JUNE 10th - JULY 10th
हरिश्चंद्र की महतारी
आग लग गई...आग लग गई...शोर सुनकर, गाँव के लोग छीटू के ग्वाँड़ा( किसानों के घर की वह जगह जहाँ उनके मवेशी, मवेशियों का चारा-भूसा तथा कृषि सम्बन्धित सभी उपकरण रखे जाते हैं) से उठ रही लपटों की तरफ़ भागे। छीटू बेतहाशा चिल्ला रहा था कि सब बर्बाद हो गया,सब जल गया। ग्वाँड़ा में बंधे मवेशी घबराकर रंभाने लगे। छीटू और रामवती किसी तरह अपने मवेशियों को बाहर निकाल कर ला पाये लेकिन ग्वाँड़ा में रखा सारा चारा-भूसा जलकर ख़ाक हो गया। गाँव के लोग बाल्टियों से पानी उलीच कर आग बुझाने की कोशिश करते, तब तक पूरा छप्पर जल चुका था। आग को दूसरों के घरों तक फैलने से तो गाँव वालों ने रोक लिया था लेकिन छीटू के ग्वाँड़ा की पूरी छत नष्ट हो गई थी। छीटू के लिए यह बहुत बड़ा नुक्सान था। छीटू की पत्नी रामवती, रात के दूसरे पहर पेशाब करने को उठी थी। उसने देखा कि उसके ग्वाँड़ा के पास से कोई भाग कर गया और उसके बाद ही ग्वाँड़ा के छप्पर में तेज़ आग फ़ैल गई। जब तक रामवती चिल्लाई और छीटू जगकर बाहर आया तब तक आग की लपटों ने गाँव भर को जगा दिया था। छीटू ने इस आग का आरोप अपने पड़ोसी शंकर पर लगाया। शंकर और छीटू का घर आपस में लगभग जुड़ा हुआ था, जिस कारण घर के पानी के निकास की नाली से लेकर अनेक विवाद उन दोनों के बीच होते रहते थे। जब आग पूरी तरह शांत हो गई तो गाँव वाले भी अपने-अपने घर चले गये। ग्राम प्रधान ने कहा आग कैसे लगी या किसने लगाईं इस बात पर चर्चा कल सुबह होगी, अभी रात बहुत हो गई है।
रात भर छीटू और रामवती सुबह के इंतज़ार में अपने दरवाज़े पर ही बैठे रहे। छीटू ने रामवती से कहा “हो न हो यह काम शंकर का ही है” रामवती सिर पर हाथ धरे बैठी हुई इतना ही बोली भगवान जाने ! “अब पानी खोपड़ी ते ऊपर बहि चुका है, यहि बार शंकर का थाने के हवा ख़वाएक रहब” कहते हुए छीटू सीधा थाने पँहुच गया। छीटू ने थाने में शंकर के खिलाफ़ उसके छप्पर को जलाने की रिपोर्ट लिखवा दी। गाँव में पुलिस आई। शंकर से पूछताछ हुई लेकिन शंकर ने छप्पर की आग में उसके शामिल होने की बात से साफ़ इंकार कर दिया। पुलिस ने अपने हिसाब से छानबीन की और छीटू के यह कहने पर कि उसकी पत्नी ने शंकर को भागते हुए देखा था,शंकर के खिलाफ़ मुकदमा दायर कर दिया। छीटू पर इस बार शंकर को सजा दिलाने का भूत सवार था। छीटू बहुत ग़रीब था। उसके पास अपनी कोई ज़मीन न थी।वह अपनी ससुराल में रामवती के साथ रहकर, ज़मीनदार के खेत बटाई में लेकर अपना जीवन चला रहा था। घर के नाम पर उसके पास एक कमरे की कच्ची कोठरी और यह ग्वाँड़ा ही था जो कभी रामवती के बप्पा उसके लिए बनवा गये थे। ग्वाड़े में छीटू के मवेशी,उनका चारा-भूसा तथा कृषि उपयोगी सामान रखा जाता था।
ग्वाँड़ा के छप्पर जलने से छीटू इतना अधिक गुस्से में था कि थोड़ी-थोड़ी बचत करके जो रक़म रामवती ने ग्वाँड़ा की खपरैल के लिए जोड़ी थी वह वकील साहब को देकर छीटू जिद पर अड़ गया कि चाहे जो हो इस बार शंकर को सज़ा दिलवाकर रहूँगा। रामवती छीटू को मना करती रह गयी कि इन पैसों से खपरैल छवा लेते हैं लेकिन शंकर ने उसकी एक न सुनी। मुक़दमे की सुनवाई की पहली तारीख़ भी आ गयी।
पेशी से पहले वकील ने छीटू से रामवती को गवाह के रूप में लेकर आने को कहा।
छीटू: साहब कोर्ट कचहरी के मामला मा रामवती के का ज़रुरत ?
