यू तो मानव जीवन में। ऐसी कई दुर्घटनाएं होती रहती है जो कभी कभी उन्हें ख़ुशी देती है तो कभी उन्हे जीवन भर का दुःख देके चली जाती है इसी आधार पर मेरी आज कि ये छोटी सी कहानी है जो एक लड़की से शुरू होती है जिसने सिर्फ अपनी आधी जिंदगी को जिया है और उस आधी ज़िंदगी में उसके जीवन में जितनी भी दुर्घटनाएं होती है उन् दुर्गघटनाओ से उसका जीवन कैसे प्रभावित होती है यही इस कहानी का मूल भाव है। यह कहानी मनोविज्ञान पर अधारित है और कई संवेदनाओं से गुज़रती हुई आपके दिल को आतम्घात् भी करती है.....
इस कहानी में उस लड़की के जीवन में जितनी उतल पुथल होती है वो आपका मनोरंजन तो करती ही है पर आपको सोचने पर भी मजबूर कर देती है। इस कहानी के सभी पात्रो कि अपनी विशेषताएं है और सबकी अपनी एक अलग ही अहम भूमिका दिखाइ गई है ।इन्ही पात्रों कि भूमिका इस कहानी कि पूरी दुर्घटनाओं को रचती हैं।।
शुरुआत करते है उस लड़की कि कहानी जिसका नाम शायना है।।.........
कहानी को शुरू करने से पहले मे शायना के बारे में आपको बताना चाहूंगी.... शायना पंडितों के परिवार में जन्मी,शहर में पली बड़ी एक लड़की है। शायना के परिवार मे उसके माता पिता के आलावा उसकी दोनों दीदियां, और एक छोटा भाई है।।
शायना के घर में उसकी बड़ी बहन ( पूर्वी) और उसके पापा ही घर को संभालते है।शायना और उसका छोटा भाई अभी अपनी शिक्षा पूरी कर रहे है और ( शायना कि दूसरी बड़ी बहन (जयश्री ) घर पर ही रहती है।।
जो एक सीधी स्वभाव कि महिला है पिता के प्यार से वन्छित् लता अपने बच्चों के साथ घुल मिल के रहती है और समाज मे अपने सीधेपन और मिठास भरी बोली के साथ अपनी एक अलग छवि रखती है....