JUNE 10th - JULY 10th
श्यामदासी
ये कहानी श्यामा दासी की है जो अपने पति के अत्याचारों से परेशान होकर अपनी बेटी के साथ वृन्दावन आ गयी।
भादों की संध्या आरती के समय मैं और मेरी अम्मा दोनों घर के मन्दिर के जगमोहन के नीचे बैठकर ... ठाकुर संध्या आरती का इंतजार कर रही थी...। मंदिर में पुजारी बाबा बारीश शुरू होने से पहले मंत्रोच्चारण करने लगे।... मेरी अम्मा हाथ में मालाझोली लेकर जगमोहन में आसन पर बैठकर महामंत्र का जाप करने लगी।
तभी अचानक हमारे घर में, हमारे सबसे पुराने सेवक, सनातन गायों के देखकर करते हैं, उनकी आवाज आती है।... वह मेरी अम्मा को बड़ो माँ बड़ो माँ कहते हुए बताते हैं कि आपसे कोई मिलने आया है।
अम्मा उसे इशारा करते हुए थोड़ा रुकने का कहती है। सुमरनी के पूरा हो जाने पर वह कहती है, “अरे क्या हुआ कौन आया है? शाम ढले ठाकुर की आरती का समय है... थोड़ा रुकने को बोलो उन्हें पहले आरती हो जाने दो... उसके बाद आती हूँ।“ ... और सनातन दादा को आदेश देते हुए कहती है उन्हें चाय पानी दे दो फिर आरती का प्रसाद देते समय उनसे मुलाकात करूंगी।
यही मैं अपने अम्मा के पास बैठकर मन्दिर में होने वाली गतिविधियों में संलग्न होती हूँ। अम्मा मुझे कहती है, “ऐ ज्योति। लाली, जरा तुलसी पर दियो जला दे।“
मैं “अच्छा अम्मा अभी जला देती हूँ“, फिर मैं देखती आज अम्मा रोज की तरह भजन गुनगुना रही थी वह सन्ध्या आरती सब पांच भजन जरूर गाती और कुछ पद भी गाया करती। उन्हें
संगीता का बड़ा ज्ञान था-
हमारो धन राधा श्री राधा श्री राधा
जीवन धन राधा राधा राधा,
हमारो धन राधा श्री राधा श्री राधा,
परम धन राधा राधा राधा,
मैं जाकर तुलसी का दिया जला देती हूँ और अम्मा के पास आ जाती हूँ। पुजारी बाबा मंदिर के अंदर से आरती, शंख और घंटे निकालकर बाहर रख देते हैं। परिवार के सभी सदस्य आरती के समय मंदिर के जगमोहन में एकत्र हो जाते हैं। ठाकुर जी की आरती होना शुरू हो जाती है। मंदिर में शंख और घंटी की आवाज गूंजने लगी। आरती में ठाकुर जी की
यमुना जल से अंत में आरती सम्पन्न होती है उसके पश्चात् मंत्रोच्चारण हो रहा था और सभी जन मंत्र बोलने लगे।
कस्तुरी तिलकम ललाटपट से, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासारो वरमौक्तिकम करतले वेणु करे कंकणम सर्वांगे हरचिन्दनम, सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी।।
आरती को नमन कर अपने मस्तक पर चंदन का टीका लगाकर सभी अपने कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं। अम्मा आवाज लगाती है ठाकुर को भोग ले आओ अब ठाकुर का शयन का समय हो गया है ।
अम्मा सभी को राधे राधे कहकर दो अजनबी चेहरों को देखते हुए कहती है, “ये कौन है?“
सनातन दादाः “बड़ो माँ मैं इन्हीं के लिए आपसे कह रहा था कोई मिलने आया है“।
अम्मा “अच्छा अच्छा ठीक है“।
वह बंगाली महिला अम्मा को प्रणाम करती है और कहती है बड़ो माँ मैं आरती देख रही थी मुझे बहुत अच्छा लगा।
अम्मा ने आरती समाप्त होने के बाद उस महिला और उसकी बेटी को पास बुलाया और प्रसाद दिया।
उस महिला के साथ एक 11 बरस की बेटी है अपनी बतासे जैसे बड़ी बड़ी आंखों से मुझे घूर रही थी चमकदार सफेद दांत श्याम रंग की उसकी देह, मैंने कभी इतनी गहरी आंखें कभी नहीं देखी थी। मैं उनकी और अपनी अम्मा की बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी।
अम्माः “क्या नाम है तुम्हारा? कैसे आना हुआ यहां बोलो क्या काम है?
