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Vivek SreedharAuthor of Ketchup & Curry
अपनी बात
अभ्यास भी गुरु है। बिना अभ्यास के कुछ नहीं सीखा जा सकता। संगीत के साथ रियाज जुड़ा है तो लेखन के साथ अभ्यास ।
अभ्यास के साथसाथ यदि किसी से मार्गदर्शन मिलता रहे तो ल
अपनी बात
अभ्यास भी गुरु है। बिना अभ्यास के कुछ नहीं सीखा जा सकता। संगीत के साथ रियाज जुड़ा है तो लेखन के साथ अभ्यास ।
अभ्यास के साथसाथ यदि किसी से मार्गदर्शन मिलता रहे तो लक्ष्य जल्दी प्राप्त हो जाता है। गुरु का मार्गदर्शन दीपक की लौ की तरह होता है जो अंधेरे में राह बताता है।
लेखन के लिए ये तीन बातें जरुरी है। एक, अभ्यास खूब किया जाए। दो, अपने ज्ञान का प्रयोग करना सीखा जाए । तीन, सही मार्गदर्शन प्राप्त किया जाए। इसी तीसरे लक्ष्य की पूर्ति के लिए यह पुस्तक प्रस्तुत की जा रही है, जिस का सारा श्रेय कहानी लेखन महाविद्यालय के सूत्रधार डॉ. महाराज कृष्ण जैन को जाता है। इसकी उपयोगिता तो प्रबुद्ध पाठक ही बता सकते हैं। इस लिए आप की आलोचना, प्रतिक्रिया और सुझाव का स्वागत किया जाएगा। अंत में, उन सभी का आभार, जिन्होंने इस पुस्तक की तैयारी में अपना अमूल्य सहयोग किया है।
दिनांक 05-07-95
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
नदी दरवाज़ा, रतनगढ़-458226 (मप्र)
हमें एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए पैदल जाना पड़ता था. मगर, पहिए के आविष्कार ने हमारे इस समस्या का समाधान कर दिया. धीरेधीरे इस पहिए ने हमारी कई समस्याएं निपटाई हैं. इसी की वजह से आज
हमें एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए पैदल जाना पड़ता था. मगर, पहिए के आविष्कार ने हमारे इस समस्या का समाधान कर दिया. धीरेधीरे इस पहिए ने हमारी कई समस्याएं निपटाई हैं. इसी की वजह से आज के हर चीज बनना संभव हुई हैं. ये सब आविष्कार हमारी सम्यता को उन्नत करने के लिए उपयोगी साबित हुए हैं.
मगर, इन्हें आविष्कृत किस ने किया है ? आप के मन में ऐसा कोई प्रश्न उठा है.
आखिर आविष्कार करने वालों ने किस तरह सोचा था ? जिस की वजह से आविष्कार हुए हैं ? हम ने इन कहानियों में ऐसी ही कुछ बातें पिरोई हैं. ताकि आप इन कहानियों को पढ़ कर होने वाले आविष्कार के बारे में जान सकें. क्यों कि कई विद्यार्थियों ने अपने बचपन में ही कई आविष्कार किए थे. मगर, हम उन को जान नहीं पाए.
हरेक व्यक्ति के जीवन में मुसीबत आती है. कुछ व्यक्ति घबरा जाते हैं. वे हिम्मत हार जाते हैंण् उसे वैसे ही स्वीकार कर लेते हैं. कुछ व्यक्ति मुसीबत आने पर सचेत हो जाते हैं. सोचते हैं
हरेक व्यक्ति के जीवन में मुसीबत आती है. कुछ व्यक्ति घबरा जाते हैं. वे हिम्मत हार जाते हैंण् उसे वैसे ही स्वीकार कर लेते हैं. कुछ व्यक्ति मुसीबत आने पर सचेत हो जाते हैं. सोचते हैं कि मुसीबत क्यों आई है.
मुसीबत आई है तो उस से निपटने का कोई उपाय होगा. यही सोच कर वे घबराते नहीं है. अपने दिमाग को शांत रखते हैं. इस कारण उस मुसीबत से निपटने का उपाय सोच लेते हैं.
जो व्यक्ति मुसीबत से घबरा जाता है उस का दिमाग काम करना बंद कर देता हैं. मुसीबत से घबराने पर गुस्सा या घबराहट होती है. घबराहट और गुस्से में दिमाग काम करना बंद कर देता है. इसी मुसीबत को हम आफत आना कहते हैं.
