farishta

रोमांस
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‘‘आपको पता है, जीशान ने शादी कर ली है’’!

‘‘क्या? कैसे? कब? लेकिन वो ऐसाकैसे कर सकता है’’?
जिसने भी सुना यही सारे सवालों की गोलियां दागने लगा. किसी की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था. हर कोई, हर किसी से यह सवाल पूछता, मगर जवाब में हर एक आश्चर्य व्यक्त करता, लेकिन मोना ‘काटो तो खून नहीं.’ वाली हालत में थी.जीशान ने क्या वाकई शादी कर ली? लेकिन नहीं वह ऐसा कर ही नहीं सकता! वो ऐसा कर कैसे सकता है? मोना के सामने सबसे बड़ा सवाल था कि वह ‘किससे’ सवाल करे?
बात तब की है जब मोना हमारे दफ्तर में नौकरी के लिए आई थी. सुडौल कसा हुआ बदन, बड़ी-बड़ी आंखें, गोल लुभावना चेहराऔर रंग एकदम साफ, बल्कि यूँ लगता जैसे गुलाबी रंग का गुलाब है जिसे छू लिया जाए तो वह सकुचाकर रक्तिम लाल हो जाए. मुझसे छोटी होने के कारण मुझे दीदी कहकर पुकारती, जो कि मुझे पसंद भी था. हर कोई मैडम-मैडम कहकर सम्बोधित करता था. दीदी का सम्बोधन मुझे आत्मीय लगता है, सो मैं भी सहर्ष उस अंजान सी लड़की को अपनी छोटी बहन सा अपनत्व देने लगी. धीरे-धीरे वो मेरे काफी करीब आ गई. अपने घर-परिवार की छोटी-छोटी बातें बे हिचक मुझे बताने लगी. राज़दार बातों को बताने का सिलसिला शुरू हुआ. एक दिन अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी घटना बताते हुए कहने लगी-
‘‘उन दिनों मैं पंद्रह साल की थी. जिस स्कूल में पढ़ती थी, उसी स्कूल में रमेश भी था. बहुत ही खूबसूरत. माँ बाप का इकलौता और अमीर बाप की बिगड़ी औलाद, पर मुझे वह अच्छा लगता था. धीरे-धीरे पता भी नहीं चला कि कब वह मेरे दिलों-दिमाग पर छा गया. एक दिन भी अगर वह स्कूल नहीं आता तो मैं बेचैन होने लगती और दूसरे दिन पागलों की तरह वक्त से पहले स्कूल पहुंच कर उसका इंतज़ार करती. ऐसा क्यों हो रहा था मेरे साथ मुझे नहीं मालूम.दिन-रात उसी की ख्यालों में रहने लगी.

धड़कन जैसे उसी का नाम लेकर धड़कती, हर आती-जाती सांसें उसी की तलबगार थीं. रफ्ता-रफ्ता मेरी हालत की खबर पूरे स्कूल में फैल गई. अब रमेश भी मुझे चाहने लगा. हमारी चाहत इतनी बढ़ी कि हम दोनों ने घर से भागने का फैसला कर लिया.किशोर-उम्र का प्यार कितना हिम्मती और ताकतवर होता है, इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता, खुद मुझे भी नहीं था. कुछ ही दिनों के किसी लड़के के प्यार की खातिर अपने मां-बाप तक के प्यार को मैंने ठुकरा दिया था.
घर से तो निकल गए मगर जाते कहां? इसी भटकाव में कुछ महीने गुजर गए. हम जो पैसे लाए थे, वो खत्म हो गए, मैं जिन गहनों को घर से ले गई थी, वो भी बिक गए. अब खाने तक के लाले पड़ गए, मगर हमारा भटकना खत्म नहीं हुआ. कभी मेरे माता-पिता और भाई का डर, कभी रमेश के माता-पिता का डर, इन सबके अलावा पुलिस का खौफ हमें कहीं भी चैन से रहने नहीं दे रहा था. बात यहीं तक रहती तो जिंदगी की दासतां कुछ और होती,पर ऐसा नहीं हुआ.
किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था. ज़िंदगी की भटकाव ने रमेश को कमज़ोर कर दिया. वह अपने पुराने रूप में आ गया. नशे की हालत में आकर अपनी बेतरतीब जिंदगी की वजह मुझे बताता. उसकी तानों से मेरे पांवों तले ज़मीन सरकती गई. ऐसा लगने लगा कि न तो मेरे कदमों तले जमीन है और न सिर पर आसमान. मैंं उसे प्यार से समझाने की कोशिश करती, कहती सब ठीक हो जाएगा. हम दोनों मिलकर सब ठीक कर लेंगे. हम एक दूसरे से प्यार करते हैं. प्यार में बड़ी ताकत होती है,पर वह मानने को तैयार नहीं, उसे अपने पिता की दौलत याद आने लगी.
एक दिन की बात है. मेरी बर्बादी और तबाही का दिन था वो. रमेश घर लौटा तो अकेला नहीं था, साथ में थे उसके पिता. मैं कुछ समझ पाती इससे पहले रमेश के पिता ने कहा-‘‘मैं अपने बेटे को ले जा रहा हूं.’’
‘‘मैं तड़प उठी- ये क्या कह रहे हैं आप? ’’
‘‘जो तुमने सुना वही कह रहा हूं’’
‘‘मगर ये क्यों जाएंगे आपके साथ’’
‘‘क्योंकि मैं लेने आया हूं’’
‘‘फिर भी रमेश नहीं जाएगा मुझे छोड़कर’’
‘‘मैं जाऊंगा’’
‘‘क्या?’’
‘‘तुम अपना देख लो, मैं अपने डैडी के साथ जा रहा हूँ’’
‘‘रमेश तुम होश में तो हो? अंदाज़ा भी है कि तुम क्या कह रहे हो? ’’
‘‘मैं जा रहा हूँ,’’ इतना कहकर रमेश अपने कपड़े सहेजने लगा. मैं कुछ समझ ही नहीं पाई कि ये सब क्या हो रहा है? मैंने रमेश को झिंझोड़ते हुआ कहा-
‘‘तुम मुझे छोड़कर जा रहे हो? कैसे जा सकते हो मुझे छोड़कर, मेरे पेट में पल रहे इस बच्चे को छोड़कर?’’
रमेश कुछ कहता इससे पहले उसके पिता ने कहा-
‘‘शादी ही नहीं हुई तो बच्चा कैसा? और फिर तुम जैसी लड़की के लिए मैं अपने बेटे की ज़िंदगी बरबाद नहीं कर सकता. ’’
‘‘मैं आवाक रह गई. रमेश के पिता की बातें मेरे कानों में लावा की तरह बह रहीं थीं. मेरे होश उड़ गए. कुछ कहती इससे पहले रमेश दरवाज़े के बाहर निकल चुका था. मेरी दुनिया लुट रही थी और मैं खड़े-खड़े देख रही थी. मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी और न ही कुछ मेरे मुंह से निकल रहा था. एकाएक दहाड़ मारते हुए रमेश के पावों पर गिर पड़ी और गिड़गिड़ाने लगी-
‘‘मुझे किसके सहारे छोड़कर जा रहे हो? मत जाओ, मत जाओ न ’’
लेकिन उसने अपने पांवों को इतनी जोर का झटका दिया कि मैं कुछ दूरी पर जाकर गिर पड़ी.
मुझे होश आया तो मैं अस्पताल के बेड पर थी. दरअसल मेरे घर के इस शोर-शराबे को मेरे पड़ोसी सुन रहे थे.रमेश और उसके पिता के जाते ही वे मुझसे मिलने आए, पर उस वक्त मैं बेहोश थी,तो उन्होंने मुझे अस्पताल पहुंचाकर मेरी मां को खबर कर दिया.

मेरी माँ,मेरा सिर सहला रही थी. मां की गोद में मुंह छुपा कर जोर-जोर से रोने लगी. फिर मुझे अहसास हुआ कि दो और हाथ मेरी पीठ सहला रहे हैं. मैं कितनी बड़ी बेवकूफ थी, मैंने समझा कि रमेश लौट आया है, झट-पलट कर देखा तो मेरे पापा थे. तब से अब तक मैं मम्मी-पापा के साथ ही हूं और साथ में है मेरा बेटा. जिस वक्त मेरा बेटा पैदा हुआ मेरी उम्र सोलह साल थी. सच में, सारी दुनिया दुश्मन हो जाए, पर माता-पिता का प्यार कभी कम नहीं होता है. इनके प्यार को ठुकराने और विश्वास को तोड़ने की बेवकूफी कभी नहीं करनी चाहिए’’
ये कहानी मुझे आज याद आ गई, इस घटना को बताए पांच साल हो चुके थे. पांच साल पहले ही मोना दफ्तर आई थी.
