बालकहानी- अंतरिक्ष में चोरी

साइंस फिक्शन
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बालकहानी- अंतरिक्ष में चोरी

ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'

यह एक ऐसे विषय पर आधारित कहानी है जो भविष्य में हमारी ऊर्जा स्थानांतर व ग्रीन हाउस प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है. इस नई तकनीक से ही भविष्य की बिजली का उत्पादन व रूपांतर होगा. इस पर आधारित यह रोचक कहानी आप के लिए प्रस्तुत हैं.


दिव्यांशी के पापा वैज्ञानिक थे। उन्होंने अंतरिक्ष में प्रदूषण रहित विद्युत संयंत्र स्थापित किया था। वह सयंत्र 24×7 यानी सातों दिन और 24 घंटे विद्युत उत्पादन करता था।

अंतरिक्ष में स्थापित यह संयंत्र हरित विद्युत उत्पादन केंद्र कहलाता था। कारण इस संयंत्र द्वारा सूर्य की रोशनी को ग्रहण किया जाता था। इस रोशनी को पहले ऊष्मीय ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा में बदला जाता था। फिर उसे लेजर बीम और माइक्रोवेव किरण में बदलकर धरती पर भेज दिया जाता था।

मगर इस संयंत्र से कुछ समय के लिए विद्युत चोरी होने लगी थी। इस कारण दिव्यांशी के पापाजी बहुत चिंतित थे। यह देखकर दिव्यांशी ने पूछा, "पापाजी! आप बहुत चिंतित दिखाई दे रहे हो। पहले की तरह हंसबोल कर बातें भी नहीं करते हो। क्या कारण है?"

यह सुनकर वेंकट रमन्ना ने मुस्कुरा कर कहा, "कुछ नहीं बेटी, अंतरिक्ष में स्थापित विद्युत संयंत्र में कुछ गड़बड़ी हो सकती है।"

"क्या आप मुझे बता सकते हैं क्या गड़बड़ है?" दिव्यांशी ने पूछा तो उसके पापा वेंकट रमन्ना ने कहा, "संयंत्र 24 घंटे में से कुछ समय के लिए बिजली भेजना बंद कर देता है," उन्होंने दिव्यांशीको विस्तार से सारी बात बता कर कहा।

"अच्छा पापाजी," दिव्यांशी ने कहा, "क्या पहले भी यह सयंत्र इसी तरह बिजली भेजना बंद कर देता था?"

"नहीं बेटी," उन्होंने कहा, "जब से यह विद्युत संयंत्र स्थापित किया गया था तब से लेजर किरण और माइक्रोवेव किरण द्वारा लगातार बिजली भेज रहा था।"

"तब तो इसके रास्ते में कोई चीज आ गई होगी," दिव्यांशी ने अपनी जिज्ञासा प्रकट की। तब उन्होंने कहा, "लेजर किरणें व माइक्रोवेव किरणों के रास्ते में किसी चीज के आने से ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है।"

"तब क्या हो सकता है पापाजी?" दिव्यांशी ने कहा और वह सोचने लगी। तब उसे ध्यान आया कि उसने इस बारे में अखबार में कुछ पढ़ा था। यह याद करते ही दिव्यांशी ने कहा, "पापाजी, कहीं ऐसा तो नहीं कोई कुछ समय के लिए इस बिजली को चुरा रहा हो?"

"नहीं बेटी ऐसा नहीं हो सकता हैं," वेंकट रमन्ना ने जल्दबाजी में कहा। फिर अचानक कुछ सोचते हुए बोले, "तुम ठीक कह रही हो। ऐसा हो सकता है। किसी रिफ्लेक्टर कम रिसीवर की बीच में आ जाने से ऐसा हो सकता है। मगर ऐसा कौन करेगा?"

तुरंत उन्होंने अपने साथियों से इस संबंध में बात की। काफी खोजखबर के बाद उन्हें पता चला कि किसी देश के वैज्ञानिक अपने प्रयोग के लिए इस तरह का प्रयोग कर सकते हैं। ताकि वे इस तरह की चोरी रोकने के प्रयास का पता लगा सके।"

तब रमन्ना ने कहा, "उन्हें इस प्रयोग में हमारा साथ लेना चाहिए था। बिना पूछे बिजली लेना और उस पर प्रयोग करना यह तो सरासर चोरी है," कहते हुए रमन्ना ने अनेक देशों से संपर्क किया। मगर किसी ने उन्हें इस प्रोग्राम की जानकारी नहीं दी।

तब उन्होंने तय किया कि वे इस चोरी को रोकेंगे। तब दिव्यांशी ने पूछा, "इस अनोखी चोरी को कैसे रोका जा सकेगा पापाजी?"

"बहुत सरल तरीका है," उसके पिताजी ने कहा, "हम अपने सयंत्र से आने वाली लेजर व माइक्रोवेव किरणों की क्षमता को दुगुना कर देंगे। तथा जब हमारी बिजली चोरी होने लगेगी तब उस निश्चित समय तक ये किरनें उस संयंत्र को भेजेंगे।"

"इससे क्या होगा पापाजी?"

"जो भी संयंत्र चोरी कर रहा होगा उसका रिसीवर पैनल उस क्षमता को ग्रहण नहीं कर पाएगा। तभी वह जलकर नष्ट हो जाएगा," कहते हुए उन्होंने घड़ी पर नजर डाली।

उस वक्त वही समय हो रहा था जब आधे घंटे के लिए विद्युत चोरी होती थी। तब पापाजी ने अपने विद्युत केंद्र पर निर्देश दिए। अपने लेजर बीम तथा माइक्रोवेव किरणों की क्षमता दुगनी कर दे।

निर्देश मिलते ही उसका पालन किया गया। देखते ही देखते अंतरिक्ष में तैरता हुआ एक रिसीवर कम रिफलेक्टर जलकर नष्ट हो गया।

"इस तरह एक अनोखी उपाय द्वारा विद्युत चोरी को रोक लिया गया," दिव्यांशी यह बड़बड़ा रही थी कि उस की मम्मी ने उसे झकझोरते हुए पूछा, " क्या हुआ दिव्यांशी! कोई सपना देखा हैं।"

"हां मम्मीजी," कहते हुए दिव्यांशी ने पूरा सपना अपनी मम्मी को सुना दिया। तब उसकी मम्मी ने कहा, "यह तो बहुत अच्छा सपना था।" कहते हुए मम्मी ने इशारा किया कि वह मंजन करके तैयार हो जाए तब तक मैं चाय बनाती हूं।

दिव्यांशी बिस्तर से उठकर मंजन करने लगी और मम्मी चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई।

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16-06-2022


ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश',

मित्तल मोबाइल के पास, रतनगढ़

जिला-नीमच (मध्यप्रदेश)

पिनकोड- 458226

मोबाइल नंबर 94240 79675

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