महिलाः “मेरा नाम श्यामा। और मेरी बेटी का नाम लख्खी“।
श्यामाः “मैं मुर्शिदाबाद पश्चिम बंगाल में रहती थी, पिछले तीन महीने से वृन्दावन में जगह जगह मंदिरों में काम करती हूँ पर मैं अपनी बेटी को अकेला नहीं छोड़ सकती, इसलिए आपके पास काम की तलाश में आई हूँ। मैंने सुना है आपके घर में काम करने वालों के कमरे, घर के पीछे आपकी गौशाला के पास ही बने हैं। आप मुझे काम पर रख लेंगे तो मुझे अपनी बेटी को छोड़कर नहीं जाना पड़ेगा।“
अम्माः “मैं तुम्हें मंदिर में रहने की इजाजत तो दे दूँ... पर तुमने अपना घर क्यूं छोड़ा?“
श्यामा अपनी बेटी को गले लगाकर रोने लगी और अपनी कहानी सुनाने लगी, “बड़ो माँ! मेरा घर में अपनी बेटी के साथ रहना मुश्किल हो गया था। मेरे पति ने दूसरा विवाह कर एक ही झोपड़ी में अपनी दूसरी पत्नी को साथ रखा और मुझे उन परिस्थितियों में उसके साथ रहना ना गुजार था।
क्योंकि मेरे और मेरी बेटी के सामने उनकी छेड़छाड़ चलती रहती थी। घर का माहौल बहुत खराब हो रहा था और मैंने उसी दिन फैसला किया कि अब मैं यहां नहीं रहूंगी। मैं अपने ही गांव में घरो में काम करने लगी और अलग किराए के झोपड़े पर रहने लगी। लेकिन मुझे मेरा पति घर ले आया और कहने लगा कि तू यहीं रहेगी घर का काम कौन करेगा। मैंने अपनी बेटी के साथ गांव छोड़ दिया और यहां आ गई अब मैं नहीं जाऊँगी वापस कभी भी, अपनी बेटी के लिए जीवन जीना है मुझे।
अम्माः “ठीक है तुम कल से यहीं आ जाओ।“ सनातन। “गौशाला के पास का कमरा श्यामा को दे दो।“ श्यामा धन्यवाद बड़ो मां कहकर कल वापस आने को चली गई।
अगले दिन सुबह श्यामा हमारे घर आ गई अपनी बेटी और सामान लेकर। अपने कमरे में जाकर दोनों मां बेटी अपना सामान लगाने लगी और मैं दूर से अपनी छोटी बहन के साथ देख रही थी। दिन में सनातन ने श्यामा दासी को मंदिर के काम बताए और सब सामान्य होता चला गया। मेरे पिताजी ने श्यामा की बेटी लख्खी का विद्यालय में नाम लिखा दिया था, उसका अपनी उम्र के हिसाब से छोटी कक्षा में दाखिला हुआ, क्योंकि उसे हिंदी पढ़ने लिखने में परेशानी होती थी। धीरे-धीरे समय बीतने लगा श्यामा दासी अपनी बेटी के साथ बहुत प्रसन्न थी। श्यामा दासी की बेटी 18 वर्ष की हो गई थी तभी मेरे घर वालों ने श्यामा को लक्ष्मी के लिए लड़का देखने को कह दिया और कहा कि इसकी शादी का खर्चा जो भी हो हमारी जिम्मेदारी है। तुम लड़का देखो
श्यामा दासी ने कलकत्ते में एक पोस्टमैन से बातचीत है कि और लड़के को वृंदावन मेरे परिवार वालों से मिलाया लख्खी को लड़का पसंद आ गया था दोनों की शादी संपन्न हुई।
लख्खी की शादी के बाद मेरे पिताजी ने श्यामा से पूछा, “अब तुम क्या चाहती हो... अब तुम्हारी बेटी का विवाह हो गया, तुम अब यही वृन्दावन वास करो यही भजन करो ठाकुर सेवा करो ।
श्यामा दासीः “मैं अपनी बेटी के साथ जाना चाहती हूं। अब उसके साथ रहने में ही मेरा सुख है... आपका आभार में कभी नहीं चुका सकती।
