JUNE 10th - JULY 10th
जागृति एक जैसे दिखने वाली इमारत के सामने खड़ी थी. उसमें कुल सात या आठ मंजिल होंगी. पास में पार्किंग में उसने अपनी स्कूटी खड़ी की. वहीं एक और दुकान थी. सामने की तरफ कुछ घरों और खाली जगह के बाद समुद्र का किनारा था. वहाँ से समुद्र का नजारा आसानी से देखा जा सकता था. काफी समय बाद उसे किसी नौकरी के लिए स्वीकृति दी गई थी. उसे इस जॉब का ऑफर सामने से आया था इसलिए उसने इसे स्वीकारने में देर नहीं लगाई थी. जब उसका इंटरव्यू हुआ तो उसके बाद वो काफी सुनिश्चितता से घर गई थी क्योंकि उसे यकीन था कि उसका चयन हो जायेगा. आज उन्हें जॉब के लिए बुलाया गया है. उसे ये नहीं पता और कौन-कौन चयनित हुआ है मगर उसे और किसी से कोई मतलब नहीं है. वो चयनित हो गई बस काफी है. उसने देखा कि पास की एक दुकान पर जिसमें कुछ खाने पीने की छोटी मोटी चीज़े और चाय कॉफी मिलती है, वहाँ कुछ लड़के लड़कियां बैठे है. पहले उसने उनकी तरफ जाकर पूछने की सोची की वो लोग भी यही काम करते हैं क्या मगर फिर अपना इरादा बदल दिया.
“क्या तुम ही यहाँ चयनित हुई हो?”
एक लड़की की तीखी से आवाज उसे सुनाई दी उसने पलटकर देखा तो उसी के कद की सामान्य से दिखने वाली मगर छोटे बालों वाली एक लड़की थी.
“हाँ क्या तुम्हारा चयन हुआ है?”
“हाँ.”
“तुम्हारा नाम….”
“भाविका”
“ओह हाय भाविका, मेरा नाम जागृति है. कैसी हो तुम?”
“तो तुम लोग भी चयनित हुए हो?”
तीसरी एक मासूम सी आवाज उन्हें सुनाई दी. उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो छोटी कद वाली एक लड़की वहाँ खड़ी थी. वो थोड़ी गुदगुदी-सी लग रही थी.
“तुम… तुम्हारा भी यहाँ चयन हुआ है क्या?”
उसको ऊपर से नीचे तक देखते हुए भाविका बोली
“हाँ मेरा नाम चंचल है.”
“तो क्या हमें अंदर चलना चाहिए?”
“हाँ चलो”
वो तीनों आपस में एक-दूसरे से मन ही मन थोड़ी दूरी बनाए हुए थी क्योंकि काम में प्रतिद्वंदी के साथ अच्छे रिश्ते अच्छा परिणाम नहीं देते. इमारत के अंदर जाने पर उन्होंने रिसेप्शन से अपने ऑफिस का नाम पूछकर मंजिल का पता पूछा और वहाँ पहुँच गए. उस मंजिल पर पहुंचने के बाद उन्होंने देखा बड़े अजीब ऑफिस बने हुए हैं. पार्टीशन के जरिए छोटे-छोटे से कमरे जैसे बनाए हुए हैं जिनमें कहीं से भी अंदर झांक कर नहीं देखा जा सकता. दरवाजे भूरे रंग के हैं और दीवारें सारी सफेद है और एक गलियारा है जो शायद बाथरूम जाने के लिए होगा. उन तीनो ने आँखों ही आँखों में एक-दूसरे की तरफ देखा और फिर अपनी फ़ाइलें निकाल कर रिसेप्शन पर बैठी महिला को दिखाते हुए बात करने लगे. तभी वहीं से एक शख्स निकलते हुए आया,
“ओह तो आप आ गई. आइए मैं आपको काम समझा देता हूँ. मेरा नाम दक्ष हैं. मैं यहाँ का मैनेजर हू.”
वो तीनो थोड़ी हैरानी हुई कि मैनेजर खुद यहाँ काम समझाने क्यों आया है. इधर वो उन्हें काम के बारे में बता रहा था.
