खामोशी की सज़ा

divyamohan7959
जीवनी
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आज पांच साल बाद मैंने लखन को देखा था । दुबला -पतला शरीर , आँखों के नीचे झाई , बढ़ी हुई दाढ़ी लखन की ऐसी दशा देखकर मेरी नजर खुद बा खुद झुक गई और पाँच साल पुराना किस्सा याद आ गया ।

पाँच साल पहले मैं ऊटी स्टेशन पर खड़ा ट्रेन का इंतजार कर रहा था । कल रात मां का फोन आया था कि घर का बंटवारा हो रहा है तू अपना हिस्सा देख ले आकर । पिछले दो महीने से मां , बापू बड़े भाई को मनाने की कोशिश कर रहे थे कि वह बंटवारे की बात ना करें । क्योकि भौतिक संपत्ति का तो बंटवारा हो सकता है पर मानसिक संपत्ति का क्या ............मां ने बताया कि कल भाई ने बंटवारा को लेकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी । मैं तो यह सोच कर भी घबरा गया था उस अवस्था में मां पर क्या गुजरी होगी ............

मैं प्लेटफार्म पर खड़ा गाड़ी का इंतजार कर रहा था पर कमबख्त गाड़ी ने भी आज लेट होने की ठान रखी थी । मैंने मोबाइल से गाड़ी की करंट लोकेशन सर्च की तो पता चला कि गाड़ी तकरीबन पैतालीस मिनट लेट है । मैं अपना सामान लेकर वेटिंग रूम की तरफ जाने लगा इस उम्मीद से की पैतालीस मिनट आराम कर लूंगा । मैंने कल ही निर्धारित कर लिया था कि जाकर अपना भी हिस्सा भाई के नाम कर दूँगा और बंटवारा शब्द की बुनियाद ही खत्म कर दूँगा ।

नही चाहिए मुझे ऐसी संपत्ति जो एक माँ की आँखों मे आँसू ला कर पल भर में पराया कर दे । मुझे अपने माँ के त्याग पर इतना तो विश्वास था कि मैं उनके लिए एक घर बना सकु ....हाँ घर.....

मैं अपना सामान लेकर प्लेटफॉर्म एक से गुजर रहा था । मैंने देखा कि एक लड़का पटरी के पास खड़ा सामने से आती ट्रैन को एक टक देखे रहा हैं । ना जाने क्या सोचकर मैंने अपना सामान वही छोड़ा और उस लड़के के जानिम बढ़ गया ।

हेलो , भाईसाहब ...... जरा पीछे खड़े हो जाइए । लगता है जिंदगी से मन भर गया है । क्योंकि अगर आप ऐसे ही खड़े रहे तो ये ट्रैन अपने साथ आपको भी पटरियों की सैर करवा देगी ......हालांकि मैं कभी किसी अजनबी से बात नही करता था । पर आज यूं अचानक निकलते अल्फाज़ो को मैं रोक न सका । शायद अभी भी दिमाग मे माँ की बात घूम रही थी कि कल तेरे भी ने आत्महत्या करने की कोशिश की । वो लड़का मेरे बात का उत्तर दिये बिना पास आती ट्रैन को एक टक देख रहा था । जैसे उसने मेरी बात सुनी ही ना हो ................

मैंने पास जाकर उसके चेहरे को देखा और मुझे पहचानते जरा भी देर नही लगी कि ये लखन है। हमारी गली का मास्टर .........पर शायद ये मुझे ना जानता हो । उसके चेहरे पर आते भाव और उसकी आँखों मे उमड़ते जज्बात को देखकर मैं ये समझ गया कि ये मेरी बात को सच करने के फ़िराक में हैं ।

ट्रैन जब थोड़ा नजदीक आई तो मैंने लखन का हाथ पकड़ अपने जानिम खींच लिया और मेरे इस भीम वाले अवतार को देखकर उसने मुझे घूर कर देखा .....क्या कुछ नही था उसकी आँखों मे ......नाराजगी , क्रोध , धोखा , अकेलापन और शायद सब कुछ खत्म करने की लालसा.......पर क्यो...?

