धर्म क्या है? धर्म ईश्वर का पर्याय है, कर्म ही धर्म है, कर्तव्य ही धर्म है ,धर्म का अर्थ गुण है, धर्म का अर्थ न्याय है ।
नैतिकता का अर्थ ही धर्म है। निष्पक्षता या तटस्थता ही धर्म है। यानि धर्म विविध आयामी है। धर्म शब्द में और भी अनेक अर्थ निहित हैं। डॉक्टर सोमदत्त शर्मा जी ने अपनी पुस्तक-‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ में यह विस्तृत रूप से बताने का प्रयास किया है। इसके साथ ही उन्होंने अति आधुनिकता की दौड़ में शामिल, हांपते मानव को भारतीय संस्कृति के स्तम्भ विभिन्न पर्व, व्रत, उपवास, तीज-त्यौहार, आदि के विषय में भी अवगत कराते हुए उनके महत्व पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है।
पितृपक्ष, त्याग का महत्व, अमोघ औषधि—रामनाम, प्रभु नाम की महिमा, पुरुषोत्तम मास की महिमा, जीव का कर्ता भाव, अहंकार, भव सागर, सिद्धियां और निधियां, जीवन की सार्थकता‘आदि ऐसे ही 62 शीर्षकों के मोतियों को पिरोकर बनाई गई -‘धर्मो रक्षित रक्षितः’ नामक यह ग्रन्थ रूपी माला देश और समाज के हितार्थ डॉक्टर सोमदत्त शर्मा जी द्वारा रचित एक उपहार है।
पुस्तक सहज और सरल, भाषा में रची गई है। मुद्रण साफ-सुथरा और त्रृटिहीन है। 212 पृष्ठीय इस पुस्तक का शब्द-शब्द ब्रह्म की भाँति हितकर सिद्ध होगा, ऐसा पूर्ण विश्वास है।
डॉ दिनेश पाठक ‘शशि’
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