अब लौट चलूं

कथेतर
0 out of 5 (0 Ratings)
Share this story

अब लौट चलूं


आज मुझें ऐसा लग रहा था कि मैं सच में आजाद हूं, सारी दुनियां आज पहली बार मुझें नई लग रहीं थी....सब कुछ नया सुकून से भरा....

गर्त के अंधेरे को चीर कर मेरे कदम नए उजाले की ओर अनयास ही बढ़ चुके थे....ठीक उसी तरह जब मैं मनु के साथ अपना घर छोड़ कर नई जिंदगी की शुरूआत करने के लिए उस नये शहर में आ बसी थी....शायद मनु ही मेरा सच्चा प्यार था... उसने हर पल की खिशियां मेरी झोली में उड़ेली थी, आज भी उसके शब्द मेरे कानों में गूंजते हैं.....

क्या हुआ जान तुम इतनी मायूश क्यों हों.....?

इतना सोचते ही मेरे शरीर में अजीब सी सिरहन दौंड़ पड़ी थी....एक पल तो ऐसा लगा मानों मनु ने अभी-अभी मेरे कानों में आकर कहा हो....लेकिन आज मेरे जीबन में अनसुल्झा सा मोड़ था.... जब मैंने मनु और अपने छोटे से 2 साल के बेटे अभिषेक रोता छोड़ रवि के साथ अपने प्यार की नई जिंदगी की शुरूआत करने 35 साल पहले उनसे दूर जा चुकी थी.....

इन 35 सालों के दौरान मैनें ये नहीं जाना था कि सच्चा प्यार क्या हैं...शायद मैं भटक गयी थी यही सोच कर के मनु मेरे लिए सिर्फ एक दिखावा हैं लेकिन मैं गलत थी मेरी सोच और मेरा निर्णय उस समय दोनों ही गलत थे....

रवि ने तो हमेशा प्यार के सपनों की तस्वीर दिखा कर मेरे शरीर को भोगा ही है....रवि के प्यार के हर दर्द को मैं चुपचाप सहती रहीं

लेकिन मनु ने कभी भी मेरे साथ ऐसा व्यवहारनहीं किया....लेकिन हां मनु में एक बात जरूर देखने को मिली थी कि उसके मन में मुझे लेकर एक डर जरूर था...वो हमेशा इस बात से डरता के कही मैं उससे दूर ना चली जाऊं....ना जाने उसे क्यों ऐसा आभास होता था...और हुआ भी यहीं....अभिषेक के होने के बाद मेरा व्यवहार मनु के प्रति और भी विपरीत सा होने लगा था....लेकिन फिर भी मनु हर समय मुझे खुश करने के लिए उससे जो भी बनता वो करता था....लेकिन तब तक तो मैं रवि के प्यार की दीवानी हो चुकी थी...उसकी शानों शौकत की चकाचौधं में अंधी हो चुकी थी...उस वक्त मैं रवि के मंसूबो को समझ नहीं पा रही थी...

हां वो हमारी शादी की तीसरी सालगिरह थी..मनु का एक्सीडेंट हुआ था जिसके कारण वो बिस्तर पर था...उसके एक पैर की हड्डी बुरी तरह से टूट चुकी थी...लें दें कर मैं ही उसका सहारा थी...उस दिन जब सुबह-सुबह मनु को चाय देने गई तो उसने खीचते हुए मुझें अपनी बाहों में भरते हुए कहां था...

जानू.....शादी की सालगिरह मुबारक हों......

तब मैनें बड़े ही रूखे पन से उससे दूर होकर उसका मूढ़ खराब कर दिया था....और मैनें अपनी जिद्द पर अड़ते हुए कहां था मुझें आज बाहर जाना है...और अच्छी होटल में जाकर डिनर करना है....

लेकिन फिर भी मनु ने हौले से मुस्कुराते हुए कहां था...

जानू....तुम्हे तो पता हैं मैं कितना लाचार हूं....तुम चाहों तो तुम चली जाओं मैंने कभी रोका हैं क्या....

मेरी तो किस्मत ही ऐसी है पिछली शादी की साल गिरह भी ऐसी ही निकल गई...

जानू तुम अपना दिल छोटा मत करो... अभिषेक को मै सम्हाल लूंगा आज तुम घूम आओ...

मैंने उसे प्रश्न वाचक की नज़रो से देखा था... तो मनु ने अपना पर्श मेरे हाथ पर रखा दिया था मैंने फ़ौरन पर्स को अपने हांथो के कब्जे मे करते हुए उसको हलकी सी स्माइल दी थी... कि तभी बाहर से कार के हॉर्न की आवाज़ ने माहौल को बदल दिया था...

जाओ जानू रवि आ गया है...

इतना सुनते ही मै जल्दी से उठते हुए बाहर की तरफ भागी थी... मेरे दरवाजे तक पहुंचते ही देखा तो रवि अपने हाँथो मै बड़े से गिफ्ट के साथ बुके लें कर खड़ा था...
हैप्पी मैरिज एनिवर्सरी...

