व्यस्त नहीं, अस्त-व्यस्त

यंग एडल्ट फिक्शन
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(दोस्तों ने पूरी कहानी सुनकर क्यों कहा कि हमारी जिंदगी अति-व्यस्त नहीं, बल्कि अस्त-व्यस्त हैं?)

बेटा राघव उठो, मौसी को ट्रेन पर छोड़कर आओ”, मां ने रजाई खींचते हुए राघव को नींद से उठाते हुए कहा।

"क्या समय हुआ है मम्मी?” वापिस रजाई खींचते हुए कहा.

"छ बजी है और साढा छ बजे ट्रेन छूट जाएगी। जल्दी से फ्रेश हो जा,” मां ने लाड़ से कहा। आज रविवार था और आज राघव दस बजे से पहले उठना नहीं चाहता था। एक ही दिन इतना लंबा सोने को मिलता है। हालांकि वह रुटिन में भी वह आठ-नौ बजे से पहले नहीं उठ पाता था।

छह बजे उठे हुए उसे बरसों बीत गए। पौ-फटना उसके लिए सिर्फ किताबी मुहावरा हो गया है। अब उसे इस समय का व्यवहारिक मतलब पता नहीं था। यह सिर्फ न राघव के साथ ही बल्कि देश का हर व्यक्ति के साथ हो रहा है। देर रात सोना और देरी से उठना फैशन तो नहीं पर रोजिंदा आदत बन गई। देर से उठने के कारण हर काम देरी से होने लगे हैं। इस कारण पूरे दिन मुंह से यही निकलता है, समय नहीं है-समय नहीं है और जिंदगी अति व्यस्त हो गयी है।

राघव को मन मार कर उठना ही पड़ा। क्योंकि मौसी का ट्रेन पर अकेली जाना उसके घर में संस्कार नहीं है। वैसे भी राघव को मौसी से बचपन से लगाव था। राघव की मम्मी ने कार में पहले ही सामान रख दिया था। राघव जल्दी से फ्रेश होकर गाड़ी में बैठकर स्टेशन की ओर गया। रास्ते में वह मुंह फुलाया हुआ जैसे था। मौसी की बातों को खामोशी से हां हूं हां हूं मैं जवाब दे रहा था।

सुबह छ बजे थी इसिलिए पूरा रास्ता खाली था और पूरा शहर सो रहा था। वह पांच मिनट में ही वे प्लेटफॉर्म पर पहुंच गए। ट्रेन भी एक नंबर पर ही खड़ी थी जैसे बाकी सारी ट्रेनें सोई हुई थी। टिकट पर ट्रेन का डब्बा और सीट नंबर लिखी हुई थी .मौसी को ट्रेन के अंदर बिठाकर वह मौसी के सामने वाली खाली सीट पर बैठ गया।

"बेटा अब तुम घर जाकर सो जाओ। तुम्हारी नींद को डिस्टर्ब किया,” मौसी ने थैंक्यू कह कर मुस्कुरा कर कहा।

"मौसी ट्रेन रवाना होने के बाद ही मैं जाऊंगा,” उसने पहली बार मुस्करा कर कहा।

“कुछ लाऊं आपके लिए रास्ते के लिए,”

"अरे नहीं बेटा। चार घंटे का ही रास्ता है, दीदी ने नाश्ता करा दिया सुबह सुबह,”

"ठीक है मौसी, आपके लिए न्यूज़पेपर लाता हूं,” उसने सामने बुक-स्टॉल देख कर कहा।

उसने आज का न्यूज़पेपर व सरिता पत्रिका, जो बचपन से मौसी को पढ़ते हुए देखकर बड़ा हुआ था, लेकर आया।

"अरे वाह, बहुत समय बाद सरिता हाथ में आइ है,” मौसी ने सरिता पत्रिका देख कर खुश हो कर कहा। उसे मौसी का इस तरह खुश होना अच्छा लगा।

