अब लौट चलूं-2

कथेतर
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अब आ भी जाइये...

मै हिचकिचाहट के साथ अभिषेक के पीछे हों लीं... अंदर भी सब वैसा ही कुछ भी नहीं बदला वही सब कुछ बस देख कर ऐसा लग रहा था कि वर्षो से किसी ने यहां की किसी भी चीज को अभी तक हाँथ नहीं लगाया था..

यहाँ देख ऐसा लग रहा था... ये वही बेड जो आज भी बैसा ही हैं बेड पर बिछी ये चादर भी तो वही हैं... उफ़... ये में क्या देख रहीं हूं... यहां तो सब कुछ उसी दिन से थमा हुआ सा हैं...

आप बैठिये... वो उस चेयर पर ही बैठिएगा...

और वो वहाँ से चला गया... मै अपने बैठने की उस कुर्सी को देख रहीं थी... जिसे सिर्फ मेरे लिए ही मनु लेकर आया था... इस वक्त उस कुर्सी पर धूल जमीं हुई थी... ऐसा लग रहा था शायद ये घर काफ़ी दिनों बाद खोला गया हों.... तभी अभिषेक हाँथ में पानी का गिलास लेकर आया और मेरे हाँथ में देने के बजाए उसने पास रखी टेबल पर रखते हुए कहा...

आप सही सोच रहीं है.... ये घर सिर्फ मेरे जन्मदिन पर ही खोला जाता है....

इतना सुनते ही मेरे शरीर में बिजली सी कौंध गयी थी..

उफ़... आ... आज तुम्हारा जन्मदिन है...

हा है तो...? आप पानी पीजिये और आराम से बैठिये... आप चाहो तो नहा भी सकती है... और हा कृपया कर के किसी भी सामान को इधर -उधर मत करियेगा.. यहां की हर चीज में मेरे पिता की यादें बसी है.. वो नहीं चाहते की कोई भी उनकी चीज़ो को हाथ लगाए...

शायद ये पहला वार था मेरी वेबफ़ाई की तहज़ीब पर जिसे मैंने अपने सुख चैन के लिए इन निर्दोषों पर कभी किये थे.

मै चुप ही रहीं.. और उसी धूल भरी कुर्सी पर बैठ गयी थी...

आप बैठिये मै अभी आता हूं... और अभिषेक इतना कह कर वहा से फिर चला गया... मै चुप चाप बैठी रहीं वहा की हर सामान को देख रहीं थी.... जो सब मुझे चिढ़ा रहें थे कभी मेने अपने ही हांथो से इन्हे सजाया था और इस घर में जगह दी थी ठीक मेरी ही तरह जैसे मनु मुझें व्याह कर लाया था और ये घर मेरे सुपुर्द करके निश्चिंत हों गया था... निर्जीव वस्तुए तो यहां अब तक टिकी रहीं... मेरे सिबाय.. वो सारी यादें एक एक कर मेरे जेहन में दृश्य की तरह घूम रहीं थी... लेकिन मनु के होने और ना होने का आभास अभी भी असमंजस में था... मेरे आने की खबर अभिषेक को कैसे लगी...?

तभी किसी वस्तु की धप्प से गिरने की आवज़ आयी... तो मेरी नज़र उस और गयी ये हमारी यादो की दास्तांन का एल्वम है... जो सिर्फ और सिर्फ इन 50 पन्नों के फोल्डर में चिपका हुआ है... कभी आप ने भी हमारी जिंदगी में कुछ वक़्त काटा था जिसके लिए मै शुक्र गुज़ार हूं... कभी आप भी हमारे मेहमान थी ... इसे देख कर कुछ यादें ताज़ा कर लें... आपको सुकून मिलेगा..

बेटा... !

प्लीज मुझे बेटा कह कर मत बुलाओ... आप ये हक़ काफ़ी साल पहले खो चुकी है... मुझें बेटा कहने का हक़ सिर्फ और सिर्फ मेरे पिताजी को है...


और वो भी मेरे पास रखें स्टूल पर बैठ गया था और उसने फोटो का एल्वम अपने हांथो में रख लिया...

ठीक है लेकिन तुम्हे कैसे पता चला की मै आने वाली हूं...?

अभिषेक मेरी बात सुन कर हंसा था...


वो सब छोड़िये आप संध्या जी...


उसने मेरे नाम के आगे जी कह कर इस तरह सम्बोधित किया था जीसमें सही में किसी बिन बुलाये मेहमान को किया जाता है उसके के इस लहजे में खीज साफ झलक रहीं थी...


उसने एल्वम का पहला पन्ना खोला था.. जिस में मै और मनु शादी के जोड़े में खुश बैठे थे... अभिषेक का इस तरह का मेरे प्रति रिएक्ट करना मुझे अजीब नहीं लग रहा था यहीं वो वक़्त था शायद मुझें सुनना था...


अभिषेक का हर शब्द में मेरे प्रति प्रतिशोध था...

ये देखिये मेरे पिताजी और मेरी माँ... कितने खुश है एक नए जीवन की शुरुआत करने के लिए.. लेकिन शायद मेरे पिता के जीवन में वैवाहिक सुख नसीब में नहीं था...


वो थोड़ा चुप सा हो गया था बोलते बोलते मैंने उसे संतभावना देंने के लिए अपना हाथ उठाया ही था कि उसने चिढ़ते हुए कहा था...


मुझें हाथ मत लगाना, आपकी कोई सहानुभूति नहीं चाहिए...


और वो एल्वम के पन्ना पलटते - पलटते बोलता जा रहा... इतने सालों की उसके मन में भरी खीज शायद अब निकल रहीं थी 8-10 पन्ने एल्बम के पलटने के बाद वो थोड़ा रुका था.. जिस पन्ने पर उसके बचपन के फोटो थे जो वो मेरी ही गोद में बैठा था.. हां ये डिलेवरी के 7दिन बाद का ही तो फोटो था जब में हॉस्पिटल से घर आयी थी मनु कितनी मुश्किल से एक फोटो ग्राफर को लेकर आया था...

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