बच्चों ! अनजानी चीज हमें डराती है. इस से हम भयभीत होते हैं. इसलिए उन से डर लगता है. यही डर हमें भय का भूत लगता है. भूत हमारा वहम होता हैं. कभी हम हमारी छाया से डर जाते हैं. वही हमारे लिए भ
बच्चों ! अनजानी चीज हमें डराती है. इस से हम भयभीत होते हैं. इसलिए उन से डर लगता है. यही डर हमें भय का भूत लगता है. भूत हमारा वहम होता हैं. कभी हम हमारी छाया से डर जाते हैं. वही हमारे लिए भूत हो जाती है.
तब सवाल उठता है कि भूत होते हैं ? इस का जवाब नहीं. इस को हम ने कांव-कांव के भूत में समझाने की कोशिश की. जो चीज हमें दिखाई नहीं देती हैं. उसे डरते हैं तो वह हमारे लिए भूत हो जाती है.
जानवरों की भी यही आदत होती है.उन्हें भी अलगअलग रंग पसंद होते हैं. मगर, क्या रंग वास्तव में कालेपीले, लालगुलाबी, हरेनीले ही होते हैं. जीवन में ओर कोई रंग नहीं होता है. शायद, आप का जवाब
जानवरों की भी यही आदत होती है.उन्हें भी अलगअलग रंग पसंद होते हैं. मगर, क्या रंग वास्तव में कालेपीले, लालगुलाबी, हरेनीले ही होते हैं. जीवन में ओर कोई रंग नहीं होता है. शायद, आप का जवाब होगा— नहीं.
हम भी ऐसा ही सोचते हैं. रंग का जीवन में कोई महत्व नहीं है ? यह सच है ? बिलकुल नहीं. आप यह कहानी— कौनसा रंग अच्छा होता है ? पढ़ कर देखिएगा. तब आप को पता चलेगा कि रंग का जीवन में बहुत महत्व होता है. बस वह रंग मेहनत का होना चाहिए.
चूहा अपनी अक्ल से बिल्ली को कैसे हराता है. वह अपनी जान बचाने के लिए क्याक्या उपाय करता है. यह हम इस कहानियां में बता रहे हैं.
चूहा अपनी अक्ल से बिल्ली को कैसे हराता है. वह अपनी जान बचाने के लिए क्याक्या उपाय करता है. यह हम इस कहानियां में बता रहे हैं.
हाइबन एक जापानी विधा है। इसमें हाइकु के साथ साहित्य की अन्य विधा का गठजोड़ होता है। पहले साहित्य की अन्य विधा को लिखा जाता है। इसके अंत में एक हाइकू होता है। इसके संयुक्त रुप को ह
हाइबन एक जापानी विधा है। इसमें हाइकु के साथ साहित्य की अन्य विधा का गठजोड़ होता है। पहले साहित्य की अन्य विधा को लिखा जाता है। इसके अंत में एक हाइकू होता है। इसके संयुक्त रुप को हाइबन कहते हैं। संक्षेप में कहें तो किसी भी विधा में प्रकृति की व्याख्या अथवा रचना के बाद या रोचक विवरण के बाद अंत में एक हाइकू की रचना की जाती है। इस रचना को हाइबन कहते हैं।
इस लघुकथा संकलन में 68 लघुकथाकारों की श्रेष्ठ लघुकथाएं संकलित की गई हैं. इस की श्रेष्ठता का पैमाना स्वयं रचनाकार के हाथ में था. उन्हों ने अपनी सब से श्रेष्ठतम् लघुकथाओं को इस संक
इस लघुकथा संकलन में 68 लघुकथाकारों की श्रेष्ठ लघुकथाएं संकलित की गई हैं. इस की श्रेष्ठता का पैमाना स्वयं रचनाकार के हाथ में था. उन्हों ने अपनी सब से श्रेष्ठतम् लघुकथाओं को इस संकलन में भेजा है. साथ ही उन्हों ने यह भी बताया है कि उन की यह लघुकथा उन्हें क्यों पसंद है. उन की श्रेष्ठता का कारण क्या है ?
