझे मेरे रिश्तों के मोती कितने बिखर गए हैं।
सुबह उठकर पलक बहुत हल्का महसूस कर रही थी। जाने क्या बदल गया एक रात में?सोचने लगी।
आज वह मिसेस विक्रम अवस्थी बनकर घर लौट रही थी। उसने मन ही मन भगवान का धन्यवाद दिया नीता से मिलाने के लिए।
टैक्सी पर विविध भारती में गाना चल रहा था,पिया का घर है रानी हूँ मैं......।

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