‘ख़रगोश’ जैसी एक से अधिक परतें ली हुई, तरह-तरह के और तरह-तरह से सवाल पूछती कृति की सराहना के लिए एक पाठक को अपने पास एक बड़ा, लचीला और व्यापक दृष्टिकोण रखना ज़रूरी जान पड़ता है। इसके पाठक को अपना दृष्टिकोण भी व्यापक रखना होगा और अपना परिप्रेक्ष्य भी बड़ा।
एक तरह से देखने पर अगर यह कृति औरत के दुःख, पीड़ा, अपमान, नियति, और अवमानना की रचना नज़र आती है, तो दूसरी तरफ़ से देखने पर औरत को ‘व्यक्ति’ की तरह स्वीकार न करने, उसकी नागरिकता को हाशिए पर धकेलने की गाथा नज़र आती है।
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