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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palनाम: ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' जन्म तिथि: 26-01-1965 शिक्षा: 5 विषय में एम ए, पत्रकारिता, कहानी-कला, लेख रचना, फीचर एजेंसी का संचालन में पत्रोपाधि लेखन: बालकहानी, लघुकथा व कविता | संपादन: लघुकथा मंथन, बालकथा मंथन, चुनिंदा लघुकथाएं, मनोभावों कRead More...
नाम: ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
जन्म तिथि: 26-01-1965
शिक्षा: 5 विषय में एम ए, पत्रकारिता, कहानी-कला, लेख रचना, फीचर एजेंसी का संचालन में पत्रोपाधि
लेखन: बालकहानी, लघुकथा व कविता |
संपादन: लघुकथा मंथन, बालकथा मंथन, चुनिंदा लघुकथाएं, मनोभावों की अभिव्यक्ति, म.प्र. की बाल कहानियाँ
प्रकाशित पुस्तकें : कुँए को बुखार, आसमानी आफत, काँव-काँव का भूत, कौनसा रंग अच्छा है?, लेखकोपयोगी सूत्र और 100 पत्र पत्रिकाएं, चाबी वाला भूत, संयम की जीत उपन्यास, हाइकु संयुक्ता, घमंडी सियार और अन्य कहानियां, कसक लघुकथा संग्रह, चुनिंदा लघुकथाएं संपादन, रोचक विज्ञान बालकहानियाँ, पहाड़ की सैर, चूँचूँ की कहानियाँ, मनोभावों की अभिव्यक्ति, संयम की जीत, हाइबन: चित्र विचित्र, पहाड़ी की सैर, आजरी विहीर (मराठी अनुवाद), काव काव चे भूत (मराठी अनुवाद), आसमानी संकट (मराठी अनुवाद) , कोणता रँग चाँगला आहे? (मराठी अनुवाद), लघुकथाकारों की मेरी चुनिंदा लघुकथाएं, देश विदेश की लोककथाएं
सहभागिता : लगभग 19 साझा संग्रह में सहभागिता
उपलब्धि : 141 बालकहानियों का 8 भाषा में प्रकाशन व अनेक कहानियां विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित
ई-बुक : 121 ई-बुक प्रकाशित
पुरुस्कार: 18 विभिन्न संस्थानों द्वारा पुरस्कार व सम्मान प्राप्त
व्यवसाय : सहायक शिक्षक
निवास का पता : पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़, जिला-नीमच - 458226(मध्य प्रदेश )
मोबाईल नम्बर : 09424079675
ई-मेल : opkkshatriya@gmail.com
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बड़ी कक्षा को पढ़ाते हुए मैंने अनुभव किया कि बच्चे पत्र लिखना भूल गए हैं. इसलिए एक बार बच्चों को कहा कि अपने माता या पिता को पत्र लिखे. जिसमे उनके त्याग, श्रम और आपकी परवाह का उल्ले
बड़ी कक्षा को पढ़ाते हुए मैंने अनुभव किया कि बच्चे पत्र लिखना भूल गए हैं. इसलिए एक बार बच्चों को कहा कि अपने माता या पिता को पत्र लिखे. जिसमे उनके त्याग, श्रम और आपकी परवाह का उल्लेख हो. फिर उसे अपने माता-पिता को दे दे.
दूसरे दिन छात्र-छात्राओं की प्रतिक्रिया अभूतपूर्व थी. उनका माता-पिता के प्रति और माता-पिता का उनके प्रति नजरिया बदल गया था.
आप किसी को 'धन्यवाद' कह कर देखिए. उसके किसी काम की प्रशंसा कर के देखिए. उसके चेहरे के भाव बदल जाएंगे. वहां पर आपको हसीन मुस्कुराहट दिखाई देने लगेगी.
पत्र यही करते हैं. उनमें लिखे- प्रशंसा, सराहना, किसी के त्याग को आपके द्वारा अभिव्यक्त कर देते हैं. इससे 'उन्हें' अपने होने का अच्छा एहसास होता है.
इसी एहसास की आप पत्र द्वारा दूसरे को खुशी दे सके, इसी प्रयास को गति देने के लिए पुस्तक में पत्र संकलित किए गए हैं. यह आपका पत्र तो नहीं हैं. पढ़ कर देखिएगा.
ऐलन मस्क को गति से प्रेम था. इसी शौक को उन्हों ने अपना सपना बनाया था. उस समय उन्हों ने सोचा कि जमीन पर तेज गति का परिवहन होना चाहिए. पर कैसे ? इस पर खूब विचार किया. गति संभव है. हवा भी
ऐलन मस्क को गति से प्रेम था. इसी शौक को उन्हों ने अपना सपना बनाया था. उस समय उन्हों ने सोचा कि जमीन पर तेज गति का परिवहन होना चाहिए. पर कैसे ? इस पर खूब विचार किया. गति संभव है. हवा भी गति से चलती है. हवाई जहाज को गति प्राप्त होती है. तब यह गति जमीन पर कैसे संभव नहीं हो सकती है? चुंकि आविष्कार कभी खत्म नहीं होते हैं इसलिए यह भी संभव है. इसी सिद्धांत पर उन्हों ने काम किया.
परिणाम हमारे सामने हैं. उन्हों ने तेज गति पर आधारित हाइपर लूप परिवाहन को जमीन पर साकार कर दिया. यह परिवहन का साधन हवाई जहाज से भी तेज गति से चलता है. इसलिए कहते हैं कि सपना कोई भी हो उसे साकार करने का रोड़मैप हमारे दिमाग में होना चाहिए. तभी मंजिल को प्राप्त किया जा सकता है.
आइए जाने कि सफलता रूपी मंजिल को कैसे प्राप्त किया जा सकता है. इस के लिए सफल व्यक्तियों के कार्य को जाने. उन्हों ने किस तरह के प्रयास किए. उन्हों ने मंजिल प्राप्त करने के लिए किस तरह का रोड़मैप तैयार किया था.
गधडू गधे ने मिर्ची खा ली थी। उसका मुंह जल रहा था। उसे मीठी चीज खाने की याद आई। वह उसके दोस्त ने दी थी। मगर वह चीज क्या थी? उसी की तलाश में वह निकल पड़ा। आखिर उसे वह मीठी थी और उसका नाम
गधडू गधे ने मिर्ची खा ली थी। उसका मुंह जल रहा था। उसे मीठी चीज खाने की याद आई। वह उसके दोस्त ने दी थी। मगर वह चीज क्या थी? उसी की तलाश में वह निकल पड़ा। आखिर उसे वह मीठी थी और उसका नाम का पता चला या नहीं? यही कहानी का रोमांच है।
उपन्यास का सारांश —दोस्ती का सफर
मिट्ठू मियां और चूंचूं चूहा सोना के साथ गांव जाते हैं। गांव में पहुंचते ही उसकी मुलाकात टॉमी कुत्ते से होती है। जिससे उसकी दोस्ती हो जाती
उपन्यास का सारांश —दोस्ती का सफर
मिट्ठू मियां और चूंचूं चूहा सोना के साथ गांव जाते हैं। गांव में पहुंचते ही उसकी मुलाकात टॉमी कुत्ते से होती है। जिससे उसकी दोस्ती हो जाती है।
यह दोस्ती मोना को अच्छी नहीं लगती है।उसका फालतू टॉमी चूंचूं से दोस्ती करके उसे अपने ऊपर सवारी करने दे। यह मोना बर्दाश्त नहीं कर पाती है। इस कारण वह चूंचूं को मरवाने के अनेक प्रयास करती है।
चूंचूं हर बार बच जाता है।
आखिर उसके पास ऐसी क्या तरकीब या क्या चीज थी जिसकी वजह से वह हर बार मौत के मुंह से बच जाता था? यह जानने के लिए उपन्यास जरूर पढ़ें।
धर्मेश सर पढ़ाने के लिए अपनी नई खोज- शब्दों की चाय, की प्रतियोगिता करवाते हैं। मोहन इस बारे में नहीं जानता है। धर्मेश सर इस प्रतियोगिता के बारे में उसे बताते हैं। तभी उसे मालूम हो
धर्मेश सर पढ़ाने के लिए अपनी नई खोज- शब्दों की चाय, की प्रतियोगिता करवाते हैं। मोहन इस बारे में नहीं जानता है। धर्मेश सर इस प्रतियोगिता के बारे में उसे बताते हैं। तभी उसे मालूम होता है कि सोनाक्षी की बोलती पुस्तक- कविता के रंगीन बुक, कक्षा से चोरी हो गई है।
यहीं से उपन्यास में जिज्ञासा का प्रवाह शुरू होता है। इसी के साथ अनेक जिज्ञासाएं उपन्यास के हरेक भाग के प्रारंभ में आती है और अंत में उसका समाधान हो जाता है। मगर बोलती पुस्तक- कविता की रंगीन बुक, के चोरी का पता अंत में चलता है।
कहानी में रोचकता होती है तो कहानी अच्छी लगती है. आगे क्या होगा ? यह उत्सुकता बनी रहती है. आप को ऐसी कोई कहानी याद होगी. यह कहानी आप को बहुत अच्छी और रोचक लगी होगी. इस कारण आप इसे याद रख
कहानी में रोचकता होती है तो कहानी अच्छी लगती है. आगे क्या होगा ? यह उत्सुकता बनी रहती है. आप को ऐसी कोई कहानी याद होगी. यह कहानी आप को बहुत अच्छी और रोचक लगी होगी. इस कारण आप इसे याद रख पाए हैं. सोचिएगा कि उस में क्या बात अच्छी लगी ?
