"दुःसाध्य पथ" कहानी है उन चुनौतियों की, जिन्हें स्वीकार करना इस कहानी के मुख्य चरित्र मृत्युंजय का स्वभाव है। परंतु कुछ विषम परिस्थितियों ने उसे जीवन के ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया जहां उसकी बुद्धिमता और ज्ञान ने उसका साथ छोड़ दिया। इसका फायदा कुछ अजनबी व्यक्तियों ने उठाया, जिन लोगों का प्रवेश उसके जीवन मे असामान्य तरीके से हुआ था । वक्त की इस मार से जूझते हुये मृत्युंजय किस तरह से एक व्यापक सोच के साथ बाहर निकला ये इस कहानी का सार है। उसने अपने अपरंपरागत योजना मे उन लोगों को भी शामिल किया जो लोग उसकी जान के दुश्मन बन बैठे थे । लेकिन क्या उनके साथ जुड़े हुये लोगों की सोच भी इतनी व्यापक थी जिसकी उम्मीद मृत्युंजय उनसे कर रहा था ? क्या वो लोग इस दुसाध्य पथ मे अंत तक उसका साथ देने के लिए तैयार थे ?
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