झूठ बोलोगे?

हास्य कथाएं
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झूठ बोलना, जो बात जैसी है उसे वैसे ना बताकर कुछ और बताना, झूठ, हम सब इस बात से भी सहमत है कि झूठ बोलना सही नहीं है।


पर कोई झूठ क्यों बोलेगा, जो बात जैसी है, उसे वैसी ना बताकर अलग क्यों बताएगा, क्यों बस जैसी है वैसी ना बता दे, असल में झूठ बोलने के कुछ ही कारण हो सकते हैं, जैसे मस्करी करने के लिए, धोखा देने के लिए और कोई रास्ता ना बचने की वजह से।


सर्वा एक वयस्क, कॉलेज का छात्र है, जो समाज के हिसाब से एक अच्छा लड़का है, पर इसने अपनी जिंदगी में कई झूठ बोले है, सामान्यतः ये अपने मां-बाप से झूठ बोलना टालता है, क्योंकि ये लगभग एक अच्छा लड़का है, किसी प्रकार के नशे-पानी का सेवन ये करता नहीं है और "लड़की के चक्कर" के बारे में मां-बाप पूछते नहीं है, पैसे तो खुद ही कमाता है तो चोरी करने की जरूरत पड़ती नहीं है। इसलिए झूठ बोलने का मौका पड़ता नहीं था, तो ये झूठ बोलता नहीं था, जो चीज जैसी है वैसी ही बता देता था।


आजकल ये कहीं बाहर शहर में रह रहा था, पढ़ाई और इसके नए शुरू किए गए व्यापार के सिलसिले में, इंदौर में।


सर्वा को अपने पुराने दोस्तों के साथ उसी छात्रावास मैं रहना था जिस छात्रावास में उसके पुराने दोस्त रह रहे थे, व्यापार के सिलसिले में, पर वह उस कॉलेज का नहीं था जिस कॉलेज के उसके दोस्त थे, सलाह-मशविरा के बाद यह तय हुआ कि सर्वा उसी हॉस्टल में रहेगा जिसमें उसके दोस्त रह रहे थे, किसी और के नाम के दस्तावेज जमा करके जो उसी कॉलेज का होगा जिस कॉलेज के सर्वा के दोस्त भी थे।


फिर किसी और के दस्तावेज़ की तलाश शुरू हो गई, कोई मान नहीं रहा था, पर फिर, सर्वा और उसके दोस्तों का ही पुराना दोस्त जो उसी कॉलेज का था, सर्वा को कहता है, "तू हॉस्टल में रह ले, मैं अपने भैया के साथ कमरे में रहूंगा"।


सब राज़ी हो गए, दस्तावेज जमा कर दिए गए विष के नाम के, और सर्वा ने महज 12000 की फीस भी भर दी, अगले 6 महीने की, हॉस्टल में विष के नाम से। सब कुछ सही हो गया। पर अगले 1 महीने में यह बात पूरे हॉस्टल में आग की तरह फैल गई, जब हॉस्टल के प्रधान को यह बात पता चली तो उसने सर्वा से कहा, "या तो अभी के अभी तू निकल जा, या में पुलिस को बुला लेता हूं"।

जब सर्वा वहाँ से निकला तो उसने बगल वाले प्राइवेट हॉस्टल में अपना नाम दर्ज करवाया और वहाँ रहने लगा। वहाँ और यहाँ दोनों हॉस्टल में फीस तो लगभग बराबर ही थी, पर पुराने हॉस्टल में फीस जमा हो चुकी थी और अब तो वापस मिलने से रही, तो फिर यह तय हुआ कि अब विष जिसके नाम से दस्तावेज जमा हुए थे, अब वह हॉस्टल में रहेगा और सर्वा को बचे महीने के पैसे दे देगा।


इसी बीच पता चलता था कि विष तो अभी तक इंदौर आया ही नहीं, वह तो गाँव में ही है और इंदौर ना आने का कारण किसी को बताना नहीं चाहता, दोस्तों ने किसी तरह से समझा-बुझा कर, उसे इंदौर आने के लिए मनाया और सर्वा के पैसों के बारे में सब बताया।


सर्वा ने घर से 1 महीने के पैसे मांग लिए और घर वालों को भी यह बोल दिया और घर वालों ने भी यह बोल दीया कि "अगले महीने तो पैसे उस लड़के से ले लेना, तो घर से लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी।"


अब जब सर्वा ने विष से बोला की "पैसे दे देना यार" , तो विष ने बोला कि "पक्का दे दूंगा"। इस बात को सुनकर, घरवालों के बार-बार पूछने पर, सर्वा ने घर में बोल दिया, "विष ने पैसे दे दिए हैं"। इस प्रसंग की शुरुआत ही झूठ से हुई थी, झूठ से हुई कहानी और झूठ बुनते जा रही थी।


इसी बीच खबर मिली कि विष हॉस्टल में दोस्तों से पैसे उधार ले रहा है, सर्वा को पैसे बड़ी मुश्किल से आधे-थोड़े करके दे रहा था, पर पैसे उधार भी ले रहा था। जब पूछा तो बोला "कुछ नहीं यार, छोड़ो" और बताया नहीं क्यों?


सर्वा घर से पैसे नहीं ले सकता था, क्योंकि घर में झूठ बोल चुका था, विष सर्वा को मुश्किल से पैसे दे रहा था, क्योंकि वह भी सर्वा से झूठ बोल रहा था। सर्वा को नए हॉस्टल का प्रधान परेशान कर रहा था, अगले महीने की डिपॉजिट के लिए।


बाद में पता चलता है कि विष ने बहुत से लोगों से पैसे उधार लिए थे और उनको पैसे वापस करने के लिए वह और उधार लिए जा रहा था, यही वह सर्वा से छुपा रहा था और झूठ बोले जा रहा है, अंत में सर्वा को उसने महीने के डिपॉजिट लायक पैसे दे दिए। बहुत समय तक विष सर्वा को, जितने लोगों से पैसे लिए थे उनको, और बहुत से अज़ीज़ों से झूठ बोलता रहा, सर्वा भी कई लोगों को झूठ बोलता रहा। इसी वजह से सब मुसीबत में फसे रहे।


झूठ, झूठ और झूठ, एक झूठ बोलने के बाद आदमी उसमें उलझता जाता है, सब को परेशानी होती है और झूठ की कमजोर दीवार बनती रहती है, पर फिर अचानक से लोगों को जब वह दीवार दिखती है, तो सब टूट जाता है, दीवार, भरोसा, रिश्ता, घर और भी कोई चीजें।


मस्करी के लिए झूठी ठीक है, अगर मस्करी सेहतमंद हो तो, पर धोखा देने के लिए नहीं, एक बार तकलीफ हो अच्छा, पर हर पल कैसे सहोगे। जब कोई आखरी रास्ता ना बचे और झूठ बोलना पड़ जाए, तो कोशिश करो हिम्मत करके सच बोलने की।


2 मिनट का झूठ जिससे सब ठीक हो जाए, किसी का बहुत फायदा हो, तो झूठ चलता है, पर लंबे झूठ में उलझना खुद के साथ बेईमानी है।


असल में झूठ बोलते समय पूरी गलती झूठ बोलने वाले कि नहीं, बल्कि उससे सवाल पूछने वालों की भी है, जब आप किसी पर अड़चनों और सवालों का बोरा लेकर चढ़ जाते हो, तो उसके पास झूठ बोलने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता।

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