संघर्ष

वीमेन्स फिक्शन
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पिछले तीन सालों में रिया के जीवन में सब कुछ बदल गया था I डाँक्टर बनने का सपना देखते – देखते वह कब दिल्ली के रेड लाइट इलाके की छोटी सी गली में संर्घष करते हुये अपना जीवन यापन कर रही थी…...उसे आज भी याद है ,कितना प्यार करते थे, माता –पिता उसे इंटर करने के बाद वह डाँक्टरी की तैयारी की सोच रही थी I उसका सपना था कि वह डाँक्टर बनकर अपने गाँव और अपने परिवार का नाम रोशन करे I आज वह रोज जीती और मरती है सोचते सोचते वह अतीत में खो गयी I उसका गाँव शहर से करीब पाँच किलोमीटर दूर था, साथ ही सड़क से एक किलोमीटर दूर का रास्ता उसे प्रतिदिन पैदल ही पार करना पडता था I आज उसकी अंतिम परीक्षा थी I रिया और तनु दोनों सहेलियाँ सड़क से गाँव तक पैदल जा रही थी I अपनी – अपनी धुन में मस्त ,पढ़ाई की समस्या से मुक्त ,क्योकि आज के पेपर के बाद छुट्टियाँ थी I

“ रिया खत्म हुई परीक्षा अब हम फ्री है बस देर से जागना पूरे दिन मस्ती अब पूरे दो महीने हम आजादी की सांस लेगे वेसे तुम क्या करोगी” --- तनु ने पूछा I

“नहीं तनु हमें डॉक्टर बनना है और उसके लिए बहुत मेहनत करनी है, अत: हम दो दिन बाद से ही कोचिंग शुरू कर देगें “-----रिया ने उत्तर दिया I वे दोनों आपस में बातें करती हुई, आने वाले खतरे से अनजान चलती जा रही थीं,कि तभी एक काली स्कार्पिओ आकर रुकीं और उसमें से दो हाथ कब निकले और रिया को खीचकर अंदर ले गए, तनु को पता भी नहीं चला .....वह बस बचाओ - बचाओ चीखती रह गई I दोपहर का सुनसान रास्ता कोई आस- पास भी नहीं था I जो उसकी आवाज़ को सुनता ,वह चीखती, दोड़ती, पड़ती वह घर पहुँची I उसने रिया के माता – पिता को सारी बात विस्तार से बताई I माता- पिता ने पुलिस की मदद ली, रिया को ढूढने की बहुत कोशिश की ,लेकिन सब व्यर्थ I थक हार कर वे इसे अपनी किस्मत समझकर शांत होकर बैठ गए, साथ ही उन्होने स्वयं को दूसरे बच्चों की परवरिश में व्यस्त कर लिया,लेकिन रिया का भोला चेहरा उनकी नजरों के सामने हमेशा घूमता रहता था I

रिया को गाड़ी में चलते हुये कितना समय हुआ, यह उसे नहीं पता चला था I उसे जब होश आया, वह एक कमरे मे थी I चारों और सजी – सवरी लड़कियों से घिरी हुई ,वह समझ ही नहीं पाई, कि वह कहाँ है ?

“देख, लड़की एक बात बताती हूँ, कि आज से न,जो ये लोग कहें, वही करना, वरना खाना- पानी नहीं मिलेगा , मार खानी पड़ेगी वो अलग ,वेसे नाम क्या है तेरा ?” बड़ी ही कड़क व मीठी आवाज़ ने उसका ध्यान भंग कर दिया I

“रिया“ --- उसने हल्की सी आवाज मे उत्तर दिया , भूख के कारण उसकी जान निकली जा रही थी ,गला सूख रहा था I उसे समझ ही नहीं आ रहा था ,कि वह क्या करे ?उसने पानी माँगा मगर किसी ने उसे पानी तक नहीं दिया I बल्कि पानी के बदले में एक और तेज आवाज़ सुनाई दी I

“न S S नहीं आज से तू रिया नहीं हिनाबाई है और हाँ जैसा कहती हूँ ,वैसा ही करना वरना तू अभी मौसी को जानती नहीं है “