पहाड़ी की सैर कहानी संग्रह में तीन कहानी सम्मिलित है. इस में राबिया का जूता एक ऐसी कहानी है जो राबिया को जूते से ज्यादा पापा की अहमियत के दर्शन कराती है. वही पहाड़ी की सैर एक रोमां
पहाड़ी की सैर कहानी संग्रह में तीन कहानी सम्मिलित है. इस में राबिया का जूता एक ऐसी कहानी है जो राबिया को जूते से ज्यादा पापा की अहमियत के दर्शन कराती है. वही पहाड़ी की सैर एक रोमांचक यात्रा से रूबरू कराती है. वही जैसे को तैसा कहानी जैसा करोगे वैसा भरोगे— को व्यक्त करती है.
हाइकु एक सत्रह वर्णीय कविता है. इसे वार्णिक कविता कह सकते हैं. त्रिपदीय मुक्तक में तीन पंक्तियां होती हैं. तीनों अपने आप में पूर्ण होती हैं. तीनों का अलग अर्थ होता हैं. तीनों पं
हाइकु एक सत्रह वर्णीय कविता है. इसे वार्णिक कविता कह सकते हैं. त्रिपदीय मुक्तक में तीन पंक्तियां होती हैं. तीनों अपने आप में पूर्ण होती हैं. तीनों का अलग अर्थ होता हैं. तीनों पंक्तियां मिला कर एक वाक्य बनाती हैं.
जापान में श्रृखंलाबंद्ध काव्यरचना की जाती थी. एक व्यक्ति तीन पंक्तियों यानी सत्रह वर्णों में अपनी बात कर कर छोड़ देता है. दूसरे व्यक्ति उसी भाव, भाषा और छंद में अपनी बात को आगे बढ़ाता है.इस तरह एक श्रृंखलाबद्ध काव्य रचना रची जाती हैं. इसे रेंगा कहते हैं.
रेंगा के एक छंद यानी सत्रह वर्णीय भाग को होक्कू कहते थे. कालांतर में यह होक्कू स्वतंत्र रूप में रचे जाने लगे. इसे ही काव्य के रूप में हाइकु कहा जाने लगा.
नाम- ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
जन्मतिथि एवं स्थान- 26 जनवरी 1965 भानपुरा जिला-नीमच (मप्र)
प्रकाशन- अनेक पत्रपत्रिकाओं में रचना सहित 141 बालकहानियाँ 8 भाषा में 1128 अंकों में प्रका
नाम- ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
जन्मतिथि एवं स्थान- 26 जनवरी 1965 भानपुरा जिला-नीमच (मप्र)
प्रकाशन- अनेक पत्रपत्रिकाओं में रचना सहित 141 बालकहानियाँ 8 भाषा में 1128 अंकों में प्रकाशित।
प्रकाशित पुस्तकेँ-1- रोचक विज्ञान बालकहानियाँ, 2-संयम की जीत, 3- कुएं को बुखार, 4- क्सक, 5- हाइकु संयुक्ता, 6- चाबी वाला भूत सहित 6 मराठी पुस्तकें प्रकाशित।
मोबाइल नं.- 9424079675
mail- opkshatriya@gmail.com
बच्चों की जिज्ञासाओं को बढ़ाने,
उन का मनोरंजन करने के
साथसाथ ज्ञानवर्धन के लिखी गई
इन कहानियों में बच्चों के लिए
बहुत कुछ शिक्षाप्रद बातें भी हैं.
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बच्चों की जिज्ञासाओं को बढ़ाने,
उन का मनोरंजन करने के
साथसाथ ज्ञानवर्धन के लिखी गई
इन कहानियों में बच्चों के लिए
बहुत कुछ शिक्षाप्रद बातें भी हैं.
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नन्हेमुन्ने बच्चों को समर्पित
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लघुकथा का अपना अलग मिजाज होता है. यह कहानी की तरह विस्तृत पलक की नहीं होती है. उपन्यास तो इस से भी बड़ी चीज है. यह तो क्षण विशेष को अभिव्यक्त करने के लिए एक विधा है. जिस में अपनी तीक्
लघुकथा का अपना अलग मिजाज होता है. यह कहानी की तरह विस्तृत पलक की नहीं होती है. उपन्यास तो इस से भी बड़ी चीज है. यह तो क्षण विशेष को अभिव्यक्त करने के लिए एक विधा है. जिस में अपनी तीक्ष्णता के कारण पाठक के मन में एक टीस पैदा करने की क्षमता रखती है.
