JUNE 10th - JULY 10th
डोरबैल की आवाज के साथ ही सरीन साहेब की आवाज भीआई “कहाँ हैं सब ? दीवाली मुबारक जी”
“सब यहीं हैं आप अंदर आइये, आपको भी दीवाली बहुत बहुत मुबारक “मैंने सरीन साहेब और मिसेज सरीन को बैठक में बैठाते हुए कहा। सरीन साहेब हमारी काॅलोनी में ही रहते है।हमारे मकान से बस दो मकान छोड़कर ही उनका घर है। सरीन साहेब का मेन मार्केट में डिपार्टमेंटल स्टोर है और मिसेज सरीन मेरी ही तरह गृहिणी हैं।हम दोनों में अच्छी दोस्ती हैं,मिसेज सरीन यानि राशि और मेरी खूब पटती है हम दोनों में सब कुछ सांझा हैं।वो मेरी बहन जैसी दोस्त है।
मेरा और राशि का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही हैं, हम पिछले सात सालों से साथ रह रहे हैं,जब हमने इस काॅलोनी में मकान बनाया था तो काफी कम मकान ही बने हुए थे हर तरफ खाली जमीन ही नजर आती थी,मेरे और राशि के घर के बीच के दोनों भूखंड भी खाली थे,ऐसे में जब हमारा परिचय हुआ तो मुझे सुकून मिला था कि चलो कोई तो दिखाई देगा।समय के साथ हम दोनों परिवारों में अच्छा मेलजोल हो गया,इस बीच मेरी बेटी की शादी हुई तो राशि मेरे साथ साये की तरह रही।शादी के बाद जब मैं बीमार हुई तो राशि सारा सारा दिन मेरे पास ही बैठी रहती थी।अभी पिछले साल ही राशि के बेटे की शादी हुई है हम सब ने मिलकर उसका हर काम में पूरा हाथ बंटाया था।
आज मेरी बेटी विदेश में अपने पति के साथ खुश है तो राशि का बेटा भी बम्बई में अपनी नौकरी आराम से कर रहा हैं यानि हमारे दोनों के बच्चे अपनी अपनी दुनिया में खुश हैं।
आज मेरा और राशि का बाजार जाने का प्रोग्राम है मुझे कुछ ऊन खरीद कर लानी है।हालांकि आजकल कोई हाथ के बुने घर में बने स्वेटर नहीं पहनना मगर मेरी बेटी को आज भी मेरे हाथ से बने स्वेटर बहुत पसंद हैं और अभी वो मेरे पास आने वाली ही है। दरअसल वो माँ बनने वाली है और मैंने डिलीवरी के लिए उसे अपने पास ही बुला लिया है।कुछ मफलर मुझे अपने वृद्धाश्रम के लिए भी बनाने हैं जहाँ मैं महीने में एक बार जाती हूँ वहाँ जाकर मुझे बहुत अच्छा लगता है।बस यही एक बात है जहाँ मेरे और राशि के विचार नहीं मिलते, उसे मेरा वृद्धाश्रम से जुड़े रहना कतई पसंद नहीं उसका मानना है कि बुजुर्गों को अपने बच्चों के साथ सामंजस्य बैठाना चाहिए। उसके अनुसार समस्या तब होती है जब बड़े छोटो की बात नहीं मानते और अपनी मनमानी करते हैं, खैर राशि के इन विचारों से सहमत ना होते हुए भी मै उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए बात खत्म कर दिया करती थी।
बाजार से आते आते हम दोनों को काफी देर हो गई थी, दिन ढलने वाला था,हमारे दोनों ने अपने अपने घर की राह पकड़ी और बाकी बातें कल करने का वादा किया।
अभी घर पहुँच कर रसोई का काम शुरू ही किया था कि राशि का फोन आया कि गाँव से खबर आई है कि उसके ससुरजी का देहांत हो गया है और वो लोग गाँव जा रहे हैं।
