कुछ बचपने के दिन बिताए अपने बच्चों संग हँसते – खेलते बच्चा बन। उन यादों को समेट छोड़ना चाहती हूँ उनके बच्चों के लिए। कुछ कविताएँ जो लिखीं थीं कभी लवदीप ओर शिवांश के लिए जब वे छोटे थे। पाश्चात्य कविताओं से हट कर।
ग़र पोते – पोतियों संग ना दोहरा पाई पुनः अपना बचपन तो इस किताब में ही देख लूँगी उनकी ख़ुशी।