वकील: तुम कह रहे हो ना कि रामवती ने शंकर को आग लगाते हुए देखा है,यही बात मैं रामवती से सुनना चाहता हूँ। कोर्ट में वह क्या बोलेगी और कितना बोलेगी यह तो मैं ही समझाउँगा ना।
अगले दिन छीटू रामवती को लेकर कचहरी वकील साहब के पास पँहुच गया। रामवती को देखकर वकील साहब ने कहा, कल कोर्ट में तुम्हें बयान देना है। तुम यही कहना कि जब रात को तुम झोपड़ी से बाहर निकली थीं तो तुमने शंकर को अपने छप्पर में आग लगाते हुए देखा था।
रामवती: नहीं वकील साहब, हम यो ना कहब। काहे झूठी गंगा उठवावति हौ ? हम न कोहुक दीख न चीन्हा।
वकील, छीटू को गुस्से में घूरते हुए, यह क्या कह रही है तुम्हारी घरवाली? इसे समझाओ इसे कहना है कि इसने शंकर को आग लगाते हुए अपनी आँखों से देखा है।
छीटू रामवती पर चिल्लाया, “जो वकील साहब कहति हैं वहै तुमका ब्वालैक परी”।
रामवती भी गुस्से से बोली “ चाहे जउन होई जाये हम झूठी न बोलिबै”।
छीटू गुस्से में तमतमा गया और उठकर रामवती को एक थप्पड़ जड़ दिया। “जब आगि लागि रही तब तो तुम हमई हाँ मा हाँ मिलाएव रहै, कि यो काम शंकर करिनि”।
रामवती : वे समय हम घबरा गयेन रहे तो कहि दीन होइबे लेकिन सच तो यहै है कि हम अपई आँखिन ते कोहुक नहीं दीख।
वकील साहब हैरान थे कि यह क्या हो रहा है।
“जब अब बयान दे के बेरिया आई है तो तुम मना कई रहिउ है” कहते हुए छीटू ने रामवती को ज़ोर से धक्का दे दिया।
रामवती वहीं ज़मीन पर लुढ़क गई। “ जब सही बात कहै पर यह दुर्दशा है तो झूठी बोलि के हम अपए बाल-बच्चन का लईके कहाँ जइबे”।
“शंकर से पहिले अब तुम्हार हिसाब खतम करैक परी” कहते हुए छीटू भूखे भेड़िये की तरह रामवती पर झपटा। वकील साहब ने बड़ी मुश्किल से छीटू को रोका। तुम रुको, मैं बात करता हूँ ।
रामवती उठो। तुम्हें सिर्फ इतना ही कहना है कि तुम्हारा छप्पर शंकर ने जलाया इसमें कौन सी बड़ी बात है। अंधेरे में तुम्हें नहीं दिखा तो यह भी तो हो सकता है कि वह शंकर ही रहा हो और जब तुम चिल्लाई तो वही भागकर आ गया हो, कि किसी को उसपर शक न हो।
“अब ई हमका मारि डारैं या छोड़ि दें लेकिन हमहू का हमै बच्चन के कसम है हम झूठी गवाही ना द्याबे ”। कहते हुये रामवती पूरे वेग के साथ उठ खड़ी हुई।
वकील, छीटू से कहते हैं, इसे अपने साथ घर ले जाओ। तुम्हारे पास कोई दूसरा गवाह है तो उसे लेकर आना।
छीटू उठा और रामवती को फिर से एक थप्पड़ लगाते हुए बोला, “चल, घर चलकर मर, बड़ी बनती हैं हरिश्चंद्र की महतारी” ।
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Mukesh Kr. Sharma
dorjee75
aasutoshm
इस लघु कहानी के जरिए इंदु जी ने बड़ी सहजता से गांव की गरीबी, मूलभूत सुविधाओं का अभाव और उसके कारण पड़ोसियों से होने वाले झगड़े को तो बताया ही है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है, शुरुआती बोखलाहट के बाद, विषम परिस्थिति के बावजूद रामरती का सच के लिए अड़े रहना, रामरती अपना मौलिक चरित्र नहीं छोड़ती, इंदु जी ने कहानी में भाषा को किरदार के अनुसार ही रखा है, छीटू और रामरती गांव के हैं भाषा अवधी, वकील साहब शहर के हैं भाषा भी8 वैसी ही, कहानी की शैली और प्रवाह ऐसा कि आप एक ही सांस में पढ़ते चले जायेंगे, सहज, सरल
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