सफलता केवल पूर्ण समर्पण से प्राप्त होती है। बस, लक्ष्य एक होना चाहिए। उस लक्ष्य तक कैसे पहुँचा जाए? यह हमारे मन में स्पष्ट होना चाहिए। लक्ष्य तक पहुँचने का रास्ता, उसके साधन व अपन
सफलता केवल पूर्ण समर्पण से प्राप्त होती है। बस, लक्ष्य एक होना चाहिए। उस लक्ष्य तक कैसे पहुँचा जाए? यह हमारे मन में स्पष्ट होना चाहिए। लक्ष्य तक पहुँचने का रास्ता, उसके साधन व अपने मन का साध्य क्या हो? यह हमें पता होना चाहिए। तभी सफलता मिलती है।
महापुरुषों की जीवनियां हमें उसी मार्ग का पथ प्रदर्शन करती है। इसी पथ प्रदर्शन के लिए हमें कुछ महापुरुषों की जीवनी इस पुस्तक में संग्रहित करके लाए हैं। आशा है आपको इनसे प्रेरणा जरूर मिलेगी।
गॉब्लिन किसे कहते हैं वह यह जानना चाहता था मगर वह जान नहीं पाया? आखिर वह क्या होता है? ऐसी ही बहुतसी रोचव, मनोरंजक और आनंददायक कहानियां इस में सम्मिलित है यदि पढ़ना चाहते हो तो आपका
गॉब्लिन किसे कहते हैं वह यह जानना चाहता था मगर वह जान नहीं पाया? आखिर वह क्या होता है? ऐसी ही बहुतसी रोचव, मनोरंजक और आनंददायक कहानियां इस में सम्मिलित है यदि पढ़ना चाहते हो तो आपका स्वागत है
लघुकथा को शार्ट स्टोरी यानी छोटी कहानी भी कहा जाता है। मगर लघुकथा व छोटी कहानी में पर्याप्त अंतर होता है। कहानी या छोटी कहानी में इसका समाधान दिया जाता है। वही लघुकथा में समाधान
लघुकथा को शार्ट स्टोरी यानी छोटी कहानी भी कहा जाता है। मगर लघुकथा व छोटी कहानी में पर्याप्त अंतर होता है। कहानी या छोटी कहानी में इसका समाधान दिया जाता है। वही लघुकथा में समाधान के संकेत इस तरह दिया जाता है कि वह हमारे ह्रदय में आधात करता हुआ भीतर तक उतर जाए।
कलेवर की दृष्टि से दोनों समान है। प्रभावोत्पादकता की दृष्टि से दोनों एक ही है। मगर मारक क्षमता में लघुकथा का कोई सानी नहीं होता है। यह दोहे की तरह मन पर आघात करती है।
इसे पढ़ने की बात पाठक सोचनीय अवस्था में बैठा रह जाता है। यह क्षमता कहानी में नहीं होती है। इस मायने में लघुकथा कहानी से अलग होती है।
इस हिसाब से इस संग्रह की लघुकथाएं पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजिएगा।
आप सभी ने अपनी दादीनानी से कहानी सुनी होगी. किसी को मम्मी ने कहानी सुनाई होगी. यदि आप शाला पढ़ने जाते हो तो वहां पर आप को शिक्षकों ने आप को कहानी सुनाई होगी. आप को कुछ कहानी अच्छी लग
आप सभी ने अपनी दादीनानी से कहानी सुनी होगी. किसी को मम्मी ने कहानी सुनाई होगी. यदि आप शाला पढ़ने जाते हो तो वहां पर आप को शिक्षकों ने आप को कहानी सुनाई होगी. आप को कुछ कहानी अच्छी लगी होगी. कुछ बेकार लगी होगी. इस बारे में आप ने शिक्षक से कुछ कहा होगा.
कहानी में रोचकता होती है तो कहानी अच्छी लगती है. आगे क्या होगा ? यह उत्सुकता बनी रहती है. आप को ऐसी कोई कहानी याद होगी. यह कहानी आप को बहुत अच्छी और रोचक लगी होगी. इस कारण आप इसे याद रख पाए हैं. सोचिएगा कि उस में क्या बात अच्छी लगी ?
इस कहानी की पुस्तक में ऐसी कई कहानियां हैं. इन्हें ध्यान से पढ़िएगा. समझिएगा. कुछ गुनिएगा. तब समझ कर बताइएगा कि कौनसी कहानी आप को अच्छी लगी. उस के अच्छे लगने का कारण क्या था ? ताकि आप के लिए अगले कहानी संग्रह में वैसी ही कहानियां सम्मिलित की जा सकें.
बच्चे, बड़े व बुजुर्ग- सभी को जादू पसंद होता है। जबकि बड़े जानते कि इस में जादूवादू कुछ नहीं होता है। यह सब हाथ की सफाई होती है। जादूगर अपनी कला द्वारा असत्य को सत्य करके दिखा देता
बच्चे, बड़े व बुजुर्ग- सभी को जादू पसंद होता है। जबकि बड़े जानते कि इस में जादूवादू कुछ नहीं होता है। यह सब हाथ की सफाई होती है। जादूगर अपनी कला द्वारा असत्य को सत्य करके दिखा देता है।
ठीक वैसे जादू भरी कहानी सभी को पसंद आती है। यही कारण है कि इतिहास में परियों वाली, जादू भरी, अजीबोगरीब, रहस्यरोमांच आदि की कहानियां आज भी पाठकों द्वारा पसंद की जाती है।
कहानियों का जादू ही ऐसा होता है जो सभी के सिर चढ़कर बोलता है। आनंद देता है। बस एक बार आप पढ़ने की आदत लग जाए। पुराने समय में कहानी पठन-पाठन मनोरंजन, आनंद व समय व्यतीत करने का एक तरीका था। दादीनानी को हजारों कहानियां मुँहजबानी याद होती थीं।
कहानी का यह जादू आजकल सभी के सिर पर चढ़कर बोलता है। यही वजह है कि आज भी अच्छी फिल्में बहुत पैसा कमाती है। ये अपनी कहानी के साथ-साथ बेहतर प्रस्तुति, अभिनव, साजसज्जा और कल्पना शक्ति के बल पर दर्शनीय हो जाती है।
इस प्रयास के तहत हमने यह कहानी संग्रह को आप के लिए प्रकाशित किया है। ताकि आप अपने बच्चों में संस्कार का बीजारोपण करने के लिए कहानी की पुस्तक उपहार में दे सके। आप स्वयं कहानी पढ़ें, बच्चों को कहानी सुनाएं व उन्हें कहानी पढ़ने के लिए प्रेरित करें। ताकि उनका सर्वांगीण विकास हो सके।
बिल्ली ही ऐसा जीव है जो शाकाहारी और मांसाहारी दोनों होता है। यह दूध भी बड़े शौक से पीती है वहीं चूहे को बड़े चाव से खाती है। इसके यह दोनों शौक इसे सबसे अलग रखते हैं। यह दबे पांव आती
बिल्ली ही ऐसा जीव है जो शाकाहारी और मांसाहारी दोनों होता है। यह दूध भी बड़े शौक से पीती है वहीं चूहे को बड़े चाव से खाती है। इसके यह दोनों शौक इसे सबसे अलग रखते हैं। यह दबे पांव आती है बिना आहट किए अपने शिकार को दबोच लेती है।