"क्या मौसी आप अब अपनी सबसे मनपसंद पत्रिका नहीं पढ़ती?” उसे आश्चर्य हुआ।

"हां बेटा अब समय ही नहीं मिलता है, जिंदगी की भाग- दौड़ में,” मौसी खुश थी कि राघव को बचपन की बातें भी अभी याद थी।

ट्रेन की सीटी सुनकर, राघव मौसी के पांव छूकर उतर गया। फिर से वो स्टोल गया और अपनी मनपसंद पत्रिका इंडिया टुडे और डेल कार्नेगी की बुक ली। उसे डेल कार्नेगी की बुक पढ़ना बहुत ही अच्छा लगता था। वैसे भी उसने सालों से कोई मनपसंद पुस्तक पढ़ी नहीं। कारण वही, समय नहीं मिलता । पर आज सरिता पत्रिका को देखकर मौसी के चेहरे पर जो भाव आए उसे देखकर उसे भी अपनी मनपसंद पुस्तक पढ़ने की व खरीदने की इच्छा हुई।

नींद भाग चुकी थी, सर्दियों का मौसम था, पौ फट चुकी थी पर सूरज की रोशनी अभी नहीं थी। उसने गाड़ी घर की जगह पुराने पार्क की ओर मोड़ दी, वाकिंग करने के लिए। बहुत समय बाद, न जाने कितना समय हो गया। उसने रास्ते में अपने बचपन के दोस्त जगदीश को फोन किया, "मैं वाकिंग जा रहा हूं, तू जल्दी से फटाफट आ जा। बहुत सालों के बाद साथ में वाकिंग किए।"

पहले तो जगदीश ने नींद में उठाने के कारण सौ गालियां दी, "फिर बोला तू जा रहा है तो मैं भी आ जाता हूं."

उसने पार्किंग में गाड़ी पार्क की तो देख रहा था कि कितना कुछ बदल गया है यहां। तभी देखा दस मिनट में ही उसका दोस्त जगदीश वहां पहुंच गया।

"अरे वाह नींद खुल गई!”, उसने जगदीश को देखकर आश्चर्य से कहा।

"भाई, दोस्त बोले तो किस्मत खुल जाती है, यह तो नींद है। बहुत दिन हुए वाकिंग किए हुए,” जगदीश ने मुस्कुरा कर कहा। सूरज को उगते देख कर और पक्षियों को चहचहाना, दोनों को बहुत ही अच्छा लग रहा था। आधे घंटे की जोगिंग के बाद वह घास पर लेट गए और योगा करने लगे। पास में ही छोटा सा तालाब था जहां हंस तैर रही थी और कमल खिल रहे थी क्योंकि वे आदमियों की तरह अति व्यस्त नहीं थे।

"थैंक्स राघव,” जगदीश ने हंस को तैरता हुआ देखकर कहा।

"क्यों भाई?” राघव ने अचकचा कर कहा।

"सुबह-सुबह इतना अच्छा मूड करने के लिए। कितना अच्छा लग रहा है यह सब देख कर। मन तरोताजा हो गया। शरीर में स्फूर्ति आ गई,” जगदिश ने दार्शनिक अदा से कहा।

"हां भाई। क्या करें, इच्छा होती है, बस हमें समय ही नहीं मिलता, यहां सुबह आने के लिए। रात को देर से सोते हैं तो सुबह देर से ही उठ पाते हैं और फिर औफिस की भागमभाग।"

"कल भी जगाना भाई। कल सुबह छ बजे से पहले ही आ यहां जाते हैं, तो मजा आएगी,”

"कोशिश करता हूं। आज तो मौसी जी के कारण उठ पाया हूं,” राघव ने हिचकिचाकर कहा। क्योंकि उसे संशय था कि कल वह सुबह जल्दी उठ पाएगा?

