यह पुस्तक ललित निबंधों की प्रकृति, संवेदना और शिल्प को समझने के प्रयत्न का परिणाम है। ललित निबंधों की रम्यता के कारणों की छानबीन करती हुई जहां एक ओर यह उसके अंतर्वस्तु के महत्व पर प्रकाश डालती है, वहीं निबंधों की बनावट एवं बुनावट की बारीकी को उद्घाटित करने का सफल प्रयास करती है।
यह पुस्तक इस मामले में भी विशिष्ट है कि हिंदी ललित निबंध के स्वरूप का विवेचन करते हुए लेखक ने ललित निबंध के लिए मुक्तबंध नामकरण का प्रस्ताव किया है। देशांतरीय परंपरा और अंतर्देशीय परंपरा का निदर्शन है। ललित निबंधों के शिल्प के पड़ताल के साथ ही प्रमुख ललित निबंध कारों की भाषिक प्रकृति को स्पष्ट किया गया है।