चूहा बिल्ली की आहट को झट से महसूस कर लेता है। यही वजह है कि बिल्ली कितने भी दबे पांव से आती है उनकी आहट चूहें पा ही जाते हैं। जब बिल्ली झपटती है तो चूहे अपनी चालाकी, सूझबूझ और तरकीब से बच जाते हैं।
चूहे बिल्ली के इसी खेल को बच्चे ज्यादा पसंद करते हैं। यही वजह है कि उन्हें चूहे बिल्ली की कहानी, उसकी गतिविधि भरे कार्टून शो, फिल्में बहुत भाती और मनोरंजन देती है। वे उन्हें बहुत पसंद करते हैं। इसी को ध्यान में रखकर हमने इस संग्रह में चूहे बिल्ली की कहानियों को सम्मिलित किया है।
कहते हैं कि जब भी कोई चीज मिलती है छप्पर फाड़ कर मिलती है। चाहे वह आनंद हो, मजा हो, खेलकूद हो या लाडप्यार। जब यह मनचाहे से ज्यादा मिलता है तो आनंद देता है। हमने प्रयास किया है कि ऐसा
कहते हैं कि जब भी कोई चीज मिलती है छप्पर फाड़ कर मिलती है। चाहे वह आनंद हो, मजा हो, खेलकूद हो या लाडप्यार। जब यह मनचाहे से ज्यादा मिलता है तो आनंद देता है। हमने प्रयास किया है कि ऐसा आनंद आपको इन कहानियों से भी मिल सके। ऐसी रोचक कहानियों के लिए पढ़े यह संग्रह।
साहसिक का सीधा मतलब होता है साहस भरी बातें यानी जो बच्चों में किसी भी कार्य को करने का जोश, हौसला व आनंद दें उसके लिए वही साहसिक होता है। खेल से दूर भागता बच्चा यदि खेलने लगे तो उनम
साहसिक का सीधा मतलब होता है साहस भरी बातें यानी जो बच्चों में किसी भी कार्य को करने का जोश, हौसला व आनंद दें उसके लिए वही साहसिक होता है। खेल से दूर भागता बच्चा यदि खेलने लगे तो उनमें साहस का संचार हो रहा है। इसके मायने बस यही है।
साहस का अर्थ बच्चों के लिए अलग होता है। वह छिपकली से डरता है तो उसका डर चला जाए तो यह उसका साहसिक कार्य होता है। इसका मतलब यह भी नहीं थे कि बच्चा सांप पकड़ कर गले में डाल ले। बड़ों या सपेरों के लिए यह साहसिक कार्य हो सकता है। मगर बच्चों के लिए जोखिम भरा कार्य है। इसे साहसिक कार्य नहीं कहा जा सकता है।
चुलबुलापन यानी बच्चों की पल-पल की जाने वाली रोचक गतिविधियां होती हैं। यह गतिविधियां हमें मन ही मन भाती, सुहाती, आनंद देती और रिझाती हैं। इसे देखने और सुनने को मन ललचाता है। यदि इस
चुलबुलापन यानी बच्चों की पल-पल की जाने वाली रोचक गतिविधियां होती हैं। यह गतिविधियां हमें मन ही मन भाती, सुहाती, आनंद देती और रिझाती हैं। इसे देखने और सुनने को मन ललचाता है। यदि इस गतिविधियों के साथ बच्चा बातूनी हो तो उसमें रोचकता का पुट ओर ज्यादा बढ़ जाता है।
अक्सर बातें दोहराने वाले बच्चों में चुलबुलापन ज्यादा होता है। वह बड़ों की बातें दोहराने के साथ-साथ अपने भाव का उसमें सम्मिश्रण कर देते हैं। इससे सुनने वाले का आनंद ओर बढ़ जाता है। मुझे याद आता है। दादाजी ने अपने पुत्र को आवाज दी थी- राहुल! इधर आना।
पोती वही खड़ी थी। वह चुलबुली थी। उसने वही बात दोहरा दी- राहुल! इधर आना। पानी भी लाना। उसने अपने भाव को इस में मिला दिया था। दादाजी को ज्यादा लाड़ आया। वही मम्मीजी ने कहा- अरे! ऐसा नहीं बोलते। वह तेरे पापाजी है।
तो? उसने कहा तो मम्मीजी बोली- पापाजी आओ ना। ऐसा बोलते हैं। तब उसने दादाजी से कहा- आप तो बोल रहे थे। राहुल! किधर आना। तब दादाजी ने हंसकर कहा- वह मेरा पुत्र है इसलिए बोल सकता हूं। तब वह बड़े मासूम ढंग से बोली- तब तो वो मेरे पापाजी हैं। मेरे पापाजी को मैं भी बोल सकती हूं।
इस चुलबुलेपन पर हमसब खूब हँसें। यानी जिस चुलबुलेपन में हंसी-मजाक, आनंद, जिज्ञासा, ज्ञान और उद्देश्य हो वह आनंददायक होता है। यदि यह सब कहानी में होंगे तो उसे चुलबुलेपन की कहानी कह सकते हैं। ऐसी कहानियां इस संग्रह में आपको मिलेगी। वे आपका मनोरंजन करेगी। आपको आनंद देगी। आपको जाने-अनजाने बहुत कुछ सिखाएगी भी। इसलिए इसकी कहानियों को चुलबुलेपन की कहानी नाम दिया गया है।
कविता सुनना और सुनाना सब को अच्छा लगता है. यह सभी उम्र के लिए लागु होता हैं. यह बात मुझे छोटे बच्चों को पढ़ाते हुए पता चली. चाहे कितना भी छोटा बच्चा हो उसे कविता व गीत सुनने में मजा आत
कविता सुनना और सुनाना सब को अच्छा लगता है. यह सभी उम्र के लिए लागु होता हैं. यह बात मुझे छोटे बच्चों को पढ़ाते हुए पता चली. चाहे कितना भी छोटा बच्चा हो उसे कविता व गीत सुनने में मजा आता है. बशर्त आप को हाव-भाव के साथ सुनाना आता हो.
रात के अंधेरे में टें-टें की आवाज सुन कर हरियाल डर गया. उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था. मगर तोते की आवाज आ रही थी. आखिर यह तोते का भूत कौन था ? इस कहानी में पढ़े. ऐसी ही कई कहानियां इस संग्र
रात के अंधेरे में टें-टें की आवाज सुन कर हरियाल डर गया. उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था. मगर तोते की आवाज आ रही थी. आखिर यह तोते का भूत कौन था ? इस कहानी में पढ़े. ऐसी ही कई कहानियां इस संग्रह में शामिल की गई हैं. ये आप का मनोरंजन करने के साथ एक आनंद भी देंगी.
कहानी सुनना और सुनाना सब को अच्छा लगता है. यह सभी उम्र के लिए लागु होता हैं. यह बात मुझे छोटे बच्चों को पढ़ाते हुए पता चली. चाहे कितना भी छोटा बच्चा हो उसे कहानी सुनने में मजा आता है. ब
कहानी सुनना और सुनाना सब को अच्छा लगता है. यह सभी उम्र के लिए लागु होता हैं. यह बात मुझे छोटे बच्चों को पढ़ाते हुए पता चली. चाहे कितना भी छोटा बच्चा हो उसे कहानी सुनने में मजा आता है. बशर्त आप को हाव-भाव के साथ कहानी सुनाना आता हो.
