JUNE 10th - JULY 10th
नाम था उसका आशिक़ मियां, पूरी तरह सफेद बाल को महंदी लगा कर लाल कर रहते थे , काला पठानी पहने अक्सर कुछ कुछ लिखते दिखते थे।
अब कुछ कुछ लिखते थे तो हमें अपनी बिरादरी के लगते थे मतलब साहित्यकार, कविताएं शायरियाँ भी बढ़िया लिखते थे, तो कभी कभी हम भी श्रोता होते ।
आते जाते कई लोग और आगे बैठ जाते हैं और कविताओं का किस्से कहानियों का, शायरियों का दौर चला करता था।
यह एमबीए पंचर वाला नाम का बोर्ड उनकी दुकान पर लगा दिखता तो कुछ अजीब सा लगता।
अब स्वाभाविक बात है की बंदा पंचर की दुकान लेकर बैठा है एमबीए तो होगा नहीं, एमबीए का मतलब शायद उसके बाप दादों के नाम का कोई शॉर्ट फॉर्म होगा मोहम्मद बिन अंसारी या ऐसा ही कुछ होगा इसलिए पूछा भी नहीं और उन्होंने बताया भी नहीं।
एक गांव से शहर को जोड़ती हुई पतली सी सड़क पर उनकी दुकान दुआ करती जिस पर बड़े ट्रक या बस इक्का-दुक्का ही आती थी, हां छोटी गाड़ियां काफ़ी चला करती थी, तो उनसे भाई जान का धंधा होता रहता था।
कई बार पूछा कहा कि इस सुनसान सड़क पर इतने बरसों से दुकान लेकर बैठे हो इससे अच्छा कहीं शहर के आसपास दुकान डालते धंधा भी अच्छा चलता, अब इस सड़क पर तो स्कूटर और साइकिल बाइक की दोपहिया गाड़ियां चलती हैं, धंधा भला क्या होता होगा इतने से?
जवाब में वह मुस्कुरा देते और फिर कोई अच्छी सी शायरी सुना कर दिल बहलाने लगते
कोई तो कारण होगा इस सुनसान जगह पर दुकान खोलने का ?
मैंने जिद पकड़ ली, पर उसने हमेशा की तरह उन्होंने इसे टालने की कोशिश करी, पर इस बार मैं अड़ गया तो
फिर उन्होंने कहा- यह पंचर की दुकान नही यह हमारी आशिक़ी का मकबरा है।
हम समझ गए कि फिर कोई शायरी आने वाली है, या कहीं की कहानी आने वाली है चाचा की तरफ से,
आशिकी का मकबरा हम ने आश्चर्य से पूछा ताजमहल सुना था या कहीं और बड़ी-बड़ी इमारतें बनाई गई आज की याद में पंचर की दुकान?
वे सजिंदा हो गए - ठीक है जब जानना ही चाहते हो तो सुनो पंचर की दुकान कैसे आशिकी इमारत हो सकती है, जरूरी तो नहीं कि हर इंसान ताजमहल बना दे
ये जो एमबीए पंचर वाला लिखा है ना मैं सच में हम एम बी ए ही हैं
वाकया पुराना है नब्बे के दशक में यह सड़क कच्ची सड़क हुआ करती बैलगाड़ी का चलना बंद होकर नई-नई दोपहिया गाड़ियां चलना शुरू हुई थी मेरे पास भी एक स्कूटर था लैंब्रेटा उस जमाने का काफी प्रसिद्ध मॉडल हुआ करता था बड़ी शान से उस पर चला करता मैं भी टाई लगा कर, उसी तरह जैसे एक मार्केटिंग से एमबीए पढ़ा लिखा आदमी जिस तरह टिपटॉप रहता था मैं भी उसी तरह रोज टिप टॉप सफाचट होकर चलता था, अमूल कंपनी कंपनी में मार्केटिंग का काम करता था, कंपनी भी अपना पैर फैला रही थी तो मुझे भी काम करने का बहुत अवसर था मैं भी जगह-जगह उनकी मार्केटिंग प्लान में हिस्सा लिया का लिया करता था कॉलेज से निकले तो साल ही हुए थे पूरी शिद्दत से अपना काम किया करता, और मेरी मेहनत रंग लाई उस जमाने की तनखा भी ठीक-ठाक हो गई घर वालों ने शादी कर दी, और शादी भी उससे जिससे मैं चाहता था, मतलब हमारी आशिक़ी शादी के मुअक्कल अंजाम तक पहुंच गई थी, बहुत कम लोगो को का ऐसा नसीब होता है कि माशूका ही बेगम बन जाए ।
और क्या चाहिए था मुझे? बस जीवन की गाड़ी मजे से चल रही थी,
शादी के बाद जल्द ही हमारी बेगम ने खुशखबरी सुना दी कि नया मेहमान आने वाला है ।
पर हर कहानी मोड़ आता और ऐसा अनअपेक्षित हो जाता है जिसकी कल्पना भी नहीं करी हो तो बस मेरी प्रेम कहानी में ऐसा ही वह मोड़ लेकर आई थी मेरी लेंब्रेटा स्कूटर।
