ये अचारका किताब पढनेवाले सभी पाठकोंको मेरा नमस्कार । एक जमाना ऐसा था जब सभी लोग निहित समयपर खाना खाते थे । पूजा, त्योहार, विवाह, आदिमें पारंपारिक तरीकेसे थाली लगाते थे । थालीके दाये और बाये ओर कौनसे व्यंजन परोसना चाहिये , कितना परोसना चाहिये इसके कुछ नियम हुआ करते थे । और लोग उन नियमोंका पालन करते थे।
इन सबमें अचार का अपना बडाही महत्व रहता था । उस समय लोगोंके पास बहुत समय हुआ करता था। आजके जमानेमें हमें जितनी भागदौड करनी पडती है उतनी नहीं करनी पडती थी । इसलिये हमें समय के कमीके कारण रेडिमेड अचार खरीदकर लाने पडते हैं । डाक्टर तो कहा करते हैं कि अचार स्वाथ्यके लिेये अच्छे नहीं हैं । फिरभी हमें अचारकी जरूरत क्यों महसूस होती है ? जब हम किसी भी वजहसे दावत देते हैं तो उस वख्त हम बहुत सारे पकवान, कई अलगअलग प्रकारके व्यंजन बनाते हैं , तब हमें बीचबीचमें कुछ थोडासा लेकिन चटपटा और तीखा खानेका मन करता है । कभीकभी तबीयत ठीक न हो तो, या कुछ पकानेका मन नहीं हे तो केवल खिचडी या रोटी और अचारके साथ हम अपना काम निकाल सकते हैं ।
हर वख्त बाहरसे अचार खरीदकर लानेके बजाय घरपरही इसतरहके इन्संट अचार बनाएँ तो अपना समय और मेहनत दोनों बच जाते हैं । बहुत सारे इसप्रकारके अचारमें तेल और नमककी मात्रा भी बहुत कम होती है ।