“ईश्वरीय मनुष्य।”
दिव्य संदेश: प्रिय पाठकों और आत्मप्रियपृथ्वीवासियों को लेखक केतु मिस्त्री का सादर प्रणाम।अपने जीवन का अमूल्य समय निकालकर इस जीवनसुधारक काल्पनिक कहानी को पढ़ने के लिए अनंत धन्यवाद। इस अद्भुत रचना के प्रस्तुतीकरण का मूल कारण है समूचे विश्व के सर्वप्राणियों को सुख, शांति, समृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य, पवित्रता, शुभविचारधारा, संयम, सत्य, मनोजयता और अर्थपूर्ण जीवनशैली प्रदान करना। इस पृथ्वीलोक के आरंभ से निरंतर प्रस्तुत होती आ रही अस्त-व्यस्त जीवनशैली और अमान्य कर्म प्रदर्शन के कारण अशांति की आग में झुलस रही असंख्य आत्माओं का उद्धार करने का यह उत्तम प्रयास है। असत्य, माँसाहार, व्यभिचार, निंदा, ईर्ष्या, चोरी, घृणा, लोभ, अंधश्रद्धा, भ्रम और हिंसा - इस समूचे ब्रह्माण्ड में अत्यंत निंदनीय दुर्गुण हैं, और इन अपवित्र दुर्गुणों को धारण करने वाले प्राणियों का आत्मोद्धार असंभव है। दुर्भाग्यवश इस समूचे पृथ्वीलोक के अधिकतम अज्ञानी मनुष्य - चरित्र शुद्धि, सत्य, सात्विकता, संयम, शुभ विचारधारा, स्वच्छता, पवित्रता, आध्यात्मिकता, शुभ संस्कार, सरलता, समता वाणीशुद्धि, अहिंसा, शाकाहार, सदाचार, वैश्विक कल्याण, उत्तम जीवन सिद्धांत, शीर्षस्थ संकल्प के यथार्थ अर्थ और इनके दिव्य गुणों से अपरिचित एवं अछूते रहे हैं। अतः इन अधिकतम अज्ञानी मनुष्यों का सत्य, प्रेम, करुणा, अहिंसा, परोपकार और धर्मरस के माध्यम से कल्याण करना चाहता हूँ। अंधश्रद्धा के भयानक, कपटी व विनाशकारी साम्राज्य को अपने स्पष्ट, परिशुद्ध और नीतिपूर्ण वैचारिक साम्राज्य से धराशायी करके इस विश्व में परिशुद्ध, शांतिप्रिय एवं संयमी जीवनशैली देखना चाहता हूँ। मैं प्रत्याभूति देता हूँ कि मेरी परिशुद्ध कहानियों को पढ़ने के पश्चात् यदि पाठक इस कहानी में प्रदर्शित हुए दिव्य गुणों को धारण करते हैं तो उनका आत्मोद्धार व नित्य कल्याण निश्चित है। इसी विश्वश्रेष्ठ कहानी के दूसरे भाग ‘‘स्वर्ग या नर्क, कर्म का अंतिम मार्ग’’ को अवश्य पढ़िएगा।
‘’सर्वत्र रामचरितमानस प्रकट हो।’’
- केतु मिस्त्री
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