हमे तो बचपन से सिखाया जाता है कि लड़के कमजोर नही होते ? उनकी आँखों मे कभी आंसू नही आ सकते ? ...तो क्या ये लड़का नही है ...क्योकि जहाँ तक हमे पता है कि आत्महत्या तो कमजोरों की निशानी है ।मैं अभी भी लखन की आँखों मे देख रहा था कि उसने मेरा हाथ झटक दिया और वापस से उसी जगह खड़ा हो गया जाकर............ शायद दूसरी ट्रैन के इंतजार में ।

मैंने अपने सामान से पानी की बॉटल निकली और लखन के सामने कर दी । पहले तो उसने मुझे एक नजर देखकर मुँह फेर लिया फिर शायद अपनी टूटी हुई हिम्मत को समेटने के लिए कांपते हाथों से बॉटल थाम ली । लखन के कांपते हाथ इस बात की गवाही थे कि जिंदगी को खत्म करने के लिए वाकई हिम्मत की जरूरत होती है ।

मैंने उसकी मनोदशा को समझते हुए खुद ही बात शुरू कि : देखो भाई , मुझे नही पता कि तुम ऐसा कदम क्यो उठा रहे हो पर इसका परिणाम जरूर सोच लेना । तुम तो एक बार मे चले जाओगे पर अपने पीछे ना जाने कितनो के चैन , त्याग , अरमान , जज्बात अपने साथ ले जाओगे । तुम अगर चाहो तो मुझे अपनी परेशानी बता सकते हो मैं उसे कम तो नही कर सकता पर तुम्हारा दिल जरूर हल्का कर सकता हूँ । ...मुझे पता था कि वो मुझसे अपनी बात जरूर कहेगा क्योकि इंसान को नाजुक वक़्त में एक सहारे , एक साथ कि जरूरत होती हैं । .............हालांकि मुझे लखन के बारे में सब पता था । वो एक समझदार , सुलझा और धैर्य युक्त इंसान हैं । मेरे मकान मालिक की बेटी भी उसी कोचिंग में पढ़ती थी । जिसमे लखन पढ़ाता था । उसी से मुझे पता चला था कि लखन अपनी माँ के साथ रहता है और उसके कोचिंग की एक लड़की उसे काफी दिन से परेशान कर रही है । ........ मैंने भी एक हफ्ते पहले लखन को किसी लड़की को समझाते देखा था । उन दोनों की बातचीत से मुझे ये तो समझ आ गया कि ये वही लड़की है जिसका जिक्र मेरी मकान मालिक की बेटी ने किया था । मैंने साफ साफ सुना वो लड़की लखन को धमकी दे रही थी कि अगर उसने उसका प्रपोज़ल स्वीकार नही किया तो वो उसे बर्बाद कर देगी । उस दिन की एक एक बात मुझे अच्छे से याद थी क्योंकि उस दिन ही मेरी सबसे कीमती अंगूठी गुम हो गई थी ।

आपका नाम अगस्त्य है ना......लखन ने शून्य में ताकते हुए कहा ।

आपको मेरा नाम पता है ....मैंने हैरानी के भाव से पूछा । पर लखन कि उस बोलती आँखों ने मुझे खामोश कर दिया । ना जाने क्यो मैं लखन से नजरें नही मिला सका । लखन ने मेरी आँखों मे देखते हुए कहा ; जानना नही चाहेंगे कि मैं ऐसा कदम क्यों उठा रहा था । उसकी आँखों में ना जाने क्या था कि मैंने बिना कुछ बोले हाँ में सिर हिला दी ।

लखन ने एक सरसरी नजर मुझ पर डालते हुए सामने देख कर कहा मुझ पर 354- A , 354 -D का मुकदमा लगा है । पुलिस ने साफ कह दिया है कि अगर एक सफ्ताह के अंदर कोई भी गवाह नही मिला तो वह मुझे जेल में डाल देंगे.............. मुझे लखन की आवाज में एक तंज सा लगा । ना जाने क्यो मैं अपनी नजरें उठाकर लखन को ना देख सका । मैं उससे अभी कुछ देर और बात करना चाहता था जानना चाहता था कि कहीं लखन ने मुझे उस दिन देख तो नही लिया था । पर तब तक मेरी ट्रेन की अनाउंसमेंट हो गई । मैंने अपना सामान उठाया और अपने प्लेटफार्म की तरफ चल पड़ा पर मैं इस बात को भलीभांति महसूस कर पा रहा था कि लखन मुझे एक टक देख रहा था ।

मैंने घर पहुँचकर अपने हिस्से की संपत्ति को अपने भाई के नाम किया और तीन -चार दिन में माँ - बाप को लेकर ऊटी आ गया । पर इन सबके चक्कर मे मैं लखन के बारे में भूल गया था।

मुझे ऊटी में आए बीस दिन हो गए थे । मैं एक दिन बैठा माँ - से बात कर रहा था तो चला कि मोहित के ऊपर किसी ने फ्रॉड का मुकदमा दर्ज कर दिया है । मुकदमा का नाम सुनकर मुझे लखन की याद आ गई । मेरा दिमाग इस उठेड़ बुन में उलझ गया कि क्या लखन को पुलिस पकड़कर ले गई , क्या उसे कोई गवाह मिला होगा ......मैंने सोच लिया था कि अगले ही दिन मैं मकान मालिक की बेटी से लखन के बारे में पुछुगा ।

