समाज सुधारक सन्त कबीर, हिन्दी साहित्य के इतिहास में अत्यधिक प्रभावशाली चरित्र एवं महिमा मंडित व्यक्तित्व हैं। वे समन्वयवादी विचारधारा के धनी, हिन्दुओं में ‘वैष्णव भक्त’, मुसलमानों में ‘पीर’, सिक्खों में ‘भगत’ एवं कबीरपंथ में ‘अवतार’ थे।
वे विश्व धर्म एवं मानवधर्म प्रवर्तक, एवं कमजोर वर्ग के पक्षधर, क्रान्तिकारी विचार एवं समता भावना, न्याय एवं एकता के सूत्रधार के रूप में मान्य हैं। उनका व्यक्तित्व संकीर्ण धार्मिक सीमाओं से इतना दूर था कि वे हिन्दू-मुस्लिम दोनों सम्प्रदायों के श्रद्धा के प्रतीक बन सके।
उनकी रचनाओं को सिक्खो ने भी अपने धर्म ग्रन्थ में स्थान दिया। उनके शब्द और दोहे ऐसे सरल हैं कि अनपढ़ व्यक्ति के भी रोम-रोम में समा जाते हैं। पुस्तक में प्रस्तुत विषय, इन प्रमाणों का प्रस्तुतिकरण करते है।