रावि की कहानी

कथेतर
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इस दुनिया से नानी को गए आज डेढ़ साल हो गए, जबसे नानी नहीं रही, तबसे माँ में न जाने कितने ही बदलाव आ गए हैं। माँ और नानी का एक अलग ही रिश्ता था, जब दूसरे बच्चों की माँए उन्हें बारिश में भीगने से रोकती तो माँ और नानी अलग-अलग गानों पर डांस करते कितनी ही देर बारिश में भीगती रहतीं। छुट्टी वाले दिन जब सब घूमने जाते तो, नाना-नानी और माँ मिलके घण्टो बचपन की कहानियाँ दोहराते। ऐसे कितने ही किस्से हैं, पर माँ ने अब सब छोड़ दिया है। पहले नाना का अचानक चले जाना फिर एक महीने के अंतराल में नानी का भी, वाकई मुश्किल था सबके लिये और सबसे ज़्यादा माँ के लिए।

आज अनु आंटी, माँ की सबसे करीबी दोस्त घर आईं तो हाथ में एक डायरी लिए। मुझे वह देते हुए बोलीं, माँ को दे देना। मैंने पूछा क्या है ये? तो अनु आंटी ने बड़े लाड़ से कहा "रावि की कहानी" और घर चली गईं। रावि? मैंने डायरी बिन खोले, माँ को दे दी ये कहकर कि अनु आंटी ये दे गई हैं। माँ ने डायरी देखी और खोलकर पढ़ने लगीं मैं उनके बगल जाकर बैठ गयी।

साल 1964, विमु यानी विमला तब 13-14 बरस की रही होगी। विमु का परिवार पढ़ा लिखा था, उसके पिता बद्रीनाथ अध्यापक थे तथा एक खुले विचार के व्यक्ति थे। उनके अनुसार पहले शिक्षा फिर शादी। बद्रीनाथ के एक बहुत करीबी दोस्त थे रामप्रसाद, जिनकी दो संताने थी, शकुंतला यानी शक्कू और राजेन्द्र जिसे सब राजू कहते।

“मैनें माँ की ओर देखा, और कहा ये तो नाना-नानी की कहानी है। उन्होंने आगे पढ़ा....”

विमु, शक्कू और राजू में बड़ी गहरी दोस्ती थी बचपन से ही। शक्कू, विमु से उम्र में तीन साल बड़ी थी, पर दोनों में बहुत बनती थी । राजू विमु से एक साल छोटा था और दोनों में बड़ी लड़ाई होती फिर भी, ये तीनों खेलते, खाते और पढ़ते भी साथ।

समय बीतता रहा। एक दिन ऐसा भी आया जब शक्कू बीस बरस की होगई, और उसकी शादी तय हुई। विमु दिन-भर शक्कू के घर रहती, कभी शादी के कामों में व्यस्थ, कभी शक्कू के साथ बैठ हँसी ठिठोली करती या कभी उसकी विदाई का सोच आँसू बहाती।

मई में शक्कू विदा होगई। विमु दिनभर उदास रहती, किसी काम में जी न लगता। अब उसका एक ही सहारा था राजू। राजू का अपनी बहन से बहुत लगाव था ,उसके चले जाने के बाद विमु के अलावां और कोई उसे अपना न लगता।

कुछ ही महीनों में विमु राजू को अपना सबसे अच्छा दोस्त समझने लगी, परंतु राजू को जाने क्या होने लगा था। पहले विमु से लड़े बिना राजू का एक दिन न बीतता और अब विमु का नाम सुनते ही चहरा खिल उठता। जब विमु हँसती तो राजू उसे एकटक देखता रहता, कभी भरी दुपहरी सरगम वाले बाज़ार पैदल जा, विमु की पसंदीदा रसमलाई लाता और कभी विमु के बीमार पड़ने पर उसके पास बैठा रहता। ऐसा नहीं था कि विमु का इस बदलाव पर ध्यान न जाता पर वह ये सोचकर इसे नज़रअंदाज़ कर देती कि शायद बहन की विदाई ने इसे भावुक बना दिया है। तीन साल बीत गए। शक्कू बीच में जब भी घर आती, लगता पुराने दिन वापस आगये।

विमु बीस बरस की हो गयी और अब बारी थी उसकी शादी की। विमु को शादी करने का तो ज़रा भी मन न था परन्तु एक दिन उसे देखने जब लड़के वाले आये तो राजेश को देखते ही विमु को ऐसा लगा जैसे वह उसे बरसों से जानती हो, मानो ऐसा व्यक्ति उसने पहले देखा ही नहीं। ऐसा नहीं कि राजेश बहुत सुन्दर था पर चहरे पर ऐसी चमक, आँखों में ऐसा प्रभाव, एकटक राजेश को यों निहारती वह, जैसे किसी जादू के वश में हो। और राजेश ने भी विमु से बात करते ही पल भर में हाँ करदी।

दिसंबर के महीने में विमु की शादी होनी थी। वह ये खबर खुद ही राजू को देना चाहती थी। दो दिन बाद विमु गयी तो राजू न घर पर, न बाज़ार में, न ही खेल के मैदान में मिला।