आज की घटना एक बार फिर दहला गई. जीशान हमारे आफिस में हेड थे. आफिस के सारे महत्वपूर्ण कामों का दारोमदार जीशान पर ही था. व्यवहार में कुशल थे,यही वजह थी कि जीशान सबके चहेते थे. मैं उन्हें भाई कहकर बुलाती थी. जीशान ज़रा आशिक मिजाज़ भी थे.सो भंवरा फूल से दूर कैसे रह सकता है? जीशान को मोना भाने लगी. फिर वही हुआ जो अक्सर होता है. मोना भी जीशान के करीब जाने लगी. चंद महिनों में ही इनका प्यार परवान चढ़ गया. दोनों ही दिलोजान से एक दूसरे को चाहते थे. मुझे तो इनका रिश्ता बेहद लुभावना लगता. प्यार में धोखा खाई हुई बच्ची को दोबारा सच्चा प्यार मिल रहा था. दोनों एक दूसरे से बेपनाह मुहब्बत करने लगे.
मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था जो एकाएक सुनने में आया कि जीशान ने शादी कर ली. मैं क्या मोना को हिम्मत देती, खुद ही इस खबर से परेशान थी. किसी तरह हमने दिन गुजारा. ड्यूटी खत्म कर जीशान के घर सच्चाई जानने के लिए निकलने ही वाली थी कि एकाएक आवाज़ आई ‘जीशान आ गए.’ मैंने पलट कर देखा जीशान मेरे सामने थे. मैंने सवालों की झड़ी लगा दी. ढ़ेरों सवालों के बीच एक ही तो सवाल था, क्या आपने शादी की? जीशान चेयर पर बैठते हुए-‘‘ हां’’
‘‘आप ऐसा कैसे कर सकते हो, मैंने चीखा.’’
‘‘मजबूरी थी, करना पड़ा’’
‘‘ऐसी क्या मजबूरी थी कि एकाएक शादी करनी पड़ी किसी और से? ऐसा कभी होता है कि प्यार किसी से और शादी किसी और से? आखिर आप समझते क्या हैं? कि मर्द जो चाहे,कर सकता है. कोई शादी करके धोका देगा और कोई प्यार करके? लड़की क्या बेजान बुत है जिसके साथ जैसा चाहे सुलूक कर लें. कितना प्यार करती है मोना आपसे, आप भी तो प्यार करते थे न मोना से. वो प्यार था कि दिखावा था? बोलिए. लानत है ऐसे धोकेबाजों पर.’’
गुस्से में न जाने क्या-क्या मैं बोलती चली गई. जीशान सिर झुकाए चुपचाप बैठे थे. आंसुओं की धार से उनकी शर्ट भीगे जा रही थी, लेकिन मेरा बड़बड़ाना बंद नहीं हुआ. मोना जो मेरी बगल वाली सीट पर बैठी थी, उसने मेरे कंधे को ज़ोर से दबाते हुए इशारा किया.
मैं चुप हो गई. सारा स्टाफरूम गहन सन्नाटे में था.ऐसा सन्नाटा मानो हम सबको निगल रहा हो,बर्दाश्त के बाहर था चुप रहना. चुप्पी तोड़ते हुए कहा-
‘‘जीशान भाई कुछ तो बोलिए. आपकी ये खामोशी हमारी जान ले लेगी.’’
जीशान धीरे-धीरे कहने लगे ‘‘कल हम एक शादी में गए थे. सब कुछ ठीक चल रहा था, ऐन निकाह से पहले दुल्हे के पास एक लड़की आई. कुछ डरी-सहमी सी. कहने लगी दुल्हन आपसे कुछ कहना चाहती है.
शोर-शराबा एकाएक थम गया. सैकड़ों की भीड़ में ऐसी खामोशी कि सुईं भी गिरे तो आवाज़ सबको सुनाई दे. दूल्हे के अब्बा ने कहा-‘‘ऐसी क्या बात है कि निकाह से पहले दुल्हन कुछ कहना चाहती है?’’
