JUNE 10th - JULY 10th
कहानी
प्रमोशन
ट्रिंग ऽऽऽ ... अलार्म घड़ी मिष्ठी को जगा रही थी। मिष्ठी ने आँखे बंद किये हुए अलार्म बंद किया, लेकिन तभी मोबाईल पर मैसेज अलर्ट सुनकर उसे आँखें खोलनी पड़ी। उसने मोबाइल उठाकर देखा। अतुल का मैसेज था ’गुड मॉर्निंग।’
मिष्ठी मुस्कुरा कर बिस्तर से उठ गई। अतुल कभी अपना नियम नहीं तोड़ता। दो महीने पहले उनकी मुलाक़ात हुई थी और आज वो दोनों अच्छे फ्रेंड्स बन चुके हैं। अतुल हर सुबह मिष्ठी को जगाने के लिए ‘गुड मॉर्निंग’ ज़रूर करता है।
आज भी अतुल के बारे में सोचते हुए अपनी ग्रीन टी के साथ वो बालकनी में आ गई। बसंती हवा के नाज़ुक से झोंके के साथ उसे धूप भली लग रही थी। उसने लम्बी सांस लेकर हवा के साथ रौशनी का एक कश खींच लिया। उनींदी आँखें पूरी तरह खुल गई।
उसे सुबह का ये समय बहुत अच्चा लगता है जब रौशनी और ‘सूदिंग’ सी हवा धीरे - धीरे उसकी साँसों में घुलती है।
वैसे आजकल उसे सब कुछ अच्छा ही लगता है। भविष्य में जब पीछे मुड़कर इस साल को देखेगी तो एक मुस्कराहट ज़रूर आएगी।
रिटायरमेंट के बाद इसी साल जनवरी में मम्मी - पापा उसके पास रहने आ गये थे, उसका ‘इयरली असेसमेंट’ बहुत अच्छा हुआ था, जिसकी वजह से ‘प्रमोशन’ की उम्मीद बढ़ गई थी और हाँ, अतुल से भी इसी साल मुलाक़ात हुई थी।
मिष्ठी को याद आ गया वो दिन, जब ‘लंच टाइम’ में सब खाना ‘आर्डर’ कर रहे थे। मिष्ठी का मन ‘एसी’ और ‘कृत्रिम लाइट्स’ से निकलने के लिए मचल रहा था। और दिन तो वो भी चुपचाप ऑफिस में ही खा लेती थी, लेकिन आज खाना आर्डर करने के बजाय बाहर जाकर खाने का मन था।
तभी ‘ऑफिस कलीग’ मैरी ने उससे पूछा,”तुम्हारे लिए क्या आर्डर करूँ?”
उसने मैरी से पूछा,”बाहर चलें?” लेकिन मैरी की एक ‘इम्पोर्टेंट कॉल’ आने वाली थी।
कुछ सोचकर मिष्ठी अकेली ही बाहर आ गई। सामने ‘स्पोर्ट्स क्लब’ की चहल - पहल थी और इधर ‘रेस्टोरेंट्स’ में ‘लंच टाइम’ की रौनक थी। कोने वाले रेस्टोरेंट की ओर उसके कदम खुद बढ़ गए, लेकिन वहां भी काफी भीड़ थी। किस्मत अच्छी थी जो पांच मिनट इंतज़ार के बाद ही उसे टेबल मिल गई। खाना सामने आया तो उसे महसूस हुआ कि वो काफी भूखी है। वो सर नीचे किये हुए खाने में व्यस्त हो गई।
तभी एक आवाज़ ने उसे चौंका दिया “अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो मैं यहाँ बैठ जाऊं?”