करीब एक महीने बाद राशि गाँव से लौटी तो उसकी सास भी उनके साथ थी,मुझे राशि का ये कदम बहुत अच्छा लगा “ये तुमने बहुत अच्छा किया कि माँजी को अपने साथ यहाँ लिवा लाई तुम लोगों के साथ रहकर उनका भी मन लगा रहेगा”मैंने राशि से खुश होते हुए कहा।
“वैसे भी अगर मम्मीजी गाँव में रहती तो हमें इनकी चिन्ता लगी रहती और फिर रोज रोज गाँव जाना भी तो संभव नहीं हैं इसलिए हमने इनसे कहा आपने हमारे साथ चलो”राशि ने जवाब दिया।
राशि अब कुछ चिड़चिड़ी सी हो गई थी, मैं ये साफ महसूस कर रही थी मैंने सोचा माँजी के आने से उसकी व्यस्तता बढ़ गई है शायद इसी कारण ऐसा होगा धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा साथ ही राशि और माँजी दोनों को एक दूसरे की आदत हो जाएगी।
अचानक एक दिन कुछ ऐसा हुआ जो मुझे बहुत सारा दर्द दे गया और अगले तीन हफ्तों के लिए मेरे दाँए पाँव में प्लास्टर लगा गया।अपने ही घर के बाथरूम में ऐसा पैर फिसला कि मैं पैर पकड़ कर बैठ गई।अपने ही कामों के लिए मैं दूसरों पर निर्भर हो गई मगर राशि ने ऐसे समय में मेरा पूरा साथ दिया और मुझे खूब हिम्मत बंधाई।
अपनों के साथ और प्यार से मेरा तीन हफ्तों का समय कैसे गुजर गया मुझे पता ही नहीं चला।आज मेरा प्लास्टर खुल गया है बस डाक्टर ने कुछ दिन सावधानी रखने को कहा है।
धीरे धीरे सब ठीक हो गया, मैं भी अपने दोनों पैरों पर दुबारा अच्छी तरह चलने लगी,राशि और माँजी में भी सब ठीक हो चला था।हाँ, अब माँजी हमारे साथ कम ही बैठती थी अगर मैं बहुत कहती तो भी बस थोड़ी देर बैठकर उठ जातीं।
मेरी बेटी सिमी भी आ गई,उसने समय आने पर एक प्यारी सी गुड़िया को जन्म दिया, सिमी और गुड़िया की देखभाल में अब अकसर मैं माँजी और राशि से सलाह लिया करती। इन दिनों माँजी भी मुझसे खुलकर बात करने लगी थी मगर फिर भी मुझे ऐसा लगता कि वो राशि के सामने एकदम चुप हो जाया करती थीं।मुझे कभी कभी ऐसा लगता कि माँजी और राशि दोनों मुझसे कुछ छिपा रहीं हैं शायद राशि को मेरा माँजी से बात करना कम पसंद हैं, लेकिन मैं इसे अपना वहम जानकर नजरअंदाज कर देती।
देखते देखते सिमी की बिदाई का दिन आ गया भारी मन और नम आँखों से मैंने अपनी बिटिया को विदा किया।सिमी के जाने के बाद घर बिलकुल सूना सूना हो गया और खाली घर मुझे काटने को आता, इन सबसे बचने के लिए मैं राशि के घर चली जाती।
आज दोपहर को अचानक मुझे राशि के घर जाना पड़ा क्योंकि मुझे दही चाहिए थी ।मैंने सोचा जब जा ही रही हूँ तो राशि के लिए दाल की बड़ी भी ले जाती हूँ उसे मेरे हाथ की बड़ी बहुत पसंद हैं।
राशि के घर का दरवाजा खुला ही था ,दो दरवाजो के बीच से माँजी साफ साफ दिखाई रहीं थीं वो शायद कुछ खा रहीं थीं। मेरे जाते ही उन्होंने अपनी थाली को चादर से ढक लिया मुझे ये अजीब लगा पर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। माँजी ने मुझे बताया कि राशि और सरीन साहब बाहर गए हैं शाम तक ही लौटेंगें,माँजी पूरे दिन घर अकेली हैं ये जानकर मैं वहीं थोड़ी देर बैठकर उनसे बातें करने लगी।