बाहर दोनों ने छोटी सी दुकान पर चाय पी जहां पर वे विद्यार्थी जीवन में रात को देर तक पढने के कारण रात को दो बजे कभी-कभी चाय पीने आते थे सभी दोस्त. क्योंकि यहां की चाय बहुत ही अच्छी थी। अच्छी-पुरानी चाय के साथ पुरानी बातें भी याद आने लगी। इतने दिन का मन का मेल जैसे बर्फ पिघलती वैसे शरीर से बाहर निकलने लगा। जिंदगी को इतनी भागदौड़ में जैसे शरीर और मन खुद के लिए समय निकालना ही भूल गया था।

"अब क्या करना है पूरे दिन? पूरा रविवार बाकी है,” सच में उन लोगों का तो अभी उठने का समय भी नहीं हुआ था एक तरह से।

"अब नींद तो भाग गयी है हमें प्रफुल्लित देखकर। बस आलस्य को भगाना. घर जाकर अपना रूम साफ करता हूं, साल भर से बेचारा साफ होने की राह देख रहा है। दोपहर को डेल-कार्नेगी की आज बुक ली है पढ़ता हूं, बहुत समय से पढ़ने की इच्छा हो रही थी। इतना हो जाए तो बहुत है,” राघव ने अपना प्लान बताया।

"अरे बेटा क्या हुआ ट्रेन समय पर नहीं आई?” मम्मी का फोन आया, मम्मी ने टेंशन से पूछा।

"अरे मम्मी ट्रेन तो कब की रवाना हो गयी। मैं जगदीश के साथ हूं यहां जोगिंग पार्क में। बस दस मिनट में घर पर आ रहा हूं,”

"क्या!” मम्मी को आश्चर्य हुआ राघव को जोगिंग के लिए। राघव व जगदिश ने रास्ते में पूरे दिन का मन में प्लानिंग बना रहा था।

"बेटा सब ठीक तो है ना?” मां ने दरवाजा खोलते हुए पूछा।

"हां हां, सब ठीक है, मां" गले लगते हुए कहा।

वह अपने कक्ष में गया तो देखा कि कितना गंदा व उसके जैसे अस्त-व्यस्त हो गया है। उसे साफ करने के लिए भागदौड़ में समय ही नहीं मिलता। किताबों से लेकर कपड़े, सब अपनी मर्जी के मालिक हो गए हैं। चलो आज की शुरुआत में कबाट से करता हूं।

कपड़े साफ करके किताबों को क्रम में लगाया, साथ ही यादें भी चल रही थी। उसे बचपन से ही किताबें पढ़ने का बहुत शौक था। पॉकेट मनी बचाकर वो किताबे लेता था। अरे क्या, यह इंक पेन तो उसकी जान है, पांचवी में प्रथम आने पर इनाम में मिली थी। कपड़े की अलमारी को ठीक करते समय मिली।

उसे आश्चर्य हुआ कि उसके पास पहनने को बहुत सारे कपड़े हैं और पागलों की तरह वह मोल में समय बिगाडता रहता है। कई सारे कपड़े बिना समेटे हुए ठुंसे पड़े थे। उन गंदे कपड़ों को निकाल कर उसने मशीन में डाला।

दुछती को देखा तो मिट्टी व मकड़ी के झालों के बीच उसका गिटार पड़ा था। जो उसके पापा ने जन्मदिन पर गिफ्ट में दिया था जब उसने पहली बार कोई इंस्ट्रूमेंट बजाना सीखा था। दुछती साफ करके उसने गिटार हाथ में लेकर आज उसे वैसी ही खुशी हुई जैसे पहली बार हाथ में लिया था।

उसने दो घंटे सफाई करके कक्ष और जो साल भर से गंदा पड़ा था,सब साफ हो गए ।

उसने गिटार को खोला, उसके तारों को ताना और बजाने लगा।

"अरे बेटा उठ गया,” गिटार की आवाज सुनकर उसकी मां ने दरवाजा खोलते हुए पूछा

"वाह, क्या कक्ष साफ किया है तूने बेटा!” उसकी मां को घोर आश्चर्य हुआ क्योंकि वह सालभर से कह-कह कर थक गई थी।

मुस्कुराते हुए उसने सिर हिलाया। और नजरों से पास पड़ी कुर्सी पर बैठने को कहा

फिर मां की बहुत प्रिय धुन बजाई। मेरी मां........ सबसे अच्छी मेरी मां........

