गंगा जी की बिहार यात्रा के स्वर्णिम अतीत और वर्तमान दशा के साथ समस्या और उसके समाधान की दिशा में बिहार के ' राज और समाज ' के प्रयास को समझने की कोशिश की गई है। गंगा हो अथवा कोई अन्य नदी, तालाब हो या कोई अन्य पारम्परिक जल श्रोत, उनकी सफाई का मसला हमारी नीयत से जुड़ा है। नीयत की इस कसौटी पर हम अपनी धार्मिकता और गंगा जी के प्रति अपनी श्रद्धा को कसकर देख सकते हैं। सेवा का फल त्याग और समर्पण से जुड़ा है। जरूरत इस बात की है कि नदियों को उनके प्रवाह के अनुरूप बहने दो। उनके प्रवाह में उनकी जीवंतता निहित है। इसी एक शर्त को यदि हम ईमानदारी से पूरा कर दें तो गंगा सहित सभी नदियों को बचाने और प्रदूषण से मुक्त रखने में अवश्य ही कामयाब हो सकते हैं।
- संपादक
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