जिस तरह एक व्यक्ति की अपनी पसंद होती है वैसे ही लघुकथाकारों की अपनी पसंद होती है. एक मांसाहारी व्यक्ति को किसी निरीह जानवार का मांस खाने में आनंद की अनुभूति होती है. वहीं उसी व्यक्ति को दाल खाना किसी कचरे को खाने जैसा लगता है. ठीक उसी तरह एक शाकाहारी व्यक्ति की अपनी पसंद हो सकती है. उस के लिए मांसाहार बेकार की चीज होती है. वैसे ही दाल सर्वोत्तम आहार या सब्जी होती है.
इसी तरह हरेक समीक्षक के लिए लघुकथा को मापने के अपने मापदंड होते हैं. मैं ने अपने अनुभव से महसूस किया है कि लघुकथा में अपनीअपनी खेमेबाजी है. एक खेमे को लघुकथा में पंच लाइन बहुत प्यारी लगती है वहीं दूसरे खेमे को यह नागवार गुजरती है. एक खेमा लेखक की उपस्थिति को निषेध मानता है वही दूसरा खेमा इस पर ज्यादा जोर नहीं देता है. उस का मानना है कि लघुकथा अपना प्रभाव छोड़ जाए, यही बहुत है.
हम बच्चों को क्या देते हैं ? यह इस बात पर निर्भर करता हैं. बच्चा जैसा देखता, सुनता व पढ़ता है वैसा ही बनता हैं. इस में समाजा का कार्य महत्वपूर्ण होता है. समाज में शिक्षक, साहित्यकार, म
हम बच्चों को क्या देते हैं ? यह इस बात पर निर्भर करता हैं. बच्चा जैसा देखता, सुनता व पढ़ता है वैसा ही बनता हैं. इस में समाजा का कार्य महत्वपूर्ण होता है. समाज में शिक्षक, साहित्यकार, मातापिता व गुरूजनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं.
समाज के एक अंग होने के नाते हम सब अपनीअपनी भूमिका अच्छी तरह निभाए तभी हम सुखी व संपन्न हो सकते हैं. बच्चों को साहित्य व संस्कृति से परिचित करना हम सब का दाइत्व हैं. इसे हम अच्छा साहित्य दे कर, लोककथाएं और कहानियां सुना कर पूरा कर सकते हैं.
मारक क्षमता से युक्त लघुकथाऍ
किसी लघुकथा की समीक्षा करना लघुकथा रूपी सूर्य को दीपक दिखाने के समान है. तथापि यह प्रयास किया जा रहा है ताकि सूरज और दीपक की तुलना की जा सकें. यह प्
मारक क्षमता से युक्त लघुकथाऍ
किसी लघुकथा की समीक्षा करना लघुकथा रूपी सूर्य को दीपक दिखाने के समान है. तथापि यह प्रयास किया जा रहा है ताकि सूरज और दीपक की तुलना की जा सकें. यह प्रयास मात्र यह प्रदर्शित करता है कि लघुकथा रूपी सूरज में किनकिन गुणों को समावेश है, उसे उजागर करने का यह हमारा छोटासा प्रयास है.
लघुकथा पढ़ने से उस की गुणवत्ता स्वयं प्रदर्शित हो जाती है. उसे बताने की जरूरत नहीं पड़ती है. किसी को सूरज की विशेषताएं बताना नहीं पड़ती है. मगर, सूरज को इंगित करने से हमारा ध्यान उस ओर चला जाता है. इसी प्रयास से इस पुस्तक में संग्रहित लघुकथाओं को यहां इंगित किया जा रहा है.
अपनी बात
चलिए ! कुछ हम कहें और कुछ आप
आप सभी ने अपनी दादीनानी से कहानी सुनी होगी. किसी को मम्मी ने कहानी सुनाई होगी. यदि आप शाला पढ़ने जाते हो तो वहां पर आप को शिक्षकों ने आप क
अपनी बात
चलिए ! कुछ हम कहें और कुछ आप
आप सभी ने अपनी दादीनानी से कहानी सुनी होगी. किसी को मम्मी ने कहानी सुनाई होगी. यदि आप शाला पढ़ने जाते हो तो वहां पर आप को शिक्षकों ने आप को कहानी सुनाई होगी. आप को कुछ कहानी अच्छी लगी होगी. कुछ बेकार लगी होगी. इस बारे में आप ने शिक्षक से कुछ कहा होगा.
कहानी में रोचकता होती है तो कहानी अच्छी लगती है. आगे क्या होगा ? यह उत्सुकता बनी रहती है. आप को ऐसी कोई कहानी याद होगी. यह कहानी आप को बहुत अच्छी और रोचक लगी होगी. इस कारण आप इसे याद रख पाए हैं. सोचिएगा कि उस में क्या बात अच्छी लगी ?
