इस पुस्तक में कर्म के ऊर्जा के स्वरूप एवं शक्ति की विवेचना की गई है।
कर्म ऊर्जा का ही स्वरूप है। कर्म के माध्यम से प्रारब्ध, संस्कार, संस्कृति एवं स्वध्याय के विभिन्न अव्यवों की गति को परिवर्तित कर जीवन की प्रत्यक्ष एवं प्रारब्ध से उत्पन्न विभिन्न समस्याओं के निदान एवं कारण का विशलेषण किया गया है।
Ø प्रत्येक कर्म की अपनी परिणति होती है और वह जीव को जीव के माध्यम से जीवन में सर्वोत्तम समय में प्रकृति प्रदान करती है।
Ø कर्म एवं कर्मफल का स्वरूप जीवन में ऊर्जा के रूप में ही रहता हैा
Ø कर्म कभी मरता नहीं है वह ऊर्जा के रूप में जीवन में बना रहता है ।
Ø प्रत्येक कर्म की निजी परिपक्वता अवधि होती है जो पूर्ण होते ही स्वत: ही कर्मफल के रूप में प्रकट हो जाती है।
Ø परिणाम जीवन में बहुत आवश्यक नहीं है किस विधा से परिणाम प्राप्त किया गया वही कर्म बंधन बन जाता है।
Ø जीव की आत्म संग्रहित ऊर्जा ही प्रारब्ध है।
Ø सामान्य रहें, सरल रहे, स्वास्थ्य रहें, ज्यादा जिये।
Sorry we are currently not available in your region. Alternatively you can purchase from our partners
Sorry we are currently not available in your region. Alternatively you can purchase from our partners