साहित्यिक काव्य धारा में शब्दों का अंकुरण ही एक काव्य के भावाभिव्यक्ति स्वरूप हृदय को तरङ्गित कर झञ्झा झञ्कोर - सी उसी काव्य के शब्दों के असीम में विलीन कर और उसी विलीन से अकिञ्चन नव्य कलित शून्य से क्षितिज से आयी ऋजुरोहित की तरह प्रस्फुटित शब्दों का काव्य संग्रह के रूप में ' मँझधार ' ( पुस्तक का नाम ) पाठक के समक्ष रखने का प्रयास है ।
इस काव्य संग्रह में स्वच्छन्दतावादी , प्रकृतिवादी और छायावाद के प्रश्नात्मक , व्यङ्ग्यात्मक तथा उपदेशात्मक जैसे अन्य शैलियों से तत्समनिष्ठ , तद्भवनिष्ठ और कहीं - कहीं उर्दू शब्दों के कोमलावृत्ति और भावानुकूल समायोजन से गतिशीलता व प्रवाहमयता तथा साहित्यिक कृति में अमरता से चाक्षुस बिम्ब की सुन्दर अभिव्यक्ति से रहस्यमयी भावना मुखरित हुई है ।