माँजी अपनी ओढ़ी हुई चादर बार बार संभाल रहीं थीं, जैसे मुझसे कुछ छिपा रहीं हो अब ये मुझे खटकने लगा था। मैं घर जाने के लिए जैसे ही उठी कि माँजी को अचानक जोर से खाँसी आने लगी ,मैं जल्दी से रसोई से पानी लेकर आई जैसे तैसे माँजी को दो घूँट पानी पिलाया मगर उनकी खाँसी रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी तो फिर मैंने धीमे धीमे उनकी पीठ को सहलाना शूरू कर किया ताकि उन्हें थोड़ा आराम मिले। कुछ देर बाद माँजी की खाँसी बंद हो गई और अब उन्हें साँस लेने में भी तकलीफ नहीं हो रही थीं,तभी मेरी नजर उस थाली पर गई जिसमें दो सूखी रोटी और एक पुराना सा सूखा अचार का टुकड़ा था। अब मुझे सब समझ आ गया था कि माँजी मुझसे क्या छिपा रहीं थीं? मुझे अपनी आँखों पर यकीन ही नहीं हुआ,सरीन साहब बेशक करोड़पति ना हों मगर शहर में पैसे वालों में उनकी गिनती होती है,उन्हीं सरीन साहब की माँ को आज ये खाना नसीब हैं।
माँजी ने मेरी तरफ देखकर एक बार फिर चादर उसे थाली पर डालनी चाही मगर इस बार मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और अपने सिर पर उनका हाथ रखकर मैंने उन्हें सब सच बताने को कहा।
माँजी ने आँखों से बहते हुए आँसूओं के साथ मुझे जो बताया उसे सुनकर मैं आश्चर्य चकित रह गई,राशि उनके साथ इतना बुरा व्यवहार करती थी जितना कि मैं सोच भी नहीं सकती थी।माँजी की तकलीफ के बारे में सुनकर मेरी भी आँखें भर आई हम दोनों देर तक रोते रहे, घर आते समय माँजी ने मुझे कसम देकर वचन लिया कि मैं कोई भी बात किसी से भी ना कहूँ ।
घर वापस आने के बाद भी मेरा मन किसी काम में नहीं लगा,मुझे अनमना देखकर इन्होंने मुझसे जानने की कोशिश की मगर मैंने सिमी की याद का बहाना बनाकर टाल दिया ।
अब मैंने राशि के व्यवहार पर गौर करना शूरू कर दिया वाकई माँजी का किसी से भी बात करना राशि को अच्छा नहीं लगता शायद उसे ये डर था कि माँजी किसी को कुछ बता ना दे सच भी तो हैं कि जब हम गलत होते हैं तो हम डरपोक भी हो जाते हैं।
मुझे जबसे माँजी के दुख और तकलीफ के बारे में पता चला है मेरा मन हमेशा उधर ही लगा रहता,मैं माँजी के लिए कुछ करना चाहती थी मगर मैं ये नहीं चाहती थी कि राशि को चोट पहुँचे।मुझे ऐसा उपाय ढूँढना था जिससे राशि को ये न मालूम हो कि मैं उसके व्यवहार के बारे में सब कुछ जानती हूँ और माँजी को भी सुख और आराम मिल सके।
काफी मनाने के बाद राशि को मैंने इस बात के लिए राजी कर लिया कि मैं एक दिन माँजी को वृद्धाश्रम ले जाऊंगी वहाँ पर अचार बनाने हैं और माँजी इस काम में माहिर हैं,माँजी के होने से मुझे मदद हो जायेगी।
वहाँ के हर काम में माँजी ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया,उन्हें इतना खुश मैंने शायद पहली बार देखा था।
इसके बाद तो मैं नए नए बहाने बनाकर माँजी को अपने साथ ले जाती।
राशि को भी भरोसा था मुझ पर और माँजी भी राशि से यही बताती कि वो वहाँ सारे काम राशि और सरीन साहब के नाम से करवाती हैं अपनी तारीफ सुनकर राशि खुश हो जाती ।
