JUNE 10th - JULY 10th
देशभक्ति
ए आर आजाद
वक्त जिंदगी के सामने कई सवालों को खड़ा करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था। कभी वक्त रफ्तार पकड़ता तो देश में खुशहाली का रंग कामयाबी के ढोल-नगारे के साथ ऐसे रंग बिखेरता मानों अंधेरी रात में अचानक चांद अपनी दुल्हन चांदनी को लेकर सितारों की बारातों के संग अपने घर की ओर बढ़ रहा हो।
हवा ऐसी ताजगी भरी मानो कुदरत हमसे कह रही है- ‘’ जियो जी भरकर जियो।‘’
हर शख्स अपने मुकाम और मंजिल की तरफ तेजी के साथ बढ़ता जा रहा था। एक उमंग, एक आरजू, एक चाहत और एक कशिश के साथ कदमताल करता हुआ अपनी रफ्तार में मुकद्दर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बढ़ रहा था। दुनिया देख रही थी, भारत की मुस्कुराहट। भारत के चेहरे की तबस्सुम और उसकी ललाट की चमक प्रारंभ से ही विश्व को आश्चर्यचकित और अचंभित करता रहा है। यहां के टैलेंट और देश के प्रति कुदरती लगाव का जो बीज यहां महापुरुषों ने सदियों पहले अपने चमन में बोए थे, आज उसकी खुशबू से हर कोई तरोताजा हो रहा है।
इतिहास गवाह है जब भी कोई आफत गले पड़ी, देशवासियों ने मिलकर उसका सामना किया। नतीजा सुखद रहा और देश अपने मुकाम और मंजिल की तरफ उसी तेजी से बढ़ता चला गया, जिस तेजी और रफ्तार की देश हमेशा खुद से उम्मीद करता रहा है। देश की विविधता ने उसकी एकता को ऐसे जकड़ दिया कि लाख हवाओं का झोका आए, आंधी आए, तूफान आए; ये बंधन टूटे नहीं।
कई बार देश आंतरिक और बाह्य दोनों दुश्मन शक्तितयों से जूझता रहा। लेकिन परंपरा की धैर्य और देशवासियों की एकता के मूलमूत्र ने देश की नींव को हिलने नहीं दिया। यहां की गंगा-जमुनी तहजीब सदा के लिए लोगों की मिसाल बनती गई। इस मिसाल को नेस्तनाबूद करने की हजार कोशिशों ने भी मिलकर इसका बाल बांका नहीं किया।
बाढ़, भूकंप, अनावृष्टि, अतिवृष्टि से जूझने वाला देश इस तरह के प्राकृतिक आपदाओं से लोहा लेने का आदी हो चुका था। चेचक, हैजा, मलेरिया से देश निजात पा चुका था। डेंगू और चिकुनगुनिया पर देश काबू पाने की जो जीतोड़ मेहनत कर रहा था, काफी हद तक इस पर देश के वैज्ञानिकों ने अपने शोधतंत्र के जरिए निदान खोजने की कोशिश की। और हम सफल भी रहे। लेकिन........
‘’लेकिन क्या सर’’, - रोहन जगदाले ने जब बड़ी बेताबी के साथ सवाल पूछा तो प्रोफेसर दीनानाथ ने अपनी मंद पड़ी आवाज को तेज करते हुए कहा, ‘’कोविड 19 से पूरी दुनिया तबाही के मंजर का सामना कर रही है। अपना देश भारत भी इसकी चपेट की ओर उसी तेजी के साथ बढ़ रहा है। यह कोविड 19 कोरोना वायरस के नाम से विश्व भर में प्रचलित है। इस पर नियंत्रण के लिए विश्व एक साथ जुटा है। भारत की जनसंख्या चीन के बाद सबसे ज्यादा है। चीन से शुरू हुआ यह प्रकोप हमारे देश को भी लीलने के लिए तैयार बैठा है। लेकिन इसका सामना हम कैसे कर सकते हैं? जब पूरा विश्व लाचार सा दिख रहा है तो फिर भारत जैसा विशाल देश जहां संसाधनों की कोई बहुलता ही नहीं है।‘’
फिर...के जरिए अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए फिर रोहन जगदाले ने सवाल किया।
‘’फिर क्या.. भारत एक मजबूत देश है। इसके इरादे चट्टान से है। भारत जब भी कुछ चाह लेता है तो वह करकर दिखाता है। हम इस कोविड 19 को भी मात देंगे।‘’
प्रोफेसर दीनानाथ ने अपने छात्रों के सामने बड़ी धैर्यता के साथ अपनी बात रखी।
तभी उषा किरण ने सवाल किया, ‘’सर कैसे हम इस भयंकर बीमारी से निजात पा सकते हैं। हम तो खुद दो-दो मीटर की एक दूसरे से दूरी बनाकर बैठे हैं। लोग डर से घर से बाहर नहीं निकल रहें हैं। सब सहमे हुए हैं।‘’
