बिन्नी

वीमेन्स फिक्शन
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वट वृक्ष के चारों तरफ बने चबूतरे पर मीटिंग चल रही थी, बहुत सी औरतें इकट्ठी थीं। एक करीब बीस - पच्चीस वर्ष की युवती चबूतरे के बीचों - बीच खड़ी थी, अन्य नीचे बैठी महिलाओं को उद्भोदित कर रही थी। मैं वहां से गुजर रही थी, मुझे आफिस जाने की जल्दी थी, फिर भी मैंने अपनी स्कूटी को एक तरफ साइड में खड़ा कर दिया। मेरे कानों ने जो सुना तो सन्न रह गई।

बिन्नी कह रही थी - सुनो , आज से हम सभी कामगार महिलाऐं हड़ताल पर रहेंगीं। पहले तीन दिन की हड़ताल और यदि हमारी मांगें पूरी नहीं हुईं तो अनिश्चितकालीन हड़ताल होगी।

सभी महिलाऐं आपस में खुसुर - फुसुर करने लगीं - ये क्या कह रही है बिन्नी ! अरे हम काम पर नहीं जायेंगे तो पैसा कौन देगा ? कैसे चूल्हा जलेगा ? तुम्हारा दिमाग फिर गया है बिन्नी !

बिन्नी ने कहा - काकी देखती जाओ , तीन दिन क्या , एक दिन में ही हमारी मांगें पूरी हो जाएँगीं।

पर वो कैसे ?

हम शहर की सबसे बड़ी कालोनी के घरों में झाड़ू - पौंछा , बरतन करते हैं , खाना बनाते हैं, जहाँ सब अमीर लोग रहते हैं जो ज्यादातर बीमारियों से घिरे रहते हैं या नौकरी पर जाने वाली महिलाऐं रहती हैं। इनका हमारे बिना एक दिन भी क्या , एक टाइम भी ना जाने पर हालत ख़राब हो जाती है। हम पढ़े - लिखे नहीं हैं तो क्या , मेहनत करते हैं तब इन अमीरों और पढ़े - लिखों का काम चलता है। पर, इन लोगों की दृष्टि में हमारी कोई इज्जत नहीं है , जरा सी देर हो जाय तो डाँटना - झड़पना शुरू कर देती हैं। तीन सौ रूपये में दोनों टाइम के बर्तन मंजवाती हैं , मँहगाई सुरसा के मुँह सी बढ़ रही है। अरे , हम भी इंसान हैं ! इनको चाय - नाश्ता में जरा सी देर हो जाय तो इनका सिर दुखने लगता है। हम दो - दो घंटे काम करते हैं , एक कप चाय नहीं दे पाते ? खाने - पीने को भी देंगीं तो बचा - खुचा बासा जिसे खाकर हम बीमार पड़ते हैं और दवाई भी नहीं करवा पाते। नहीं खाएंगे हम बासा। हम अपनी मांगें मनवा कर रहेंगे।

काकी बोली - बिन्नी , कौन कौन सी मांगें ?

बिन्नी बोली -

नं. 1- एक माह में तीन दिन की छुट्टी ,

नं. 2 - प्रतिदिन चाय - नाश्ता ,

नं. 3 - प्रत्येक काम के , झाड़ू - पौंछा के छै सौ रूपये , बरतन के छै सौ रूपये , इससे कम नहीं , चाहे दो जन के बरतन ही क्योँ न हों ,

नं. 4 - वो चाहे एक महीने के लिए घूमने जाएँ , चाहे पंद्रह दिन के लिए , हमें तनख्वाह पूरी चाहिए ,

नं. 5 - फाग / दिवारी / तिथि - त्यौहार में भत्ता , आखिर हमारे भी तो बाल - बच्चे खाना - खेलना चाहते हैं। हम भी इंसान हैं , त्यौहार मनाना चाहते हैं।

काकी बोली - पर हम अपनी बात कैसे पहुंचाएंगे ?

चिंता न करो काकी।

बिन्नी कक्षा पांचवीं तक पढ़ी थी , उसने अपनी मांगों की बड़ी-बड़ी दफ़्ती बनाई और प्रत्येक महिला के हाथ में अपनी मांगें लिखकर दे दीं। कामगार औरतों की पूरी भीड़ कालोनी में नारे लगाती हुई निकल पड़ी -

कामगार महिला एकता जिंदाबाद , जिंदाबाद .... , हमारी मांगें पूरी करो .... पूरी करो ....

देखते ही देखते कालोनी से लगी हुई अन्य कालोनियों की बाइयां भी इकट्ठी हो गईं। सभी घरों की धनाढ्य महिलाऐं बाहर निकलकर चर्चा करने लगीं -

इन चीटियों के पर निकल आये हैं- एक महीना तनख्वाह न मिलेगी तो सब पता चल जाएगा।

सरला की मम्मी बोली - आशा , तुम एक महीने की बात कर रही हो , मेरे यहाँ तो आज मेहमान आने वाले हैं।

तभी रजनी बोली - मेरी तो शुगर बढ़ी है , ऊपर से अम्मा बीमार हैं।

ये क्या कर रही हैं कामगार औरतें ?

तभी रचना मैडम हांफती सी आईं - अरे स्कूल में एक्जाम चल रहे हैं , मेरी ड्यूटी लगी है , घर के बच्चों के भी पेपर हैं , अब झाड़ू - पौंछा , बरतन करूँ या नौकरी ? बच्चों को देखूं , क्या करूँ , हाय - हाय ! अच्छा तमाशा लगा रखा है इन कामगार औरतों ने !

समाजसेवी महिलाऐं भी इकट्ठी होने लगीं - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कार्यक्रम करने हैं , ये बाइयां नहीं आएंगीं तो आयोजन कैसे संभलेगा ? जुलूस में बाइयों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। मैं आफिस तो पहुँच गई किन्तु , कानों में आवाज गूंज रही थी , उनके एजेंडे गूंज रहे थे - हमारी मांगें पूरी करो ....

शाम को ही शीला बहिन जी बोलीं - कुछ तो करना होगा।

अब पूरी कालोनी की महिलाओं ने एक मीटिंग एयरकंडीशन रूम में रखी। चर्चा का विषय था , "कामगार औरतें" एक - एक करके सबने बाइयों से जुडी समस्या पर अपने विचार रखे। अंततः एक स्वर से सभी ने कामगार औरतों की मांगों को स्वीकार किया और बुद्धिजीवी महिलाओं ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर इन महिलाओं को सम्मानित करने का फैसला भी किया। पहली बार मीटिंग बिना चाय - नाश्ता के समाप्त हुई क्योंकि बरतन साफ़ करने , चाय - नाश्ता का इंतजाम करने की झंझट कौन करता ?

बिन्नी जुलूस का नेतृत्व कर रही थी। उसके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी। मांगें पूरी होने पर हड़ताल समाप्त हुई। सभी कामगार औरतें बिन्नी को माला पहनाकर उसका सम्मान कर रही थीं। इस हड़ताल का प्रभाव शहर से जिला और जिले से प्रदेश स्तर पर हुआ। शीघ्र ही प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बाइयों की इन मांगों को कानून में परिवर्तित कर दिया। इस आंदोलन की प्रणेता बिन्नी का नाम प्रदेश के अखबारों में चमक रहा था।

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