शाम को विमु मंदिर से आ रही थी तो देखा सरयू के घाट पर राजू बैठा था, वह धीरे से आई और राजू की पीठ सहला दी। राजू ने पीछे मुड़कर देखा, तो विमु चौंक गयी। ये क्या राजू रो रहा था, वह बगल में बैठी, उसने पूछा क्या हुआ राजू? राजू ने दूसरी ओर देखकर कहा "कुछ नहीं बस थोड़ा सर में दर्द है" विमु ने कहा अपना ध्यान रखा करो। तुम कहाँ थे? मैंने कितना खोजा तुम्हें, राजू ने कुछ न कहा बस मुस्कुरा दिया। विमु भी मुस्कुरा दी बोली तुम्हें कुछ बताना था, राजू फिर मुस्कुराकर बोला तुम्हारी शादी तय होगई है, यही ना? ये क्या राजू को तो पहले से पता है और तब भी एकबार मिलने न आया । विमु नाराज़ होगयी, राजू ने माफी माँगी और कहा ऐसा अब कभी न होगा। बहुत मनाने पर विमु मान गयी।

विमु की शादी का आधा काम विमु के पिता बद्रीनाथ ने किया और आधा काम राजू ने। इतनी मेहनत कि दिन-रात एक कर दी। शक्कू लौटी तो राजू में इतना बदलाव देखकर हैरान थी, कुछ ही दिनों में वह सारी बात समझ गयी। विदाई का दिन भी आया राजू को रोते किसी ने न देखा। एकटक विमु को देखता रहा जबतक उसकी कार धूल उड़ाते ओझल न होगयी। शक्कू ने ससुराल जाने से पूर्व राजू को गले लगाया तो भी राजू का चेहरा वैसा ही था, भवनाशून्य।

जबसे विमु की विदाई हुई तबसे राजू की मित्रता बंसी से होने लगी थी, बंसी राजू का नया पड़ोसी था, वह कुछ ही दिनों में राजू के इतने करीब कैसे हो गया कोई क्या जाने। राजू के दिल का हाल केवल बंसी ही समझता। उसका हौसला बढ़ाता, राजू के दुःख-सुख का साथी था बंसी। बंसी राजू से उम्र में चार साल बड़ा था तथा उसकी शादी हो चुकी थी। बंसी का कोई न था इस संसार में अपनी पत्नी और राजू के सिवा। राजू ऐसा था मानो उसका छोटा भाई हो। विमु को गए महीने भर बीत चुके थे, और बंसी राजू के जीने का सहारा बन चुका था।

विमु से राजू को हर बीतते दिन के साथ न जाने कैसी चिढ़ होने लगी थी। न कोई पत्र लिखा न, मिलने की कभी कोशिश की। बंसी ने समझाया पर राजू पर कोई असर नहीं।

ऐसे ही कुछ महीने बीत गए, एक दिन राजू मंदिर से घर लौट रहा था, कि उसने देखा विमु अपने घर के पास वाले पीपल के नीचे बैठी है। राजू ने पहले तो रस्ता बदलने की सोची पर न जाने क्यों कदम खुद ही मुड़ गए विमु की ओर। यहाँ आया तो विमु नीचे देखते हुए कुछ सिल रही थी, राजू ने कहा विमु कैसी हो? विमु ने ऊपर न देखा राजू ने फिर पूछा विमु कैसी हो? इस बार भी कोई जवाब न पाकर राजू को कुछ अजीब लगा, वो खुद ही नीचे बैठ गया और विमु को देखके हैरान होगया। ये क्या? कहाँ गया वो हँसता मुख, कहाँ गयी वो मोह लेने वाली मुस्कान? कैसा नीरस चेहरा कैसी बेजान आँखे। क्या होगया आखिर विमु को?

राजेश को अचानक डेंगू की बीमारी ने जकड़ लिया था, कुछ दिनों में दवा-ईलाज से हालत सुधरने भी लगी थी पर एक सुबह अचानक देह ने प्राण त्याग दिए। विमु की अब जीने की इच्छा खत्म होने लगी थी। विमु के दुःख ने जैसे राजू की आत्मा के टुकड़े कर दिये थे। जिस विमु को देखने से भी राजू कतराने लगा था, उस विमु की खुशी के लिए अगर आज जान भी देनी पड़ती तो राजू हँसते हुए दे देता।

राजेश को गुज़रे साल भर बीत चुके थे, विमु की हालत में कोई सुधार नहीं, राजू कितनी ही कोशिशें करता रहा उसे खुश करने की। बस चाहता कि किसी तरह पुरानी विमु लौट आये पर वह विमु न जाने कहाँ खो गई थी। बंसी से राजू की ये बेबसी देखी न जाती थी।

"विधवा" ये विमु का उपनाम बन गया था, गाँव भर के लोग उसे कभी दया तो कभी क्रूरता की दृष्टि से देखते। भारत में विधवा होना अपराधी होने जैसा है। विमु के पिता के विचार अलग थे, वे विमु का दुबारा विवाह करना चाहते थे। उन्होंने ये विचार अपने मित्र, रामप्रसाद के साथ साझा किया, रामप्रसाद ने उनका समर्थन किया।

