JUNE 10th - JULY 10th
कहानी
थैंक्यू अम्मा
आदरणीय अम्मा
सादर प्रणाम
बहुत कुछ है लिखने को, कहने को समझ नही पा रही थी कैसे लिखूं।जब से तुम गई हो मन मे एक अजीब सा सूनापन भर गया है।लगता है कहीं कुछ नही है।प्यार ममत्व दुलार ज़िद इठलाना सब जैसे मेरे जीवन से गायब हो गए है।बात बात पर तुनक उठने वाली तुम्हारी बिटिया अब किसी को जवाब नही देती।उसे पता है अब हर सही या गलत में साथ देने वाली माँ जो नहीं है।बस रीते हुए मन मे ज़िम्मेदारी ने डेरा जमा रखा है।हर काम समय पर पूरा होता है किसी चीज़ की चाह नही रही।
अम्मा पता है तुम्हारा पुराना घर बदल गया है।दीवारों में नए रंगरोगन हो गए हैं।तुम्हारी पुरानी अलमारियों की जगह नई बड़ी अलमारियों ने ले ली है।तुम्हारा चौका अब स्मार्ट किचन बन गया है।अब आल्हों और अलमारियों में बर्तन झांकते हुए नही दिखाई देते।सब अपने खाँचो में फिट बैठे है।फर्श संगमरमरी हो गई है।चप्पल पहन कर अंदर आने पर नजाने कितनी बार मेरे कान उमेठे गए और धौल खाई।पर अब सब घर पर चप्पल पहनते हैं।अब आँगन में ऊपर हरी प्लास्टिक शीट पड़ गई है।सब बेहद खूबसूरत हो गया है।हाँ पर अब आँगन में गोरैया नही आती।हर बार जब भी जाती हुँ कुछ नई चीज़े देखने को मिलती है मुझे अच्छा लगता है।पर अम्मा तुम्हारे जाने के 25 सालो बाद भी अगर कुछ नही बदला था तो वो थी याद पुरानी बातों की पुरानी चीज़ों की, मकान बहुत अच्छा है पर अपना नही लगता था।तुम्हारी कमी महसूस होती थी। जब भी आती मन मे तमाम बातें होती लगता कि तुम से कह कर मन हल्का हो जाता।तमाम चीजें थी जो तुमसे पूछनी थीं।पर सबमें में ही रह जाता।और जब अपनी सहेलियों की मां को देखती उन्हें उनके बछो को प्यार करते देखती तो सच कहूं आंखों में आंसू आ जाते।लगता तुम भी इस ही करती और हर बार मैन के न होने की टीस ले कर वापस लौट जय करती ।
पर इस बार कुछ ऐसा हुआ कि ऊपर के कमरे में रखी तुम्हारी पेटी सफाई के वक्त नीचे उतराई गई मैं भी वही थी। ये वही संदूक थी जिसे बाबा कहते थे फेक दो या किसी को दे दो पर तुम कहती थी मेरी अम्मा की दी हुई है मैं नही फेकूँगी।हम बच्चो को तो उसे छूना भी मना था ।उस दिन उसे खोलते हुए न जाने कितनी यादें कितने भाव मन मेंआए बता नही सकती।उस संदूक में सबसे ऊपर एक नारंगी सफेद फूल और हरी पत्तियों वाला टीन का गोल डब्बा रखा था मुझे याद आया ये तो चॉकलेट का डब्बा था ढेर सारी चॉकलेट लाये थे बाबा।कोतुहलवश जब उसे खोला तो देखा उसमे ऊपर ओर्गेंडी के बने कढ़ाई वाले रुमाल थे ।अरे,,,ये तो मैंने 8वी कक्षा में बनाये थे ।पूरी क्राफ्ट की क्लास में सबसे अच्छे बने थे मेरे रुमाल 6 स्टिच सीखी थी मैंने वे सभी सुरक्षित वैसे ही जमे रखे थे।उसके नीचे कपड़े से बनी फूल वाली बेल्ट थी जो दीदी पहना करती थी मन पुलक सेभर गया।उसमे कुछ बटन बक्कल भी थे।उस डब्बे के नीचे सफेद साटन की फ्रॉक भी रखी थी जो दीदी ने मेरे लिए बनाई थी।पहले मैंने वो डब्बा उठा लिया फिर ये सोचकर वापस रख दिया कि शायद उसमे दीदी भैया और नन्हे की यादें भी हों।अम्मा पता है उस संदूक में अब भी तुम्हारा लहंगा वैसा ही रखा है।सच कहूँ तो तुम्हारे जाने के सालो बाद उस दिन ऐसा लगा जैसे तुम्हारी संदूक में मेरा बचपन समेटा हुआ रखा है।
माँ अपने बच्चों की चीज़ें याद के रूप में सम्भाल लेती है सँजो लेती है।नीड से जब नन्हे परिंदे उड़ जाते हैं तो उन्ही चीज़ों को निहार के उन्हें दुआएँ देती है।
पर तुम नही जानती अम्मा जब तुम नही रहती तो ये चीज़े तुम्हारे बच्चो के रीते मन मेभी ममता और स्नेह जगा जाती है।
अम्मा पेड़ो से गिरी पत्तियां वापस नही जुड़ पाती पर ब्याही बेटियां मायके ज़रूर आती है।नए घर में अपनी जगह बनाने का संघर्ष और जन्मस्थली में अपना स्थान खोने की सच्चाई के साथ कई बार मन उद्वेलित हो उठता है और तब तुम्हारी चीज़े उसे एक नया सम्बल दे देती है।
नानी की उस पेटी में अम्मा तुम्हारा प्यार बन्द है मेरा बचपन बन्द है।अगली बार फिर आउंगी फिर मिलूंगी अपने बचपन से फिर सहलाऊंगी उन चीज़ो को जो तुमने मेर याद में सम्हाली थीं और ले जाऊंगी तुम्हारे होने का एहसास।मेरा मन आज फिर खिल उठा हैं नई शाख से निकली नई पत्तियों की तरह ।थैंक यू अम्मा लव यू अम्मा।अम्मा ये आजकल के नए बच्चे ऐसे ही बोलते है।पर मैंने तो कभी नही कहा सो आज लिख रही हूँ। थैंक यू अम्मा।
प्यार सहित
तुम्हारी बेटी
द्वारा
मीनू सिंह (स्वरचित)
#293
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mirakumar72
shwetakhushipandya
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