JUNE 10th - JULY 10th
साल 1992 उत्तरप्रदेश का एक छोटा सा गांव -
"अम्मी...! अम्मी आप समझाइये ना अब्बू को...।" रुखसार अपनी बड़ी-बड़ी काली आँखों में मोटे-मोटे आँसू लिए अपनी अम्मी के पीछे-पीछे डोल रही थी।
अम्मी में एक बार उसकी तरफ देखा और मुंह घुमा लिया, अम्मी के चेहरे पर बेचारगी के निशान साफ नजर आ रहे थे।
"अम्मी हम अपने हर दर्ज़े में अब्बल आते रहे हैं, पढ़-लिख कर हम कुछ बनना चाहते हैं। हम अपनी ज़िंदगी मे कुछ अच्छा करना चाहते हैं।" रुखसार लगभग रोते हुए बोली।
"हम कुछ मदद नहीं कर सकते मेरी बच्ची", जमीला(अम्मी) की आवाज़ बेवसी से भीगी हुई थी।
"तुम्हारे अब्बू तो प्राइमरी के बाद ही तुम्हारा स्कूल छुड़ाना चाहते थे, तब भी हमने रो रो कर तुम्हारी शिफारिश कर दी थी लेकिन उसी वक़्त उन्होंने साफ बोल दिया था,
"बस जूनियर हाईस्कूल तक जहाँ तक गांव में स्कूल है, आगे शहर जाने की जिद ना करे तुम्हारी लाडली"
हमने उस वक़्त ही कह दिया था कि आगे तुम्हारी तालीम के वास्ते हम बात नहीं करेंगे।" जमीला उदास होते हुए बोली।
"अम्मी!!!" रुखसार अब बाकायदा रोने लगी थी, "एक बार बात तो करो आप अब्बू से", रुख़रास धीरे से बोली।
जमीला बिना कुछ बोले अपने आँसू पोंछते हुए चली गयी।
"रुखसार आगे पढ़ना चाहती है।" जमीला ने रात को शमशाद का सर सहलाते हुए बड़े मनुहार से धीरे से कहा।
"हमने आपसे पहले ही कहा था बेगम, की रुखसार को छूट मत दो। हमें पता था ये दिन आएगा, इसीलिए हमने पहले ही कह दिया था कि रुखसार गाँव में पढ़ाई खत्म करके घर के काम में हाथ लगाएगी।
आप तो जानती हो बेगम बिरादरी का हाल, ज्यादा पढ़ने लिखने के बाद लड़की के लिए रिश्ता भी नहीं आएगा बिरादरी से। अरे यहाँ तो लड़के भी बस अलिफ बे पढ़कर मौलवी साब से दीन की तालीम लेकर हैण्डलूम पर बैठ जाते हैं। सारी अंसारी बिरादरी जुलाहे का काम करती है। और आपकी लाडली बड़े स्कूल जाकर सबको मुंह चिढ़ाने पर लगी है।
बेगम आप समझाओ रुख़सार को, हमें की बिरादरी के साथ चलना है। फिर आगे बच्चों के शादी बियाह बी करने हैं। दो हैण्डलूम हैं हमारे, कुछ तुम दरी बुनती हो, सारा दिन धागों से उलझने के बाद भी जिंदगी की मुश्किलें नहीं सुलझती ऊपर से शहर की पढ़ाई का खर्च। और फिर लड़की ऐसे मुंह खोले फिरेगी तो आपको पता है ना कितनी बातें बनेंगी? लोग जीना मुश्किल कर देंगे महल्ले में। मैं नहीं चाहता कि मेरे घर की औरतें बिना हिज़ाब, बिना पर्दे के घूमें।" शमसाद ने अपना फैसला सुना दिया।
जमीला चुप होकर सो गई, हालांकि वो चाहती थी कि रुखसार को आगे पढ़ने की इजाज़त मिले लेकिन वह भी लाचार थी।
"अब्बू मैं कोई खर्च नहीं माँगूंगी आपसे, मैं अपनी दरी की आमदनी से अपना खर्च निकाल लूँगी। घर मे भी सारे काम में हाथ लगाउंगी, बस मुझे आगे पढ़ने दीजिये..., अब्बू मैं हमेशा बुर्के में रहूँगी मुंह खोलकर नहीं घूमूंगी, अब्बू शहर के स्कूल में बहुत सी लड़किया बुर्के में आती हैं, मैं आपको कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगी। मान जाईये ना अब्बू... मेरे प्यारे अब्बू ,मेरे अच्छे अब्बू", रुखसार ने रोते-रोते शमशाद को मस्का लगाते हुए कहा।