पिताजीः श्यामा तुम जाओ लेकिन कभी भी तुम्हें यहां वापस आना पड़े तो संकोच नहीं करना सीधे वृंदावन आ जाना।“
सब को प्रणाम कर अपनी बेटी के साथ चली गई। श्यामा अपनी बेटी के मोह में उसके साथ कलकत्ता चली गई।
मेरी शादी के करीब 5 साल बाद मैं अपने परिवार के साथ जमुना पूजन करने गई।
मैंने देखा कि एक महिला जमुना घाट पर बैठे भिखारियों के बीच से निकल कर आती है और कहती है। तुम कैसी हो ज्योति? मैं उसे पहचान नहीं पाई। मैंने कहा “कौन हो तुम?“ तभी मेरी मां ने पहचान लिया और कहा, “अरे श्यामा दासी! तुम यहां क्या कर रही हो? तुम तो अपनी बेटी के साथ ही ना।“ बस उसका हाथ पकड़ मेरी मां उसे घर ले आई। अम्मा घर पर श्यामा को देखकर भौचक्की रह गई। कहने लगी, “यहां कब वापस आई और क्या हुआ ऐसा जो तुम्हें वापस आना पड़ा कितने दिनों से यहां वृंदावन में।
श्यामाः “बड़ो मां, जब मैं अपनी बेटी के साथ कलकत्ता गई, शुरुआत में सब कुछ ठीक था, जब उसके एक बच्चा हो गया तो हमारे बीच किसी ना किसी बात पर झगड़ा हो जाता था। ये सब ठीक था लेकिन एक दिन मेरी बेटी ने मुझे बोला तुमको कभी पति सुख नहीं मिला इसलिए तुम मेरे पति पर बुरी नजर रखती हो। तुम चली जाओ यहां से। मुझे नहीं रखना तुम्हें जाओ वृंदावन जाकर भीख मांगो। रात का दूसरा पहर था बड़ो मां मेरी बेटी ने एक थैले में 2 जोड़ी कपड़े रखकर मेरे हाथ में 320 रुपये देकर घर से बाहर खड़ा कर दिया और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा मैं कहां जाऊं क्या करूं। मैं सारी रात उसके दरवाजे के बाहर बैठकर कुंडी बजाती रही , कि कभी तो मेरी बेटी का दिल भी नरम होगा मेरी बेटी थोड़ी देर बाद दरवाजा खोलकर मुझे घर में बुला लेगी, लेकिन सुबह भोर तक दरवाजा नहीं खुला और मैं लोगों की निगाहों से बचने के लिए उस घर से दूर रेलवे स्टेशन पर जाकर बैठ गई और वृंदावन जाने का सबसे सस्ता टिकट ले लिया। रेलगाड़ी आने में बहुत समय था मैं एक ऐसी जगह देख कर बैठ गई कि अगर मेरी बेटी मुझे वापस लेने आए तो मैं उसे आसानी से दिखाई दे जाऊं, पर समय के साथ मेरी आस खत्म होती जा रही थी। मेरी रेल आ गई थी और मैं भारी कलेजे से रेल गाड़ी में बैठ गई अपना चेहरा हमेशा के लिए मोड़ लिया फिर मुड़कर नहीं देखा। सारे रास्ते एक एक ख्याल मुझे कचोट रहा था अपने कलेजे के खून से सींचा था उसे कैसे एक झटके में दूध मेंसे मक्खी की तरह उतार फैंका मुझे ।मैं सबसे पहले आपके पास आ रही थी बड़ो मां लेकिन मैंने सोचा आप लोगों ने पहले भी बहुत साथ दिया मेरा अब मैं आप लोगों पर बोझ नहीं बन सकती, इसलिए केसी घाट वृंदावन यमुना किनारे माधुपुरी करके भीख मांगने लगी। 3 साल से यहां माधुपुरी कर रही हूं। आज मैंने ज्योति को जमाई बाबू संग यमुना आरती करते देखा तो उसे बिना मिले रह ना सकी।
अम्माः “श्यामा सब भूल जाओ , अब तुम यहीं रहोगी कहीं नहीं जाओगी ठाकुर सेवा और भगवान भजन करो यही जीवन है।“ तुम आराम से भोजन कर यहां महामंत्र
जाप करो मस्त रहो.
ज्योति शर्मा
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