JUNE 10th - JULY 10th
जब हर रोज़ सुबह घर के आँगन में आकर चिड़ियाँ आवाज़ करतीं हैं तो बिस्तर पर लेटे हुए मनुष्य को आभास हो जाता है कि सवेरा हो गया है। अगर में अपने बचपन कि बात करूं तो उस समय घर के आंगकन में काले भूरे रंग कि छोटी चिड़ियों कि काफ़ी भरमार होती थी और उन सबका शोर भी काफ़ी होता था।
आज के इस आधुनिक युग में ऐसी चिड़ियाँ विलुप्त हो गयीं हैं। खास तोर पर शहरों में चिड़ियाँ काफ़ी कम हो गयीं हैं। चिड़ियों के विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण है इंटरनेट का बढ़ता हुआ प्रयोग। रजनीकांत और अक्षय कुमार की फ़िल्म रोबोट 2.0 में भी दर्शकों को यही बताने की कोशिश की गयी थी कि कैसे ज़्यादा इंटरनेट का प्रयोग चिड़ियों के संसार को नुकसान पहुंचा रहा है।
मैं उस ज़माने कि बात करने जा रहा हूं जब भारत में दूरसंचार के लिए टेलीफोन का प्रयोग किया जाता था। आसमान में चिड़ियों की उड़ती हुई लम्बी कतार साफ दिखाई देती थी। जहाँ कहीं भी उनको दाना मिलता वो चुगना शुरू कर देतीं और जब पेट भर जाता तो उड़ जाती।
एक बार मेरे घर के आँगन में एक चिड़िया आयी और इधर उधर टहलने लगी। जब मैंने ध्यान से देखा तो पाया कि उस चिड़िया के मुँह में एक घास का टुकड़ा था जिसको लेकर वो कभी घर के आँगन में घूमती और कभी एक जगह बैठ जाती। एक दिन मैं घर के आँगन में टहल रहा था तो अचानक मेरा ध्यान उस चिड़िया पर पड़ा। मैंने देखा कि वो चिड़िया अपने मुँह में घास का टुकड़ा लिए घर के एक कमरे में घुस गयी। घर का यह कमरा अक्सर बंद रहता था लेकिन उस कमरे के दरवाज़े के ऊपर बना रोशनदान हमेशा खुला रहता था जिसके कारण वो चिड़िया कमरे के अंदर चली गयी।
मैंने उस कमरे का दरवाज़ा खोला तो देखा कि वो चिड़िया उस कमरे में लगे एक बड़े से झूमर के ऊपर बैठी हुई थी और उसने तिनका तिनका करके काफ़ी घास उस झूमर पे इकठ्ठा कर ली थी। झूमर पे इकठ्ठा इतनी घास को देखकर मुझे समझ आ गयी कि ये चिड़िया झूमर पे अपना घोंसला बना रही है। तो मैंने उस चिड़िया को उस कमरे से निकालना ठीक नहीं समझा। हर कोई अपना घर बनाते समय एक सुरक्षित जगह ढूंढता है जहाँ पर उसके बच्चों पर कोई आंच ना आये और वे सुरक्षित रहें। यही काम उस चिड़िया ने किया उसको कमरे में लगा झूमर ही सबसे सुरक्षित लगा।
थोड़े दिन गुज़रे तो एक दिन उसी कमरे से काफ़ी चिड़ियों के बोलने कि आवाज़ेँ आने लगीं। मैंने कमरा खोला तो उसी समय वो चिड़िया भी कमरे के अंदर आ गयी तो कमरे से चिड़ियों कि आवाज़ेँ आना बंद हो गयीं। मैं दो मिनट उस कमरे में रुका तो इतने में वो चिड़िया फिर कमरे से बाहर चली गयी। जैसे ही चिड़िया कमरे से बाहर गयी फिर काफ़ी चिड़ियों कि आवाज़ेँ आना शुरू हों गयीं। यह आवाज़ेँ उसी चिड़िया के बच्चों की थीं। जब भी चिड़िया अपने बच्चों के खाने के लिए बाहर से कुछ लेने जाती तो वो बच्चे आवाज़ करने लगते।