धीरे धीरे माँजी मेरे साथ नियमित रूप से वहाँ जाने लगीं थी एक बार वहाँ जागरण था तो माँजी वहाँ दो दिन तक रूकी। एक ओर जहाँ माँजी को वहाँ जाकर सुख और अपनापन मिलता वहीं , दूसरी ओर माँजी के वहाँ जाने से राशि पर भी उनके काम का बोझ कम हो गया था ।
सब कुछ ठीक ही चल रहा था मगर एक दिन माँजी ने राशि और सरीन साहब से कहा कि वृद्धाश्रम में सुपरवाइजर की जरूरत है और वे खुद वहाँ जाकर काम करना चाहती हैं इसके लिए उन्हें वहीं रहना होगा।वो दोनों इस बात के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थे,उन्हें ये डर था कि उनकी कितनी बदनामी होगी,लोग उनके बारे में कैसी कैसी बातें बनाएँगे।राशि ने हमें भी फोन करके अपने घर बुला लिया।
माँजी ने उन्हें समझाते हुए कहा “मैं वृद्धाश्रम में इसलिए रहना चाहती हूँ ताकि मैं वहाँ पर रह रहे लोगों की मदद कर सकूँ,तुम दोनों से मुझे कोई शिकायत नहीं हैं।मेरे वहाँ रहने से अगर किसी का भला होता है तो इसमें बुराई क्या है,मुझे वहाँ पर सुपरवाइजर की जगह रहना है और जब मेरा मन होगा मैं आ जाया करूँगी, तीज त्यौहार हो या कोई शादी ब्याह मैं सब मौकों पर घर जाऊंगी। “बेटा मैं वहाँ उन लोगों के लिए जा रही हूँ जिनके पास सब कुछ होते हुए भी अपना कुछ नहीं हैं अगर बुढ़ापे में दूसरों का दुख दर्द बाँटने का मौका मिल रहा है तो मैं इसे छोड़ना नहीं चाहती।”
“मगर मम्मीजी लोग हमारे बारे में उल्टी सीधी बातें बनाएँगे।”राशि ने झुंझलाते हुए कहा ।
“अरे बेटा!दुनिया का तो काम ही बातें बनाना हैं।लोगों ने तो भगवान को नहीं छोड़ा फिर हम तो इंसान हैं उनकी परवाह तुम मत करो”।माँजी ने राशि को समझाते हुए कहा।
आखिरकार राशि और सरीन साहब इस बात पर राजी हुए किसी माँजी सिर्फ़ एक महीना वहाँ रहकर वापस आ जाएँगी ।
माँजी से एक महीने बाद हम सब मिलने गए तो वहाँ सब लोग माँजी के काम से बहुत खुश थे,सरीन साहब और राशि के नाम से माँजी ने संस्था को कुछ दान भी दे दिया था। माँजी ने सुपरवाइजर के रूप में वहाँ की सारी व्यवस्था अपने हाथ में ले ली थी।
माँजी को न आना था ना ही वो वापस आई हम सब घर लौट आए ।
माँजी अब वहाँ खुश हैं और मेरे मन में चैन भी हैं। साथ ही राशि जैसी दोस्त भी मेरे पास ही है।माँजी ने मुझे कब,क्या बताया और माँजी का वृद्धाश्रम में सुपरवाइजर के रूप में जाने का सच शायद राशि कभी न जान सके और इस सच से राशि अनजान ही रहें यही हम सब के लिए बेहतर है।!!!!
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shilpisheen
Nice..
nitinrajvanshisir
बेहतरीन कहानी, सच जो उजागर करती ।
Gee
Har rishte se pehle manvata ke rishte ki garima dikhati sunder kahani.
Description in detail *
Thank you for taking the time to report this. Our team will review this and contact you if we need more information.
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