गुरु शब्द अपने आप में अमूल्य और अनंत है। गुरु की महिमा अपरंपार है—सतयुग से कलियुग तक गुरु अपने शिष्यों और भक्तों के साथ निरंतर उपस्थित रहे हैं। गुरु की महिमा का वर्णन युगों से होता आ रहा है, ठीक वैसे ही जैसे गंगा का पावन प्रवाह निरंतर बहता रहता है। देवताओं से भी पहले गुरु की वंदना की जाती है, क्योंकि गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान शाश्वत, सत्य और सनातन धर्म का आधार होता है।
जीवन के मार्ग में बिना गुरु के गति पाना असंभव है। समय की धारा भी गुरु के मार्गदर्शन से ही प्रवाहित होती है। कई बार यह प्रश्न मन में उठता है कि क्या प्रत्येक प्राणी के जीवन में गुरु का होना अनिवार्य है? इसी प्रश्न का उत्तर खोजने और गुरु की महिमा, सत्संग एवं सहसंग जैसे अमूल्य ज्ञान को साझा करने का प्रयास इस पुस्तक के माध्यम से किया गया है।
इस अनूठी पुस्तक "गुरुशरण सुखदाई" का श्रवण और अध्ययन न केवल आपके जीवन को कष्टों से मुक्त करेगा, बल्कि एक नई दिशा भी प्रदान करेगा। यह कथा हर जीवन में अपनी विशेष भूमिका निभाती है। अतः आप स्वयं इसे पढ़ें और दूसरों को भी इसे पढ़ने के लिए प्रेरित करें।
आशा है कि आपको गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होगा और यह कहानी आपके हृदय को अवश्य छू लेगी।
जय श्री कृष्ण।
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