इस कड़ी की यह सातवी पुस्तक है। इस में 7 कहानीकारों की 21 कहानियां संकलित की गई हैं। ये सभी कहानियां इन विद्वान कहानीकारों की चर्चित और सुप्रसिद्ध कहानियां हैं। इनमें उषा सोमानी की &
इस कड़ी की यह सातवी पुस्तक है। इस में 7 कहानीकारों की 21 कहानियां संकलित की गई हैं। ये सभी कहानियां इन विद्वान कहानीकारों की चर्चित और सुप्रसिद्ध कहानियां हैं। इनमें उषा सोमानी की अंतर्मन की आवाज, ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश' की जीत का अभ्यास, डॉ. दर्शन सिंह ‘आशट’ की सही फैसला दीनदयाल शर्मा की पश्चाताप के आंसू, डॉ. फकीर चंद शुक्ला की नया सवेरा, नीलम राकेश की और छुटकी समझ गई, सुमन बाजपेयी की वह रात, काफी चर्चित कहानियां हैं।
इनमें से अधिकांश कहानियां पुरस्कृत कहानियां हैं। जिनकी वजह से कहानीकारों को विभिन्न सम्मानों से नवाजा गया हैं। इसलिए इस संकलन में संकलित कहानियां अपने आप में श्रेष्ठ कहानियां हैं जिन्हें आपके लिए प्रस्तुत किया गया है।
पुस्तक भढ़ता ही डर परौ ग्यो तो हमझो पुस्तक आच्छी है। इ बला ही इ पुस्तक लिखी है। इमें रंग भरवा का चित्र भी दे मेंल्या है। उमें हउ-हउ रंग भरजो। हउ तरह घोट जो। पछे उने आपणा मातापिता व ग
पुस्तक भढ़ता ही डर परौ ग्यो तो हमझो पुस्तक आच्छी है। इ बला ही इ पुस्तक लिखी है। इमें रंग भरवा का चित्र भी दे मेंल्या है। उमें हउ-हउ रंग भरजो। हउ तरह घोट जो। पछे उने आपणा मातापिता व गुरूजी ने बताव जो। पछे इ में दे मेंली वाता ने पढ़ी ने हुणाजो। तब लिख जो कि पुस्तक कसाण की लागी।
जदी पुस्तक थाने हउ लागे तो मारी मेंनत सफल वई जा गा।
इ पुस्तक दो कारण ती तय्यार कीदी है। एक इ में दीदा तका चित्र ने रंग भरवा वाते व दूजो इ में दी तकी कहाणी भढ़वा वाते। था ने जो हउ लागे वो करजो। पण एक बार इ कहाणीकार ने फोन कर ने जरूर बताजो। ताकि थाका मन की वाता कहाणीकार जान सके।
इस कड़ी की यह छठी पुस्तक है। इस में 7 कहानीकारों की 21 कहानियां संकलित की गई हैं। ये सभी कहानियां इन विद्वान कहानीकारों की चर्चित और सुप्रसिद्ध कहानियां हैं। इनमें ओमप्रकाश क्षत्र
इस कड़ी की यह छठी पुस्तक है। इस में 7 कहानीकारों की 21 कहानियां संकलित की गई हैं। ये सभी कहानियां इन विद्वान कहानीकारों की चर्चित और सुप्रसिद्ध कहानियां हैं। इनमें ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश' की कुंए वाला भूत, डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी की मेरा डोरेमोन, डॉ0 मोहम्मद अरशद ख़ान की ईसुरी काका की होली, डॉ. मंजरी शुक्ला की जैसे को तैसा, डॉ. रंजना जायसवाल की एक दीवाली ऐसी भी, श्याम नारायण श्रीवास्तव की मिट्ठू की आजादी, शराफ़त अली ख़ान की टी.वी.का भूत काफी चर्चित कहानियां हैं।
इनमें से अधिकांश कहानियां पुरस्कृत कहानियां हैं। जिनकी वजह से कहानीकारों को विभिन्न सम्मानों से नवाजा गया हैं। इसलिए इस संकलन में संकलित कहानियां अपने आप में श्रेष्ठ कहानियां हैं जिन्हें आपके लिए प्रस्तुत किया गया है।
ये सभी कहानियां इन विद्वान कहानीकारों की चर्चित और सुप्रसिद्ध कहानियां है। इनमें ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ की राबिया का जूता, चाँद मोहम्मद घोसी की तमाचा, डॉ. नागेश पांडे
ये सभी कहानियां इन विद्वान कहानीकारों की चर्चित और सुप्रसिद्ध कहानियां है। इनमें ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ की राबिया का जूता, चाँद मोहम्मद घोसी की तमाचा, डॉ. नागेश पांडेय “संजय” की भाभी...,प्लीज!, पवित्रा अग्रवाल की दो चोटी वाली, विमला नागला की कहानी का जादू, डॉ. सतीश चन्द्र भगत की सोने की ईंट, डॉ. फ़हीम अहमद की हाथीदादा बुरे फंसे, आदि काफी चर्चित कहानियां है।
इनमें से अधिकांश कहानियां पुरस्कृत कहानियां है। जिनकी वजह से कहानीकारों को विभिन्न सम्मानों से नवाजा गया है। इसलिए इस संकलन में संकलित कहानियां अपने आप में श्रेष्ठ कहानियां हैं जिन्हें आपके लिए प्रस्तुत किया गया है।
ये सभी कहानियां इन विद्वान कहानीकारों की चर्चित और सुप्रसिद्ध कहानियां है। इनमें ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश' की सूरज की कहानी, कुमुद वर्मा की फिर हुई रेस, गोविन्द भारद्वाज क
ये सभी कहानियां इन विद्वान कहानीकारों की चर्चित और सुप्रसिद्ध कहानियां है। इनमें ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश' की सूरज की कहानी, कुमुद वर्मा की फिर हुई रेस, गोविन्द भारद्वाज की पियानो का भूत, राजेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव की स्वीटी की 'सब्जी-सेना', डॉ राकेश 'चक्र' की नन्हे राजेंद्र की उदारता, संगीता सेठी की बातूनी आस्था, डॉ. हूँदराज बलवाणी की मोटा अखरोट काफी चर्चित कहानियां है।
इनमें से अधिकांश कहानियां पुरस्कृत कहानियां है। जिनकी वजह से कहानीकारों को विभिन्न सम्मानों से नवाजा गया है। इसलिए इस संकलन में संकलित कहानियां अपने आप में श्रेष्ठ कहानियां हैं जिन्हें आपके लिए प्रस्तुत किया गया है।
यह सभी कहानियां इन विद्वान कहानीकारों की चर्चित और सुप्रसिद्ध कहानियां है। इनमें ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश' -स्टाइलिश और लालपीली व चूंचूं की जंप, तपेश भौमिक
यह सभी कहानियां इन विद्वान कहानीकारों की चर्चित और सुप्रसिद्ध कहानियां है। इनमें ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश' -स्टाइलिश और लालपीली व चूंचूं की जंप, तपेश भौमिक की मीठे पानी का झरना व बैरंग लौटी बाघिन, डॉ.दिनेश पाठक ‘शशि’ की पुस्तकों की हड़ताल व प्रधानाचार्य की कुरसी, डॉ. प्रभा पंत की बिट्टू और भोलू व सच्ची मित्रता, डॉ. लता अग्रवाल की नन्हें सांताक्लाज व आत्मविश्वास का ताबीज, विनीता राहुरीकर की गोलू और पानी में मस्ती व बंटी की जन्मदिन पार्टी.., सावित्री चौधरी की तीन अनमोल मंत्र व ओहो! यह कमाल हो गया! काफी चर्चित कहानियां है।
इनमें से अधिकांश कहानियां पुरस्कृत कहानियां है। जिनकी वजह से कहानीकारों को विभिन्न सम्मानों से नवाजा गया है। इसलिए इस संकलन में संकलित कहानियां अपने आप में श्रेष्ठ कहानियां हैं जिन्हें आपके लिए प्रस्तुत किया गया है।
