श्री प्रेमानंद जी महाराज की महिमा एक ऐसी यात्रा है जो हृदय को छूती है और आत्मा को प्रेरित करती है। यह पुस्तक एक साधारण गाँव के बालक, कहानी बयान करती है, जो अपने भीतर जागी एक छोटी सी चिंगारी के साथ भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी की खोज में निकल पड़ा। आखरी गाँव से लेकर वाराणसी, मथुरा और वृंदावन तक का यह सफर कठिनाइयों, विश्वास और अटूट भक्ति से भरा है।
महाराज जी का जीवन हमें सिखाता है कि चाहे कितनी भी चुनौतियाँ आएँ, प्रेम और श्रद्धा के साथ हर बाधा पार की जा सकती है। इस पुस्तक में उनकी आध्यात्मिक यात्रा के साथ-साथ वह चमत्कार भी है, जहाँ गंभीर बीमारी के बावजूद वे श्री कृष्ण और राधा रानी के आशीर्वाद से आज भी जीवित हैं
— एक जीता-जागता प्रमाण कि अंत ही शुरुआत है।
द्विभाषी शैली (हिंदी और अंग्रेजी) में लिखी यह रचना हर पाठक को शांति, प्रेरणा और भक्ति की ओर ले जाती है। महाराज जी की कथा सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि जीवन का एक सबक है—जो हमें याद दिलाती है कि सच्चा सुख भीतर की शांति में बसता है।
" राधे - राधे ! "
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