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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palनाम - डॉ. सुधा गुप्ता ' अमृता ' पति - स्व. श्री जगदीश गुप्त , कवि / साहित्यकार जन्म - 04 जुलाई 1954 , कटनी म. प्र. शिक्षा - एम.ए. पी-एच.डी.( हिंदी ) , बी.एड. , संगीत प्रभाकर , ड्राइंग डिप्लोमा लेखन विधा - कविता, कहानी, गीत, नवगीत, लघुकथा , बालगीत, बालकहानी, लोRead More...
नाम - डॉ. सुधा गुप्ता ' अमृता '
पति - स्व. श्री जगदीश गुप्त , कवि / साहित्यकार
जन्म - 04 जुलाई 1954 , कटनी म. प्र.
शिक्षा - एम.ए. पी-एच.डी.( हिंदी ) , बी.एड. , संगीत प्रभाकर , ड्राइंग डिप्लोमा
लेखन विधा - कविता, कहानी, गीत, नवगीत, लघुकथा , बालगीत, बालकहानी, लोरी, प्रभाती , बाल उपन्यास , यात्रा संस्मरण आदि
प्रकाशित पुस्तकें - ' किरदार बोलते हैं ' कहानी संग्रह , ' बिना नेल पालिश वाली उँगलियाँ ' कविता संग्रह , ' धूप के पंख ' गीत संग्रह , ' ताकि बची रहे हरियाली ' बालगीत संग्रह , ' चुलबुली ' , ' पम्मी शम्मी ' , ' जंगल की एकता ' ( बालकहानी संग्रह ) , ' निंदिया ले के साथ चांदनी आ जाना ' लोरी - प्रभाती गीत संग्रह , ' आई तो आई कहाँ से ' बाल उपन्यास , ' राष्ट्रीय फलक पर स्वातंत्र्योत्तर बाल कविता का अनुशीलन ' शोध ग्रन्थ , ' पर्व जयंतियां एवं दिवस ' , ' मध्यप्रदेश की बोलियों में बालगीत ' (म.प्र.आदिवासी लोककला एवं भाषा विकास 0अकादमी द्वारा प्रकाशित) , ' चलें भ्रमण की ओर ' यात्रा संस्मरण
सम्पादित पुस्तकें: मध्यप्रदेश की बोलियों में बालगीत -मध्यप्रदेश आदिवासी लोककला एवं भाषा विकास अकादमी द्वारा प्रकाशित
सम्मान / पुरस्कार - बृजबिहारी टंडन सारस्वत सम्मान , बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केंद्र भोपाल / बाल कल्याण संस्थान कानपुर , ब्रह्मदत्त तिवारी स्मृति पुरस्कार , हिंदी लेखिका संघ भोपाल , जानकी नेगी स्मृति बाल साहित्य सृजन सम्मान , उत्तराखंड बाल साहित्य संस्थान अल्मोड़ा , शब्द भूषण , शब्द प्रवाह उज्जैन , विद्यादेवी भदौरिया स्मृति बाल साहित्य सम्मान , भोपाल , भगवती प्रसाद गुप्त स्मृति बाल साहित्य सम्मान , बाल कल्याण संस्थान कानपुर , भक्त शिरोमणि मीरा राष्ट्रीय सम्मान , हल्दीघाटी , राष्ट्रीय साहित्य साधना अलंकरण , निर्दलीय भोपाल , विद्या वाचस्पति , भागलपुर , भारत ज्योति अवार्ड दिल्ली , पं हरप्रसाद पाठक स्मृति बालसाहित्य पुरस्कार मथुरा , श्यामलाल सोनी पुरस्कार , हिंदी लेखिका संघ भोपाल , काशीबाई मेहता लेखिका सम्मान , मध्यप्रदेश लेखक संघ भोपाल , ' हिंदुस्तानी भाषा काव्य प्रतिभा सम्मान ' नई दिल्ली ( देश के श्रेष्ठ 70 गीतकारों में चयन ) , स्व. बालशौरि रेड्डी स्मृति बालसाहित्य सम्मान , ' शब्द प्रवाह उज्जैन , ' डॉ. परशुराम शुक्ल बाल साहित्य पुरस्कार ' वर्ष 2016 प्रथम , वर्ष 