ये सभी कहानियां इन विद्वान कहानीकारों की चर्चित और सुप्रसिद्ध कहानियां है। इनमें अलका प्रमोद की ‘जादुई दस्ताने’, इंद्रजीत कौशिक की ‘सोचेंगे’, ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रक
ये सभी कहानियां इन विद्वान कहानीकारों की चर्चित और सुप्रसिद्ध कहानियां है। इनमें अलका प्रमोद की ‘जादुई दस्ताने’, इंद्रजीत कौशिक की ‘सोचेंगे’, ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ की ‘काल्पनिक भूत’, कीर्ति श्रीवास्तव की ‘दीपावली का ईनाम’, डॉ.कुंवर प्रेमिल की ‘भीम की लाइब्रेरी’, गोविंद शर्मा की ‘काचू की टोपी’, पवन कुमार वर्मा की ‘मिट्ठू चाचा’ चर्चित कहानियां है।
इनमें से अधिकांश कहानियां पुरस्कृत कहानियां है। जिनकी वजह से कहानीकारों को विभिन्न सम्मानों से नवाजा गया है। इसलिए इस संकलन में संकलित कहानियां अपने आप में श्रेष्ठ कहानियां हैं जिन्हें आपके लिए प्रस्तुत किया गया है।
लघुकथा का इतिहास बहुत पुराना है। इसके आधुनिक स्वरूप की नींव सन 1970 के आरंभिक वर्षों में रखी गई थी। उस दशक में अनेक लघुकथाकारों के विद्वानों साथियों ने इसे अपनी अथक मेहनत, प्रयोग औ
लघुकथा का इतिहास बहुत पुराना है। इसके आधुनिक स्वरूप की नींव सन 1970 के आरंभिक वर्षों में रखी गई थी। उस दशक में अनेक लघुकथाकारों के विद्वानों साथियों ने इसे अपनी अथक मेहनत, प्रयोग और रचना धर्मिता से सजाया-संवारा और वर्तमान स्वरूप में लाने का प्रयास किया।
आरंभिक समय में इसे लघु कथा, छोटी कहानी, मिनी कथा व्यंग्य कथा आदि अनेक नामों से सुशोभित किया गया। वर्तमान समय में लघुकथा अपने स्वतंत्र अस्तित्व में मुखर होकर स्थापित हो चुकी है। यह अपनी मारक क्षमता के कारण आधुनिक समय की सबसे प्रिय विधा बन गई है।
सूचना क्रांति और दौड़ती-भागती जिंदगी में लोगों के पास समय की कमी हो गई हैं। नहीं चाह कर भी वे अपना समय सोशल मीडिया पर बिताने को मजबूर हैं। इस कारण से उन के जीवन में समयाभाव बना हुआ है। वे सामाजिक रुप से एकांकी होते जा रहे हैं। इस वजह से सामाजिकता का अभाव, प्रेम, प्यार, मनुहार, आपसी सहयोग, परस्पर मेल-मिलाव का अभाव होता जा रहा है।
यह सभी कहानियां इन विद्वान कहानीकारों की चर्चित और सुप्रसिद्ध कहानियां है। इनमें विमला भंडारी की कहानी 'सूरज ने मांगी छुट्टी', डॉक्टर शील कौशिक की 'धूप का जादू', अरविंद कुमार साह
यह सभी कहानियां इन विद्वान कहानीकारों की चर्चित और सुप्रसिद्ध कहानियां है। इनमें विमला भंडारी की कहानी 'सूरज ने मांगी छुट्टी', डॉक्टर शील कौशिक की 'धूप का जादू', अरविंद कुमार साहू की 'पहलवान की ठुल्ली', राजकुमार जैन राजन की कहानी 'खुशी दो; खुशी लो', कुसुम अग्रवाल की कहानी 'छोटा सा पैकेट', ललित शौर्य की 'जंपी की जादुई पेंसिल', पवन चौहान की 'नए अंदाज में होली' काफी चर्चित कहानियां है।
इनमें से अधिकांश कहानियां पुरस्कृत कहानियां है। जिनकी वजह से कहानीकारों को विभिन्न सम्मानों से नवाजा गया है। इसलिए इस संकलन में संकलित कहानियां अपने आप में श्रेष्ठ कहानियां हैं जिन्हें आपके लिए प्रस्तुत किया गया है।
अनजानी चीज हमें डराती है. इस से हम भयभीत होते हैं. इसलिए उन से डर लगता है. यही डर हमें भय का भूत लगता है. भूत हमारा वहम होता हैं. कभी हम हमारी छाया से डर जाते हैं. वही हमारे लिए भूत हो जा
अनजानी चीज हमें डराती है. इस से हम भयभीत होते हैं. इसलिए उन से डर लगता है. यही डर हमें भय का भूत लगता है. भूत हमारा वहम होता हैं. कभी हम हमारी छाया से डर जाते हैं. वही हमारे लिए भूत हो जाती है.
तब सवाल उठता है कि भूत होते हैं ? इस का जवाब नहीं. इस को हम ने कांव-कांव के भूत में समझाने की कोशिश की. जो चीज हमें दिखाई नहीं देती हैं. उसे डरते हैं तो वह हमारे लिए भूत हो जाती है.
आप दौड़ लगा रहे हो और पीछे से छमछम की आवाज आने लगती है. आप को लगता है कि भूत या चूड़ैल आप के पीछे पड़ गई है. आप भय से भागने लगते हैं. वह भूत या चूड़ैल भी तेजी से आप के पीछे आने लगती है. तब आप भय से घबरा जाते हैं. मगर, जब रूक कर शांति से सोचते हैं तब पता चलता है कि वह जेब में रखी चाबी के घुंघरी की आवाज थी. जिसे आप चूड़ैल की पायल समझ कर डर गए थे.
जब मैंने लिखने की शुरुआत की थी तब कई प्रश्न मेरे दिमाग में आते थे। महान कहानीकार कहानी कैसे लिखते हैं? उनकी कहानी लिखने की प्रक्रिया कैसी होती है? वे पहले शीर्षक चुनते हैं? अथवा कह
जब मैंने लिखने की शुरुआत की थी तब कई प्रश्न मेरे दिमाग में आते थे। महान कहानीकार कहानी कैसे लिखते हैं? उनकी कहानी लिखने की प्रक्रिया कैसी होती है? वे पहले शीर्षक चुनते हैं? अथवा कहानी लिखने के बाद शीर्षक लिखते हैं।
मगर उन दिनों मुझे इन प्रश्नों के जवाब कहीं नहीं मिले। कई किताबें ढूंढी। कई पुस्तकालय गया। कई किताबें मंगाई। उन्हें पढ़ी। उसी दौर में 'उपन्यास कैसे लिखे?' किताब खरीदी। भाषाशैली पर पुस्तकें पढ़ी। मगर, मन की जिज्ञासा शांत नहीं हुई। उसी दौर में 'महान लेखक कैसे लिखते हैं?' शीर्षक से मैंने कई लेख लिखे।
इन लेखों में उन महान साहित्यकारों के लिखने के अनुभव थे। उन्हें लिखने के लिए क्या-क्या व कैसी परिस्थितियां चाहिए थी? लेखन के पूर्व क्या-क्या तसल्ली करते थे? क्या-क्या तरकीब आजमाते थे? इन्हें पढ़कर ही साहित्यकारों की रचना प्रक्रिया को मैंने समझा था।
यह सब करने के बावजूद कई अनुत्तरित प्रश्न थे जिनके जवाब मुझे नहीं मिले थे। यह जवाब हर नवोदितों को लेखन के आरम्भिक दिनों में परेशान करते रहते हैं। जिन्हें कोई साहित्यिक गुरु मिल जाता है, उन्हें इसका समाधान मिल जाता है। अधिकांश रचनाकारों को उनके जवाब नहीं मिलते हैं।
कहानी में रोचकता होती है तो कहानी अच्छी लगती है. आगे क्या होगा ? यह उत्सुकता बनी रहती है. आप को ऐसी कोई कहानी याद होगी. यह कहानी आप को बहुत अच्छी और रोचक लगी होगी. इस कारण आप इसे याद रख
कहानी में रोचकता होती है तो कहानी अच्छी लगती है. आगे क्या होगा ? यह उत्सुकता बनी रहती है. आप को ऐसी कोई कहानी याद होगी. यह कहानी आप को बहुत अच्छी और रोचक लगी होगी. इस कारण आप इसे याद रख पाए हैं. सोचिएगा कि उस में क्या बात अच्छी लगी ?