गर्मी का महीना था शक्कू घर वापस आयी थी। शाम को विमु से मिलकर आयी तो बड़ी उदास थी, माँ ने पूछा तो रो पड़ी कहने लगी, न जाने क्या होगया है विमु को, हँसना ही भूल गयी है। शक्कू के पिता आंगन में बैठे सब सुन रहे थे, उन्होंने शक्कू की माँ को बुलाया, और कहा मेरे मन में एक विचार आया है, क्यों न विमु कि शादी हम राजू से करा दें। शक्कू की माँ सोच में पड़ गयी, थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा, इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। शक्कू ये सुनकर खुशी से झूम उठी। राजू को यह पता चला तो वह न जाने क्या सोचने लगा, उसे खुशी होनी चाहिये थी, पर मन में न जाने कैसा बवंडर उमड़ने लगा, उसे डर था विमु क्या कहेगी?

अगले दिन रामप्रसाद, रिश्ता लेकर विमु के पिता के पास गए, तो वे रो पड़े, कहने लगे ये ऋण मैं कभी न चुका पाउँगा रामप्रसाद। रामप्रसाद बोल पड़े कि हमारी भी बिटिया है विमु, दुबारा ब्याह करने से यदि उसका जीवन अच्छा हो जाए तो इससे ज़्यादा सुख की बात और क्या है? रामप्रसाद के चले जाने पर बद्रीनाथ विमु की माँ के साथ विमु के पास गए। जैसे ही उन्होंने उसे यह बात बताई वह झुंझला उठी, गुस्से से बोली मेरे जीवन का निर्णय आप लोग मुझसे पूछे बिना कैसे कर सकते हैं? माँ- बाबा मैंने एक बार प्रेम किया, और उस प्रेम में खुद को तन- मन से समर्पित कर चुकी हूँ, अब फिरसे मुझसे यह न होगा। मुझे क्षमा कर दीजिये, अगर आपसे मेरा दुख न देखा जाता है तो मैं यहाँ से चली जाती हूँ, पर दुबारा शादी मुझसे न होगी। और ये कहते हुए फफक कर रो पड़ी। माँ- बाबा ने भावुक होकर उससे कहा बेटा तुझे कहीं जाने की ज़रूरत नहीं तू नहीं चाहती तो नहीं होगी तेरी शादी।

विमु आखरी बार राजू से मिलना चाहती थी, अतः शक्कू के सुसराल जाने से पूर्व उससे कहकर राजू को शाम, सरयू के घाट पर बुलवाया। विमु वहाँ पहुँची तो राजू न था, बहुत देर प्रतीक्षा करने पर भी वह न आया। अगले दिन विमु फिर गयी वहाँ, पर वह इस बार भी न आया। विमु अब हर शाम सरयू के घाट पर राजू की प्रतीक्षा करने लगी, कई दिन बीत गए। एक दिन विमु घाट पर जा रही थी कि दूर से उसने देखा राजू पहले से वहाँ बैठा है, विमु को उसे देखकर राहत हुई। पास गई तो देखा, राजू एक नवजात को अपनी गोद में लेकर बैठा था। विमु को देखकर रो पड़ा, विमु ने उसका हाथ थामा और बैठी रही उसके साथ। थोड़ी देर बाद राजू चुप होगया, फिर उसने कहा बंसी शहर की ओर गया था, उसकी पत्नी पेट से थी और उसे प्रसव पीड़ा शुरू होगई, जल्दबाज़ी में लौटते अचानक एक हादसा होगया, बंसी अब न रहा विमु। बंसी की पत्नी ये सदमा बर्दाश्त न कर पाई और इस बच्ची को जन्म देते समय ही उसने देह त्याग दिया, और ये कहते राजू फिर रोने लगा। विमु कुछ देर शांत रही फिर बच्ची को राजू की गोद से उठा कर कहा, राजू मुझसे विवाह करोगे?

कहानी खत्म हो चुकी थी, कहानी के अंत में अनु आंटी का एक नोट था,

विमु नहीं चाहती थी कि उनके जीते-जी तुम्हें ये बात पता चले, इसलिए शायद मैं अब तुम्हें ये बता रही। शादी के बाद उन्होंने अपना सारा जीवन तुम्हें समर्पित कर दिया। विमु के प्रति राजू का प्यार हर दिन बढ़ता रहा, परंतु दोनों का प्रेम न जाने कैसा था, राजू ने विमु को कभी छुआ तक नहीं, और राजू के जाते ही विमु ने भी शरीर त्याग दिया। ऐसे माँ-बाबा किसी भाग्यवान को ही मिलते हैं। शक्कू मेरी नानी थी, उन्होंने ने ही मुझे ये सब बताया, वह तुमसे मिलना चाहती हैं, कहो तुम मिलोगी ना?

तुम्हारी अनु।

माँ ने डायरी सीने से लगा ली, और बहती आँखों के साथ बारिश की ओर चली गयी।

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