आज सामाजिक परिदृश्य बड़ी तेज़ी से बदल रहा है और स्त्रियां पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर प्रत्येक क्षेत्र में सफ़लता के झंडे गाड़ रही हैं। परंतु ,इस आपाधापी भरे जीवन में कुछ तो है जो पीछे छूटता जा रहा है जैसे- दरकते रिश्ते, बिखरते परिवार ,वृद्धों का घटता सम्मान आदि। जीवन के प्रति बदलते समीकरणों और पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव ने मानव जीवन को इतनी जटिलताओं से भर दिया है कि वह इन्हीं में उलझ कर रह गया है। स्त्री और पुरुष जीवन की धुरी हैं फिर भी हमारे परिवार और हमारे समाज में कितना असमान व्यवहार क्यों ? अनेक प्रश्न है जो उमड़ते हैं।
इस संकलन में स्त्री की बेबसी है तो माता-पिता का अपनी संतानों की परवरिश में भेदभाव भी है। इतना ही नहीं मां का बेटी के परिवार में अत्यधिक हस्तक्षेप है तो पिता का बेटी के परिवार को बचाने के लिए किया गया प्रशंसनीय योगदान भी है। कुछ कहानियां आज के माहौल में बच्चों की ग़लत परवरिश पर उंगली उठाते हुए उसके दुष्परिणामों पर प्रकाश डालती हैं तो कुछ कहानियां आधुनिक परिवेश में नारी की सुरक्षा पर सवाल भी उठाती हैं। यदि, यह कहा जाए कि विविध प्रश्न और उनके समुचित उत्तर इन कहानियों में पाठकों को अवश्य मिलेंगे तो ग़लत नहीं होगा।