In this Book... “क्या आप स्वयं को जानते हैं?”
एक यात्रा, स्वयं की खोज में!
“मैं कौन हूँ?” यह सवाल कभी न कभी सभी के मन में आता है। और कुछ लोग इस “मैं कौन हूँ?” की खोज में सब कुछ छोड़कर स्वयं को प्रकृति में विलीन कर लेते है। यह पुस्तक ऐसे ही एक इंसान (स्वास्तिक) की कहानी है जो अपने आपको जानना चाहता है। और एक दिन वह स्वयं की खोज में निकल पड़ा। फिर उसे कुछ ऐसे लोग मिले जो उसी की ही भांति स्वयं की खोज कर रहे थे। सबकी मंजिल एक ही थी।
फिर वे सभी चल देते हैं, एक अंजान सफर पर। अपनी मंजिल की तलाश में। और एक दिन ऐसा आया जब वे सभी उस स्थान पर पहुंच गए, जहाँ से वे भूत या भविष्य में भी जा सकते थे। जो उनकी मंजिल थी।
इसी बीच सभी एक दूसरे को अपने बारे में बताते हैं। पर सबकी कहानी सुनने के उपरांत, स्वास्तिक को यह आभास हुआ कि, "यदि मनुष्य अपने भविष्य के बारे में जान जाए तो वह कभी सुखी नहीं रह सकता। और यदि मनुष्य अपने गुजरे हुए कल में जीना नहीं छोड़ता है, तो उसका आने वाला कल भी दुख ही देता है। इसीलिए मनुष्य को सदैव आज में ही जीना चाहिए। और जीवन में जो कुछ भी मिला है, उसी में खुश रहना चाहिए। वह मनुष्य सदैव दुखी रहता है जो बीते हुए कल या आने वाले कल में जीना चाहता है। सुख और शांति के लिए जीवन सदैव वर्तमान में ही जीना उचित और श्रेष्ठ है।”