अगले दिन मुझे अपने मकान मालिक की बेटी से पता चला कि लखन पंद्रहा दिन से पुलिस की हिरासत में है । और कल उसकी सुनवाई हैं। उसने मुझे ये भी बताया कि लखन ने मुझे मिलने के लिए बुलाया था । लखन मुझे मिलने के लिए बुलाएगा ये सोच कर ही मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया । क्योंकि इस समय लखन से मिलना मतलब बिन मतलब पुलिस का चक्कर.....मैंने बढ़ी धीमी आवाज में लड़की से पूछा : क्या उसे कोई गवाह मिला। हालांकि मैं उत्तर जानता था पर फिर भी एक आस थी । मेरे प्रश्न के जबाब में उस लड़की ने ना में सिर हिलाया और चली गई ।

मैं रात भर इसी उधेड़बुन में रहा कि कल मुझे जाकर लखन की तरफ से गवाही देनी चाहिए या नही । जो लड़की लखन पर झूठा मुकदमा लगवा सकती है वो मेरे साथ भी तो कुछ करवा सकती हैं और अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरे माँ बाप का क्या होगा...मैं अपने माँ बाप को किसी और के सहारे नही छोड़ सकता । पर लखन की माँ का क्या......

अगले दिन शाम को मुझे मकान मालिक की लड़की से पता चला कि लखन को पाँच साल की सजा हुई है । न जाने क्यों लखन कि सजा की खबर सुनकर मुझे ऐसा लगा की वो सजा लखन को नही मुझे हुई हो । क्योकि गवाह ना बनकर एक मासूम की जिंदगी तो मैंने भी बर्बाद की थी ।


मैं अभी मांझी के आत्मग्लानि में डुबा था कि किसी ने मेरे कंधो पर हाथ रखा । मैंने नजर उठाकर देखा तो सामने लखन खड़ा मुझे देख मुस्कुरा रहा था । अब उसकी मुस्कुराहट में वो चमक नही थी । मैंने बड़ी हिम्मत कर उससे पूछा.... कैसे हो लखन

तो उसने मुस्कुराते हुए कहा : कल ही जेल से छूटा हूँ ।

लखन के जबाब ने मुझे उसकी आँखों मे देखने पर मजबूर कर दिया । उसने थोड़ी देर शांत रह कर कहा ...मैं कल ही तुमसे मिलने आने वाला था पर फिर ये सोचकर रुक गया कि गुनहगार शरीफों के घर नहीं जाते वरना कुछ छीटें तो उन पर भी उठती हैं । पर देखो ना तुम रास्ते मे मिल गए । मुझे तुम्हें धन्यवाद कहना था अगर उस दिन तुम मुझे ना रोकते तो शायद मैं अपनी मां का कायर बेटा कहलाता ।

माँ कैसी हैं तुम्हारी .........

माँ तो उसी वक़्त गुजर गई थी जब मेरे हिस्से सजा लिखी गई । शायद वो इस दुनिया के न्याय को सह ना सकी । बहुत फर्क था उन्हें अपने बेटे पर इस दुनिया ने उनसे उनका विश्वास छीन लिया । और जब विश्वास टूटने का असर तो तुम भी जानते हो .......उसने उदासी के साथ मुस्कुराकर कहा । पर उस मुस्कुराहट के पीछे छिपी विवशता को मैं साफ महसूस कर पा रहा था । मैंने अभी कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था की लखन ने मेरी तरफ लिफाफा बढ़ाकर कहा : ये तुम्हारा कुछ सामान मेरे पास रह गया था तो सोचा कि तुम्हें देता हुआ जाऊ । पता नही फिर कब मुलाकात हो ।

अच्छा तो अब चलता हूँ .....मेरे लिफाफा पकड़ते ही उसने वहीं मुस्कुराहट के साथ कहा । और इस बार उनकी मुस्कुराहट मुझे अंदर तक झंझोर गई । मैं तब तक उस रास्ते देखता रहा जब तक लखन चला नही गया । लखन के जाने बाद मैंने लिफाफा खोला तो उसमें मेरी वही अंगूठी थी जो उस दिन गुम हो गई थी । अंगूठी को देखकर मेरी आँखें हैरानी से फैल गई । अंगूठी में गढ़ा एक एक नग मेरी बुझदिली पर हँसते हुए लखन पर गुजरे पाँच साल की कहानी बता रहा था ।
मैंने अपने आंसू पोछ कर अंगूठी को जेब मे रखा । और खाली मन के साथ जिंदगी भर का पछ्तावा लिए घर की तरफ बढ़ चल पड़ा ।
मेरी एक खामोशी ने किसी की हँसती खेलती जिंदगी बर्बाद कर दी थी ।

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