प्रोफेसर ने समझाते हुए कहा, ‘’लोग ठीक कर रहे हैं, जो घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं। हम भी यहां ठीक कर रहे हैं जो दो-दो मीटर की दूरी बनाकर अध्ययन करवा रहे हैं। आप लोग आगे चलकर मेडिकल की स्टूडेंट बनने वाली हैं। और इस देश को होनहार डॉक्टरों की सख्त जरूरत है। इसलिए हमारी और आपकी जिम्मेदारी बनती है कि देश के लिए अध्ययन भी करें और अध्यापन भी। जब कोई चीज देश से जुड़ जाता है तो यही देशभक्ति में तब्दील हो जाती है। अगर हम इसलिए पढ़ा रहे हैं कि आगे चलकर ये छात्र देश की संपत्ति की तरह देश के लोगों के काम आएं तो हमारी पढ़ाई और आपका डॉक्टर बनना सार्थक है।‘’
उन्होंने आगे कहा, ‘’हम कुदरत के साथ जिस तरह से खिलवाड़ कर रहे हैं, वैसी परिस्थिति में हर क्षेत्र में वैसे लोगों की सख्त जरूरत है, जो देश की संपत्ति बनने के लिए खुद को तैयार करें। आप भी अपने सहपाठियों और घरों में अपने छोटे भाई-बहनों और रिश्तेदारों में इस सीख को प्रेरणा की तरह विकसित करें। तभी देश फिर से देश बन सकता है। इक्वीसवीं सदी में जाकर भेदभाव के जहर से देश को मारने पर अगर कुछ लोग तुले हैं तो इसका निदान और काट हमें ही
निकालना पड़ेगा। अगर हम ऐसा नहीं कर सके तो फिर दोष दूसरे के गले मढ़ने का हमें कोई अधिकार नहीं है।‘’
प्रोफेसर ने अपनी मूल बात पर लौटते हुए कहा, ‘’हम बात कोरोना की कर रहे हैं। कोरोना का सिर्फ रोना रोने से कुछ नहीं होगा। हमलोग इसकी गंभीरता को समझे और लोगों को समझाएं कि अकारण कोई घर से बाहर न निकले। हफ्ते भर के लिए खुद को घर को समर्पित कर दे। सोचे देश ने होली डे मनाने का एक ऑफर दिया है। एक साथ परिवार के साथ उमंग व उल्लास से साथ रहें। पड़ोसी से दिल मिलाए रखें लेकिन हाथ मिलाने से बचे।‘’
‘’ सर एक हफ्ताह घर में रहना बोरिंग है। यह तो अपने आपको नजरबंद करना हुआ?‘’- स्मृति ने तपाक से कहा।
जवाब हाजिर था। प्रोफेसर दीनानाथ ने कहा, ‘’जब हम विदेशों में नौकरी करते हैं और एक पखवाड़े या हफ्ताह के लिए अपने वतन लौटते हैं तो कैसे जी लगता है कि बस घर वालों के ही होकर रह जाएं। बस इसी भाव को अपने अंदर लाना है। और एक हफ्ते के लिए घर से बाहर निकलना बंद।‘’
‘’लेकिन इसमें देशभक्ति क्या है’’, संजय ने बड़ी भावुकता से सवाल पूछा। तभी दीपिका ने हाथ उठाते हुए कहा, ‘’सर इस पुरक प्रश्न का मैं उत्तर देना चाहूंगी।‘’ तभी अचानक तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी।
दीपिका ने कहा, ‘’भारत एक विशाल देश है। यहां दूसरे देशों की तरह तमाम तरह की सुविधाएं नहीं हैं। यहां की विविधता भी इसे कई अन्य देशों से इसे अलग करता है। देश घनी आबादी का धनी है। यहां 70 फीसदी किसान और मजदूर हैं। वे शिक्षा और उसके प्रति सजग रहने की कला और हुनर की निपुणता की कमी के शिकार हैं। ऐसी परिस्थिति में जागरूकता ही मात्र एक हथियार है। और उससे भी बड़ा हथियार संयमित रहना, सतर्क रहना है। देश के सामने इस विशाल बीमारी से बचने का एक उपाय भीड़ को कम करना है। प्रदूषण कम करना है। शोर कम करना है। जब हम घर से बाहर निकलेंगे ही नहीं तो फिर ध्वनि कहां से होगी? प्रदूषण कहां से होगा? बीमारियां एक दूसरे से कैसे फैलेंगी? अगर हम इस बीमारी को इस तरह से रोक पाते हैं तो देश को बहुत बड़े नुकसान और मानव-संसाधन की क्षति से भी मुक्त कर सकते हैं। देश के संसाधन को बचाना देशभक्ति है न? इसलिए हमलोग मिलकर इस अभियान को रंग देने की कोशिश करें तो यह रंग किसी देशभक्ति के रंग से कम नहीं होगा। देश को बचाना है तो खुद को बचाना होगा। खुद को बचाना और तो अपनों को बचाना होगा और इसका एक मात्र उपाय है भीड़ से बचना।‘’
सबने इस संकल्प को पूरा करने की शपथ के साथ जोरदार ताली बजाई और देशभक्ति के रंग से भाव-विभोर होकर अपने श्रीमुख से गुनगुनाने लगे एक साथ- ‘’हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब।‘’
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं दूसरा मत के संपादक हैं।)
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