पाकीज़ा संवेदनात्मक स्वरूप का विश्वव्यापी भावुकता का एक ऐसा मार्मिक चित्रण है जिसे पढ़कर एक स्त्री के उदार चरित्र की अनुभूति होती है पाकीज़ा एक उर्दू शब्द है जिसे हिंदी में पवित्र कहा गया है जिस स्त्री को दुनिया ने ठुकराया फिर भी वह इतिहास रचने में सक्षम रही, जो देखने में बेहद खूबसूरत कंचन कोमल कली की तरह मुस्कुरा दे तो अधर दिनकर ( सूर्य) की भांति चमकने लगे परंतु वह अंदर से उतनी ही जर्जर टूटी बिखरी हुई कि कोई हाथ लगा दे तो चकनाचूर हो जाए यह एक ऐसी पीड़ा एक ऐसा वियोग एक ऐसा संताप जिसमें उसे जीवन घुट- घुट कर जीना पड़ रहा था एक ऐसेे कालचक्र में वही घिरी हुई थी जहां काल तेजी से उसकी खुशियों को निगल रहा था इतने कष्ट इतनी पीड़ा सहने के बाद भी उसने जीवन जीने की उम्मीद उसने खत्म नहीं किया वह प्रतिपल जूझती रही वक्त से और फिर जब उसका वक्त आया तो वह वक्त पर भारी पड़ने लगी