उन्हें कुछ पन्नों पर लिखी जानकारी को कंप्यूटर में डालना था और उसे सेव कर भेजना था. बस उनका यही काम होने वाला था इसलिए वो तीनो काफी हैरान थीं. इस काम के लिए उन्हें अच्छी-खासी रकम मिलने वाली थी. आखिर ऐसी तनख्वाह में वह सिर्फ इतना-सा काम तो नहीं करवाएंगे.
“जरूर दाल में कुछ काला है.”
जागृति को थोड़ा शक हुआ. घूमते-घूमते वो लोग एक अलग से कमरे में पहुंचे जो बाकी सब कमरों से थोड़ा अलग था. दरवाजा खोलने पर एक तरफ उन्हें अंधेरी जगह दिखाई दी. उस जगह पर कोई महिला लंबे-से बाल खोलकर किसी जालीदार जगह के बीच में बैठी थी. उसका चेहरा साफ दिखाई नहीं दे रहा था मगर न जाने क्यूँ उस ओर से जागृति को बड़ी अजीब-सी गंध से आ रही थी और उसे ऐसा लग रहा था कि उसे तुरंत यहाँ से निकल जाना चाहिए मगर फिर भी उसने अपनी अंतरात्मा में आ रहे इन भावों को नज़रअन्दाज़ किया और काम समझते हुए आगे बढ़ें. दक्ष ने उन्हें अलग-अलग कमरे देते हुए उनका काम समझाया. खोलने पर उन्होंने देखा ये कमरे बाकी काम करने वाली जगह से थोड़ा अलग है. एक टेबल पर कंप्यूटर रखा हुआ है और एक खाली रैक है. उसके पास एक एकल बिस्तर लगा हुआ है. खैर उन्होंने इस बात को ज्यादा अच्छे से गौर नहीं किया और अपने-अपने काम में लग गयी. कुछ देर बाद उन्हें पता चला की वो लोग शाम को घर नहीं जा सकती. उन्हें पहले 5 दिन यहीं रुक कर काम करना होगा. उन्होंने अपने घरवालों को संपर्क करने के बारे में कहा तो उन्हें संपर्क करने दिया गया मगर जैसे ही वो लोग काम करने बैठे उनके फ़ोन काम करना बंद कर दिए. वो किसी से भी बाहर संपर्क नहीं कर पा रही थी. जागृति को यहाँ कुछ अजीब-सा एहसास हो रहा था. मानो कुछ ठीक नहीं है. वो इधर-उधर देखते हुए अपने काम में लग गयी मगर ये काम बेहद आसान लग रहा था. सिर्फ मामूली जानकारियां थीं जो कई पन्नों पर लिखी हुई थी. उन्हें कंप्यूटर पे डालना और उसके लिए 15,000 ही कुछ ज्यादा लग रहे थे. तभी उसे अपने पास की दीवार से आवाज आई. उसने उस दीवार पर थोड़ा हाथ रगड़ा क्योंकि अब वो कुछ देर आराम करने के लिए बिस्तर पर बैठी थी. उसे अपने पास की दीवार पर एक छेद सा नजर आया. जब उसने उस पर हाथ फिराया तो पारदर्शी हो गया.
“शायद यहाँ काँच होगा और किसी ने इस पर रंग कर दिया.”
दूसरी तरफ उसे एक लड़की अजीब-सी स्थिति में दिखाई दी. उसके हाथ पैरों में ज़ंजीर पड़ी हुई थी और उसके बाल भी बिखरे हुए थे. वो काफी कमजोर लग रही थी और जैसे ही उसने जागृति को देखा वो डर के मारे चिल्लाने लगी. जागृति को यह देखकर थोड़ा अजीब लगा.
“किसी ने उसे यहाँ के बंद किया होगा?”
जब वह बाहर आई तो उसे कोलाहल सुनाई दिया. तभी चंचल और भाविका उसके पास दौड़ते आएँ.
“यहाँ बहुत गडबड चल रही है.”