मिष्ठी के सर हिलाने पर वो युवक बैठते हुए बोला,”थैंक यू, आप ने मुझे ‘वेटिंग’ से बचा लिया।”
मिष्ठी ने कहा,”इट्स ओके।“
वो युवक बैठ गया। मिष्ठी ने खाना ख़त्म करते हुए देखा, उसकी ‘आर्डर’ भी आ गया था।
जाते वक़्त वो युवक बड़ी आत्मीयता से मुस्कुराया था। शायद हाथ भी हिलाया था। इसमें कुछ ख़ास नहीं सिर्फ़ शिष्टाचार था।
बाद में कई बार वो युवक मिष्ठी से उसी रेस्टोरेंट में टकराया। कई बार उन्होंने टेबल भी शेयर की।
उस युवक का नाम अतुल था और दोनों के ‘ऑफिस’ बहुत पास थे।
इसी तरह ‘लंच टाइम’ में मिलते - मिलते दोनों की दोस्ती गहराती गई। खाने पर चर्चा के नाम से उन लोगों की बातें ‘ऑफिस’ की ‘पॉलिटिक्स’, ‘फ्यूचर प्लानिंग’, ‘क्रिकेट मैच’ और फ़िल्मों तक पहुंच जाती।
एकाध बार अतुल ने साथ फ़िल्म देखने का प्रस्ताव भी रखा था, लेकिन मिष्ठी बहाना बनाकर टाल गई थी। मन में सोचा था, ”अब इतना भी नहीं आगे बढ़ना।”
लेकिन उम्मीदों के इस साल ने रुकना सीखा ही नहीं था। कई बार की टालमटोल के बाद आख़िर एक दिन मिष्ठी को फ़िल्म देखनी ही पड़ी। गई तो बेमन से थी, लेकिन ‘हॉल’ में बैठकर ‘सुपर हीरोज़’ के हर करतब पर अतुल का रोमांच देख हंसी आती रही।
ये जानकर उसे अच्छा लगा कि अतुल उन लोगों में से था, जिनके अन्दर हमेशा एक बच्चा ज़िंदा रहता है।
बच्चे की तरह ही मिष्ठी के जन्मदिन पर भी मचला था अतुल। ‘ट्रीट’ के लिए तो ऐसा उतावला था कि सुबह से ही मिष्ठी के फ़ोन पर हर घंटे एक ‘रिमाइंडर मेसेज’ आने लगा था।
लंच टाइम में मिलने पर दूर से ही बोला, ”मेरी ट्रीट!” तो मिष्ठी ने रेस्टोरेंट की ओर बढ़ते हुए कहा था,”आईएम रेडी। आज आर्डर तुम्ही करना।“ अतुल मचलते हुए बोला,”नहीं – नहीं, यहाँ नहीं, ये भी कोई ‘ट्रीट’ देने की जगह है।”
मिष्ठी ने मुस्कुराते हुए पुछा,”तो कहाँ चलें, तुम्ही बताओ।“
इस पर अतुल उसे एक नामी और महंगे रेस्टोरेंट में लाया, जहाँ सब कुछ उम्मीद से कहीं ज़्यादा था। अतुल ने ‘केक आर्डर’ कर रखा था।
वो हैरानी दबाकर केक काट रही थी कि तभी रेस्टोरेंट के ओर्केस्ट्रा ने ‘हैप्पी बर्थ डे’ गाना शुरू किया। उस पर जब खाते वक़्त गिटारिस्ट ने उनकी टेबल के पास आकर मिष्ठी का फ़ेवरेट गाना बजाना शुरू किया, तो मिष्ठी जैसे स्वप्नलोक में पहुँच गई।
रेस्तरां में दिन की रौशनी की कमी पूरा करती कई रंग-बिरंगी लाइट्स जगमगा रही थीं। संगीत था और अतुल था, जो मिष्ठी को हैरान करके बहुत खुश हो रहा था।
जब मिष्ठी ने वेटर को बुलाकर बिल लाने के लिए कहा तो पता लगा बिल ‘पेड’ है। उस वक़्त तो अतुल की ख़ुशी देखते ही बनती थी।
उस रात मिष्ठी ने बहुत दिनों के बाद सपने में अपना ‘फेयरीलैंड’ देखा। जागने पर मिष्ठी थोड़ी हैरान थी। सपने में सब कुछ रेस्तरां जैसा था, तो क्या अतुल उसका ‘प्रिंस चार्मिंग’ है?” मिष्ठी ने सोचा और मुस्कुराकर खुद से बोली, ‘लेट्स सी।’