इस कहानी की पुस्तक में ऐसी कई कहानियां हैं. इन्हें ध्यान से पढ़िएगा. समझिएगा. कुछ गुनिएगा. तब समझ कर बताइएगा कि कौनसी कहानी आप को अच्छी लगी. उस के अच्छे लगने का कारण क्या था ? ताकि आप के लिए अगले कहानी संग्रह में वैसी ही कहानियां सम्मिलित की जा सकें.
हाइकु एक सत्रह वर्णीय कविता है. इसे वार्णिक कविता कह सकते हैं. त्रिपदीय मुक्तक में तीन पंक्तियां होती हैं. तीनों अपने आप में पूर्ण होती हैं. तीनों का अलग अर्थ होता हैं. तीनों पं
हाइकु एक सत्रह वर्णीय कविता है. इसे वार्णिक कविता कह सकते हैं. त्रिपदीय मुक्तक में तीन पंक्तियां होती हैं. तीनों अपने आप में पूर्ण होती हैं. तीनों का अलग अर्थ होता हैं. तीनों पंक्तियां मिला कर एक वाक्य बनाती हैं.
जापान में श्रृखंलाबंद्ध काव्यरचना की जाती थी. एक व्यक्ति तीन पंक्तियों यानी सत्रह वर्णों में अपनी बात कर कर छोड़ देता है. दूसरे व्यक्ति उसी भाव, भाषा और छंद में अपनी बात को आगे बढ़ाता है.इस तरह एक श्रृंखलाबद्ध काव्य रचना रची जाती हैं. इसे रेंगा कहते हैं.
रेंगा के एक छंद यानी सत्रह वर्णीय भाग को होक्कू कहते थे. कालांतर में यह होक्कू स्वतंत्र रूप में रचे जाने लगे. इसे ही काव्य के रूप में हाइकु कहा जाने लगा.
सभी महापुरूषों को समर्पित
जिन्हों ने इस देश के निर्माण में अपनी छोटीसी भूमिका का निर्वाहन किया है उन सब को समर्पित मेरी यह पुस्तक एक छोटीसी आदरांजलि है. यदि इस में से एक भी कह
सभी महापुरूषों को समर्पित
जिन्हों ने इस देश के निर्माण में अपनी छोटीसी भूमिका का निर्वाहन किया है उन सब को समर्पित मेरी यह पुस्तक एक छोटीसी आदरांजलि है. यदि इस में से एक भी कहानी उन की सार्थकता को सिद्ध करने में सक्षम है तो मेरी मेहनत सफल हैं.
परिस्थितियां कैसी भी हो, अच्छाई साथ ले कर आती हैं. कोरोनाकाल में लॉकडाउन की घोषणा हुई. इस ने सभी को हिला कर रख दिया. हरेक व्यक्ति विचलित था. सुबहशाम घुमने वाले ज्यादा घबराए थे. वे बि
परिस्थितियां कैसी भी हो, अच्छाई साथ ले कर आती हैं. कोरोनाकाल में लॉकडाउन की घोषणा हुई. इस ने सभी को हिला कर रख दिया. हरेक व्यक्ति विचलित था. सुबहशाम घुमने वाले ज्यादा घबराए थे. वे बिना घुमेफिरे नहीं रह सकते थे. उन के लिए यह लॉकडाउन किसी तालाबंदी या जेल से कम नहीं था. इस से मैं भी अछूता नहीं था.
मेरे मन में अनेक विचार आए. तालाबंदी कैसे गुजरेगी? समय कैसे बितेगा? क्या दिनभर बैठे रहेंगे? या कुछ काम भी करेंगे? तब मन में एक विचार आया. कई महापुरूषों को जेल की सजा हुई थी. उन्हें अपने दुर्दिन जेल में बिताना पड़े थे. तब वे क्या करते रहे होंगे?
यह विचार आते ही जिज्ञासा जागृत हुई. इन महापुरूषों की जीवनियां पढ़नी चाहिए. इन्हें ने अपना समय कैसे बिताया था? क्या किया था? तब इन की जीवनियां पढ़ी. तब ज्ञात हुआ कि महापुरूषों ने अपने जीवन में बहुत दुख देखें. कई संघर्षों का सामना किया. इसी बीच उन्हों ने अपनी छोटीछोटी सफलताओं में खुशियां ढूंढना शुरू किया. तब जा कर उन के कष्टभरे जीवन से उन्हें छुटकारा मिला. आपदा में भी अवसर मिला. जिस का परिणाम हमारे सामने हैं. आज वे पुरूष हमारे सामने महापुरूष बन कर खड़े हैं.
