विश्वास की डोर भक्त और भगवन की

सुपरनैचुरल
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शिव महात्मा जी के पास जाता है और कहता है गुरुजी मुझे आप चेला बना लो और मुझे इतना आशीर्वाद दो कि मैं सभी को उपदेश दे सकूं |

महात्मा जी यह बात सुनकर थोड़े मुस्कुराए और फिर बोले क्या नाम है बेटा |

शिव ने कहा गुरुजी मेरा नाम शिव है और मैं पास के गांव से ही हूं -सभी गांव वालों ने बोला आपकी सेवा करूं तो मुझे आप आशीर्वाद देंगे इसलिए मैं आपका आशीर्वाद लेने आ चला |

गुरुजी ने कहा हम ऐसे आशीर्वाद नहीं देते किसी को पहले तो मैं मेरी सेवा करनी होगी इसके बाद हम तुम्हें आशीर्वाद देंगे |

शिव ने कहा ठीक है गुरु जी मैं आपकी सेवा करूंगा इसके बाद आप मुझे आशीर्वाद दे देना |

गुरुजी ने कहा ठीक है आज से इस आश्रम में सभी कामों में हाथ बटाना |

शिव ने कहा ठीक है गुरुजी |

गुरुजी स्नान करने के लिए पास वाली नदी में अपने शिष्यों के साथ जाने लगे तब गुरुजी ने कहा अरे शिव मैं शिष्यों के साथ स्नान करने के लिए नदी में जा रहा हूं जब तक मैं आऊं तब तक काम कर लेना |

शिव ने कहा ठीक है गुरुजी कुछ समय पश्चात गुरुजी और उनके शिष्यों के साथ स्नान करने के बाद आश्रम में आए तो गुरु जी ने देखा |

काम तो कुछ हुआ ही नहीं ना सफाई ना ही बर्तन मजे और ना ही झाड़ू लगा|

गुरुजी ने फिर शिव को आवाज लगाई और बोले -मैंने कहा था काम कर लेना मगर कुछ भी काम नहीं हुआ |

फिर शिव ने जवाब दिया गुरुजी आपने काम करने का बोला था लेकिन कौन सा काम करना था यह नहीं बताया इसलिए मैं सोचता रहा कि कौन सा काम करूं, झाड़ू लगाऊ कि बर्तन मांजू की लकड़ियां इकट्ठा करू और मैंने सोचा यदि झाड़ू लगा दिया और आप मेरे ऊपर गुस्सा हो गए तो मुझे आशीर्वाद नहीं देंगे

क्या पता है कि आप कौन सा काम करवाना चाहते है|

इसलिए नहीं किया , अब आप मुझे काम बता देते कि झाड़ू लगाना है कि बर्तन माँजना है कि लकड़ियां इकट्ठा करना है तो मैं कर लेता |

यह बात सुनकर सभी शिष्य हंसने लगे ,

गुरुजी ने इशारा किया कि चुप हो जाओ

फिर गुरुजी भी मुस्कुराने लगे और बोले तू बड़ा भोला है रे ,

शिव बोला मेरा नाम भोला नहीं है गुरुजी मेरा नाम तो शिव है

गुरुजी ने कहा हां मैं जानता हूं तेरा नाम शिव है अच्छा पहले झाड़ू लगा ले फिर बर्तन मांज लेना इसके बाद लकड़ियां इकट्ठा कर लेना खाना भी तुझे बनाना है सभी लोगों का |

शिव ने कहा ठीक है गुरुजी मैं सब काम कर लूंगा जो आपने बताया लेकिन गुरु जी यह सब काम करने के बाद मुझे करना क्या होगा |

गुरुजी ने कहा यह सब काम करने के बाद आराम कर लेना |

शिव ने कहा ठीक है गुरुजी |

फिर सभी काम करने के बाद शिव विश्राम करने के लिए पेड़ के नीचे बैठ गया और सोचते-सोचते शिव की नींद लग गई |

गुरु जी आए गुरु जी ने देखा शिव ने तो सारा काम कर लिया और शिव सो रहा है

सभी शिष्यों ने शिव को सोता हुआ देखकर गुरु जी से कहा गुरुजी यह शिव तो सो रहा है |

गुरुजी ने कहा उसने सारा काम कर लिया इसके बाद वह आराम कर रहा है उसे आराम करने दो फिर सभी शिष्यों ने शिव से कुछ नहीं कहा |

एक समय की बात है सभी शिष्य अपने-अपने घर गए तभी गुरु जी को किसी आवश्यक कार्य के कारण उन्हें 1 हफ्ते के लिए बाहर जाना पड़ा |

तब शिव को बुलाकर गुरुजी ने कहा हे शिव तू मेरा सबसे प्रिय शिष्य है और तुझे एक आवश्यक कार्य सौप कर मैं कुछ समय के लिए इस आश्रम से बाहर जा रहा हूं ,तुझे सभी भगवानों को स्नान कराना है और उनको सही समय पर भोजन कराना है और उनकी देखरेख करना है |