मिष्ठी के जीवन में ऐसा मौसम आया था कि दिन गुलमोहर से महकते और रातें हरसिंगार की खुशबू से भीनी - भीनी महकती। छुट्टी होती तो मिष्ठी की सहेलियां बाहर जाने का प्लान बनातीं। सब साथ बैठकर कहकहे लगाते। भविष्य की योजनाएं बनतीं। किसी की शादी तय होती, तो सबकी सब मिलकर जश्न मनातीं। ऐसे में कभी अचानक मिष्ठी को अतुल का ख़याल आ जाता और वो मुस्कुराकर सोचती ‘लेट्स सी।‘
मार्च बीत चुका था। अब ‘प्रमोशन’ की लिस्ट किसी भी दिन आ सकती है। मिष्ठी सोचती तो रोमांच हो आता। और फिर वो दिन आ गया।
मिष्ठी को जैसे ही ‘प्रमोशन’ की ख़बर मिली वो उठकर खिड़की के पास आयी। जी हुआ पंख खोलकर आसमान में उड़ जाए, लेकिन खिड़की पर कांच लगा था। तो क्यों न ज़ोर से गाते हुए नाच ले, लेकिन ऑफिस में ये करना ठीक नहीं। तो क्या करें। चलो फ़ोन पर ही ये ख़ुशी बांटी जाए।
उसने घर फ़ोन किया तो माँ पा की आवाज़ का उत्साह छलककर उसके मन में समां गया। पर जी नहीं भरा। कुछ सोचकर उसने अपनी ‘बेस्ट फ्रेंड’ माही को भी फ़ोन पर बता दिया। ख़ुशी की एक और लहर उसे सर से पाँव तक डुबो गई, लेकिन मन अभी भी भरा नहीं था, ”बार बार अतुल के नंबर तक पहुंचती उसकी उँगलियाँ थम जातीं। उसे फ़ोन करे या नहीं? मिष्ठी ने सोचा,”वैसे ‘प्रमोशन’ तो उसका भी ‘ड्यू’ है। हो सकता है उसका फ़ोन आने वाला हो। ‘लेट्स सी।‘
उस रोज़ मिष्ठी अतुल का इंतज़ार करती रही, लेकिन लंच पर नहीं आया। मिष्ठी ने फ़ोन किया तो फ़ोन भी नहीं उठाया।
ये पहली बार हुआ था। हो सकता है ऑफिस में अपने ‘प्रमोशन’ की पार्टी रखी हो। लंच के बाद ऑफिस लौटते हुए मिष्ठी ने अतुल को मेसेज किया,”कहाँ हो? शाम को मिलते हैं।”
वो शाम, शाम जैसी नहीं लगी। अतुल मिला, लेकिन मिष्ठी को लगा जैसे वो कोई और हो। अतुल ज़रूरत से ज़्यादा चुप था। ये देखकर मिष्ठी ने इधर-उधर की बातें करते हुए ‘प्रमोशन’ के बारे पूछा तो व्यंग्य से हंसकर उसने कहा,”एक लड़की से मात खा गया।”
मिष्ठी ने पूछा,”मतलब?”
अतुल उसी कड़वे लहजे में बोला, ”मतलब मेरी ‘कलीग’ मेरी ‘बॉस’ बन गई।”
मिष्ठी ने हैरानी से पूछा,”तुम्हे प्रमोशन नहीं मिला?”
अतुल ने तल्खी से जवाब दिया, ”मिला न, सेलरी बढ़ गई, ‘जॉब रोल’ बदल गया।”
मिष्ठी ने और भी हैरानी से कहा, ”तो? प्रमोशन हुआ न?” अतुल ने तेज़ स्वर में कहा,”अपने ‘कलीग’ को ‘बॉस’ कहना है। एक लड़की को! ये ‘प्रमोशन’ नहीं ‘डिमोशन’ है। मैं भी उसकी तरह काम करता हूँ। बस फ़र्क ये है कि वो ‘फीमेल’ है।”
मिष्ठी अतुल की मनःस्थिति समझ रही थी, इसलिए वो चुप रही। अतुल ने और भड़ास निकाली,”दिखाए होंगे बॉस को लटके झटके और हथिया ली पोस्ट। ये लड़कियां होती ही ऐसी हैं।”
मिष्ठी चौंक गई। स्वप्न लोक में थरथराहट हुई, लेकिन फिर भी वो चुप रही।
अतुल फिर ज़हर बुझे स्वर में बोला,”मैं भी बेकार तिलमिला रहा हूँ। ये तो होता ही है। इस हाथ दे, उस हाथ ले। बॉस ने ‘प्रमोशन’ दिया। अब वो बॉस को और ‘एंटरटेन’ करेगी। मुझसे भला ये फ़ायदा कहाँ मिलता। छोड़ो, तुम सुनाओ। तुम्हें प्रमोशन मिल गया?”