कई विद्वानों ने जेल के दिनों का सदुपयोग किया. जवाहरलाल नेहरू ने जेल से अपनी ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ लिख कर अपने समय का सुदपयोग किया. गोपालकृष्ण आगरकर अपनी छोटीसी गलती के पीछे जेल में 101 दिन रहे. इन दिनों को उपयोग उन्हों ने डोंगरी की दशा का चित्रण किया. उसी को उन्हों ने ‘डोंगरी जेल के 101 दिन’ में अपने प्रदेश की व्यथाकथा का चित्रण किया. जिस में सामाजिक कुरीतियों, छुआछूत और भेदभाव आदि का तानाबाना बुन कर लिख दिया.
आप सभी को समर्पित
जिन्हें लगता है कि यह उन की कहानी है. उन के दिल के बहुत करीब है. उन सभी भावुक हृदय, दुखी या प्रसन्न युवाओं के लिए ही यह लिखी गई हैं. इस से किस
आप सभी को समर्पित
जिन्हें लगता है कि यह उन की कहानी है. उन के दिल के बहुत करीब है. उन सभी भावुक हृदय, दुखी या प्रसन्न युवाओं के लिए ही यह लिखी गई हैं. इस से किसी का मनोरंजन, आनंद या खुशी की अनुभूति होती है तो मेरी मेहनत सार्थक होगी. इस कारण यह आप सभी को समर्पित हैं.
तमाम युवा दंपति के लिए सादर समर्पित हैं.
आप सभी को समर्पित
जिन्हें लगता है कि यह उन की कहानी है. उन के दिल के बहुत करीब है. उन सभी भावुक हृदय, दुखी या प्रसन्न युवाओं के लिए ही यह लिखी गई हैं. इस से क
आप सभी को समर्पित
जिन्हें लगता है कि यह उन की कहानी है. उन के दिल के बहुत करीब है. उन सभी भावुक हृदय, दुखी या प्रसन्न युवाओं के लिए ही यह लिखी गई हैं. इस से किसी का मनोरंजन, आनंद या खुशी की अनुभूति होती है तो मेरी मेहनत सार्थक होगी. इस कारण यह आप सभी को समर्पित हैं.
तमाम युवा दंपति के लिए सादर समर्पित हैं.
'' हूं.''
'' जैसे ही मैं ने आप का चेहरा अपनी ओर किया. मैं चौंक गई. वे आप नहीं थे. यह देख कर मैं डर गई. मैं ने उसे दूर हटाने की कोशिश की. मगर, वह मुझ से जम कर चिपट गया था. वह केवल आईलवयू आईलवयू कहे जा रहा था. उस की सांसे बहुत गरम थी.
'' मैं ने बहुत कोशिश की. उस से छूटने की. मगर, उस की पकड़ से छूट नहीं सकी. उसे वास्ता दिया कि मैं एक ब्याहता स्त्री हूं. मैं अपने पति के लिए बैठी थी. मगर, वह नहीं माना. मैं बेबस सी उस की बांहों में छटपटाती रही.
'' उस ने अपने मन की मरजी पूरी कर ली. तब उस ने मुझे छोड़ा. मगर, तब वह मुझे छोड़ कर रोने लगा. उसे इस बात का दुख था कि उस ने अपने मनोवेग में वह सब कुछ कर लिया जो उसे नहीं करना चाहिए था.
'' वह मेरे पैर में लिपट गया. मुझे माफ कर दो भाभी. वह कहे जा रहा था. मगर, मेरे मुंह से निकला— तुम्हें माफ करने से मेरी इज्जत वापस नहीं आ जाएगी. मैं अपने पति के लिए तैयार बैठी थी उन्हें सब कुछ देना चाहती थी. तुम ने मुझे लूट लिया. अब मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नही रही.
''यह सुन कर वह रोने लगा. बोला— भाभीजी! मैं नालयक हूं. मुझे जीने का अधिकार नहीं है. मैं ने दुष्कर्म किया है. मुझे सजा मिलना चाहिए. तुम ऐसा करों कि पुलिस को बुला लो. मुझे उस के सुपुर्द कर दो. कह कर वह फुटफुट कर रोने लगा.
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