इसके अलावा इस आश्रम की भी तुझे सही समय पर नित्य सफाई करना है |

शिव कहा गुरुजी आप बिल्कुल चिंता मत करिए मैं सही समय पर सब कार्य पूर्ण कर लूंगा |

गुरुजी ने कहा अच्छा ठीक है अब मैं जा रहा हूं ध्यान रखना |

शिव ने कहा ठीक है यह कहकर गुरुजी आश्रम से प्रस्थान कर गए

शाम का वक्त हो चला था सभी कार्य करने के बाद शिव को ध्यान आया सभी देवता गण शाम को खाना भी खाएंगे उनके लिए खाना भी बना लू

इसके बाद शिव ने 12 किलो की रोटियां बना ली और घी लगाकर थाली लगा दी |

सबके लिए शिव ने आवाज लगाई सभी देवता लोगों आजाओ भोजन बन गया है और मैंने तुम सब के लिए थाली लगा दी है पानी भी रख दिया है जल्दी से आ जाओ मुझे सोना भी है बर्तन मांज के और सुबह तुम्हारे लिए खाना भी बनाना है आश्रम की सफाई भी करना है|

इसलिए देर मत करो बाहर पानी रख दिया है ,हाथ धोकर खाना खाने के लिए बैठ जाओ |

शिव ने बार-बार आवाज लगाई लेकिन कोई देवता भोजन करने के लिए नहीं आया|

शिव को आया गुस्सा और शिव सभी मंदिरों में गया और बोला आपको कम सुनाता है क्या, मैंने आपके लिए बढ़िया टिक्कर बनाएं और थाली सजा के रख दी है चलो भोजन कर लो मुझे बर्तन भी मांजना है

लेकिन कोई देवता गण भोजन करने के लिए नहीं आया

शिव ने कुटिया से बाहर आकर फिर से भोजन के लिए कहा लेकिन कोई भी नहीं आया तो फिर शिव ने कहा ऐसे नहीं आओगे गुरु जी के कहने पर सभी भोजन करने के लिए आ जाया करते थे और मेरे बुलाने पर कोई भी नहीं आ रहा , रुको मैं तुम्हारी अभी खबर लेता हूं |

इसके बाद शिव ने एक टेडपा (डंडा) उठाया और सभी मंदिरों की ओर चल दिया सबसे पहले शिव - श्री हरि विष्णु जी के मंदिर गए और कहां आप भोजन करने के लिए चल रहे हो या नहीं

उधर मंदिरों के देवता गण आपस में बात करने लगे इसे देखो हमारे लिए टेडपा (डंडा) लेकर आया है और श्री हरि जी को दादागिरी बता रहा है |

इधर पवन देव बोले अगर आप सभी सहमत हो तो इस मुर्ख को फूंक मारकर इसे समुद्र में फेंक दूं क्या ?

उधर शिव ने श्री हरि विष्णु जी से फिर पूछा - भोजन करने के लिए आ रहे हो क्या वरना यह डंडा उठाऊं |

श्री हरि बोले - नहीं नहीं हम भोजन करने के लिए आ रहे हैं इसके बाद श्री हरी मंदिर से निकलकर भोजन करने के लिए चलने लगे यह देख कर सभी देवता लोग आश्चर्यचकित हो गए फिर

सभी देवता गण श्री हरि से पूछने लगे प्रभु आप भोजन करने के लिए जा रहे हो श्री हरि बोले हां क्योंकि उसे विश्वास है कि गुरु जी के कहने पर हम सभी भोजन करने के लिए जाते हैं और यह विश्वास उसका अटल है इसलिए मैं अपने इस भक्त का विश्वास नहीं तोड़ना चाहता हूं इसलिए मैं भोजन करने के लिए इसके साथ जा रहा हूं और आप भी चलिए कहीं ऐसा ना हो वह डंडा से आपको ठोके |

फिर सभी देवता गण हंसने लगे और कहने लगे श्री हरि जैसी आपकी इच्छा

जब रात होती है तो शिव - देवताओं से कहते है चलो लघु शंका करलो यदि तुमने इस मंदिर में करली तो मुझे ही साफ करना पड़ेगी और पूरे मंदिर की सफाई भी करना पड़ेगी क्योंकि गुरु जी ने मुझे आप सभी की जिम्मेदारी सौंपी है इसलिए आप सभी को समय-समय पर लघु शंका कराउ फिर सभी देवता गण लघु शंका करते हैं और यही दिनचर्या बन जाती है

फिर ऐसे ही करके सभी देवता गण ने छः 6 दिन भोजन किया सातवें दिन की सुबह शिव ने टिक्कर बनाकर उन पर घी लगाकर थाली लगाई और देवता गण को आवाज लगाई कि आजाओ थाली लग गई है,भोजन कर लो भोजन करने के पश्चात सभी देवता गण अपनी-अपनी थाली लेकर बाहर आते हैं|