इतना कहते हुए उसने गिफ्ट और बुके मेरे हांथो में थमा दी थी... मै गिफ्ट पाकर बेहद खुश हुई थी...

अच्छा हुआ तुम आ गये रवि... मेरा तो मूढ़ ही खराब है..

नो प्रॉब्लम संध्या भाभी... रवि अभी आपकी खिदमत में हाजिर है हुक्म करो...

तभी मनु की अंदर से आवाज़ आयी तो हम दोनों अंदर ही चले गये..

ओ... मनु हैप्पी एनिवर्सरी.... क्या यार ऐसे ही पड़े रहोगे हमारी प्यारी प्यारी खूबसूरत भाभी को कही घूमने नहीं लें जाओगे...

मनु ने हस्ते हुए कहा था जब तेरे जैसा देवर हों तो मुझें चिंता करने की क्या जरुरत...

तभी मैंने मायूस हों कर कहा था... मेरी ऐसी किस्मत कहा...?

ओह भाभी आप तो बिना बजह मायूस हों रहीं है..

रवि शाम को तुम क्या कर रहें हों...?

कुछ नहीं...

तो आज शाम को तुम शंध्या को कही घुमा लाओ...

इतना सुनते ही मै कितनी चहक उठी थी... पता नहीं मनु की इस बात पर मेरा उसके प्रति कुछ पल के लिए प्यार सा उमड़ पड़ा था मैंने मनु के चेहरे पर प्यार से हाँथ फेरते हुए कहा था..

ओह जानू तुम कितने अच्छे हों...

रवि की मौजूदगी में ये सब हों रहा था, रवि अपना गला साफ करते हुए बोला...

आप लोगों ने विश किया के नहीं मै बाहर चला जाता हूं..

शायद मुझें ऐसा करते देख रवि को नागवार गुजर रहा था... जिससे मै अनभिज्ञ थी कि मेरी ख़ुशी के लिए मनु अपने दिल पर पत्थर रख कर कैसे कहा होगा.... लेकिन मै तो अपनी खुशियों के लिए ज़िद्द मे अंधी थी....

उस रोज़ मुझें और रवि को घर लौटते लौटते काफ़ी रात हों चुकी थी... मनु हमारा इंतज़ार कर रहा था अभिषेक सो रहा था उस दिन मै बेहद खुश थी अपनी शादी की एनीवरशरी की पार्टी और महंगे तोफे पा कर.... लेकिन मै भूल गई थी उस दिन मुझें हर हाल में अपने पति के साथ होना चाहिए था... मै एक -एक गिफ्ट मनु को दिखा रहीं थी.... ऐसा करते मुझें देख उस दिन मनु अपने आपको कितना छोटा समझ रहा होगा

शायद रवि को मनु की बात का बुरा लगा था... मै उसके पीछे पीछे जानें लगी थी..

रवि... रवि... आप तो बुरा मान गये...?

और मै झट से कार के दरवाजे के सामने अड़ कर खड़ी हों गई... थी रवि ने मेरे चेहरे को देखते हुए अपना मुँह मेरे मुँह के नज़दीक ला कर मीठी सी मिश्री घोलती हुई आवाज़ में कहा था..

गुड नाईट संध्या...

और रवि ने मेरे चेहरे को अपने दोनों हांथो से पकड़ कर मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिये थे मै कुछ ना कर सकी थी उसकी सांसे मेरी सांसो के साथ समा चुकी थी उस वक़्त अब में पूरी तरह से रवि की हों चुकी थी... कुछ पलों के बाद रवि मुझे से झट से दूर हुआ और मुझें एक तरफ करते हुए गाड़ी में बैठ गया था और गाड़ी स्टार्ट करके जाते जाते फिर गुड नाइट कह गया था.. लेकिन मै तो वे सुध सी खड़ी थी... ऐसा लग रहा था मानो रवि मेरी आत्मा

निकाल कर अपने साथ लें गया हों... कुछ देर में वैसे ही खड़ी रहीं थी.... इस मदहोशी भरे एहसास में मै ये भूल चुकी थी की मनु ने खाना खाया भी था या नहीं... जब मै कमरे में लौटी तो मनु अभिषेक से सट कर सो चुका था..

मुझें उस वक्त कुछ समझ नहीं आ रहा था मै क्या करु....

और मै चुप चाप बैठ कर रवि के ही बारे में सोच रहीं थी जबकि मेरा बच्चा और पति सो चुके थे..

बस के ब्रेक लगते ही मेरे बीते हुए कल का सपना टूट चुका था... मेरी आँखों में आंसू बह रहें थे... ऐसा लग रहा था मानो कल की ही बात हों... मैंने अपने आंसू पोछे और पीछे की और टिकते हुए बस की खिड़की से बाहर की तरफ देखा जो मेरी मंज़िल के पहले का स्टॉप था... मेरे दिल की धडकने तेज हों रहीं थी क्योंकि अब सिर्फ लग भग 30 से 40 मिनट का रास्ता तय करना और रह गया था.. पहले कभी ये गांव हुआ करता था लेकिन अब बिलकुल बदल चुका था...