उन्हें कुछ समझ नहीं आया. तभी अचानक वो कमरा है जिसमें पहले वो लोग गए थे और उन्होंने खुले बाल वाली महिला को देखा था. वहाँ से एक अजीब-सी महिला निकलकर आई और वो लोगों को पकड़-पकड़ कर खाने लगी. यह देखकर वह तीनों डर के मारे चिल्लाई और वहाँ से भागने लगी. ये पूरा ऑफिस से भूलभुलैया जैसा था. उन्हें अब इस जॉब ऑफर को स्वीकार करने पर पछतावा हो रहा था. शायद अब उनकी जान भी खतरे में थी. तभी उन्होंने देखा की दक्ष के आदेश पर बहुत से यूनिफॉर्म पहने हुए है आदमी ऑफिसों से लोगों को निकाल रहे थे और जानवरों की तरह उन्हें पकड़कर घसीट रहे थे. जो उनका विरोध कर रहा है वो उन्हें उसी वक्त बुरी तरह से पीटते हुए मार रहे थे. ये देखकर वो तीनों घबरा कर भागी और अपने आप को एक ऑफिस में बंद कर लिया. मगर कुछ ही देर में उन्हें एहसास हुआ कि वो यहाँ पर अकेली नहीं है. वहाँ पर वही सुरक्षाकर्मी था जिससे उन्होंने पहली बार संपर्क किया था. उन्होंने उसको अपने कब्जे में लिया और उससे पूछ्ताछ करने लगी. पीछे की ओर से एक आदमी ने आकर उन पर हमला किया मगर उन्होंने उसे भी हमलाकर बेहोश कर दिया और फिर उस सुरक्षाकर्मी से पूछ्ताछ करने लगी. उनके ठीक पीछे एक कांच की खिड़की थी जिससे समुद्र का किनारा साफ दिख रहा था. सूरज डूब रहा था और उसकी सुनहरी किरणें चारों तरफ फैली हुई थी. मगर ये नजारा अभी बिल्कुल खूबसूरत नहीं लग रहा था. वो लोग कम से कम तीसरी और चौथी मंजिल पर होंगे क्योंकि भागने के दौरान उन्हें खुद अंदाजा नहीं है वो कहाँ पर है. तभी दरवाजे से कुछ लोग अंदर आए. वो पुलिस वाले लग रहे थे क्योंकि उन्होंने पुलिस जैसी वर्दी पहनी थी.
“तुम चिंता मत करो. घबराओ मत. इसे छोड़ दो. हम पकड़ लेंगे.”
आग बुझाने वाले पाइप से जब भाविका और जागृति ने उस सुरक्षा कर्मी को बंधक बना रखा था. तब वो पुलिसकर्मी धीरे-धीरे चंचल की ओर बढ़े और एक झटके में उसे मार दिया. तभी उनके पीछे से अजीब से जॉम्बी की तरह बने हुए वो सारे ऑफिसकर्मी आ गए जो अभी-अभी उन लोगों ने मारे थे. वो पागलों की तरह चंचल को खाने लगे. ये देखकर देखकर जागृति ने तुरंत उस खिड़की पर लात मारी और वहाँ से उस आग बुझाने वाले पाइप के जरिए कूद गई. उसे कोई डर नहीं था कि उसके हाथ टूटे या पैर उसे बस अपनी जान बचाने की लगी थी. उसने नहीं देखा भाविका के साथ क्या हुआ? वो दौड़ लगाने लगी. उसे एहसास हुआ कुछ लोग उसका पीछा कर रहे हैं तो वो सामने के घरों को पार करते हुए एक अंधेरे पुराने पड़े सीवर के पाइप में घुसकर बैठ गयी. जहाँ बहुत बदबू आ रही थी और बहुत कचरा भी पड़ा था. मगर उसे अभी इन सब बातों पर ध्यान देने का मौका नहीं था. उसे जल्द से जल्द अपने घर पहुंचना था ताकि वो सुरक्षित रहें. उसने सूरज ढलते हुए देखा. दिन ढलते-ढलते अचानक उसे एहसास हुआ कि वो लोग उसके पीछे आ गए. उसके पैर में भी चोट आई