वह कुछ कहना चाहती थी ,लेकिन माला ने उसका हाथ दबा दिया I

“और तू यहाँ क्या कर रही है? ,यहाँ से चल, इसे तैयार कर धंधे का समय हो रहा है और ये ले ये कपड़े पहना इसे” --- वह कहकर चली गयी ,वह कडक आवाज सुनकर ऐसा लग रहा था, मानों किसी ने कानों मे काँच पीसकर डाल दिया हो – रिया उस मोटी औरत को जाते हुये देख रही थी ,परंतु उसकी आँखों में अनेक सवाल थे ,जिनके उत्तर उसके पास नहीं थे ,आखिरकार उसने किस्मत के आगे घुटने टेक दिए ,अब रोज रात को उसकी सुहाग सेज सजती और सुबह वह विधवा हो जाती I रिया ने घुटने टेके थे ,मगर हार नहीं मानी थी...वह शांत रहती थी... लेकिन दिमाग और आँखों को खुला रखती थी,शायद इसीलिए किस्मत ने भी उसका साथ दिया ,एक रात कोई ग्राहक नशे में चूर अपना मोबाइल गिरा गया ,रिया ने मौके का फायदा उठाया और उस फोन को बंद करके छिपा लिया और मौका पाते ही उसने खिड़की से साड़ी को रस्सी की तरह लटका दिया और पुलिस को सूचना दी ----“हैलो साहब मै दिल्ली के रेड लाइट इलाके दूसरी गली से बोल रही हूँ I यहाँ बहुत सी लड़कियों को उठाकर लाया गया हैं , उनमे कई तो बड़े –बड़े नेताओं और अफसरों की बेटियाँ है.....उसने यह झूठ इसलिए बोला क्योंकि वह जानती थी, कि साधारण लोगों के लिए कोई नही सुनेगा क्योंकि यह सब काम पुलिस की शह पर ही चलते हैं I रात के बारह बजे जैसे ही पुलिस सायरन सुनाई दिया ,लड़कियों मे भगदड़ मची और इसी मौके का फायदा उठाकर वह खिड़की से नीचे उतरी और दौड़ती चली गई ,उसने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा,वह सीधे स्टेशन पहुँची सामने खड़ी ट्रेन में बिना सोचे – समझे चढ गई I

जब ट्रेन रुकी तो वह बम्बई में थी ....उसके पास छिपाकर लाए हुए कुछ रुपयों और जेवरों के अलावा कुछ नहीं था I वहीं उसनें किसी तरह एक खोली किराए पर ली और वहीं के बच्चो को पढानें लगी, हालाकिं गरीव बस्ती होने के कारण रुपए बहुत कम मिलते थे .....रिया ने B॰ A॰ पूर्ण की और एक स्कूल में अध्यापिका बन गई I वह डॉक्टर तो नहीं बन पाई परंतु टीचर बन गई .....लेकिन उसके मन में कहीं न कहीं अपने माता – पिता, घर की याद हमेशा सताती रहती थी I

स्कूल में ठंड की दस दिन की छुट्टियाँ थी, उसने मन में ठान लिया कि , जो भी हो, वह एक बार अपने माता –पिता से जरूर मिलेगी और इसी दृढ विश्वास के साथ वह घर चलने को तैयार हुई I

“कहाँ जा रही हो बेटी “

“बस मौसी घर जा रही हूँ ,---उस पूरे मुहल्ले में कांता मौसी ही थी ,जिन्हे रिया की सच्चाई पता थी , जबकि बाकी सब तो उसे अनाथ ही समझते थे I

“लेकिन बिटिया कौन से घर ,तुम्हें पता है न ,एक बार उस दहलीज पर चढी लड़कियों को न तो समाज अपनाता है, न ही माता - पिता उन्हे माफ करते है , वो लोग तुम्हें नहीं अपनाएगे “----- मौसी ने समझाते हुए कहा I

पता है मौसी ,लेकिन एक बार जरूर जाऊगीं ,कम से कम माता-पिता को देख तो लूगीं और वापस आ जाऊगीं बस ---- रिया ने अपना हाथ मौसी के हाथ पर हाथ रख दिया I

“ठीक है ,जेसी तेरी मर्जी “---- कहते हुए मौसी ने उसे मूक इजाजत दे दी I

दो दिन के सफर के बाद आज रिया अपने घर में सबके सामने खड़ी थी, पूरे दस साल के बाद…….. वह सबसे मिलकर अपना मन हल्का कर लेना चाहती थी I

“म...माँ ,अपनी माँ को सामने देख वह चीख पडी I

“कौन ?“ चेहरे पर अविश्वास लिए माँ ने पूछा I

“माँ – माँ मै रिया कहते हुए वह माँ से लिपटकर रोने लगी..... माँ ने भी उसे कसकर पकड़ लिया और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी ... उनका रोना सुनकर भाई और घर के सभी लोग बाहर आ गए , जिस रिया को मरा समझ बैठे थे, उसे सामने देख सभी आश्चर्य के साथ प्रसन्न भी थे I

“पापा मै सिर्फ आप सबसे मिलने आई हूँ “---कहते हुए रिया ने अपनी पूरी कहानी सुना दी ,जिसे सुनकर सबकी आँखों से आँसू बह रहे थे I

बेटा तुम वहाँ तक पहुँची .... फिर वहाँ से निकलना और अपने लिए मुकाम हॉसिल करना यह काबिले तारीफ है ..... अब तुम कहीं नहीं जाओगी .... हमें समाज की परवाह नहीं, तुम यहीं रहोगी I

सच पापा कहते हुए वह पिता के गले लगकर फूट –फूट कर रोने लगी I आज उसे लगा, कि उसका संर्घष पूर्ण हुआ ,अब वह शांत थी .... निश्छल ,निर्मल नदी कि तरह .............I

उषा शर्मा,

E 45 महाविद्या कालोनी ,

मथुरा 281001

Mob॰ 9997683004,8532953835

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