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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palप्रीतम सिंह का जन्म राजस्थान के राठ क्षेत्र की बहरोड तहसील में 1987 ई. में गृहिणी माता और फौजी पिता के घर हुआ। अपनी स्नात्तक और स्नात्तकोत्तर शिक्षा के दौरान इतिहास विषय में रूचि जागृत हुई। लेकिन सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के दौराRead More...
प्रीतम सिंह का जन्म राजस्थान के राठ क्षेत्र की बहरोड तहसील में 1987 ई. में गृहिणी माता और फौजी पिता के घर हुआ। अपनी स्नात्तक और स्नात्तकोत्तर शिक्षा के दौरान इतिहास विषय में रूचि जागृत हुई। लेकिन सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के दौरान इतिहास के वैकल्पिक विषय के रूप में अध्ययन के समय बारीकियों से अवगत होने का अवसर मिला। समय-समय पर भारत की पश्चिमी सीमाओं पर होने वाले घटनाक्रमों ने पुनः अपने पसंदीदा विषय
‘उत्तर-पश्चिमी सीमान्त की आक्रांताओं के विरूद्ध रक्षा कवच की भूमिका’ के अध्ययन एवं अनुसंधान करने का मौका मिला।
इनका उद्देश्य अपने लेखन के माध्यम से भारतीय इतिहास की उस अदृश्य शक्ति को उजागर करना है, जिसने लम्बे समय तक सभ्यता, संस्कृति और भारतीय धर्मों की रक्षा की है। इनकी भाषा सरल के साथ गम्भीर है, जो पाठकों के मन में गहरी छाप छोड़ती है। साथ ही युवा पीढी को पुनः किताबों की दुनिया की ओर ले जाना लेखक का महती उद्देश्य रहा है। लेखक वर्तमान में राजस्थान वाणिज्यिक कर सेवा के सदस्य के रूप में सहायक आयुक्त (राज्य कर) के पद पर पदस्थापित है।
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उत्तर-पश्चिम दिशा से भारतवर्ष पर विभिन्न कालखंडों में हुए असंख्य आक्रमणों के बावजूद भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने न केवल अपने अस्तित्व को बनाए रखा बल्कि वर्तमान में अपने
उत्तर-पश्चिम दिशा से भारतवर्ष पर विभिन्न कालखंडों में हुए असंख्य आक्रमणों के बावजूद भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने न केवल अपने अस्तित्व को बनाए रखा बल्कि वर्तमान में अपने समृद्ध और गौरवशाली स्वरूप में विद्यमान है। जब आक्रांताओं ने विश्व की विभिन्न प्राचीन सभ्यताओं को लहूलुहान कर ध्वस्त कर दिया था उस समय भारतीय सभ्यता और संस्कृति की रक्षा करना आसान नहीं था। लेकिन उत्तर-पश्चिमी सीमांत पर समय चक्र के विभिन्न कालखंडों में बैठे प्रहरियों ने इन आक्रमणकारी सेनाओं की न केवल गति को मंद किया बल्कि असंख्य लड़ाइयों में इन्हें पराजित कर लौटने को मजबूर किया। इस सीमांत के इन्हीं रक्षकों के इतिहास को समेटने का प्रयास इस पुस्तक के माध्यम से किया गया है।
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