हुआ यूं कि बीबी को लेकर अपने स्कूटर से इसी रास्ते से शहर जा रहा था डाक्टर को दिखाने, और ठीक इसी जगह स्कूटर पंचर हो गई ।
पूरी सड़क सुनसान दोपहर के दो ढ़ाई बज रहे थे, अब पैदल चलकर स्कूटर को धक्का देते हुए चलने लगा बीबी भी साथ चल रही थी पर चिलमिलाती धूप में वो बीमार औरत ज्यादा दूर न चल पाई निढ़ाल होकर सड़क किनारे ही सुस्ताने बैठ गई।
अब बड़ी दुविधा की स्थिति आ गई थी बीमार बीबी एक कदम नही चल पा रही थी और हवा के बगैर स्कूटर भी नही चल पा रहा था, इतनी वजनी गाड़ी ज्यादा देर धक्का भी नही दिया जा सकता ।
पहली बार एहसास हुआ कि पंचर की दुकान का भी महत्त्व है। और तब ऐसा लगा जो भी पहली दुकान दिखे वो पंचर ठीक करने वाली हो
आखिरकार थक हार कर बीबी ने कहा- अब तो आप ही जाओ और इसे ठीक करा कर ले आओ मैं यहीं बैठती हूं।
मारता क्या न करता, टायर खोलकर तेज़ी से दौड़ा शहर की ओर।
जैसे तैसे जितनी तेज़ी से टायर लेकर जा सकता था मैं भागा और जो पहली दुकान दिखी उससे पंचर ठीक करवा कर वापिस आया ।
पर ये क्या स्कूटर तो खड़ी थी पर बीबी नदारत।
आसपास कोई हो तो उससे पूछ पाता, पर कोई नज़र ही नहीं आ रहा था।
शायद कोई पहचान वाला मिल गया हो और वो वापिस घर चली गई हो?
काश यही सच हो।
गाड़ी उठा कर तेजी से घर की ओर भगा दी ।
पर घर में भी नही
या खुदा कोई अनहोनी तो नही हो गई ?
अब तक घर में मजमा सा लगने लगा सब फिर उसी जगह दौड़ पड़े जहां मैने स्कूटर पर बीबी को छोड़ कर गया था ।
अब तक जो आशंका थी वो यकीन में बदल चली थी थी कुछ बहुत बुरा हो चला था।
और बमुश्किल से दो तीन घंटे में वो मनहूस ख़बर भी मिल गई जो कोई नहीं सुनना चाहेगा।
उसकी लाश मिली थी।
और उसके साथ बहुत बुरा हो चुका था।
बहुत ही बुरा।
सुनाते सुनाते आशिक मियां अब सच में रो पड़े, अब वे आगे बोल नही पा रहे थे।
मुझे भी अफ़सोस हो रहा था क्यों मैने उनकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था।
अनजाने में ही मैने एक बुजुर्ग का दिल दुखा दिया था वो रो रहा था।
आशिक मियां ने फिर बोलना शुरू किया - बस फिर अफ़सोस करना ही हाथ बचा था, और सोचा करता था मैंने इसी कौन सी बेवकूफी कर ली थी ?
मेरी कौम मुझे इजाजत देती है की मैं फिर से निकाह कर लूं, निकाह तो कर लेता, पर मुहब्बत का क्या? वो तो एक बार हो चुकी थी और मेरी मोहब्बत तो मेरी आंखो के सामने मर भी चुकी थी ।
और धीरे धीरे में दरवेश सा हो चला, अब ये जमाना मेरे काम का नही, मुझे मेरी मरहूम बीबी से अब मुझे और ज्यादा मोहब्बत हो चली, बस सब कुछ छोड़ छाड़ कर उसी जगह ये दूकान खोलकर बैठ गया।
जो मेरे साथ हुआ वैसा किसी और के साथ तो न हो
बस इसी को आशिकी कहते हैं,
तभी तो लोग कहा करते है _
देखो फितूरी है
जरूर कोई आशिक़ रहा होगा ।
अक्सर लोग मेरा मज़ाक भी उड़ाया करते है पंचर पुत्र कहकर, वे अपनी जगह सही होगे।
मैं भी बस कभी आप जैसों से बाते कर शायरियो में दिल बहला लेता हूं।
और जब कोई नही होता तो वो आकर इसी बेंच पर बैठ जाती है और घंटों बतियाती रहती है कभी इधर की कभी उधर की, क्योंकि वह भी तो जानती उसके बगैर मेरी जिंदगी सुनी सुनी रह गई।
पर वो जब भी आती है तो बाकी लोगो की तरह मुझ पर हँसती हुई चिड़ाती ही आती है और कहती है - और सुनाओ पंचर पुत्र क्या हो रहा है
और उसकी ये आवाज वो हंसी सुनकर मेरी लाश भी मुस्कुरा कर ज़िंदा हो उठती है।
विनोद पाराशर
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