"आप चलकर देख लीजिए ना अब्बू एक बार..., शहर में लड़कियों के लिए अलहदा स्कूल भी है, सारी लड़कियां ही पढ़ती हैं उसमें। अब्बू मैं पढ़ना चाहती हूँ", रुखसार बराबर आँसू बहाते कहती जा रही थी और शमसाद उसे अनदेखा कर रहा था।
"
आज तीन दिन से रुखसार बिना खाये पिये बस रोये जा रही थी, घर के काम तो वह बराबर कर रही थी लेकिन निवाला उसने कतई मुंह के अंदर नहीं डाला था।
जमीला लगातार शमशाद से इल्तजा कर रही थी कि वह रुखसार को इज़ाज़त देदे आगे पढ़ने की चाहे अपनी शर्तें लगा ले, नहीं तो रुखसार गम में बीमार हो जाएगी एक ही तो बेटी है उनकी उसके बाद तीन बेटे।
अरे ना आये कोई रिश्ता यहाँ से। हम अपनी बेटी शहर में बियाह देंगे शहर में तो पढ़ाई लिखाई की बहुत कद्र है।
"ठीक है रुखसार चली जाओ शहर पढ़ने लेकिन जिस दिन किसी ने तुम्हारी गलत शोहबत या बेपर्दा निकलने की शिकायत की उसी दिन से बिना कुछ बात सुने स्कूल बंद।"आखिर शमसाद ने रुखसार को मुँह माँगी मुराद दे ही दी, उसकी शर्तों के साथ।
रुखसार शहर में कन्या इण्टर कॉलेज जाने लगी। उसने कॉलेज से घर की मजबूरी बता कर बुर्के में रहने की इजाज़त ले ली थी।
रुख़सार की लगन और मेहनत से वह बहुत कम समय में ही कॉलेज में सारे टीचर्स की चहेती बन गयी ।
वह घर से निकलकर बस में कॉलेज तक पूरी एहतियात बरतती की कोई शिकायत किसी को ना रहे।
रुख़सार की मेहनत का नतीजा था कि दसवीं में उसने सारे कॉलेज में सबसे ज्यादा नम्बर पाए थे।
स्कूल से उसे कई ईनाम मिले ओर साथ ही साथ उसका वजीफा भी शुरू हो गया स्कूल में फीस तो ऐसे भी नही देनी पड़ती थी।
आगे उसने और ज्यादा मेहनत की, घर पर वह देर रात तक दरी बनाने का काम करती। अब्बू के हैण्डलूम का ताना कर देती, उनकी धागे की नालियां ठीक से रखती।
उसकी बनाई दरियां इतनी सुंदर होतीं की उसे ऊँची कीमत मिलती।
अब्बू को रुख़सार से कोई शिकायत नहीं थी, अलबत्ता बिरादरी वाले ज़रूर दबी जुबान में कहते, " भाई शमशाद तो अपनी लड़की को कलेट्टर बनाएगा शहर में पढ़ने भेज दिया अकेली लड़की को,कुछ ऊँच-नीच हो जाये तो नाक तो सारी बिरादरी की कटेगी।"
लेकिन सामने कोई कुछ नहीं बोलता था।
आज रुख़सार के पास दो खुशखबरी थीं लेकिन वह कशमकश में थी कि दूसरी बाली अब्बू को कैसे बताए, उसे पता था अब्बू फिर गुस्सा करेंगे बहुत नराज होंगे लेकिन रुख़सार बहुत खुश थी।
"अब्बू मैंने बारहवीं में सारे जिले में टॉप किया है।" रुख़सार चहक कर बोली, "मैं जिले में अब्बल आयी हूँ अब्बू।"
शमशाद ने कुछ नहीं बोला बस हल्के से मुस्कुराकर झटके से हैण्डलूम की नली इधर से उधर सरका दी।
"अब्बू वो...! अब्बू मुझे आपको कुछ और भी बताना है उम्मीद है आप गुस्सा नहीं करेंगे।" रुखसार ने दबी जवान में कहा।
शमशाद ने आंखे टेढ़ी करके उसे देखा जैसे पूछा हो, "क्या?"