खलबली मच गई ‘‘क्या बात है.. ’’
उहापोह की हालत में कुछ लोगों ने कहा ‘‘चल कर सुन लेना चाहिए’’फिर दुल्हे को अंदर भेजा गया.
दुल्हन घूंघट को ज़रा सरका कर सिर नीचे किए कहने लगी-
‘‘मैं एक सच्चाई बताना चाह रही हूँ. धोके में रखकर मैं शादी नहीं कर सकती. मैं माँ नहीं बन सकती.टीनएज में ही किसी वजह से मेरा यूट्रेस निकाल दिया गया है. बस यही कहना था.’’
लड़के के पिता ने दहाड़ लगाई -‘‘इतना बड़ा धोका. एक बंजर लड़की को मेरे बेटे से बांध रहे थे.’’ दुल्हन के पिता और कुछ सुन पाते, इससे पहले ही गश खाकर गिर पड़े.
मेरे अब्बा ने कहा- ‘‘मां ही तो नहीं बन सकती. लड़की है, बीवी, बहू, भावज सारे रिश्ते तो निभा सकती है. सबसे बड़ी बात इसने धोका नहीं दिया, निकाह से पहले ही सच्चाई बता दी. ये इसका ईमान है. इसके ईमान का तो आपको लाज रखा होगा.’’
‘‘इसके ईमान का क्या हम आचार डालें ?’’ दूल्हे के अब्बा ने घुर्राया.
‘‘इस तरह अधूरी शादी से बेरंग लौटेंगे तो आप लोगों की भी फजीहत होगी,’’ मैंने समझाईश दी.
‘‘सैकड़ों लड़कियां मिल जाएंगी, मेरे बेटे के लिए’’- लड़के की माँ चीखी.
‘‘क्या गैरंटी है कि जो आपकी बहू बनेगी, वह माँ बनेगी ही.’’मैने पूछा
‘‘अरे मां नहीं बनी तो हम उसे भी छोड़ देंगे. दुनिया में लड़कियों का आकाल है क्या?’’ लड़के की माँ ने अपनी सोच का परिचय दिया.
‘‘दुनिया में सैकड़ों औरतें माँ नहीं बन पातीं हैं. इसका मतलब क्या ये है कि उन्हें जीने का हक नहीं?’’ मैंने प्यार से समझाने की कोशिश की.
‘‘तुम कौन हो जी? क्या तुम कर सकते हो ऐसी बंजर लड़की से शादी? बोलो जवाब दो.’’ दुल्हे के पिता ने सवाल दागा.
मैं कुछ कह पाता इससे पहले मेरे अब्बा ने सामने आकर ऊंची आवाज़ में कहा- ‘‘हाँ मेरा बेटा करेगा इस ईमानदार लड़की से निकाह.’’ इतना कहकर जीशान ने मेरी नजरों में नज़रें डालकर कहा-
‘‘बस इतना ही हुआ, मुझे वहां सच्चाई बताने का मौका नहीं मिला. मैं मोना का कुसूरवार हूं, लेकिन मोना से तो कोई भी शादी कर सकता है मगर उस लड़की की शादी उस टाईम अगर नहीं होती तो कभी नहीं हो पाती. इसलिए मैंने निकाह कर लिया.आप सब मुझे जो सज़ा देना चाहें, मैं सिर झुकाता हूं. ’’
बाकियों का तो मुझे नहीं मालूम लेकिन मैं एकटक जीशान को देखती रही. क्या कोई ऐसा भी पिता हो सकता है जो किसी पिता के मान के लिए अपने वंश की आस छोड़ दे? क्या कोई ऐसा युवा हो सकता है जो किसी की खातिर अपने प्यार को कुर्बान कर दे?फरिश्तों के बारे में सुना-पढ़ा था, आज अपने करीब एक फरिश्ता देख रही हूं.
पूरा रूम गहन सन्नाटे में था. एकाएक मोना खड़ी हो गई और अपनी आदत के मुताबिक ज़ोरों से ताली बजाकर कहने लगी-‘‘अरे, सारे मुंह लटकाए क्यों बैठे हैं, हमारे जीशान सर की शादी हुई है भई, पार्टी तो बनती है. इनकी पार्टी मेरी तरफ से. शादी का लड्डू तो मैं खा चुकी हूं, दूसरों को भी तो मौका मिलना चाहिए न.’’
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