सब तो बदल गया... कुछ भी तो पहले जैसा नहीं रहा... कही मनु भी तो नहीं बदल गया होगा...?

फिर एक मन ने कहा... जब तुम बदल सकती हों संध्या तो क्या वो नहीं बदला होगा...

बदल जाये लेकिन अभिषेक तो आज भी मुझें याद करता होगा उसके दिल में तो मेरे प्रति कुछ तो होगा...

मै खिड़की से बाहर खड़े एक अपाहिज को देख रहीं थी जो बैसाखियो के सहारे खड़ा था... उसे देख मेरे मन में यका यक मनु का आभास हुआ ठीक वैसा ही जब मै रवि के साथ मनु और अभिषेक को छोड़ कर जा रहीं थी मनु अभिषेक को चिपकाये बैसाखियो के सहारे खड़ा मुझसे ना जानें की याचना कर रहा था..

संध्या अपने इस बच्चे की खातिर मत जाओ... तुम जैसा कहोगी मै वैसा ही करूँगा...

लेकिन मैंने उसकी एक भी ना सुनी थी... मेरी हसरतों और ख्वाहिशो के आगे मनु की याचना ने दम तोड़ दिया था... और मै अपने प्यार के साथ नई जिंदगी की उड़ान भरने निकल चुकी थी...

तभी बस का हॉर्न बजा तो मेरी तन्द्रता भंग हुई... लोग बस में बैठने लगे थे... और बस धीरे -धीरे रेंगने लगी थी.. मन असमंजस में हिचकोले लें रहा था जाऊ के ना जाऊ.. लेकिन ना जाऊ तो कहा जाऊ... बस ने रफ़्तार पकड़ लीं... मेरी धड़कने तेज़ होने लगी थी... मन बार -बार उचट रहा था क्या मुँह लेकर जा रहीं हू किस हक़ से जा रहीं हूं... लेकिन शरीर मनु के पास खींचा चला जा रहा था एक ज़िन्दा लाश की तरह...

वो वक़्त भी आ गया जब मै अपने पुराने घर जहाँ दुल्हन की तरह सज कर आई थी... लेकिन ये क्या जैसा 35 साल

पहले था आज भी वैसा ही है... लेकिन आस -पास के घर कोठियों में बदल गये थे... मैंने बड़े का दरवाजा खोला और अपने कदम अंदर की और बढ़ा दिये... वही पेड़... वही सबकुछ लेकिन रौनक नहीं थी सब वैसा ही मानो मेरे जानें के बाद यहां सब कुछ थम गया हों... वो झूला जिस पर रोज़ शाम यहीं बैठा करती थी लेकिन अब सब पर जंग और धूल की परते चढ़ चुकी थी.. अभिषेक का पालना जिसका कपड़ा सड़ कर आधा अधूरा लटक रहा था... ये मनु की बाइक आज भी वैसी ही खड़ी है... मेरी ज़िद थी की कर में बेठुंगी.. तभी तो मनु ने भी इसे नहीं चलाई थी... जो आज भी यही धूल में लिपटी खड़ी है... यहां की हर चीज 35 सालों की गर्मी, शर्दी और बरसात की कहानी बया कर रहीं थी... और मानो चीख -चीख कर कह रहीं थी चली जाओ यहां से... चली जाओ.

ना... ना... में अपने निर्णय से भटक रहीं हू कुछ ज्यादा ही ज़ज़्वाती हों रहीं थी.. लेकिन एक बार मनु और अभिषेक से मिलने की इस चाह को नहीं रोक सकती वरना आत्मा को सुकून नहीं मिलेगा... यहीं सोचते सोचते घर के मेने गेट के सामने पहुंच चुकी थी... मैंने संकोच करते करते बरवाजे पर दस्तक दी.. और दवाजा खुलने का इंतज़ार करने लगी... लेकिन मन ना माना तो फिर से हाँथ अपने आप ही फिर से दस्तक देने को उठा ही था कि किसी के चलने के पैरो की आवाज़ सुनाई दी...

शायद अभिषेक होगा... नहीं... मनु होगा... तभी धड़ से दरवाज़ा खुलता है.. सामने एक हट्टा कट्टा युवक जिसके चेहरे पर हलकी हलकी दाढ़ी बिलकुल जवानी का मनु... चमकता चेहरा उसने मुझे देख एक ठंडी सांस भरते हुए कहा...

अंदर आ जाइये...

और वो आगे आगे अंदर की और चल दिया और मै उसके पीछे पीछे चलने को हुई तो दहलीज पर मेरे कदम ठिठक से गये थे...

Stories you will love

X
Please Wait ...