तब तक दस बजे उसके पापा भी नींद से उठ गए थे।

"क्यों खुश हो मां-बेटे, इतने! बेटे के लिए बहु मिल गई क्या?” उसके पापा बरसों बाद यह धुन सुनकर बोले।

"अरे बेटा राघव, आठवां अजूबा देख रहा हूं,” उसके पापा ने पूरा साफ रूम और उसको गिटार हाथ में देखकर कहा। जवाब में उसने पापा कहते हैं बेटा बड़ा नाम करेगा........ वाली धुन बजा दी तो सारा परिवार हंस दिया।

"मां बोलो, आज घर के क्या-क्या काम बाकी है? लिस्ट बनाकर दो, आज सब काम पूरे करने की कोशिश करता हूं,” राघव ने गर्व से मां को नाश्ता करने के बाद कहा।

फिर मां के साथ मॉल में जाकर सारे महीने की खरीदारी की। घर का नल टूटा हुआ था और जो इलेक्ट्रिक काम बाकी था वह भी किया।

खाना खाने के बाद वह सोया नहीं, नयी बुक लाया था उसे लेकर पढ़ने बैठ गया। तभी जगदीश का फोन आया कि "आज उसकी इच्छा हो रही हम सारे कॉलेज के दोस्त वहीं उसी जगह मिले जहां हमेशा मिलते थे अनौपचारिक रूप से। सबको मिले हुए कितना टाइम हो गया है।"

"ठीक है रात में हम सब साथ में खाना खाते हैं अरे उसी पुराने मशहूर रेस्ट्रां में," राघव में खुश होकर कहा। जगदीश ने बताया कि सुबह से वही कर रहा है जो राघव कर रहा था हालांकि जगदीश को पढ़ने की जगह पेंटिंग का शौक था और आज काफी दिनों बाद उसने अपनी मनपसंद पेंटिंग बनाई।

उसे आश्चर्य हुआ था उसकी मम्मी पिता कितने समय से छोटे-छोटे काम करने के लिए कह रहे थी। और आज ही सारे काम कुछ ही घंटे में पूरे हो गए। शाम को उसने अपनी मम्मी के साथ किचन गार्डन व्यवस्थित किया और कुछ नए पौधे लगाए और पुराने पौधों को आकार दिया। साथ में ही कॉलेज व ऑफिस के सारे कागज व्यवस्थित किए जो बिखर गए थे। सबको अच्छी तरह फाइलिंग किया। आज न वह टीवी के सामने बैठा ना ही सोफे पर बिना काम के लेटा और न ही मोबाइल पर बहुत ज्यादा चेटिंग की। वह जैसे-जैसे काम कर रहा था उतना ही ऊर्जावान हो रहा था, यह उसके लिए आश्चर्य का विषय था।

शाम को सब दोस्त मिले तो सबने इतने दिनों बाद मिलने के लिए, राघव व जगदीश को धन्यवाद देते हुए पूछा, "भाई क्या बात है आज मिलने का प्रोग्राम बनाया?”

जगदीश व राघव ने पूरे दिन की बात बताई, तो सारे दोस्तों ने पूरी कहानी सुनकर एक ही सुर में कहा कि, दोस्तों हमारी जिंदगी अति-व्यस्त नहीं, बल्कि अस्त-व्यस्त हैं ।

और सभी ने राघव व जगदीश जैसा बनने का प्रण लिया।

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