ख़ामोशियां

कथेतर
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शनिवार का दिन था, गर्मिया अपने उफान में थी... सूरज आग के गोले की तरह जल रहा था। धूप इतनी ज्यादा थी, की मानो हवा भी चले तो गर्म हवा का झोंका असहनीय हो जाता।
ऐसी ही गरमी की तपिश में "मांझी" स्कूल से आज थोड़ी देर से घर की तरफ जा रही थी, इतनी तेज गर्मी में थकान के साथ अनमने कदमो से वह घर की गली की तरफ जा रही थी। उसे घर पहुंचने की व्यकुलता और साथ ही साथ आज से स्कूल की छुटियों की खुशी भी थी..वह मन में प्रसन्न भी थी, लेकिन यह प्रसन्नता उसके चेहरे पर झलक रही ती, क्योंकी उफ्फ येबेहिसाब नीरलज़्ज़ गर्मी ने तो मार ही दिआ,उसके घर की तरफ बढ़ते कदम भी उसका साथ नहीं दे पा रहे थे, और आगे बढ़ने में असमर्थ लग रहे थे और साथ ही पीठ पर चढ़ा बैग भी उसको चिढ़ाने में कोई कमी नहीं कर रहा था.उसके चेहरे में उदसीनता की परछाई और चेहरे पर आता हुआ पसीना उसको और चिड़चिड़ा बनाने में समर्थ थे. उसके रोम रोम से आवाज़ आ रही थी- की कब वह जल्दी उसका घर आ जाए और सीधे रेफ्रीजिरेटर से ठंडा पानी को गले से लगा कर ही सांस लूँ ,और फटाफट ठंडा पानी पीकर अपने प्राणो और आत्मा को तृप्त करूं.

इतने में ही उसके कानो में जानी पहनी आवाज़ सुनाई दी की कोई उसको पुकार रहा है,उसने उस आवाज़ की दिशा में देखा और स्तंभः रह गयी..,इतनी त्तेज गर्मी में वह गोरा, हत्ता- कट्टा, व्यवस्थित पोशाक पहने "साहिल" को देखा ...
उसने मधुर आवाज़ में "मांझी" को पुकारा ....,

"साहिल" को "मांझी" जानती भी थी और पहचानती भी थी,लेकिन उससे उसकी कोई खास बोलचाल नहीं थी .
लेकिन "मांझी" को यह समझ नहीं आ रहा था,की इतनी तेज़ दोपहर की गर्मी में वह "मांझी" को पुकारा और ऐसा प्रतीत होता था की वह "मांझी" से ही मिलने के लिए कहड़ा था ,क्योंकि न तो उसका कोई मित्र उसके साथ था,न ही कोई दुकान थी उस गली में और न ही वह किसी भी जल्दी में लग रहा था .


"मांझी" ने पूछ ही लिआ -"साहिल" , तुम यहां कैसे?
बस तुमको आता हुआ देखा तो मैं भी चला आया, - साहिल ने चमकती हुई निगाहो से उसको देखकर , प्यारी सी मुस्कराहट के साथ बोला .

क्या काम था - "मांझी" ने फिर पुछा..
कुछ नही , बस तुमसे बात करने आया था - साहिल ने फर चमकती हुई मुस्कुराहट बिखेरते हुए अपना दाहिना हाथ अपने सर पर फेरते हुए कहा .

कहो क्या कहना चाहते हो ? - मांझी बोली ( हल्का सा मुस्कुराते हुए )
कू कुछ कुछ भी तो नहीं ...

तू तुम से मिलकर में तो सब भूल गया ...

( साहिल ने अपनी दोनों आँखे बिचकाते हुए अपना सर इधर उधर देखते हुए हड़बड़ी में बोला ) - शायद वो सच में सब भूल गया था ....मांझी की मुस्कान के सामने

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