तभी गुरुजी आश्रम के बहार खड़े होकर यह नजारा देख रहे थे की शिव बहुत सारे लोगों को भोजन करा रहा है यह देख कर आश्चर्यचकित हो गए और मन में सोचने लगे मैंने तो भगवान की सेवा करने के लिए इसे रखा था और समय पर उन्हें स्नान कराएं लेकिन यह मूर्ख तो भगवान को छोड़ो यह इन लोगों को खाना खिला रहा है जो किसी काम के नहीं और यह खाना खाकर अपने पेट पर हाथ फेर कर चले जाएंगे और इस आश्रम में गंदगी फैलाकर और सफाई इसको और मेरे शिष्यों को करना पड़ेगी |

अब इस मूर्ख को कौन समझाएं जो अकल से पैदल जो है इसे आश्रम की जिम्मेदारी देकर बहुत बड़ी भूल की

फिर इसके बाद गुरु जी आश्रम में प्रवेश करते हैं और वह देखते हैं सभी व्यक्ति अदृश्य हो गए हैं केवल उनकी खाने की थालियां ही दिखाई देती है यह देखकर गुरु जी को बड़ा आश्चर्य होता है|

फिर शिव गुरु जी के पास आता है और कहता है गुरुजी आप कब आ गए

गुरु जी ने शिव से पूछा अभी-अभी मैंने देखा कि तुम इस आश्रम में कुछ लोगों को खाना खिला रहे हो वह सभी इतनी जल्दी कहां चले गए|

शिव ने कहा गुरुजी वह देवता गण खाना खाकर अपने-अपने मंदिर में जा रहे हैं

गुरु जी कहते हैं क्या बक रहे हो मुझे तो कुछ दिखाई नहीं दे रहा ?

शिव कहता है गुरुजी वह देखिए श्री हरि विष्णु जी जा रहे हैं अपने मंदिर में और इनके अलावा सभी देवता गण जा रहे हैं अपने-अपने मंदिर में खाना खाकर

और आप कह रहे हैं मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा

फिर गुरु जी बोलते हैं अच्छा मुझे यह बता इन सभी देवताओं के साथ और तूने क्या-क्या किया |

शिव बोलता है गुरुजी मैंने सही समय पर इन्हे लघुशंका कराई चाहे तो देख लो

गुरुजी हंसकर बोले अच्छा तू ने इन्हे लघुशंका भी कराई

शिव ने कहा हां गुरुजी

गुरुजी ने कहा चल मुझे दिखा कहां तुमने इन्हें लघु शंका कराई |

शिव ने कहा चलिए गुरु जी देख लीजिए

फिर शिव उसी जगह ले गया जहा पर रोज लघुशंका सभी देवता गण करते थे|

गुरु जी ने देखा उस जगह पर सोने के टुकड़े पड़े है यह देख कर शिव के हाथ जोड़ने लगे धन्य है तेरी भक्ति अरे मैंने तो अपना सारा जीवन प्रभु के चरणों में समर्पित कर दिया लेकिन उनके दर्शन तक नसीब नहीं हुए और धन्य है तेरी भक्ति कि तूने स्वयं साक्षात श्री हरि को और सभी देवताओं को अपने हाथों से भोजन खिलाया और मैं कितना दुर्भाग्य है मेरा की प्रभु के दर्शन करने के पश्चात भी तुझ पर प्रश्न चिन्ह उठाया मुझे माफ कर दो

शिव कहता है यह क्या कर रहे हो गुरुजी मैंने तो सिर्फ आपकी आज्ञा का पालन किया है

गुरुजी कहते हैं अच्छा मुझे यह बता यह सब कैसे किया

शिव बोला इसमें कौन सी बड़ी बात है गुरुजी जिस तरह आप प्रतिदिन इन सभी को भोजन खिलाते थे तो मैंने भी खिला दिया क्योंकि मुझे विश्वास आप पर था कि आप सभी देवताओं को भोजन कराते हो तो मैंने भी भोजन सभी को कराया बस मुझे आप पर विश्वास था और आपके भगवान पर इसलिए सभी ने भोजन किया

इतनी बात सुनकर गुरुजी रोने लगे और कहने लगे मुझे इतना भरोसा क्यों नहीं हुआ हे प्रभु मुझे क्षमा करें मैं आप के दर्शन करने के लिए कहां-कहां भटका और आप साक्षात मेरी कुटिया में भोजन करने आए यह मेरा सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि मैं आपको भोजन ना करा सका मुझे क्षमा करें |

यह देखकर सभी देवता गण बोले श्री हरि से यह कैसी माया है प्रभू

श्री हरि कहते हैं विश्वास सबसे बड़ा फल होता है मेरे भक्त शिव को मुझ पर विश्वास था की प्रतिदिन भोजन करने के लिए गुरु जी की कुटिया में जाता हूँ और उस विश्वास को में कभी नहीं तोड़ सकता हूं

जो भी भक्त मुझ पर विश्वास करता है मैं उसकी रक्षा अवश्य करता हूं इसलिए भक्तों को विश्वास की डोर पर मुझे आना पड़ता है चाहे इसके लिए सृष्टि का नियम ही क्यों ना बदलना पड़े

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