'नया स्वेटर'

कथेतर
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'नया स्वेटर'

रश्मि आज फिर दस वर्षीय बेटे दीपांशु के लिए दो नए स्वेटर खरीद लाई थी .पलंग पर बैठा दीपांशु अपने नए वीडियो गेम में मस्त था.अभी पिछले हफ़्ते ही तो वह दो स्वेटर उसके लिए लाई थी. जितनी जल्दी में उसे दिखाकर उन्हें उसके सामने रखती, उतनी ही बेफ़िक्री से वह बिना देखे ही पैरों से एक ओर हटाते हुए पुन: वीडियो गेम का आनंद लेने में व्यस्त हो जाता . दूर से यह देख रहा पिता सरस, बरबस अपने बचपन में खो जाता है ....
'मां अम्मा !... कितने दिनों तक वही समझता रहा अम्मा मां का नाम है वह पूरा ही पुकारता था उसे अपने आप पर हंँसी आ गई .जैसे अभी कल की ही तो बात है. मां अम्मा उसके लिए लाल हरी धारियों वाला स्वेटर बुनते हुए अक्सर उसे नाप के लिए अपने पास बुला लेती .वह भी कितने उत्साह से अम्मा के पास खड़ा अपना नया स्वेटर बनते चाव से देखता,
" कितना बना मां अम्मा ? अभी और कितना समय लगेगा?" अम्मा की धोती के पल्लू से खेलते मचलते हुए उनसे पूछता तो अम्मा हँसते हुए जवाब देती,
" अभी एक बित्ता और बिनूंगी तब जाकर बाहें घटाना शुरू करूंगी.बड़ा उतावला है रे तू सरू ."मां अम्मा प्यार करती, मुस्कराती .
"मां अम्मा, हमारा फुटबॉल मैच है अगले हफ्ते ,खेलने जाऊंगा इसे पहन कर, तब तक तो आप बना दोगी ना ."वह लाल पीले मुलायम उन के गोलों से खेलने लगता.
"छोड़ उलझ जायेंगे सरू." उसके हाथ से गोला लेकर मुस्कुराते हुए जल्दी-जल्दी हाथ चला स्वेटर बुनने लगती.एक फंदे के साथ उनका प्यार भी बुनता जाता. जितने चाव से वह स्वेटर बुनती जाती उतने ही प्यार से मैं नाप देता जाता.अपनेपन की गर्माहट की अनोखी ख़ुशी से भर उठता.थोड़ी थोड़ी देर बाद मैं फिर भाग कर आता,
" कितना हुआ मां अम्मा?
'देखूं इधर, हां अब घटाना शुरू करती हूं नाप लेने के बाद वह बोलती तो मैं खुश होकर फिर खेलने भाग जाता.
4 दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा .मैं बढ़ते स्वेटर के साथ हर बार अपने भीतर बढ़ती उमंग ,उत्कण्ठा की अनुभूति करता जाता और अम्मा अपने फंदे और सलाईयों में ढेर सारा स्नेह बांधकर बुनती जाती.
आखिर मैच मैच के 1 दिन पहले लाल हरी धारियों वाला नया स्वेटर मां अम्मा ने तैयार कर ही दिया .
"ले पहन के देख आजा ,देख सरू एकदम सही बैठा है ना...? बड़ा जंच रहा है रे तू." अम्मा ने गालों पर कस के प्यार किया और उसके बालों में उंगलियां फंसाकर ठीक करने लगी बिल्कुल हीरो लग रहा है अपना शुरू तो कहीं नजर न लग जाए उन्होंने बड़े प्यार से अपनी आंख का काजल मेरे माथे के कोने पर हल्का सा छुआ दिया था मैं खुशी से फूला नहीं समाया .खुशी ज़ाहिर करने उनके गले में अपनी छोटी छोटी बाहें डालकर बोला ,"आप बहुत अच्छी हो मां अम्मा "और आंगन में लगेगी ने जीनिया और गेंदे के गमलों के बीच टेढा़ मेढ़ा होता प्लेन चित्र हाथ फैलाए आवाज निकाल कर दौड़ने लगा था ज़ूऽऽम ज़ूऽऽम "
"अरे उतार, जल्दी से धो देती हूं सुबह तक सूख जाएगा फिर कल मैच खेलने जाएगा तब पहनना.हीरो तो तू है ही. कल डबल हीरो बनना है तुझे...." मैं फ़ौरन भागकर पास आ गया था.
दूसरे दिन जब मां अम्मा ने प्रेस किया वह तैयार स्वेटर पहनाया तो उनकी ममता हर फंदे के साथ उनकी आंखों में भी झांक रही थी. मैं पहनकर अपने को किसी हीरो से कम नहीं समझ रहा था.
सीना फूलकर मानो गले तक आ गया था.मैं मां के कंधे तक भी तो नहीं आता था उस समय उनकी कमर में दोनों बाहें डालकर प्यार से बांध लिया.
बैट बॉल उठाकर तेजी से यह कहता हुआ भागा,
" मां अम्मा देखना मैं कप जीतकर ही आऊंगा और उस दिन वाकई में मैं कप जीतकर ही आया था मां अमरता ने खुशी से मेरा माथा चूमा और भेज कर मुझे गले से लगा लिया .
"मां अम्मा ! सभी बच्चे अध्यापक मेरे नये स्वेटर के बारे में पूछ रहे थे .कौन लाया ?कहां से खरीदा? तो मैंने भी बोल दिया मेरी प्यारी मां अम्मा ने बनाया है मेरे लिए और क्या ."
ठंड से लाल हो रहे गालों को सहला कर मां अम्मां निहाल हुई जा रही थीं. और मैं कप पकड़े बाहें उनकी कमर में डाल मां अम्मा से कसकर लिपट गया था.
"खाना टेबल पर लगा दिया है सरस! दीपांशु को भी खिला देना मुझे किटी के लिए देर हो रही है ."सरस तंद्रा से जाग उठा. वह सोचने लगा ,
'काश मां अम्मा की मधुर स्मृतियों से कभी ना लौटना होता....काश वो अपनेपन का सुख ,वो प्यार ,वो ख़ुशी आज भी मातापिता और उनकी संताने अनुभव कर पाती तो भौतिक विकास के साथ साथ भावनात्मक विकास से मानव जीवन धन्य हो उठता।
~इति_____कहानी: 'नया स्वेटर'.... 'लेखिका डॉ.नीरजा श्रीवास्तव 'नीरू'
Mob..8587944931,Email : drneers@gmail.com

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