2017 तृतीय , वर्ष 2018 तृतीय ' देवपुत्र बाल पत्रिका इंदौर द्वारा पुरस्कृत , ' शब्द निष्ठा सम्मान ' आचार्य रत्नलाल ' विद्यानुग ' स्मृति बाल साहित्य प्रतियोगिता 2019 ' , अजमेर , ' शब्द निष्ठा सम्मान , ' आचार्य रत्नलाल ' विद्यानुग ' स्मृति ' कहानी संग्रह समीक्षा चतुर्थ पुरस्कार 2020 अजमेर , ‘ केशर - पूरन स्मृति पुरस्कार ' देवपुत्र पत्रिका द्वारा वर्ष भर में प्रकाशित बाल साहित्य पुस्तक परिचय स्तम्भ के अंतर्गत सर्वश्रेष्ठ कृति ' चलें भ्रमण की ओर ' पुरस्कृत
सम्बद्धता - म. प्र. बाल कल्याण परिषद , म. प्र. शासन , म. प्र. लेखक संघ भोपाल , हिंदी लेखिका संघ भोपाल , बाल कल्याण एवं बालसाहित्य शोध केंद्र भोपाल , भारतीय बाल कल्याण संस्थान कानपुर , हिंदी साहित्य सम्मलेन भोपाल
विशेष - प्रेमचंद सृजन पीठ म. प्र. संस्कृति परिषद् के अखिल भारतीय कथा समारोह ग्वालियर में भागीदारी एवं जबलपुर तथा रीवा कथा समारोह में सहभागिता |
जे. पी. पब्लिक स्कूल नोएडा ने 2011-12 से स्वरचित प्रातः प्रार्थना गीत को अपनाया | कुछ बालगीतों का मराठी में अनुवाद एवं देवपुत्र में प्रकाशन |
बालसाहिय में शोध उपाधि , जिला , राज्य एवं राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार (राष्ट्रपति पुरस्कार)
सम्प्रति - म. प्र. स्कूल शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्ति पश्चात स्वतंत्र लेखन
स्व निवास पर बच्चों की साहित्यक अभिरुचि एवं पाठ्येत्तर गतिविधियों को गति प्रदान करने के लिए ' बाल कल्याण साहित्य सृजन केंद्र ' की स्थापना l
संपर्क - दुबे कालोनी , कटनी 483501 म. प्र. चलितभाष : 094249 -14474 / 95844 -15174
ईमेल : sudhaamrita.gupta@gmail.com
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Achievements
लघु कथा वह सूत्र है जो जीवन की विकटतम परिस्थितियों /समस्याओं से जूझने का हल बताती हैं। आज की वर्तमान भागमभाग भरी जिंदगी को इन्हीं सूत्रों की आवश्यकता है ।संभवतः इसी आवश्यकता ने
लघु कथा वह सूत्र है जो जीवन की विकटतम परिस्थितियों /समस्याओं से जूझने का हल बताती हैं। आज की वर्तमान भागमभाग भरी जिंदगी को इन्हीं सूत्रों की आवश्यकता है ।संभवतः इसी आवश्यकता ने लघुकथा को जन्म दिया और इसे पाठकों ने इस कदर पालित पोषित किया कि आज यह अपने अपूर्व यौवन काल को प्राप्त हो गई है ।मेरी पहली लघु कथा "पागल" शीर्षक से 90 के दशक में दैनिक नव भारत में प्रकाशित हुई थी ।यह सिलसिला शनै: शनै :कहानियों के साथ-साथ बढ़ता गया ।हर काम का काल निर्धारण ऊपर वाले के हाथ में ही होता है। करीब चार-पांच वर्ष पूर्व से इन लघु कथाओं की पांडुलिपियां फाइल में कैद फड़फड़ा रही थी ,किंतु आज उनके पुस्तक रूप में आने का वक्त आ गया है।