मिष्ठी अतुल के दुखते मन को चोट नहीं पहुंचना चाहती थी, लेकिन उससे झूठ नहीं बोला गया।
सुनते ही अतुल का चेहरा उतर गया। उसने मिष्ठी को अजीब नजरों से देखा और बोला, ”मैं जानता था। तुम्हें ‘प्रमोशन’ मिल ही जाएगा।“
बधाई न सही, लेकिन इतनी फीकी प्रतिक्रिया के लिए मिष्ठी ज़रा भी तैयार नहीं थी। स्वप्नलोक कुछ धुंधला सा हो गया।
इसके बाद से सब बदल गया। अब वो कभी - कभी लंच के समय मिलते तो अतुल ऑफिस में हो रही बेइंसाफ़ियों पर कुढ़ता रहता। वो अपनी बॉस को भला-बुरा कहता और उसके चरित्र पर किसी न किसी बहाने लांछन लगाता। और फिर मिष्ठी को भी “तुम लड़कियां“ कहकर कोई न कोई ताना दे ही देता।
लेकिन उस दिन तो हद ही हो गई। मिष्ठी जब रेस्टोरेंट में पहुंची तो अतुल पहले से ही वहां बैठा था। उसे देखते ही बोला,”क्या बात है। आज तो ग़ज़ब की ‘शाइन’ कर रही हो।”
मिष्ठी मुस्कुराते हुए बोली,”अच्छा? मैं तो सीधे मीटिंग से आ रही हूँ। आज ‘प्रेजेंटेशन’ थी न?”
अतुल ने पूछा,”बॉस भी होंगे?”
मिष्ठी बोली,”हाँ, वो तो रहते ही हैं।”
अतुल तपाक से बोला,”बस ये ‘स्माइल’ और ये ‘स्टाइल’ बरकरार रही, तो ‘ट्रस्ट मी’, तुम्हें साल भर के अन्दर ही दूसरा ‘प्रमोशन’ मिल जाएगा।“
मिष्ठी ने चौंककर अतुल की ओर देखा। अतुल अपनी प्लेट को देख रहा था। मिष्ठी के मन में आया कह दे कि ‘ऐसी बात क्यों कही जाए जो नज़रे चुरानी पड़ें।‘ पर वो चुप रही।
उस दिन लंच में ख़ामोशी परोसी गई थी, शायद इसीलिए अतुल एक लफ्ज़ नहीं बोला और मिष्ठी से कुछ बोला ही नहीं गया।
उस दिन उदास शाम बहुत सकुचाते हुए आयी। अतुल का इंतज़ार किये बिना मिष्ठी घर लौट आयी।
अगले दिन ‘गुड फ्राइडे था’। मिष्ठी माँ पापा के साथ फ़िल्म देखकर लौटी तो मन काफी हल्का लग रहा था। लेकिन तभी ‘वाट्सअप’ पर अतुल के ‘वाइस मैसेज’ देखे, जिन्हें सुनकर उसका मन फिर भारी हो गया, ’वेयर आर यू? नॉट इवन आंसरिंग माय फ़ोन। आई थिंक दिस इज़ अ वीकेंड स्पेशल विथ बॉस। एन्जॉय।“
अतुल की कड़वाहट हर शब्द में घुली थी। असमंजस समाप्त हो चुका था। ‘फेयरीलैंड’ टूट चुका था। मिष्ठी ने तय किया ‘अब लंच ऑफिस में ही मंगा लूंगी। शुक्र है ऑफिस में विज़िटर्स के आने की अनुमति नहीं है ... और, ऑफिस आने - जाने के लिए पापा की कार ले लूंगी।‘
और उसने मोबाइल पर अतुल का नंबर ‘ब्लॉक’ कर दिया।
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revaagrawal4
कहानी अच्छी लिखी गयी है
vicky78
Achi kahani
umeshsinghrathore.1988
Description in detail *
Thank you for taking the time to report this. Our team will review this and contact you if we need more information.
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