"वो अब्बू हमने मेडिकल की पढ़ाई के लिए इम्तिहान...! हमारा नम्बर उसमें आ गया अब्बू, हमें सबसे अच्छा कॉलेज मिला है अब्बू , ओर हमें फीस वी ज़्यादा नहीं पड़ेगी। मैं कर लूंगी अपने पास से अब्बू, मुझे स्कोलरशिप भी मिली है। आप बस जाने की इजाज़त दे दीजिए", रुख़सार एक साँस में सारी बात बोल गई।
घर में कोहराम मचा हुआ था, "रुख़सार कहीं नहीं जाएगी जमीला", शमशाद ने चिल्ला कर कहा।
रुख़सार पर्दे के पीछे बैठी जोर-जोर से रो रही थी उसकी सिसकियों की आवाज बादस्तूर आ रही थी उसके छोटे भाई जिन्हें उसकी वजह से आगे पढ़ने को मिल रहा था इसके गले लगे उसके आँसू पोंछ रहे थे।
"आपकी बजह से ये लड़की बहुत आगे बढ़ गयी है, हमने समझाया था आपको की इसे ज्यादा शह मत दो। लेकिन बेटी की मोहब्बत में तुम्हारी तो आँखें और कान बन्द थे। अब इतनी दूर पराये शहर!! अरे क्या अकेली लड़की का ऐसे दूसरे राज्य में जाकर अकेले रहना ठीक है?? ऐसे ही सारी बिरादरी थू-थू कर रही है हम पर। किसी के लड़के ने भी कभी बारहवीं के बाद आगे पढ़ाई नहीं की..., और तुम्हारी लाडली डॉक्टर...! नहीं नहीं अब हम इज़ाज़त नहीं देंगे।" शमसाद ने साफ-साफ मना कर दिया।
"लेकिन आपी तो लड़कियों के हॉस्टल में रहेगी अब्बू", अबकी नुसरत थोड़ा तेज़ होकर बोला, नुसरत खुद अबकी दसवीं में था और पढ़ई की कीमत समझने लगा था।
"तुम खामोश रहो नुसरत! तुम्हें कुछ नहीं पता बाहर के माहौल का", अब्बू ने उसे डांट कर चुप कराते हुए कहा।
पूरे एक हफ्ते की जद्दोजहद के बाद आखिर रुख़सार मेडिकल की पढ़ाई के लिए चली गयी।
सारा घर रुख़सार के पक्ष में शमशाद मियां के खिलाफ हो गया था खाना-पीना बन्द था, कोई शमसाद से बात भी नहीं कर रहा था।
"ठीक है! जो तुम लोगों को सही लगे करो", शमशाद ने हथियार डालते हुए कहा।
आज पूरे सात साल हो गए, शमशाद ने उसके बाद रुख़सार से कभी कोई बात नहीं की। वह छुट्टियों में घर आती सब उससे बात करते लेकिन शमशाद मियां की नाराजगी जारी रहती। जमील ने कई बार उन्हें समझाने की कोशिशें की लेकिन वह नहीं माने।
mbbs के बाद रुख़सार ने ms में दाखिला लिया और उसके बाद अस्पताल में... जॉब।
आज उसके सम्मान में एक पार्टी थी कॉलेज में, जहाँ इसके जिला अस्पताल में मुख्य सर्जन के रूप में नियुक्त होने की खुशी मनाई जा रही थी।
"आज हमारे कॉलेज की पहचान, हमारी ब्रिलियंट स्टूडेंट रुख़सार अंसारी को अपने ही जिले के जिला अस्पताल में, प्रमुख सर्जन के तौर पर अपॉइंट होने पर हम सबको उनपर गर्व है, और हम उनकी मंजिल दर मंजिल कामयाबी की दुआ करते हैं", कहकर उसे उसके साथी डॉक्टरों ने एक बॉक्स थमाया और सभी उसके सम्मान में तालियां बजाने लगे।
रुख़सार का चेहरा आज भी हिज़ाब में कैद था।
पार्टी के बाद रुख़सार गिफ्ट खोल रही थी तभी उसकी नज़र कपड़े में बंधे एक बॉक्स पर पड़ी,
"अरे ये कौन देकर गया? वह चौंकते हुए उठी और उसे खोलने लगी..., कपड़े के नीचे एक ख़त था वह उसे खोलकर पढ़ने लगी उसमें लिखा था,
"खुदा तुझे सलामत रखे और तुझे तेरा सोचा हर मुकाम हासिल हो मेरी बच्ची। उम्मीद करता हूँ तू मेरी ज्यादतियों के लिए मुझे ज़रूर मुआफ़ कर देगी, मैं गलत था जो बिरादरी और समाज की सोचता रहा। और आपकी बच्ची के सपनों की उड़ान पहचान नहीं पाया। लेकिन अब मुझे फख्र है कि तुमने अपना नाम इतना बड़ा कर लिया है अब। सारी बिरादरी को तुमने दिखा दिया की लड़कियां भी कुछ भी कर सकती हैं।
अब मैं तुमसे नहीं, खुद से नाराज़ हूँ कि मैंने तुम्हें दुःख दिया। लेकिन मेरी बच्ची मैं तुमसे मुआफ़ी मांगते हुए कहता हूँ की मैं तुम्हारी कामयाबी से बहुत खुश हूँ।
मुझे बहुत फख्र होता है जब लोग अदब से कहते है, 'वो देखो डॉक्टर रुख़सार के अब्बू'
और हाँ अब तुम्हे ये हिज़ाब ये नकाब में अपना चेहरा छिपाने की कोई ज़रूरत नहीं लोगों को पता लगना चाहिए की शमसाद अंसारी की दुखतर रुख़सार अंसारी बिल्कुल उन्ही की तरह दिखती है और उन्ही की तरहा जिद्दी भी है।"
आगे उसने बॉक्स खोला तो उसकी पसंद का नीले रंग का रेशम का सलवार कुर्ता था और एक सफेद कोट जिस पर गिरी एक आँसू की बूंद अपना निशान छोड़ गई थी।
रुख़सार की आँख से निकला एक आँसू अपने अब्बू के आँसू में जज्ब हो गया लेकिन ये खुशी का आँसू था।
©नृपेंद्र शर्मा"सागर"
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Shveta Saagar
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Thank you for taking the time to report this. Our team will review this and contact you if we need more information.
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