अब मैं उस कमरे का दरवाज़ा दिन में हमेशा खुला ही रखता था और रात को उसे बंद कर देता था। जब भी मैं रात को उस कमरे की बत्ती बंद करता था तो चिड़िया के बच्चे बहुत ऊँची ऊँची शोर करने लगते। कई बार मैं जब उस कमरे की बत्ती बंद करने जाता तो मुझे शरारत सूझती और चिड़िया के बच्चों के मज़े लेने शुरू कर देता। मैं जब भी बत्ती बंद करता तो चिड़िया के बच्चे काफ़ी ऊँची ऊँची शोर करते और जब में बत्ती दुबारा जगाता था तो वो चुप कर जाते। मैं ऐसे ही पांच सेकंड बत्ती बंद कर देता और पांच सेकंड जगा देता। तो कभी चिड़िया के बच्चे शोर करते तो कभी चुप हो जाते।
ऐसे ही एक दिन मैं उस कमरे की बत्ती बंद करने गया तो मुझे फिर से हर पांच सेकंड में बत्ती बंद करने और जगाने की शरारत सूझी लेकिन इस बार मैं पकड़ा गया और मां से मुझे बहुत डांट पड़ी। उसके बाद मैंने यह शरारत करने से तौबा कर ली।
धीरे धीरे करके दिन बीतते गए और चिड़िया के बच्चों की आवाज़ों में थोड़ा बदलाव आना शुरू हो गया जिससे यह आभास हो गया कि अब बच्चे बड़े हो रहें हैं। चिड़िया रोज़ अपने बच्चों के लिए कुछ खाने को लेकर आती और उनके मुँह में डालती।
उस समय रिमोट से चलने वाले टीवी बहुत कम घरों में होते थे। ज़्यादातर घरों में ब्लैक एंड वाइट टीवी होते थे और एक ही चैनल चलता था वो था दूरदर्शन। उसके लिए भी बहुत पापड़ बेलने पड़ते थे पहले एंटीना घुमाओ फिर ऊँची ऊँची आवाज़ लगाकर घरवालों से पूछो सिग्नल आया या नहीं। जब तक सिग्नल नहीं आते थे तब तक एक बंदे की ड्यूटी एंटीने पर ही होती थी।
एक दिन मैं घर के आँगन में बैठ कर टीवी देख रहा था। मुझे गर्मी लगने लगी तो मैंने छत वाला पंखा चालू कर दिया। अभी मैंने पंखा चालू किया ही था कि पंखे से कुछ टकराने की आवाज़ आयी। जब मैंने देखा तो वो चिड़िया ज़मीन पर गिरी पड़ी थी। मैंने झट से पानी लिया और चिड़िया के ऊपर डाला लेकिन उस चिड़िया ने कोई हलचल नहीं की। वो चिड़िया मर चुकी थी।
चिड़िया को मृत देखकर मेरा मन बहुत उदास हो गया। अब उसके बच्चे बिना मां के कैसे जीवित बचेंगे। अभी जब मैं रात को कमरे का दरवाज़ा बंद करने जाता तो जब ही बत्ती बंद करता तो चिड़िया के बच्चे अब कोई आवाज़ नहीं करते थे। एक दो दिन मैंने उनके घोंसले में कुछ खाने को रखा।
दो तीन दिन के अंदर ही चिड़िया के बच्चे अब उड़ने की कोशिश करने लगे और अपने घोंसले से बाहर आ गए। कभी वह घर की सीढ़ियों पर बैठ जाते तो कभी घर की छत पर। ऐसे ही धीरे धीरे उनको अच्छी तरह से उड़ना आ गया और एक दिन चिड़िया के बच्चे अचानक से गायब हो गए और फिर कभी भी घर के आँगन में नज़र नहीं आये। अब वो आज़ाद हो गए थे और अपनी दुनिया में मग्न हो गए थे।
अब चिड़िया का घोंसला खाली हो चुका था। एक दिन मेरी मां ने मुझे झूमर की सफाई करने के लिए झूमर नीचे उतारने को कहा। मैंने किसी तरह वो झूमर नीचे उतारा। इसी झूमर के ऊपर चिड़िया ने अपना घोंसला बनाया था। जब मैंने चिड़िया का घोंसला देखा तो मैं हैरान रह गया। इतना सुन्दर घोंसला। चिड़िया का घोंसला अंदर से बहुत कोमल और गोल था और बाहर से घास के तिनके नज़र आ रहे थे। मैंने यही घोंसला अपनी मां को दिखाया तो वो भी घोंसले की बनावट से काफ़ी प्रभावित थीं।
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