अपनी बात
अभ्यास भी गुरु है। बिना अभ्यास के कुछ नहीं सीखा जा सकता। संगीत के साथ रियाज जुड़ा है तो लेखन के साथ अभ्यास ।
अभ्यास के साथसाथ यदि किसी से मार्गदर्शन मिलता रहे तो ल
अपनी बात
अभ्यास भी गुरु है। बिना अभ्यास के कुछ नहीं सीखा जा सकता। संगीत के साथ रियाज जुड़ा है तो लेखन के साथ अभ्यास ।
अभ्यास के साथसाथ यदि किसी से मार्गदर्शन मिलता रहे तो लक्ष्य जल्दी प्राप्त हो जाता है। गुरु का मार्गदर्शन दीपक की लौ की तरह होता है जो अंधेरे में राह बताता है।
लेखन के लिए ये तीन बातें जरुरी है। एक, अभ्यास खूब किया जाए। दो, अपने ज्ञान का प्रयोग करना सीखा जाए । तीन, सही मार्गदर्शन प्राप्त किया जाए। इसी तीसरे लक्ष्य की पूर्ति के लिए यह पुस्तक प्रस्तुत की जा रही है, जिस का सारा श्रेय कहानी लेखन महाविद्यालय के सूत्रधार डॉ. महाराज कृष्ण जैन को जाता है। इसकी उपयोगिता तो प्रबुद्ध पाठक ही बता सकते हैं। इस लिए आप की आलोचना, प्रतिक्रिया और सुझाव का स्वागत किया जाएगा। अंत में, उन सभी का आभार, जिन्होंने इस पुस्तक की तैयारी में अपना अमूल्य सहयोग किया है।
दिनांक 05-07-95
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
नदी दरवाज़ा, रतनगढ़-458226 (मप्र)
हमें एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए पैदल जाना पड़ता था. मगर, पहिए के आविष्कार ने हमारे इस समस्या का समाधान कर दिया. धीरेधीरे इस पहिए ने हमारी कई समस्याएं निपटाई हैं. इसी की वजह से आज
हमें एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए पैदल जाना पड़ता था. मगर, पहिए के आविष्कार ने हमारे इस समस्या का समाधान कर दिया. धीरेधीरे इस पहिए ने हमारी कई समस्याएं निपटाई हैं. इसी की वजह से आज के हर चीज बनना संभव हुई हैं. ये सब आविष्कार हमारी सम्यता को उन्नत करने के लिए उपयोगी साबित हुए हैं.
मगर, इन्हें आविष्कृत किस ने किया है ? आप के मन में ऐसा कोई प्रश्न उठा है.
आखिर आविष्कार करने वालों ने किस तरह सोचा था ? जिस की वजह से आविष्कार हुए हैं ? हम ने इन कहानियों में ऐसी ही कुछ बातें पिरोई हैं. ताकि आप इन कहानियों को पढ़ कर होने वाले आविष्कार के बारे में जान सकें. क्यों कि कई विद्यार्थियों ने अपने बचपन में ही कई आविष्कार किए थे. मगर, हम उन को जान नहीं पाए.
हरेक व्यक्ति के जीवन में मुसीबत आती है. कुछ व्यक्ति घबरा जाते हैं. वे हिम्मत हार जाते हैंण् उसे वैसे ही स्वीकार कर लेते हैं. कुछ व्यक्ति मुसीबत आने पर सचेत हो जाते हैं. सोचते हैं
हरेक व्यक्ति के जीवन में मुसीबत आती है. कुछ व्यक्ति घबरा जाते हैं. वे हिम्मत हार जाते हैंण् उसे वैसे ही स्वीकार कर लेते हैं. कुछ व्यक्ति मुसीबत आने पर सचेत हो जाते हैं. सोचते हैं कि मुसीबत क्यों आई है.
मुसीबत आई है तो उस से निपटने का कोई उपाय होगा. यही सोच कर वे घबराते नहीं है. अपने दिमाग को शांत रखते हैं. इस कारण उस मुसीबत से निपटने का उपाय सोच लेते हैं.
जो व्यक्ति मुसीबत से घबरा जाता है उस का दिमाग काम करना बंद कर देता हैं. मुसीबत से घबराने पर गुस्सा या घबराहट होती है. घबराहट और गुस्से में दिमाग काम करना बंद कर देता है. इसी मुसीबत को हम आफत आना कहते हैं.
बच्चों ! अनजानी चीज हमें डराती है. इस से हम भयभीत होते हैं. इसलिए उन से डर लगता है. यही डर हमें भय का भूत लगता है. भूत हमारा वहम होता हैं. कभी हम हमारी छाया से डर जाते हैं. वही हमारे लिए भ
बच्चों ! अनजानी चीज हमें डराती है. इस से हम भयभीत होते हैं. इसलिए उन से डर लगता है. यही डर हमें भय का भूत लगता है. भूत हमारा वहम होता हैं. कभी हम हमारी छाया से डर जाते हैं. वही हमारे लिए भूत हो जाती है.
तब सवाल उठता है कि भूत होते हैं ? इस का जवाब नहीं. इस को हम ने कांव-कांव के भूत में समझाने की कोशिश की. जो चीज हमें दिखाई नहीं देती हैं. उसे डरते हैं तो वह हमारे लिए भूत हो जाती है.
जानवरों की भी यही आदत होती है.उन्हें भी अलगअलग रंग पसंद होते हैं. मगर, क्या रंग वास्तव में कालेपीले, लालगुलाबी, हरेनीले ही होते हैं. जीवन में ओर कोई रंग नहीं होता है. शायद, आप का जवाब
जानवरों की भी यही आदत होती है.उन्हें भी अलगअलग रंग पसंद होते हैं. मगर, क्या रंग वास्तव में कालेपीले, लालगुलाबी, हरेनीले ही होते हैं. जीवन में ओर कोई रंग नहीं होता है. शायद, आप का जवाब होगा— नहीं.
हम भी ऐसा ही सोचते हैं. रंग का जीवन में कोई महत्व नहीं है ? यह सच है ? बिलकुल नहीं. आप यह कहानी— कौनसा रंग अच्छा होता है ? पढ़ कर देखिएगा. तब आप को पता चलेगा कि रंग का जीवन में बहुत महत्व होता है. बस वह रंग मेहनत का होना चाहिए.
चूहा अपनी अक्ल से बिल्ली को कैसे हराता है. वह अपनी जान बचाने के लिए क्याक्या उपाय करता है. यह हम इस कहानियां में बता रहे हैं.
चूहा अपनी अक्ल से बिल्ली को कैसे हराता है. वह अपनी जान बचाने के लिए क्याक्या उपाय करता है. यह हम इस कहानियां में बता रहे हैं.
हाइबन एक जापानी विधा है। इसमें हाइकु के साथ साहित्य की अन्य विधा का गठजोड़ होता है। पहले साहित्य की अन्य विधा को लिखा जाता है। इसके अंत में एक हाइकू होता है। इसके संयुक्त रुप को ह
हाइबन एक जापानी विधा है। इसमें हाइकु के साथ साहित्य की अन्य विधा का गठजोड़ होता है। पहले साहित्य की अन्य विधा को लिखा जाता है। इसके अंत में एक हाइकू होता है। इसके संयुक्त रुप को हाइबन कहते हैं। संक्षेप में कहें तो किसी भी विधा में प्रकृति की व्याख्या अथवा रचना के बाद या रोचक विवरण के बाद अंत में एक हाइकू की रचना की जाती है। इस रचना को हाइबन कहते हैं।
इस लघुकथा संकलन में 68 लघुकथाकारों की श्रेष्ठ लघुकथाएं संकलित की गई हैं. इस की श्रेष्ठता का पैमाना स्वयं रचनाकार के हाथ में था. उन्हों ने अपनी सब से श्रेष्ठतम् लघुकथाओं को इस संक
इस लघुकथा संकलन में 68 लघुकथाकारों की श्रेष्ठ लघुकथाएं संकलित की गई हैं. इस की श्रेष्ठता का पैमाना स्वयं रचनाकार के हाथ में था. उन्हों ने अपनी सब से श्रेष्ठतम् लघुकथाओं को इस संकलन में भेजा है. साथ ही उन्हों ने यह भी बताया है कि उन की यह लघुकथा उन्हें क्यों पसंद है. उन की श्रेष्ठता का कारण क्या है ?
पहाड़ी की सैर कहानी संग्रह में तीन कहानी सम्मिलित है. इस में राबिया का जूता एक ऐसी कहानी है जो राबिया को जूते से ज्यादा पापा की अहमियत के दर्शन कराती है. वही पहाड़ी की सैर एक रोमां
पहाड़ी की सैर कहानी संग्रह में तीन कहानी सम्मिलित है. इस में राबिया का जूता एक ऐसी कहानी है जो राबिया को जूते से ज्यादा पापा की अहमियत के दर्शन कराती है. वही पहाड़ी की सैर एक रोमांचक यात्रा से रूबरू कराती है. वही जैसे को तैसा कहानी जैसा करोगे वैसा भरोगे— को व्यक्त करती है.
हाइकु एक सत्रह वर्णीय कविता है. इसे वार्णिक कविता कह सकते हैं. त्रिपदीय मुक्तक में तीन पंक्तियां होती हैं. तीनों अपने आप में पूर्ण होती हैं. तीनों का अलग अर्थ होता हैं. तीनों पं
हाइकु एक सत्रह वर्णीय कविता है. इसे वार्णिक कविता कह सकते हैं. त्रिपदीय मुक्तक में तीन पंक्तियां होती हैं. तीनों अपने आप में पूर्ण होती हैं. तीनों का अलग अर्थ होता हैं. तीनों पंक्तियां मिला कर एक वाक्य बनाती हैं.
