हर रिश्ते, हर बात, हर खुशी हर दर्द के “मायने” खोजते खोजते जिंदगी कब हांथों से फिसल जाती है, पता ही नहीं चलता। क्यूं? कैसे? कि सलिए? जिंदगी हर पल सिर्फ इन्हीं प्रश्नों का कौर तोड़ती रहती है और गुजरती रहती है। क्या जरूरी है हर रिश्ते का कोई कारण होना, कोई नाम होना, कोई बेंच मार्क होना। क्यूं आखिर ये? प्रश्न वाचक चिन्ह क्यूं। हर रिश्ते के होने, ना होने की वजह क्यूं?