यह उपन्यास श्री राम के वनवास को नितान्त नवीन राजनैतिक अलोक में प्रस्तुत करता है। उपन्यास का आरम्भ राजा दशरथ द्वारा राजकुमार राम के राज्याभिषेक की घोषणा के साथ होता है और तदुपरांत पुस्तक का कथानक एक नया रूप धारण कर लेता है। उपन्यास की कथा विभिन्न सम-विषम मार्गों से चलते हुये कहानी को एक नये स्वरुप में पाठकों के सम्मुख उद्घाटित करती है और अंततोगत्वा रावण के वध पर जा कर समाप्त होती है। उपन्यास की भाषाशैली अत्यंत रोचक है और भावों का यथार्थ निरूपण करती है।
लेखक ने अपनी कल्पनाशीलता एवं रचनात्मकता का अद्भुत संगम किया है। इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि वर्तमान काल के पाठकों के समक्ष यह रामकथा प्रस्तुत करते समय उसमे नवीनता तो अवश्य हो परन्तु कथा के मूल चरित्र में कोई परिवर्तन न आये। इस कारण घटनाओं की विवेचना बड़ी ही सुरुचिपूर्ण हो कर उभरी है। यह बात मन को आनंद तो देती ही है साथ ही यह भी इंगित करती है कि दो युग व्यतीत हो जाने के उपरान्त भी रामकथा के लेखन में अप्रतिम संभावनायें हैं और इसके अन्वेषण में अब भी कोई विराम नहीं लगा है। यही वह तथ्य है जो राम की सर्वकालिक प्रासंगिकता को सिद्ध करता है।
राम के वनगमन के पीछे के राजनीतिक रहस्य, वन में उनके द्वारा किये गये प्रयास, ऋषि समाज के प्रति उनकी शपथबद्धता, महर्षियों से प्राप्त ज्ञान व अनुभव का उपयोग, किष्किन्धा का सत्ता परिवर्तन, दण्डकारण्य का युद्ध, वन में राम के सहायकों का वर्णन, सीता की खोज, सेतु-बंधन और अंततोगत्वा रावण के साथ राम का युद्ध; सब कुछ आपको पुस्तक से बाँध कर रखने में सक्षम है। घटनाओं का प्रस्तुतीकरण अनुपम, अनोखा और बुद्धि से ग्रहणीय है। उपन्यास की वर्णन शैली अति सक्षम है।
यह निश्चय ही एक पढने योग्य उपन्यास है