90 के दशक से सृजित इन लघु कथाओं में समय परिवर्तन की पूर्वोत्तर, उत्तरोत्तर धड़कन भी सुनाई देंगी। मैं समझती हूं, लघुकथा का काम केवल सूत्र संकेत करना होना चाहिए। पाठकों को स्वयं सूत्र लगाकर समस्या का समाधान करने के लिए जागरूक करने का काम करती है लघुकथा ।
मेरे लघुकथा संग्रह "चाँटे" की लघु कथाएं ऐसे ही मन को आंदोलित करेंगी। मेरा विश्वास है ।कहां तक सफल हुई हूं ,यह तो आप प्रबुद्ध पाठक वर्ग को ही बताना है। आपकी प्रतिक्रिया का विनम्रता पूर्वक हमेशा स्वागत रहेगा ।
"शेर को बुखार" में 10 बाल कहानियां है चूंकि ,बाल साहित्य की पहली शर्त मनोरंजन है अतः यह कहानियां बच्चों का भरपूर मनोरंजन करेंगी ,बच्चे जीव जगत से परिचित होंगे, मुहावरों और लोक भाषा स
"शेर को बुखार" में 10 बाल कहानियां है चूंकि ,बाल साहित्य की पहली शर्त मनोरंजन है अतः यह कहानियां बच्चों का भरपूर मनोरंजन करेंगी ,बच्चे जीव जगत से परिचित होंगे, मुहावरों और लोक भाषा से परिचित होते हुए विज्ञान की ओर उन्मुख होंगे और जिज्ञासु बनेंगे ,पाठ्यक्रम की बोझिलता से दूर मनोरंजन की दुनिया में प्रवेश करेंगे इसी उद्देश्य को पूरा करने की कोशिश है 'शेर को बुखार'।
स्मृतियों की बगिया में जो संस्मरण के सुमन, सुवासित हुए हैं उन्होंने दीये का शाश्वत प्रकाश बनकर सदैव मेरी साहित्यिक यात्रा का पथ प्रशस्त किया है। स्मृतियों के ये दीपक पाठक को
स्मृतियों की बगिया में जो संस्मरण के सुमन, सुवासित हुए हैं उन्होंने दीये का शाश्वत प्रकाश बनकर सदैव मेरी साहित्यिक यात्रा का पथ प्रशस्त किया है। स्मृतियों के ये दीपक पाठक को संवेदना से भर देंगे। कभी हंसाएंगे, कभी गुदगुदाऐंगे , तो कभी करुणा का झरना बनकर आंखों की कोर से झरेंगे। मेरे पति वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश गुप्त जी ने इस पुस्तक में 10 संस्मरण ही शामिल किए जाने की तैयारी कर दी थी पर, क्या पता था कि उनके कीर्ति शेष हो जाने पर वही इस संस्मरण संग्रह का हिस्सा बनेंगे। समय कभी निष्ठुर बनता है तो ,कभी बलवान बन कर मनमानी करता है। खैर उनकी अंतिम यादों को वे कोविड के दिन रात गुप्त जी के साथ शीर्षक से संजोया है
राहों के दीये बनकर कभी साहित्यकारों ने मुझे रास्ता दिखाया तो कभी मेरे विद्यालय के बच्चों ने तो कभी शिक्षकों ने। इतना तो तय है कि ये संस्मरण पाठक के मानस पटल को उल्लास से भर कर हृदय में जगह बनाएंगे। प्रत्येक संस्मरण का ताना-बाना जीवन की घटनाओं से बुना गया है जो पाठक के साथ तादात्म्य स्थापित करेगा। उसे कथा रस का आनंद भी मिलेगा। मेरा यह अटल विश्वास कितना सफल होता है यह तो पाठक ही बतलाएंगे। अब यह आपके हाथों सौंपती हूं, अपना प्रथम संस्मरण संग्रह "राहों के दीये-"----
वट वृक्ष के चारों तरफ बने चबूतरे पर मीटिंग चल रही थी, बहुत सी औरतें इकट्ठी थीं। एक करीब बीस - पच्चीस वर्ष की युवती च Read More...
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