जापान में श्रृखंलाबंद्ध काव्यरचना की जाती थी. एक व्यक्ति तीन पंक्तियों यानी सत्रह वर्णों में अपनी बात कर कर छोड़ देता है. दूसरे व्यक्ति उसी भाव, भाषा और छंद में अपनी बात को आगे बढ़ाता है.इस तरह एक श्रृंखलाबद्ध काव्य रचना रची जाती हैं. इसे रेंगा कहते हैं.
रेंगा के एक छंद यानी सत्रह वर्णीय भाग को होक्कू कहते थे. कालांतर में यह होक्कू स्वतंत्र रूप में रचे जाने लगे. इसे ही काव्य के रूप में हाइकु कहा जाने लगा.
नाम- ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
जन्मतिथि एवं स्थान- 26 जनवरी 1965 भानपुरा जिला-नीमच (मप्र)
प्रकाशन- अनेक पत्रपत्रिकाओं में रचना सहित 141 बालकहानियाँ 8 भाषा में 1128 अंकों में प्रका
नाम- ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
जन्मतिथि एवं स्थान- 26 जनवरी 1965 भानपुरा जिला-नीमच (मप्र)
प्रकाशन- अनेक पत्रपत्रिकाओं में रचना सहित 141 बालकहानियाँ 8 भाषा में 1128 अंकों में प्रकाशित।
प्रकाशित पुस्तकेँ-1- रोचक विज्ञान बालकहानियाँ, 2-संयम की जीत, 3- कुएं को बुखार, 4- क्सक, 5- हाइकु संयुक्ता, 6- चाबी वाला भूत सहित 6 मराठी पुस्तकें प्रकाशित।
मोबाइल नं.- 9424079675
mail- opkshatriya@gmail.com
बच्चों की जिज्ञासाओं को बढ़ाने,
उन का मनोरंजन करने के
साथसाथ ज्ञानवर्धन के लिखी गई
इन कहानियों में बच्चों के लिए
बहुत कुछ शिक्षाप्रद बातें भी हैं.
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बच्चों की जिज्ञासाओं को बढ़ाने,
उन का मनोरंजन करने के
साथसाथ ज्ञानवर्धन के लिखी गई
इन कहानियों में बच्चों के लिए
बहुत कुछ शिक्षाप्रद बातें भी हैं.
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नन्हेमुन्ने बच्चों को समर्पित
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लघुकथा का अपना अलग मिजाज होता है. यह कहानी की तरह विस्तृत पलक की नहीं होती है. उपन्यास तो इस से भी बड़ी चीज है. यह तो क्षण विशेष को अभिव्यक्त करने के लिए एक विधा है. जिस में अपनी तीक्
लघुकथा का अपना अलग मिजाज होता है. यह कहानी की तरह विस्तृत पलक की नहीं होती है. उपन्यास तो इस से भी बड़ी चीज है. यह तो क्षण विशेष को अभिव्यक्त करने के लिए एक विधा है. जिस में अपनी तीक्ष्णता के कारण पाठक के मन में एक टीस पैदा करने की क्षमता रखती है.
जिस तरह एक व्यक्ति की अपनी पसंद होती है वैसे ही लघुकथाकारों की अपनी पसंद होती है. एक मांसाहारी व्यक्ति को किसी निरीह जानवार का मांस खाने में आनंद की अनुभूति होती है. वहीं उसी व्यक्ति को दाल खाना किसी कचरे को खाने जैसा लगता है. ठीक उसी तरह एक शाकाहारी व्यक्ति की अपनी पसंद हो सकती है. उस के लिए मांसाहार बेकार की चीज होती है. वैसे ही दाल सर्वोत्तम आहार या सब्जी होती है.
इसी तरह हरेक समीक्षक के लिए लघुकथा को मापने के अपने मापदंड होते हैं. मैं ने अपने अनुभव से महसूस किया है कि लघुकथा में अपनीअपनी खेमेबाजी है. एक खेमे को लघुकथा में पंच लाइन बहुत प्यारी लगती है वहीं दूसरे खेमे को यह नागवार गुजरती है. एक खेमा लेखक की उपस्थिति को निषेध मानता है वही दूसरा खेमा इस पर ज्यादा जोर नहीं देता है. उस का मानना है कि लघुकथा अपना प्रभाव छोड़ जाए, यही बहुत है.
हम बच्चों को क्या देते हैं ? यह इस बात पर निर्भर करता हैं. बच्चा जैसा देखता, सुनता व पढ़ता है वैसा ही बनता हैं. इस में समाजा का कार्य महत्वपूर्ण होता है. समाज में शिक्षक, साहित्यकार, म
हम बच्चों को क्या देते हैं ? यह इस बात पर निर्भर करता हैं. बच्चा जैसा देखता, सुनता व पढ़ता है वैसा ही बनता हैं. इस में समाजा का कार्य महत्वपूर्ण होता है. समाज में शिक्षक, साहित्यकार, मातापिता व गुरूजनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं.
समाज के एक अंग होने के नाते हम सब अपनीअपनी भूमिका अच्छी तरह निभाए तभी हम सुखी व संपन्न हो सकते हैं. बच्चों को साहित्य व संस्कृति से परिचित करना हम सब का दाइत्व हैं. इसे हम अच्छा साहित्य दे कर, लोककथाएं और कहानियां सुना कर पूरा कर सकते हैं.
मारक क्षमता से युक्त लघुकथाऍ
किसी लघुकथा की समीक्षा करना लघुकथा रूपी सूर्य को दीपक दिखाने के समान है. तथापि यह प्रयास किया जा रहा है ताकि सूरज और दीपक की तुलना की जा सकें. यह प्
मारक क्षमता से युक्त लघुकथाऍ
किसी लघुकथा की समीक्षा करना लघुकथा रूपी सूर्य को दीपक दिखाने के समान है. तथापि यह प्रयास किया जा रहा है ताकि सूरज और दीपक की तुलना की जा सकें. यह प्रयास मात्र यह प्रदर्शित करता है कि लघुकथा रूपी सूरज में किनकिन गुणों को समावेश है, उसे उजागर करने का यह हमारा छोटासा प्रयास है.
लघुकथा पढ़ने से उस की गुणवत्ता स्वयं प्रदर्शित हो जाती है. उसे बताने की जरूरत नहीं पड़ती है. किसी को सूरज की विशेषताएं बताना नहीं पड़ती है. मगर, सूरज को इंगित करने से हमारा ध्यान उस ओर चला जाता है. इसी प्रयास से इस पुस्तक में संग्रहित लघुकथाओं को यहां इंगित किया जा रहा है.
अपनी बात
चलिए ! कुछ हम कहें और कुछ आप
आप सभी ने अपनी दादीनानी से कहानी सुनी होगी. किसी को मम्मी ने कहानी सुनाई होगी. यदि आप शाला पढ़ने जाते हो तो वहां पर आप को शिक्षकों ने आप क
अपनी बात
चलिए ! कुछ हम कहें और कुछ आप
आप सभी ने अपनी दादीनानी से कहानी सुनी होगी. किसी को मम्मी ने कहानी सुनाई होगी. यदि आप शाला पढ़ने जाते हो तो वहां पर आप को शिक्षकों ने आप को कहानी सुनाई होगी. आप को कुछ कहानी अच्छी लगी होगी. कुछ बेकार लगी होगी. इस बारे में आप ने शिक्षक से कुछ कहा होगा.
कहानी में रोचकता होती है तो कहानी अच्छी लगती है. आगे क्या होगा ? यह उत्सुकता बनी रहती है. आप को ऐसी कोई कहानी याद होगी. यह कहानी आप को बहुत अच्छी और रोचक लगी होगी. इस कारण आप इसे याद रख पाए हैं. सोचिएगा कि उस में क्या बात अच्छी लगी ?
इस कहानी की पुस्तक में ऐसी कई कहानियां हैं. इन्हें ध्यान से पढ़िएगा. समझिएगा. कुछ गुनिएगा. तब समझ कर बताइएगा कि कौनसी कहानी आप को अच्छी लगी. उस के अच्छे लगने का कारण क्या था ? ताकि आप के लिए अगले कहानी संग्रह में वैसी ही कहानियां सम्मिलित की जा सकें.