थी और हाथ पर भी दर्द हो रहा था. मगर जैसे-जैसे वो लोग उसके करीब आए और उन्होंने उसे देख लिया वो वहाँ से भागने लगी और समुद्र की ओर दौड़ पड़ी. आखिरकार कोई और चारा न देखते हुए वह समुद्र में कूद गई और दूसरी ओर तैरने की कोशिश करने लगी. उसके लिए ये जॉब ऑफर मौत के सौदे की तरह निकला. उसने कुछ देर अपने आप को पानी में डुबो के रख लिया. शुक्र है वो बचपन में तैराकी सीखा करती थीं. उस वजह से उसे पानी के अंदर सांस रोकने का अच्छा अभ्यास था. उसे अपने आसपास हलचल महसूस हुई मगर वह बिल्कुल स्थिर हो सांस रोके पानी में बैठी रही. लहरों के तेज हो जाने के कारण वो लोग वापस लौट गए. जब उसे अंधेरा होता महसूस हुआ और आसपास हलचल महसूस नहीं हुई तब वो बाहर निकल कर आई. वो वापस उन सीवर के तिरछे पड़े पाइपों में जाकर बैठ गयी. तभी अचानक उसे अपने पीछे किसी के होने का अहसास हुआ मगर इससे पहले की वो पलट के कुछ कर पाती वैसे ही वर्दी पहने हुए है जैसे उस कंपनी में पहने थे एक शख्स ने उसके मुँह पर हाथ रखा और उसे चुप रहने का इशारा किया. फिर वो भी उसके पास बैठ गया. उसने उसके बिना कुछ पूछे ही बताना शुरू किया
“मैं खुद भी वहाँ से बहुत समय से भागने की कोशिश कर रहा था. दरअसल इस कंपनी में तुमने आवेदन किया था. तुम्हें याद होगा तुमने कभी इसका नाम भी नहीं सुना होगा…. वो इसलिए क्योंकि इस कंपनी की मालकिन और काम करने वाले सभी ऊपरी अधिकारी नरभक्षी हैं... उन्हें हर बार कोई नया मांस चाहिए होता है… इसलिए वो विशेषकर चुने गए लोगों को जॉब ऑफर देते हैं.. और जो लोग उत्तेजना मैं उसे स्वीकार कर लेते है… उन्हें तुरंत ही स्वीकृत कर लिया जाता है.. इंटरव्यू सिर्फ नाममात्र का होता है.. एक बार अगर कोई इस इमारत के अंदर आ जाए तो बाहर नहीं निकल सकता… शायद आज जो कुछ हुआ वो इतने सालों से चल रहे गुपचुप बगावत का नतीजा था.. अब तक कोई भी यहाँ से भाग नहीं पाया था मगर आज कुछ लोग जीवित भाग गए… तुम्हें यकीन नहीं होगा मगर यहाँ पर सुरक्षाकर्मी या जो लोग कंपनी की तरफ से काम करते थे वो सभी नरभक्षी हो चूके हैं और वो लोग भी उन लोगों को खाते हैं जो उन्हें पसंद आ जाते हैं… उन्हें कई बार बांधकर रख लेते हैं और मांस के थोड़े-थोड़े टुकड़े को धीरे-धीरे कर खाते है जिससे वो इंसान तड़प-तड़प कर मरता है…”
जागृति की आत्मा तक सिहर उठी.
“तो क्या तुम भी अब मुझे खा जाओगे?”
उसने उस लड़के से पूछा. उस लड़के ने ना में सिर हिलाया और बोला
“मुझे यहाँ से निकलने का एक रास्ता पता है. मैं इतने दिनों से यहाँ से निकलने की कोशिश कर रहा था. ये जॉब ऑफर मैंने भी परेशानी के कारण स्वीकार कर लिया था. आओ इस तरफ से निकलते हैं.”
यह कहकर उसे वो पुराने पड़े हुए हैं कचरे के ढेर के पास से होते हुए शहर की ओर ले कर निकल पड़ा.
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