हाइकु एक सत्रह वर्णीय कविता है. इसे वार्णिक कविता कह सकते हैं. त्रिपदीय मुक्तक में तीन पंक्तियां होती हैं. तीनों अपने आप में पूर्ण होती हैं. तीनों का अलग अर्थ होता हैं. तीनों पं
हाइकु एक सत्रह वर्णीय कविता है. इसे वार्णिक कविता कह सकते हैं. त्रिपदीय मुक्तक में तीन पंक्तियां होती हैं. तीनों अपने आप में पूर्ण होती हैं. तीनों का अलग अर्थ होता हैं. तीनों पंक्तियां मिला कर एक वाक्य बनाती हैं.
जापान में श्रृखंलाबंद्ध काव्यरचना की जाती थी. एक व्यक्ति तीन पंक्तियों यानी सत्रह वर्णों में अपनी बात कर कर छोड़ देता है. दूसरे व्यक्ति उसी भाव, भाषा और छंद में अपनी बात को आगे बढ़ाता है.इस तरह एक श्रृंखलाबद्ध काव्य रचना रची जाती हैं. इसे रेंगा कहते हैं.
रेंगा के एक छंद यानी सत्रह वर्णीय भाग को होक्कू कहते थे. कालांतर में यह होक्कू स्वतंत्र रूप में रचे जाने लगे. इसे ही काव्य के रूप में हाइकु कहा जाने लगा.
सभी महापुरूषों को समर्पित
जिन्हों ने इस देश के निर्माण में अपनी छोटीसी भूमिका का निर्वाहन किया है उन सब को समर्पित मेरी यह पुस्तक एक छोटीसी आदरांजलि है. यदि इस में से एक भी कह
सभी महापुरूषों को समर्पित
जिन्हों ने इस देश के निर्माण में अपनी छोटीसी भूमिका का निर्वाहन किया है उन सब को समर्पित मेरी यह पुस्तक एक छोटीसी आदरांजलि है. यदि इस में से एक भी कहानी उन की सार्थकता को सिद्ध करने में सक्षम है तो मेरी मेहनत सफल हैं.
परिस्थितियां कैसी भी हो, अच्छाई साथ ले कर आती हैं. कोरोनाकाल में लॉकडाउन की घोषणा हुई. इस ने सभी को हिला कर रख दिया. हरेक व्यक्ति विचलित था. सुबहशाम घुमने वाले ज्यादा घबराए थे. वे बि
परिस्थितियां कैसी भी हो, अच्छाई साथ ले कर आती हैं. कोरोनाकाल में लॉकडाउन की घोषणा हुई. इस ने सभी को हिला कर रख दिया. हरेक व्यक्ति विचलित था. सुबहशाम घुमने वाले ज्यादा घबराए थे. वे बिना घुमेफिरे नहीं रह सकते थे. उन के लिए यह लॉकडाउन किसी तालाबंदी या जेल से कम नहीं था. इस से मैं भी अछूता नहीं था.
मेरे मन में अनेक विचार आए. तालाबंदी कैसे गुजरेगी? समय कैसे बितेगा? क्या दिनभर बैठे रहेंगे? या कुछ काम भी करेंगे? तब मन में एक विचार आया. कई महापुरूषों को जेल की सजा हुई थी. उन्हें अपने दुर्दिन जेल में बिताना पड़े थे. तब वे क्या करते रहे होंगे?
यह विचार आते ही जिज्ञासा जागृत हुई. इन महापुरूषों की जीवनियां पढ़नी चाहिए. इन्हें ने अपना समय कैसे बिताया था? क्या किया था? तब इन की जीवनियां पढ़ी. तब ज्ञात हुआ कि महापुरूषों ने अपने जीवन में बहुत दुख देखें. कई संघर्षों का सामना किया. इसी बीच उन्हों ने अपनी छोटीछोटी सफलताओं में खुशियां ढूंढना शुरू किया. तब जा कर उन के कष्टभरे जीवन से उन्हें छुटकारा मिला. आपदा में भी अवसर मिला. जिस का परिणाम हमारे सामने हैं. आज वे पुरूष हमारे सामने महापुरूष बन कर खड़े हैं.
कई विद्वानों ने जेल के दिनों का सदुपयोग किया. जवाहरलाल नेहरू ने जेल से अपनी ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ लिख कर अपने समय का सुदपयोग किया. गोपालकृष्ण आगरकर अपनी छोटीसी गलती के पीछे जेल में 101 दिन रहे. इन दिनों को उपयोग उन्हों ने डोंगरी की दशा का चित्रण किया. उसी को उन्हों ने ‘डोंगरी जेल के 101 दिन’ में अपने प्रदेश की व्यथाकथा का चित्रण किया. जिस में सामाजिक कुरीतियों, छुआछूत और भेदभाव आदि का तानाबाना बुन कर लिख दिया.
आप सभी को समर्पित
जिन्हें लगता है कि यह उन की कहानी है. उन के दिल के बहुत करीब है. उन सभी भावुक हृदय, दुखी या प्रसन्न युवाओं के लिए ही यह लिखी गई हैं. इस से किस
आप सभी को समर्पित
जिन्हें लगता है कि यह उन की कहानी है. उन के दिल के बहुत करीब है. उन सभी भावुक हृदय, दुखी या प्रसन्न युवाओं के लिए ही यह लिखी गई हैं. इस से किसी का मनोरंजन, आनंद या खुशी की अनुभूति होती है तो मेरी मेहनत सार्थक होगी. इस कारण यह आप सभी को समर्पित हैं.
तमाम युवा दंपति के लिए सादर समर्पित हैं.
आप सभी को समर्पित
जिन्हें लगता है कि यह उन की कहानी है. उन के दिल के बहुत करीब है. उन सभी भावुक हृदय, दुखी या प्रसन्न युवाओं के लिए ही यह लिखी गई हैं. इस से क
आप सभी को समर्पित
जिन्हें लगता है कि यह उन की कहानी है. उन के दिल के बहुत करीब है. उन सभी भावुक हृदय, दुखी या प्रसन्न युवाओं के लिए ही यह लिखी गई हैं. इस से किसी का मनोरंजन, आनंद या खुशी की अनुभूति होती है तो मेरी मेहनत सार्थक होगी. इस कारण यह आप सभी को समर्पित हैं.
तमाम युवा दंपति के लिए सादर समर्पित हैं.
'' हूं.''
'' जैसे ही मैं ने आप का चेहरा अपनी ओर किया. मैं चौंक गई. वे आप नहीं थे. यह देख कर मैं डर गई. मैं ने उसे दूर हटाने की कोशिश की. मगर, वह मुझ से जम कर चिपट गया था. वह केवल आईलवयू आईलवयू कहे जा रहा था. उस की सांसे बहुत गरम थी.
'' मैं ने बहुत कोशिश की. उस से छूटने की. मगर, उस की पकड़ से छूट नहीं सकी. उसे वास्ता दिया कि मैं एक ब्याहता स्त्री हूं. मैं अपने पति के लिए बैठी थी. मगर, वह नहीं माना. मैं बेबस सी उस की बांहों में छटपटाती रही.
'' उस ने अपने मन की मरजी पूरी कर ली. तब उस ने मुझे छोड़ा. मगर, तब वह मुझे छोड़ कर रोने लगा. उसे इस बात का दुख था कि उस ने अपने मनोवेग में वह सब कुछ कर लिया जो उसे नहीं करना चाहिए था.
'' वह मेरे पैर में लिपट गया. मुझे माफ कर दो भाभी. वह कहे जा रहा था. मगर, मेरे मुंह से निकला— तुम्हें माफ करने से मेरी इज्जत वापस नहीं आ जाएगी. मैं अपने पति के लिए तैयार बैठी थी उन्हें सब कुछ देना चाहती थी. तुम ने मुझे लूट लिया. अब मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नही रही.
''यह सुन कर वह रोने लगा. बोला— भाभीजी! मैं नालयक हूं. मुझे जीने का अधिकार नहीं है. मैं ने दुष्कर्म किया है. मुझे सजा मिलना चाहिए. तुम ऐसा करों कि पुलिस को बुला लो. मुझे उस के सुपुर्द कर दो. कह कर वह फुटफुट कर रोने लगा.
लघुकथा- भ्रष्टाचार की सजा ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रक Read More...
बालकहानी- अंतरिक्ष में चोरी ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रक Read More...
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